25 जनवरी 2025 को षट्तिला एकादशी व्रत जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, पौराणिक कथा व देश-विदेश में मंदिर

षट्तिला एकादशी को हम दूसरी मकर संक्रांति कहते हैं क्योंकि इस दिन भी तिल खाने, दिल से स्नान करने और तिल दान करने का विशेष महत्व है। इस पर्व में तिल को छह प्रकार से उपयोग किया जाता है। जानें विस्तार से।

 25 जनवरी 2025 दिन शनिवार, पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को षट्तिला एकादशी मनाया जाएगा। एकादशी तिथि शुभारंभ 24 जनवरी, दिन शुक्रवार, शाम 07:25 बजे से होगा, जो 25 जनवरी, दिन शनिवार रात 08:31 बजे तक एकादशी तिथि रहेगा।  

पारण का समय: 26 जनवरी, रविवार, अहले सुबह 04:49 बजे से लेकर सुबह 06:27 बजे के बीच रहेगा।

पूजा विधि

1. स्नान और संकल्प

प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और भगवान विष्णु के समक्ष व्रत का संकल्प लें।

2. भगवान विष्णु की पूजा

भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र पर गंगाजल छिड़कें और तिल, रोली, चंदन, पुष्प, धूप-दीप आदि से पूजन करें। तुलसी के पत्ते अवश्य चढ़ाएं। एकादशी व्रत में चारों पहर पूजा करने का विधान है।

षट्तिला एकादशी की पौराणिक कथा

षट्तिला एकादशी का वर्णन और पौराणिक कथा प्राचीन ग्रंथों, विशेषकर पद्म पुराण में विस्तार से मिलता है। इस व्रत का नाम ‘षट्तिला’ इसलिए पड़ा क्योंकि इसमें तिल के छह प्रमुख रूपों का उपयोग किया जाता है।

षट्तिला एकादशी शरद ऋतु के दौरान पड़ती है। ऐसे स्थित में शरीर को गर्म रखने के तिल का उपयोग आर्युवेद में बताया गया है। जिसे वैज्ञानिक भी सही मानते हैं। सनातनी व्रत और त्योहार इसका ज्वलंत उदाहरण है। तिल का तासीर गर्म हे।

षट्तिला एकादशी न केवल भगवान विष्णु की महिमा को उजागर करती है, बल्कि दान, पुण्य और निःस्वार्थ सेवा की आवश्यकता को भी स्पष्ट करती है।

नारद मुनि का प्रश्न और भगवान श्रीहरि विष्णु का जवाब 

एक बार देवर्षि नारद ने भगवान विष्णु से पूछा, "हे प्रभु! कृपा करके बताएं कि षट्तिला एकादशी का व्रत करने से क्या फल प्राप्त होता है और इसका क्या महत्व है जीवन में?"

भगवान विष्णु ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, "हे नारद! यह एकादशी अत्यंत पुण्य दायी है। इसका पालन करने से सभी जीव समस्त पापों से मुक्त हो जाता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। मैं तुम्हें एक कथा सुनाता हूं, जो षट्तिला एकादशी के महत्व को स्पष्ट करेगी।"

ब्राह्मणी और भगवान श्रीविष्णु की लीला

पौराणिक काल में धरती पर एक ब्राह्मणी रहती थी। वह बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी और व्रत-उपवास का कठोर पालन करती थी। लेकिन उसके जीवन में एक कमी थी—वह कभी भी दान-दक्षिणा नहीं देती थी। अपने जीवन में उसने न तो भूखे को अन्न दिया और न ही प्यासे को जल और न ही निर्धन को सहयोग किया।

एक दिन भगवान विष्णु उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उसकी परीक्षा लेने के लिए भिक्षुक का रूप धारण कर उसके घर पहुंचे। उन्होंने दरवाजे पर दस्तक दी और भोजन की याचना की। ब्राह्मणी ने बिना कुछ दिए भिक्षुक को वापस लौटा दिया।

कुछ दिनों के बाद ब्राह्मणी का देहांत हो गया और वह स्वर्ग में पहुंच गई। लेकिन वहां उसे एक विचित्र अनुभव हुआ। स्वर्ग में उसका घर तो सुंदर था, लेकिन उसमें न तो अन्न था और न ही कोई सामग्री। भूख-प्यास से व्याकुल होकर वह भगवान श्रीविष्णु की शरण में गई और उनसे अपने कष्ट का कारण पूछा।

भगवान विष्णु ने कष्ट निवारण उपाय बताएं 

भगवान विष्णु ने कहा, "हे ब्राह्मणी! तुमने अपने जीवन में व्रत-उपवास तो किए, लेकिन तुमने कभी किसी भूखे को अन्न या किसी जरूरतमंद को दान नहीं दिया। यही कारण है कि स्वर्ग में तुम्हारे घर में भोजन सामग्री नहीं है। अब तुम पृथ्वी पर जाओ और षट्तिला एकादशी का व्रत करो। इस व्रत के प्रभाव से तुम्हारे समस्त पाप नष्ट हो जाएंगे और तुम्हें संतोषप्रद जीवन मिलेगा।"

ब्राह्मणी ने भगवान के निर्देशानुसार पृथ्वी पर आकर षट्तिला एकादशी का व्रत किया। उसने तिल का स्नान किया, तिल का हवन किया, तिल का दान किया और तिल का सेवन किया। इस व्रत के प्रभाव से उसके सारे पाप समाप्त हो गए और उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई।

भगवान विष्णु का संदेश

भगवान विष्णु ने कहा, "जो व्यक्ति षट्तिला एकादशी के दिन तिल का उपयोग करता है और इस कथा का श्रवण करता है, वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति को भौतिक और आध्यात्मिक सुख प्राप्त होता है।"

कथा का शिक्षाप्रद पहलू

षट्तिला एकादशी की यह कथा इस बात पर जोर देती है कि व्रत और तपस्या तभी फलदायी होते हैं जब उन्हें दान और सेवा से जोड़ा जाए। तिल का उपयोग इस व्रत में विशेष महत्व रखता है क्योंकि यह शुद्धता, पवित्रता और निःस्वार्थ सेवा का प्रतीक है। इसके अलावा शरीर को स्वस्थ्य रखने का प्रमुख कारक है।

तिल के छह उपयोग

षट्तिला एकादशी में तिल का उपयोग छह प्रकार से किया जाता है:

1. तिल से स्नान: पानी में डालकर या शरीर में तिल या तेल को मलकर स्नान करने से शारीरिक और मानसिक शुद्धि मिलती है।

2. तिल का दान: तिल से समाग्री बनाकर भूखे और जरूरतमंदों की सेवा करें।

3. तिल का सेवन: तिल समाग्री बनाकर खाने से आत्मिक बल और स्वास्थ्य जीवन जीने में बल मिलता है।

4. तिल का हवन: अपने घरों का वातावरण की शुद्धि और देवताओं को प्रसन्न करने के लिए हवन करें।

5. तिल का उबटन: शरीर की पवित्रता के लिए नहाने के पूर्व तिल का उबटन लगाने चाहिए।

6. तिल मिश्रित जल: शरीर के आंतरिक शुद्धता के लिए तिल मिलाए जल पीने चाहिए।

4. व्रत कथा का श्रवण

ब्राह्मणों से या स्वयं षट्तिला एकादशी व्रत कथा का पाठ सुनें।

5. दान

तिल, अन्न, वस्त्र, जल आदि का दान करें। विशेष रूप से तिल का दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।

शुभ मुहूर्त

एकादशी व्रत के दौरान व्रतधारियों को चारों पहर पूजा करने का विधान है। आइए पंचांग के अनुसार जानें पूजा करने का शुभ मुहूर्त। 

सुबह 07:50 बजे से लेकर 09:12 बजे तक शुभ मुहूर्त है। इस प्रकार दोपहर को 11:36 बजे से लेकर 12:20 बजे तक अभिजीत मुहूर्त और 11:58 बजे से लेकर 01:20 बजे तक चर मुहूर्त रहेगा। इस दौरान आप दोपहर का पूजा कर सकते हैं।

संध्या समय शाम 05:26 बजे से लेकर 05:52 बजे तक गोधूलि मुहूर्त और 05:29 बजे से लेकर रात 07:06 बजे तक लाभ मुहूर्त रहेगा। उसी प्रकार रात्रि 10:20 बजे से लेकर 11:58 बजे तक अमृत मुहूर्त और 11:37 बजे से लेकर 12:24 बजे तक निशिता मुहूर्त रहेगा।

26 जनवरी सुबह 04:49 बजे से लेकर 06:27 बजे तक लाभ मुहूर्त रहेगा। इस दौरान आप पूजा अर्चना कर पारण कर सकते हैं।

षट्तिला एकादशी के प्रमुख मंदिर

1. भारत में मंदिर

श्री रंगनाथस्वामी मंदिर, श्रीरंगम, तमिलनाडु

जगन्नाथ मंदिर, पुरी, ओडिशा

बद्रीनाथ मंदिर, उत्तराखंड

धारेश्वर मंदिर, कर्नाटक

2. विदेशों में मंदिर

अंगकोर वाट मंदिर, कंबोडिया

बाली में विष्णु मंदिर, इंडोनेशिया

श्री विष्णु मंदिर, नेपाल

डिस्क्लेमर  

षट्तिला एकादशी व्रत लेख पूरी तरह सनातन धर्म से संबंधित है। लेख में इंगित विभिन्न पहलुओं की जानकारी धार्मिक पुस्तकों से ली गई है। साथ ही शुभ मुहूर्त पंचांग से लिया गया है। लेख लखते समय विद्वान ब्राह्मणों, आचार्यों, लोक कथाओं और इंटरनेट से भी सहयोग लिया गया है। लेख को लिखने का उद्देश्य सिर्फ सनातनी लोगों को अपने धर्म और अपने पर्व त्यौहार के बारे में सटीक जानकारी उपलब्ध कराना मात्र उद्देश्य है। यह लेख लिखनेे का उद्देश्य लोगों के बीच सिर्फ सूचना प्रदान करना ही मुख्य उद्देश्य है। इसकी सत्यता की गारंटी हम नहीं लेते हैं।




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