चैत्र नवरात्रि 2025 का पर्व 30 मार्च से शुरू होकर 07 अप्रैल तक मनाया जाएगा। यह नौ दिवसीय उत्सव मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना के लिए समर्पित है।
पौराणिक और अध्यात्मिक कथा के अनुसार दुर्गा पूजा का महत्व:
पौराणिक मान्यताओं और कथाओं के अनुसार, महिषासुर नामक राक्षस ने ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त किया था कि उसकी मृत्यु केवल एक स्त्री के हाथों ही हो सकती है। इस वरदान के कारण उसने तीनों लोकों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। देवताओं की प्रार्थना पर माता दुर्गा ने अपने नौ रूप प्रकट किए और नौ दिनों तक चले घमासान युद्ध के बाद महिषासुर का वध किया। इसी विजय के उपलक्ष्य में नवरात्रि मनाई जाती है।
एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई से पहले चैत्र नवरात्रि में दुर्गा की पूजा की थी और शक्ति प्राप्त की थी।
कब होगा कलश स्थापना अर्थात घटस्थापना:
चैत्र नवरात्र में कलश स्थापना 30 मार्च 2025, दिन रविवार, शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि को होगा। कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त 30 मार्च 2025 को प्रातः 07:12 बजे से लेकर 12:14 बजे तक है। इस दौरान चर, लाभ और अमृत मुहूर्त सहित अभिजीत मुहूर्त भी रहेगा।
कलश स्थापना विधि के अनुसार पूजा स्थल को स्वच्छ कर, वहां गंगाजल का छिड़काव किया जाता है। मिट्टी के घड़े (कलश) में जल भरकर, आम के पत्ते लगाएं, नारियल रखें और लाल कपड़े से ढकें। इसे मंदिर या पूजा स्थल में स्थापित करें। दुर्गा सप्तशती का पाठ, देवी के मंत्रों का जाप, फूल-फल अर्पित करें। दिन तक सात्विक भोजन (फल, दूध, साबूदाना) लें।
अनाज, प्याज, लहसुन आदि वर्जित हैं। सुबह-शाम दीपक जलाकर आरती करें। यह शुभ कार्य घर में सुख-समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। पारण 07 अप्रैल को नवमी के दिन कन्या पूजन और हवन के बाद व्रत तोड़ें।
नवरात्र का व्रत विधि क्या है:
नवरात्रि के दौरान व्रत रखने से शरीर और मन की शुद्धि होती है। व्रत के नियमों में सूर्योदय से पहले स्नान करना, व्रत का संकल्प लेना, सात्विक भोजन करना, लहसुन-प्याज से परहेज करने के अलावा, प्रतिदिन देवी के मंत्रों का जाप करना और दुर्गा सप्तशती का पाठ करना शामिल है। व्रत के दौरान क्रोध, नकारात्मकता और बुरे विचारों से बचना चाहिए।
नौ दिनों की पूजा और देवी के स्वरूप: प्रत्येक दिन मां दुर्गा के एक विशेष रूप की पूजा की जाती है:
30 मार्च दिन रविवार प्रतिपदा तिथि को माता शैलपुत्री जो पर्वतराज हिमालय की पुत्री है कि पूजा होगी।
31 मार्च दिन सोमवार को द्वितीया तिथि के दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करें जो तपस्या की देवी है।
01 अप्रैल दिन मंगलवार तृतीया तिथि को मां चंद्रघंटा की पूजा होगी जो चंद्रमा की अलंकृत देवी है।
02 अप्रैल दिन बुधवार चतुर्थी तिथि को मां कुष्मांडा की पूजा करें जो ब्रह्मांड की रचयिता है।
03 अप्रैल दिन गुरुवार को पंचमी तिथि है। इस दिन मां स्कंदमाता की पूजा होती है जो कार्तिकेय की माता है।
04 अप्रैल, दिन शुक्रवार को षष्ठी तिथि है इस दिन मां कात्यायनी की पूजा करने का विधान है। इस दिन ऋषि कात्यायन की पुत्री है।
05 अप्रैल दिन शनिवार, सप्तमी तिथि को मां कालरात्रि की पूजा होगी जो अंधकार को नष्ट करने वाली है।
06 अप्रैल दिन रविवार, अष्टमी तिथि को माता महागौरी की पूजा होती है जो शांति और सौंदर्य की देवी है।
07 अप्रैल दिन सोमवार को नवमी को मां सिद्धिदात्री की पूजा होगी जो सभी तरह की सिद्धियां प्रदान करने वाली है।
कन्या पूजन और हवन:
कन्या पूजन 07 अप्रैल 2025 नवमी तिथि को किया जाएगा। इसमें 09 कन्याओं अर्थात देवी के नौ रूपों के प्रतीक को भोजन कराकर उपहार दिए जाते हैं।
हवन भी नवमी तिथि अर्थात 07 अप्रैल के दिन मंत्रोच्चार के साथ यज्ञ किया जाता है। इसमें घी, समिधा, तिल, चावल, जौव, धूप आदि अर्पित किए जाते हैं।
डिस्क्लेमर
यह कथा पूरी तरह धर्म शास्त्रों पर आधारित है। दुर्गा सप्तशती और देवी पुराण सहित इंटरनेटस से भी कथा लिखने के दौरान सहयोग लिया गया है। लेख लिखने का मुख्य उद्देश्य सनातनियों के बीच अपने धर्म के प्रति जागरूकता पैदा करना मात्र है। तिथि और शुभ मुहूर्त की गणना पंचांग से किया गया है। इस लेख की सत्यता की गारंटी हम नहीं लेते हैं।