रंगोत्सव अर्थात होली चैत्र माह कृष्ण पक्ष के प्रतिपदा तिथि दिनांक 04 मार्च 2026 दिन बुधवार को मनाई जाएगी।
इससे एक दिन पूर्व, 3 मार्च 2026 को होलिका दहन किया जाएगा। होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 3 मार्च दिन मंगलवार को प्रदोष काल में होगा, जो सूर्यास्त के बाद का समय होता है।
पूर्णिमा तिथि का शुभारंभ 02 मार्च दिन सोमवार को संध्या 05:55 बजे से शुरू होकर 03 मार्च दिन मंगलवार को संध्या 05:07 बजे तक रहेगा। इसके बाद चैत्र माह कृष्ण पक्ष प्रतिपदा तिथि प्रारंभ हो जाएगा। जो 04 मार्च दिन बुधवार को संध्या 04:48 बजे तक रहेगा।
होली हिन्दुस्तान का एक प्रमुख त्योहार है, जो रंगों, उमंग और भाईचारे का प्रतीक है। यह त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। होली का पर्व दो दिनों तक चलता है: पहले दिन होलिका दहन होता है, जिसे छोटी होली भी कहा जाता है, और दूसरे दिन रंग वाली होली खेली जाती है।
होली मनाने के पीछे अनेक पौराणिक कथाएं हैं:
पहली कथा हिरण्यकश्यप, प्रह्लाद और होलिका की:
प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नामक एक असुर राजा था, जिसने घोर तपस्या करके भगवान ब्रह्मा से वरदान प्राप्त किया था कि उसे कोई भी प्राणी न दिन में, न रात में, न घर में, न बाहर, न अस्त्र से, न शस्त्र से मार सके। इस वरदान के कारण वह अहंकारी हो गया और स्वयं को भगवान मानने लगा। उसने अपने राज्य में भगवान विष्णु की पूजा पर प्रतिबंध लगा दिया।
हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। पिता के विरोध के बावजूद, प्रह्लाद ने विष्णु भक्ति नहीं छोड़ी। हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के कई प्रयास किए, लेकिन हर बार प्रह्लाद बच गया।
अंत में, हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से सहायता मांगी, जिसे वरदान था कि अग्नि उसे जला नहीं सकती। होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहे और होलिका जलकर भस्म हो गई। यह घटना बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है और तभी से होलिका दहन की परंपरा चली आ रही है। और दूसरे दिन प्रह्लाद के जीवित रहने के खुशी पर नगर वासियों रंगो का उत्सव होली मनाया।
दूसरी पौराणिक कथा राधा-कृष्ण की रंगभरी होली की:
भगवान कृष्ण का रंग सांवला था, जबकि राधा गोरी थीं। कृष्ण ने अपनी माता यशोदा से पूछा कि राधा इतनी गोरी क्यों हैं ? यशोदा ने मजाक में कहा कि तुम राधा को अपने जैसा रंग लगा दो। तब कृष्ण ने अपने सखाओं के साथ मिलकर रंगों से खेलना शुरू किया, जिससे रंग वाली होली की परंपरा शुरू हुई। आज भी बरसाना की लठमार होली इस परंपरा की याद दिलाती है।
तीसरी पौराणिक कथा कामदेव और भगवान शिव की:
पार्वती जी भगवान शिव से विवाह करना चाहती थीं, लेकिन शिव जी तपस्या में लीन थे। देवताओं ने कामदेव से शिव जी की तपस्या भंग करने का अनुरोध किया। कामदेव ने पुष्प बाण चलाया, जिससे शिव जी की तपस्या भंग हुई और क्रोधित होकर उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोलकर कामदेव को भस्म कर दिया। बाद में, रति की प्रार्थना पर शिव जी ने कामदेव को पुनर्जीवित किया। इस घटना की खुशी में होली का त्योहार मनाया जाता है।
चौथी पौराणिक कथा धुंधी राक्षसी की:
प्राचीन काल में धुंधी नामक एक राक्षसी थी, जो बच्चों को परेशान करती थी। राजा पृथु के समय में, बच्चों ने फाल्गुन पूर्णिमा के दिन आग जलाकर धुंधी पर कीचड़ फेंका और शोर मचाया, जिससे वह नगर से भाग गई। तब से होलिका दहन और धूलिवंदन की परंपरा शुरू हुई।
पांचवीं पौराणिक कथा पूतना वध और होली की:
कंस ने अपने भांजे कृष्ण को मारने के लिए पूतना नाम की राक्षसी को भेजा, जो बच्चों को विषपान कराकर मार देती थी। लेकिन कृष्ण ने उसकी सच्चाई समझ ली और उसे मार डाला। कहा जाता है कि यह घटना फाल्गुन पूर्णिमा के दिन हुई थी, इसलिए लोग इसे बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में होली मनाने लगे।
होली का क्या है सांस्कृतिक महत्व:
होली का त्योहार सामाजिक एकता, प्रेम और भाईचारे का प्रतीक है। इस दिन लोग पुराने गिले-शिकवे भूलकर एक-दूसरे को रंग लगाते हैं, गले मिलते हैं और मिठाइयां बांटते हैं। होली का त्योहार हमें यह सिखाता है कि हमें अपने जीवन से नकारात्मकता को दूर करना चाहिए और सकारात्मकता को अपनाना चाहिए। यह त्योहार हमें जीवन के रंगों का आनंद लेने और हर पल को खुशी से जीने की प्रेरणा देता है।
डिस्क्लेमर
होली पर लिखा गया यह लेख पूरी तरह तत्वों पर आधारित है। लेख लिखने के पूर्व विद्वान पंडितों, सामाजिक मान्यताओं पर आधारित है। इंटरनेट से सहयोग लिया गया है। लेख लिखने का मुख्य उद्देश्य सनातनियों के बीच अपने त्योहार के प्रति जागरूकता पैदा करना और धार्मिक रुचि बढ़ाना है। शुभ मूहूर्त और तिथियों की जानकारी पंचांग से लिया गया है। अपनी ओर से लेख लिखने में कोई कोर कसर नहीं छोड़े है। सत्यता की गारंटी हम नहीं लेते हैं।