बैसाखी 2025 कब है? जानिए इस पावन पर्व की तिथि, शुभ मुहूर्त, पौराणिक कथा, खालसा पंथ की स्थापना का इतिहास और किसानों के इस फसल उत्सव का सांस्कृतिक महत्व।
बैसाखी 2025 की तिथि और दिन
बैसाखी का पर्व हर साल 13 या 14 अप्रैल को मनाया जाता है परन्तु इस वर्ष 2025 में यह पर्व सोमवार, 14 अप्रैल, दिन सोमवार को मनाया जाएगा। यह दिन सूर्य के मेष राशि में प्रवेश का प्रतीक है, जिसे मेष संक्रांति भी कहते हैं।
पंचांग अनुसार बैसाखी 2025 का शुभ मुहूर्त:
सूर्य मेष राशि में संक्रांति 13 अप्रैल 2025, दिन रविवार को प्रातः 03:30 बजे करेंगे। इसलिए बैसाखी का त्योहार 14 अप्रैल दिन सोमवार को मनाया जायेगा।
बैसाखी पर्व का मुहूर्त: 14 अप्रैल को प्रातः 05:26 बजे से लेकर दोपहर 07:01 बजे तक अमृत मुहूर्त है। इसके बाद सुबह 08:36 से लेकर दोपहर के 12:30 बजे तक अच्छा मुहूर्त है।पूजा का सर्वोत्तम समय: प्रातःकाल, सूर्योदय से दोपहर तक है।
क्या है बैसाखी त्योहार
बैसाखी, जिसे वैशाखी भी कहा जाता है, भारतीय सनातन संस्कृति और सिख धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है। इसका धार्मिक, ऐतिहासिक और सामाजिक महत्व व्यापक रूप से स्वीकार्य है। यह पर्व मुख्यतः वैशाख मास की संक्रांति को मनाया जाता है, जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है। यह न केवल कृषि की नई फसल के स्वागत का दिन है, बल्कि धार्मिक पुनर्जागरण और धार्मिक बलिदान की परंपरा से भी जुड़ा हुआ है।
बैसाखी का वैदिक और पौराणिक कथाएं
बैसाखी का पर्व वैदिक काल से जुड़ा हुआ है। प्राचीन काल में इस दिन को "मेष संक्रांति" के रूप में मनाया जाता था, जब सूर्य अपनी कक्षा में परिवर्तन करते हुए मेष राशि में प्रवेश करता है। यह ऋतु परिवर्तन का संकेत भी देता है। वसंत ऋतु से ग्रीष्म ऋतु हो जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह दिन ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि की रचना के आरंभ का दिन भी माना गया है। इसी दिन उन्होंने वेदों की रचना की थी। यह दिन सूर्योपासना और जल दान के लिए अति शुभ माना जाता है। शिवालय में आज ही के दिन से शिवलिंग पर घड़े के माध्यम से बूंद बूंद पानी गिरना प्रारंभ हो जाता है।
सिख धर्म में बैसाखी का विशेष महत्व
सिख धर्म के इतिहास में बैसाखी एक ऐतिहासिक महत्व का प्रतीक है। वर्ष 1699 में आनंदपुर साहिब में दसवें सिख गुरु, श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने इस दिन खालसा पंथ की स्थापना की थी।
खालसा पंथ की स्थापना की घटना इस प्रकार है:
13 अप्रैल 1699 को, गुरु गोविंद सिंह जी ने हजारों सिखों की उपस्थिति में एक विशाल सभा बुलाई। उन्होंने अपने भक्तों से पूछा, “कौन है जो अपने धर्म की रक्षा के लिए अपना सिर दे सकता है?” यह सुनकर सभा में सन्नाटा छा गया, लेकिन कुछ ही क्षणों बाद एक सिंह (दया राम) ने आगे आकर अपना सिर अर्पण करने की स्वीकृति दी।
गुरु जी उन्हें तंबू के अंदर ले गए और थोड़ी देर बाद बाहर आए, उनकी तलवार खून से सनी थी। उन्होंने चार बार और यही सवाल दोहराया और क्रमशः धर्म दास, मोहकम चंद, साहिब चंद, और हिम्मत राय आगे आए।
बाद में गुरु जी ने उन पांचों को बाहर लाकर सबको बताया कि ये पांचों जीवित हैं और इनकी परीक्षा ली गई थी। इन्हें “पांच प्यारों” की संज्ञा दी गई, और इन्हीं से अमृत संचार करवा कर खालसा पंथ की नींव रखी गई।
गुरु गोविंद सिंह जी ने कहा “आज से न कोई ऊंचा, न कोई नीचा, सब खालसा हैं – वीर, निर्मल और धर्म योद्धा।”
खालसा पंथ का क्या है उद्देश्य
अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करना। सत्य और धर्म की रक्षा करना। मानव मात्र को समान दृष्टि से देखना। जातिवाद, पाखंड, और रूढ़ियों से लड़ना। इस प्रकार बैसाखी, सिखों के लिए धार्मिक पुनर्जागरण का प्रतीक बन गया।
बैसाखी का कृषि और लोक संस्कृति से अटूट संबंध
भारत एक कृषि प्रधान देश है, और बैसाखी किसानों के लिए फसल कटाई का उत्सव है। विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा, उत्तर भारत के अन्य भागों में यह पर्व रबी की फसल (गेहूं, सरसों) के पकने पर धन्यवाद स्वरूप मनाया जाता है।
क्या करते हैं: इस दिन किसान
खेतों में नई फसल काटते हैं। गुरुद्वारों और मंदिरों में अर्पण करते हैं। भांगड़ा, गिद्दा जैसे लोकनृत्य करते हैं। मेले, उत्सव और झांकियों का आयोजन करते हैं। यह दिन समाज में सामूहिकता, उत्सव और भाईचारे का प्रतीक होता है।
अन्य राज्यों में बैसाखी का रूप:
असम में बोहाग बिहू: यह कृषि नववर्ष का प्रतीक है। बंगाल में नाबा बर्षा। केरल में विशू। तमिलनाडु में पुथांडु। ओडिशा में महाविषुव संक्रांति और नेपाल में नव वर्ष प्रारंभ कहा जाता है।
हर राज्य में यह पर्व अलग-अलग नामों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है, पर मूल भावना नवचेतना जगाना और घरों में समृद्धि लाना है।
बैसाखी की पूजा विधि:
बैसाखी के दिन प्रातः स्नान कर के स्वच्छ वस्त्र धारण करें। सूर्य को जल अर्पित करें। घर में या गुरुद्वारे में विशेष पूजा करें। गाय, अन्न और जल का दान करें। खालसा रूप धारण कर अमृत संचार कार्यक्रम में भाग लें।
भंडारे का आयोजन करें। सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लें। बैसाखी न केवल एक पर्व है, बल्कि धार्मिक चेतना, वीरता, और समाजिक एकता का भी संदेश देती है।
यह हमें अपने संस्कार, धर्म और संस्कृति की रक्षा करने की प्रेरणा देती है। खालसा पंथ की स्थापना और नव वर्ष की शुरुआत इस दिन को विशेष बनाती है। हर भारतवासी को इस पर्व के बहुआयामी महत्व को समझकर इसे उत्साह और श्रद्धा से मनाना चाहिए।
डिस्क्लेमर
यह लेख पूरी तरह धर्म आधार पर आधारित है। लेख लिखने का उद्देश्य सनातनियों के बीच अपने धर्म और त्योहार के प्रति जागरूकता पैदा करना मात्र उद्देश्य है। लेख लिखने के पूर्व विद्वान बह्मणों, आचार्यों और लोक कथाओं सहित इंटरनेट से भी सहयोग लिया गया है। लेख लिखने के पूर्व पूरी तरह से अनुसंधान कर लिखा गया है। यह लेख सिर्फ सूचनाप्रद है। इसकी सत्यता की गारंटी हम नहीं लेते हैं।