गायत्री जयंती 9 अगस्त 2025 को: जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, पौराणिक कथा सहित देश-विदेश कहां-कहां है मंदिर

 गायत्री जयंती का उत्सव वेदों की अधिष्ठात्री देवी गायत्री माता के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। गायत्री जयंती सनातनी पंचांग के अनुसार  09 अगस्त 2025, दिन शनिवार, श्रवण माह शुक्ल पक्ष के पूर्णिमा तिथि को मनाई जाएगी।

कौन और कैसी है गायत्री माता 

गायत्री माता को वेद माता कहा जाता है, और यह ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि की रचना के समय उत्पन्न हुई थीं। मान्यता है कि जब ब्रह्मा जी यज्ञ करने के लिए जल लेने गंगा नदी गए, तब उनके यज्ञ को पूरा करने के लिए गायत्री स्वरूप प्रकट हुईं। वे भगवान विष्णु के रूप में शुद्ध ज्ञान और शक्ति का प्रतीक मानी जाती हैं।

गायत्री मंत्र का उल्लेख ऋग्वेद में है, और इसे संसार का सबसे पवित्र मंत्र माना गया है। गायत्री देवी को पांच मुखों और दस हाथों वाली देवी के रूप में चित्रित किया गया है, जो विभिन्न शक्तियों का प्रतीक 

गायत्री माता की पौराणिक कथा:

गायत्री माता को हिंदू धर्म में वेद माता कहा जाता है। वे ब्रह्मांड की संरचना और चेतना का प्रतीक हैं। गायत्री मंत्र, जिसे प्राचीन वैदिक मंत्रों में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है।

गायत्री माता की उत्पत्ति:

पौराणिक कथा के अनुसार, जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की, तो उन्हें यज्ञ की आवश्यकता महसूस हुई। एक यज्ञ के लिए जब वे जल लेने गंगा तट पर गए, तो उन्हें यज्ञ पूरा करने के लिए एक शक्तिशाली और शुद्ध ऊर्जा की आवश्यकता पड़ी। इसी समय ब्रह्मा जी के तप और ध्यान से गायत्री देवी प्रकट हुईं।

गायत्री माता का स्वरूप पांच मुखों और दस हाथों वाला है। उनके पांच मुख पांच तत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश) का प्रतीक हैं। उनके दस हाथों में विभिन्न प्रतीकात्मक वस्तुएं हैं, जैसे:

1. कमल: पवित्रता का प्रतीक।

2. जपमाला: ध्यान और साधना।

3. पुस्तक: ज्ञान का प्रतीक।

4. अभय मुद्रा: भय से मुक्ति।

5. कमंडल: जीवन और जल का स्रोत

गायत्री और यज्ञ की कथा

एक अन्य कथा के अनुसार, ब्रह्मा जी ने जब यज्ञ करना चाहा, तो उन्हें यह अनुभव हुआ कि उनके साथ उनकी पत्नी सावित्री होनी चाहिए। लेकिन किसी कारणवश सावित्री उस समय उपस्थित नहीं हो सकीं। तब ब्रह्मा जी ने गायत्री देवी का आह्वान किया। गायत्री देवी ने यज्ञ को पूरा किया और ब्रह्मा जी को यज्ञ की शक्ति प्रदान की। इस घटना के बाद, गायत्री देवी को यज्ञों की देवी और वैदिक धर्म का आधार माना गया।

गायत्री माता और त्रिदेवों का संबंध

गायत्री माता को त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, और महेश) की शक्ति का संगम माना गया है।

1. ब्रह्मा जी की शक्ति: वे सृष्टि की रचना करती हैं।

2. विष्णु जी की शक्ति: वे सृष्टि का पालन करती हैं।

3. शिव जी की शक्ति: वे सृष्टि का विनाश और पुनरुत्थान करती हैं। इस प्रकार, गायत्री माता त्रिगुणात्मक शक्ति की प्रतिरूप है।

गायत्री माता और दैत्यों का संहार

पौराणिक कथाओं में उल्लेख मिलता है कि जब राक्षसों और असुरों ने देवताओं को परेशान करना शुरू किया, तो देवताओं ने गायत्री माता की शरण ली। गायत्री माता ने अपने दिव्य रूप से दैत्यों का संहार किया और देवताओं को उनका स्थान पुनः प्राप्त कराया।

गायत्री माता का विवाह और पारिवारिक संबंध

गायत्री माता का संबंध भगवान ब्रह्मा से है। उनके साथ उनका विवाह एक दिव्य घटना के रूप में वर्णित है। उनका विवाह न केवल यज्ञ और धर्म की महत्ता को दर्शाता है, बल्कि सृष्टि के संचालन के लिए पुरुष और प्रकृति के संतुलन की आवश्यकता को भी समझाता है

गायत्री मंत्र के जप का महत्व

गायत्री मंत्र का जप न केवल धार्मिक अनुष्ठानों के लिए किया जाता है, बल्कि इसे ध्यान और आत्मशुद्धि का माध्यम भी माना जाता है। मान्यता है कि जो व्यक्ति प्रतिदिन इस मंत्र का जप करता है, उसकी बुद्धि का विकास होता है, और उसे जीवन में सफलता प्राप्त होती है।

गायत्री मंत्र का उद्भव और महत्व

गायत्री मंत्र का उल्लेख सबसे पहले ऋग्वेद में हुआ है। यह मंत्र भगवान सवितृ (सूर्य) को समर्पित है, जिनसे संपूर्ण जीवन का पोषण होता है। इस मंत्र के उच्चारण से मानव की बुद्धि और आत्मा का शुद्धिकरण होता है। गायत्री मंत्र इस प्रकार है:

> ॐ भूर्भुवः स्वः। तत्सवितुर्वरेण्यं। भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्।

इस मंत्र की संरचना 24 अक्षरों की है और यह तीन लोकों (भूः, भुवः, स्वः) का प्रतिनिधित्व करता है। मान्यता है कि इस मंत्र का जप करने से व्यक्ति को आत्मिक शांति और दिव्य ज्ञान प्राप्त होता है।

गायत्री माता की पूजा का महत्व

गायत्री माता की पूजा वेदों की शक्ति को जागृत करने और आत्मिक उन्नति के लिए की जाती है। उनकी पूजा से व्यक्ति के अंदर शुद्धता, समर्पण और सच्चाई का विकास होता है

पूजा करने की विधि

1. प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

2. घर के पूजन स्थल पर गायत्री माता की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।

3. दीपक जलाएं और गायत्री मंत्र का जाप करें: > ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं। भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

4. पीले पुष्प, अक्षत, और ताजे फल चढ़ाएं।

5. गायत्री चालीसा और स्तुति का पाठ करें।

6. अंत में आरती करें और प्रसाद वितरित करें।

पूजा करने का शुभ मुहूर्त

गायत्री जयंती की पूजा के लिए ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 03:52 बजे से 04:36 बजे) को सबसे शुभ माना जाता है। इसके अलावा दिन में अभिजीत मुहूर्त (दोपहर 11:25 बजे से 12:17 बजे) भी पूजन के लिए शुभ रहेगा। 

इसके अलावा सुबह 06:57 बजे से लेकर 08:35 बजे तक शुभ मुहूर्त 11:51 बजे से लेकर 01:28 बजे तक चर मुहूर्त, 01:28 बजे से लेकर 03:06 बजे तक लाभ मुहूर्त और 03:06 बजे से लेकर 04:04 बजे तक अमृत मुहूर्त रहेगा।

सांध्य मुहूर्त के रूप में गोधूलि मुहूर्त शाम 06:22 से लेकर 06:44 तक एवं लाभ मुहूर्त शाम 06:22 मिनट से लेकर 07:44 तक रहेगा।

गायत्री माता के प्रसिद्ध मंदिर

भारत में कहां-कहां है गायत्री मंदिर 

गायत्री माता के मंदिर भारत और विदेशों में कई स्थानों पर स्थित हैं। गायत्री माता को वेद माता और ब्रह्मविद्या की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। ये मंदिर न केवल धार्मिक आस्था के केंद्र हैं, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा और संस्कारों के प्रचार-प्रसार का भी माध्यम हैं।

भारत में गायत्री माता के प्रमुख मंदिर

1. शांतिकुंज, हरिद्वार (उत्तराखंड) यह गायत्री परिवार का मुख्यालय है, जिसकी स्थापना पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य ने की थी। यहां गायत्री माता का भव्य मंदिर है और प्रतिदिन हवन-पूजन होता है। यह स्थान गायत्री साधकों और आध्यात्मिक शिक्षण के लिए विश्व प्रसिद्ध है।

2. गायत्री तपोभूमि, मथुरा (उत्तर प्रदेश) इसे गायत्री साधना का मुख्य केंद्र माना जाता है। पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य ने यहीं से गायत्री परिवार का कार्य प्रारंभ किए थे।

3. गायत्री मंदिर, पुष्कर (राजस्थान) पुष्कर में ब्रह्मा जी के मंदिर के पास स्थित है। यह मंदिर गायत्री माता की महिमा का वर्णन करता है।

4. गायत्री मंदिर, भोपाल (मध्य प्रदेश) यह मंदिर भोपाल के आसपास के क्षेत्र में आध्यात्मिक ऊर्जा का मुख्य केंद्र है। यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं।

5. गायत्री मंदिर, जयपुर (राजस्थान) जयपुर के कई क्षेत्रों में छोटे-बड़े गायत्री मंदिर हैं।

6. गायत्री मंदिर, चेन्नई (तमिलनाडु) यह दक्षिण भारत में गायत्री माता के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है।

विदेशों में गायत्री माता के मंदिर

1. गायत्री चेतना केंद्र, अमेरिका

अमेरिका में कई स्थानों पर गायत्री चेतना केंद्र स्थापित हैं, जैसे कैलिफ़ोर्निया, टेक्सास और न्यू जर्सी। ये केंद्र भारतीय समुदाय के बीच वेदों और गायत्री मंत्र का प्रचार करते हैं।

2. गायत्री परिवार केंद्र, 

कनाडा यहां टोरंटो और वैंकूवर में प्रमुख केंद्र हैं। ये केंद्र हवन, यज्ञ और संस्कारों का आयोजन करते हैं।

3. गायत्री मंदिर, लंदन (यूके)

लंदन में गायत्री माता का एक मंदिर है, जहां भारतीय समुदाय नियमित पूजा और यज्ञ करता है।

4. गायत्री परिवार केंद्र, ऑस्ट्रेलिया

सिडनी और मेलबर्न में गायत्री परिवार के मंदिर और साधना केंद्र स्थित हैं।

5. गायत्री चेतना केंद्र, दक्षिण अफ्रीका

डरबन और जोहांसबर्ग में हिंदू समुदाय ने गायत्री माता के मंदिर और पूजा स्थल स्थापित किए हैं।

6. गायत्री परिवार, मॉरीशस

मॉरीशस में गायत्री परिवार का व्यापक प्रभाव है। यहां हवन और साधना नियमित रूप से की जाती है।

7. गायत्री मंदिर, फिजी

फिजी में भारतीय प्रवासी समुदाय के बीच गायत्री माता का बड़ा प्रभाव है।

गायत्री माता की आराधना का महत्व

गायत्री माता के मंदिर वेदों के अध्ययन, साधना, और सांस्कृतिक शिक्षा का प्रमुख स्थान हैं। इन मंदिरों में गायत्री यज्ञ, वेद पाठ, और सामूहिक साधना नियमित रूप से की जाती है।

गायत्री माता का आधुनिक संदर्भ

आज के समय में गायत्री माता का संदेश पर्यावरण, ज्ञान, और शांति की आवश्यकता को समझाता है। गायत्री मंत्र का जप ध्यान और मानसिक शांति प्राप्त करने का एक साधन है, जो हर युग में प्रासंगिक है।

गायत्री माता की कथा और उनका महत्व हमें यह सिखाता है कि ज्ञान और शुद्धता ही जीवन की सच्ची संपत्ति हैं। उनकी पूजा और गायत्री मंत्र का जप हमें आत्मिक उन्नति की ओर ले जाता है। उनकी कथा न केवल धार्मिक ग्रंथों का हिस्सा है, बल्कि यह एक प्रेरणा स्रोत भी है जो हमें सत्य, धर्म, और अहिंसा का मार्ग दिखाती है।

डिस्क्लेमर 

गायत्री माता की जयंती के संबंध में दी गई समस्त जानकारी वेद और पुराण पर आधारित है। विद्वान बह्मणों से विचार-विमर्श कर लिखा गया है। साथ ही इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी हो का भी अवलोकन किया गया है। लेख में दी गई जानकारी सिर्फ सूचना प्रद है। इसे इस्तेमाल करने के पर्व निकटवर्ती आचार्यों या ब्राह्मणों संतुष्ट होकर ही इस दिन विधि विधान करें।



एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने