श्रीदत्तात्रेय, त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) के संयुक्त अवतार माने जाते हैं। दत्तात्रेय का जन्म ऋषि अत्रि और उनकी पत्नी अनसूया के तप का फल है।
सनातनी पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा तिथि, 04 दिसंबर 2025 दिन गुरुवार को श्रीदत्तात्रेय प्रगट्योत्सव मनाया जाएगा।
श्रीदत्तात्रेय की पौराणिक कथा, शुभ मुहूर्त, त्रिदेव को बालक रूप में आना। ऋषि अत्री द्वारा पुनः स्वाभाविक रूप में लाना। त्रिदेव द्वारा पुत्र के रूप में जन्म लेने का वचन देना। अवधूत गीता का रचना करने के अलावा जीवन जीने की कला बताना सहित हर तरह की जानकारी इस लेख में पढ़ने को मिलेगा।
पूजा का महीना और विधि
श्रीदत्तात्रेय की पूजा मार्गशीर्ष पूर्णिमा तिथि (दत्त जयंती) के दिन विशेष रूप से की जाती है। इस दिन दत्तात्रेय का जन्मोत्सव मनाया जाता है।
1. प्रातःकाल स्नान: सूर्योदय से पहले स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
2. पवित्र स्थान: पूजा स्थल को गंगाजल या स्वच्छ जल से शुद्ध करें।
3. मूर्ति स्थापना: दत्तात्रेय की मूर्ति या चित्र को स्वच्छ वस्त्र पर स्थापित करें।
4. दीप प्रज्ज्वलन: घी का दीप जलाकर पूजा प्रारंभ करें।
5. ध्यान और मंत्र:
दत्तात्रेय का ध्यान कर उनका यह मंत्र जपें:
"श्री गुरुदेव दत्ताय नमः"
6. पुष्प और अर्घ्य: उन्हें पुष्प, चंदन, और अर्घ्य अर्पित करें।
7. नैवेद्य: फल, दूध, और मिठाई का भोग लगाएं।
8. आरती और कथा: दत्तात्रेय की आरती करें और उनकी कथा का श्रवण करें।
पूजा करने की शुभ मुहूर्त
मार्गशीर्ष पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त सूर्योदय से चंद्रोदय तक का होता है। पूजा के लिए ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4 से 6 बजे) अत्यधिक शुभ माना जाता है। वैसे दिनभर पूजा करने का विधान है। शुभ मुहूर्त जानें विस्तार से।
14 दिसंबर को ब्रह्म मुहूर्त सुबह 04:31 बजे से लेकर 05:24 बजे तक, शुभ मुहूर्त सुबह 07:38 बजे से लेकर 08:59 बजे तक, चार मुहूर्त 11:40 बजे से लेकर 01:01 बजे तक, अभिजीत मुहूर्त दिन के 11:19 बजे से लेकर 12:02 बजे तक और विजय मुहूर्त दिन के 01:28 बजे से लेकर 02:11 बजे तक रहेगा।
संध्या मुहूर्त के रूप में शाम 05:30 बजे से लेकर 06:42 बजे तक एवं लाभ मुहूर्त और शाम 05:00 बजे बजे से लेकर 05:27 बजे तक गोली मुहूर्त रहेगा। इस दौरान व्रतधारियों अपने सुविधा अनुसार समय को देखते हुए पूजा अर्चना कर सकते हैं।
श्रीदत्तात्रेय के देश-विदेश में स्थित प्रमुख मंदिर
दत्तात्रेय की पूजा विशेष रूप से महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में की जाती है। उनके भक्त "गुरु पूर्णिमा" और "दत्त जयंती" पर विशेष उत्सव आयोजित किया जाता है।
भारत में कहां-कहां है दत्तात्रेय मंदिर
1. गणगापुर दत्तात्रेय मंदिर (कर्नाटक): यह मंदिर श्री दत्तात्रेय के निवास स्थानों में से एक माना जाता है।
2. औदुंबर मंदिर (महाराष्ट्र): कृष्णा नदी के तट पर स्थित यह मंदिर भक्तों के लिए सिद्धपीठ है।
3. नरसिंह सरस्वती स्वामी मंदिर (सोलापुर): श्रीदत्तात्रेय के अवतार नरसिंह सरस्वती की पूजा यहाँ होती है।
4. पिठापुरम दत्त मंदिर (आंध्र प्रदेश): इसे दत्तात्रेय का जन्मस्थान माना जाता है।
विदेशों में कहां-कहां दत्तात्रेय की मंदिरें
1. ट्रिनिडाड और टोबैगो: यहाँ भारतीय मूल के लोगों ने दत्तात्रेय मंदिर की स्थापना की है।
2. गुयाना: दत्तात्रेय की पूजा करने वाले हिंदू समुदाय ने मंदिर बनाए हैं।
3. मॉरीशस और फिजी: प्रवासी भारतीयों ने यहाँ दत्तात्रेय की आराधना के लिए मंदिर स्थापित किए हैं।
श्रीदत्तात्रेय की प्रमुख विशेषताएं
त्रिमूर्ति स्वरूप: दत्तात्रेय तीन मुख और छह भुजाओं वाले हैं। गाय और कुत्ता: उनके साथ एक गाय और चार कुत्ते होते हैं। गाय पृथ्वी और चार कुत्ते वेदों के प्रतीक हैं। अध्यात्म और योग: दत्तात्रेय योगी रूप में दर्शाए जाते हैं।
श्रीदत्तात्रेय की विहंगम और काल्पनिक छवि (तस्वीर:
श्रीदत्तात्रेय की पौराणिक कथा भारतीय संस्कृति और धर्म में एक अद्वितीय स्थान रखती है। वह त्रिमूर्ति—ब्रह्मा, विष्णु और महेश—के संयुक्त अवतार माने जाते हैं और योग, ज्ञान, तथा भक्ति के सर्वोच्च आदर्श के रूप में पूजित हैं। उनकी कहानी अत्रि ऋषि और उनकी पत्नी अनसूया के तप और सतीत्व पर आधारित है, जो धर्म और आध्यात्मिकता की गहराईयों को उजागर करती है।
दत्तात्रेय की पौराणिक कथा जानें विस्तार से:
दत्तात्रेय भारतीय पौराणिक कथाओं में एक महान तपस्वी, संत और त्रिमूर्ति के अवतार माने जाते हैं। उन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश का संयुक्त स्वरूप माना जाता है। उनकी कथा भारतीय धार्मिक साहित्य में गहराई से स्थापित है और वे भारतीय संत परंपरा में प्रमुख स्थान रखते हैं। उनके जीवन से जुड़े कई प्रेरक प्रसंग और शिक्षाएं भक्तों को मार्गदर्शन प्रदान करती हैं।
पौराणिक कथा की संपूर्ण जानकारी:
पुराणों के अनुसार, अत्रि ऋषि और अनसूया देवी सत्य और तपस्या के लिए प्रसिद्ध थे। उनकी तपस्या इतनी शक्तिशाली थी कि देवता भी उनकी प्रशंसा करते थे। देवताओं की पत्नियों को अनसूया के सतीत्व से ईर्ष्या होने लगी, क्योंकि उनके पुण्य और शक्ति से देवताओं का साम्राज्य भी प्रभावित हो रहा था।
देवताओं की पत्नियों ने ब्रह्मा, विष्णु और महेश से प्रार्थना की कि वे अनसूया की परीक्षा लें। तीनों देवता एक साधु के रूप में अनसूया के पास गए और भिक्षा मांगते हुए कहा कि वे तभी भोजन करेंगे जब अनसूया नग्न होकर उन्हें भोजन देंगी।
अनसूया की परीक्षा:
अनसूया इस कठिन स्थिति में भी विचलित नहीं हुईं। अपने सतीत्व के बल पर उन्होंने तीनों देवताओं को शिशु बना दिया और उन्हें दूध पिलाकर भिक्षा दी। जब ऋषि अत्रि अपने आश्रम लौटे, तो उन्होंने यह अद्भुत दृश्य देखा और अनसूया से पूरी घटना का वर्णन सुना।
अत्रि ऋषि ने प्रसन्न होकर तीनों शिशुओं को अपने स्वरूप में लौटने का आशीर्वाद दिया। तीनों देवताओं ने उनकी तपस्या और शक्ति से प्रसन्न होकर अनसूया को वरदान दिया कि वे उनके पुत्र के रूप में जन्म लेंगे। इसी प्रकार त्रिदेव के संयुक्त स्वरूप में दत्तात्रेय का जन्म हुआ।
दत्तात्रेय का बाल्यकाल और शिक्षा;
दत्तात्रेय का बचपन साधारण बालकों से भिन्न था। वे जन्म से ही आध्यात्मिक और तपस्वी थे। उन्होंने योग, ध्यान और वेदांत की गहरी शिक्षा ग्रहण की। अपने माता-पिता की सेवा और आश्रम में आने वाले भक्तों को ज्ञान प्रदान करना उनके बाल्यकाल का प्रमुख कार्य था।
दत्तात्रेय ने प्रकृति को अपना गुरु माना और पशु-पक्षियों, पेड़ों, नदियों, और आकाश से शिक्षा ग्रहण की। उनकी 24 गुरुओं की कथा प्रसिद्ध है, जिसमें उन्होंने प्रकृति और जीवन की विभिन्न घटनाओं से प्राप्त ज्ञान को समझाया।
दत्तात्रेय का तप और सिद्धियां:
युवावस्था में दत्तात्रेय ने संसार का त्याग कर जंगलों में तपस्या शुरू कर दी। वे आदियोगी के रूप में विख्यात हुए और उनके साधना स्थलों पर भक्तों का जमावड़ा लगने लगा।
उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण बातें यह है कि वे हमेशा ध्यान और तपस्या में लीन रहते थे। उनकी साधना इतनी शक्तिशाली थी कि उन्होंने हर तरह के सिद्धियों को प्राप्त किया।
योगी की रूप में दत्तात्रेय भगवान की तस्वीर
दत्तात्रेय और गुरु परंपरा:
दत्तात्रेय को गुरु परंपरा का जनक माने जाते हैं। उन्होंने अद्वैत वेदांत और आत्मज्ञान पर विशेष पकड़ बनाए। उनके उपदेशों का अनुठा संग्रह "अवधूत गीता" के नाम से प्रसिद्ध है। अपने गीता में उन्होंने आत्मा और ब्रह्म के संबंध को समझाया है।
दत्तात्रेय से जुड़ी प्रमुख रोचक कथाएं:
1. यदु और दत्तात्रेय का संवाद:
राजा यदु ने दत्तात्रेय से पूछा कि वे इतनी सहजता और संतोष से कैसे रहते हैं। दत्तात्रेय ने अपने 24 गुरुओं की शिक्षा का उदाहरण देते हुए वर्णन किया। उन्होंने राजा को बताया कि कैसे प्रकृति से जीवन जीने की कला सीखी जा सकती है।
2. अवधूत स्वरूप:
दत्तात्रेय के अवधूत स्वरूप की कथा में वे एक स्वतंत्र और संतुष्ट योगी के रूप में दिखते हैं। उन्होंने संसार के मोह को त्यागकर आत्मज्ञान को अपनाएं है, ऐसी मुद्रा में भी दिखाई देते हैं।
3. महिषासुर और दत्तात्रेय:
एक कथा के अनुसार, दत्तात्रेय ने महिषासुर को पराजित कर धर्म की स्थापना की थी। उन्होंने अपने ज्ञान और शक्ति से असुरों का नाश किया था।
श्रीदत्तात्रेय का बचपन और शिक्षा:
दत्तात्रेय बाल्यकाल से ही अद्वितीय थे। उन्होंने ब्रह्मा, विष्णु और महेश के ज्ञान और गुणों को आत्मसात किया। दत्तात्रेय ने 24 गुरु बनाए और उनसे विभिन्न ज्ञान अर्जित किया। उनके गुरुओं में पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, चंद्रमा, सूर्य, पक्षी, मछली और यहां तक कि पतंगे जैसे प्रकृति के तत्व शामिल हैं।
दत्तात्रेय ने प्रमुख गुरुओं से प्राप्त किए थे ज्ञान:
1. पृथ्वी: धैर्य और सहनशीलता का प्रतीक।:
2. जल: पवित्रता और निःस्वार्थ सेवा का प्रतीक।:
3. अग्नि: शुद्धिकरण और सत्य का प्रतीक।:
4. पक्षी: जीवन की अनासक्ति और स्वतंत्रता का ज्ञान।:
दत्तात्रेय ने इन गुरुओं से आत्मज्ञान प्राप्त किया और यह शिक्षा दी कि ज्ञान हर ओर व्याप्त है, बस हमें उसे ग्रहण करने की क्षमता विकसित करनी चाहिए।
श्रीदत्तात्रेय का कैसा था आदिगुरु स्वरूप:
दत्तात्रेय को 'आदिगुरु' कहा जाता है। उन्होंने मानवता को योग, तपस्या और भक्ति का मार्ग दिखाया। उनके जीवन का मुख्य उद्देश्य आत्मज्ञान प्राप्त करना और दूसरों को इस पथ पर अग्रसर करना था। उन्होंने 'अवधूत गीता' जैसे ग्रंथ की रचना की, जिसमें अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों का वर्णन है।
अवधूत अवतार की अलौकिक तस्वीर:
अवधूत गीता के प्रमुख संदेश:
1. आत्मा अजर-अमर है और शाश्वत सत्य है।
2. संसार मायाजाल है, जिससे मुक्ति ही अंतिम लक्ष्य है।
3. ध्यान, तपस्या और भक्ति से आत्मज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।
श्रीदत्तात्रेय की आध्यात्मिक उपलब्धियां :
1. योग का प्रचार: उन्होंने अष्टांग योग की शिक्षा संसार को दी।
2. आध्यात्मिकता का प्रचार: उन्होंने मानव जाति को सिखाया कि आंतरिक शांति और मुक्ति कैसे प्राप्त करें।
3. सर्वधर्म समभाव: दत्तात्रेय ने हर धर्म और विचारधारा का सम्मान किया और सभी में समानता का संदेश दिया।
दत्तात्रेय ने विभिन्न समय पर मानवता के कल्याण के लिए अवतार लिए। उनके दो प्रमुख अवतार हैं:
कथा पढ़ने का क्या है लाभ
श्रीदत्तात्रेय की कथा आत्मज्ञान, भक्ति और योग का मार्गदर्शन प्रदान करती है। उनका जीवन और शिक्षाएँ हमें दिखाती हैं कि कैसे हम सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर आत्मा के शुद्ध स्वरूप तक पहुंच सकते हैं। उनकी महिमा आज भी भक्तों के हृदय में अमिट है और उनकी पूजा मार्गशीर्ष पूर्णिमा को विशेष रूप से की जाती है।
डिस्क्लेमर
दत्तात्रेय जयंती का यह आलेख धर्मशास्त्र और धर्म के जानकारों से हुई बातचीत कर लिखा गया है। शुभ मुहूर्त पंचांग से लिया गया है। पौराणिक कथा विद्वानों द्वारा कही गई है। साथी इंटरनेट का भी अवलोकन किया गया है। हमने हर संभव प्रयास किया है कि आपको उचित और सही जानकारी उपलब्ध कराया जाए। अगर लेख में किसी प्रकार की भी त्रुटि होगी तो उसकी जवाबदेही हम नहीं लेते हैं। लेख धार्मिक प्रचार के लिए और त्यौहार के प्रति आस्था को और सुदृढ़ बनाने के लिए लिखा गया है।