ऋग्वेद और यजुर्वेद उपाकर्म भारतीय सनातन संस्कृति में वेदों के प्रति आदर, श्रद्धा और पुनः अध्ययन की परंपरा से जुड़ा विशेष पर्व है। यह अनुष्ठान 09 अगस्त 2025, दिन शनिवार श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाएगी।
इस उपाकर्म के दौरान यज्ञोपवीत संस्कार के अंतर्गत आने वाले अनुष्ठानों में से एक माना जाता है। इस दिन ब्राह्मण वर्ग और वैदिक शिक्षा धारक इस दिन से वेदों के अध्ययन का पुनः आरंभ करते हैं। यह पर्व श्रावण मास में पूर्णिमा के दिन या उपयुक्त तिथि पर मनाया जाता है।
(इस चित्र में ऋग्वेद उपाकर्म का दृश्य में एक ब्राह्मण परिवार वेदों का पाठ करते हुए, हवन कुंड में आहुति देते हुए और यज्ञोपवीत धारण करते हुए दिखाया गया है।)
उपाकर्म की पौराणिक कथा क्या है
ऋग्वेद और यजुर्वेद उपाकर्म की पौराणिक कथा वैदिक ज्ञान के आरंभिक दौर और उसकी महत्ता से जुड़ी है।
1. ब्रह्मा और वेदों की उत्पत्ति
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सृष्टि की रचना के समय भगवान ब्रह्मा ने चार वेदों को उत्पन्न किया—ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। ऋग्वेद, इन चारों में सबसे प्राचीन और ज्ञान-विज्ञान का स्रोत माना गया। इसे धर्म, यज्ञ, प्रकृति और समाज की आधारशिला माना गया है।
2. इंद्र और ऋषियों की कथा
एक अन्य कथा में कहा गया है कि जब असुरों ने वैदिक ज्ञान को चुराकर पाताल लोक में छुपा दिया, तब भगवान विष्णु ने मत्स्यावतार लेकर वेदों को पुनः स्थापित किया। इसके बाद देवताओं ने ऋषियों को वेदों के पुनः अध्ययन और प्रचार-प्रसार का कार्य सौंपा। ऋग्वेद उपाकर्म उसी परंपरा का स्मरण कराता है।
3. शिव और ऋग्वेद
शिव पुराण के अनुसार, भगवान शिव ने अपने डमरू से वेदों का ज्ञान प्रकट किया। ऋग्वेद उपाकर्म का पर्व उनके आशीर्वाद से वेदों के महत्व को समझने और जीवन में वैदिक आदर्शों को अपनाने का प्रतीक है।
4. यज्ञ और वेद संबंध
कहते हैं कि ऋषि याज्ञवल्क्य ने इस दिन विशेष यज्ञ करके ऋग्वेद का पुनः अध्ययन शुरू किया। तब से यह दिन ऋग्वेद उपाकर्म के रूप में मनाया जाता है।
पूजा करने की विधि
1. स्नान और शुद्धि
प्रातःकाल स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें। पवित्र नदी, जलाशय या घर पर गंगाजल से स्नान करें।
2. व्रत और संकल्प
व्रत का संकल्प लें और ऋग्वेद का अध्ययन व पूजा के प्रति मन में श्रद्धा रखें। “ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। यः स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥” मंत्र का जाप करें।
3. वेदी का निर्माण
एक स्वच्छ स्थान पर वेदी बनाएं और उसे रंगोली व फूलों से सजाएं। वेदी पर ऋग्वेद की पुस्तक या उसका प्रतीक (सफेद वस्त्र से ढका हुआ) स्थापित करें।
4. देवताओं की स्थापना
भगवान गणेश, देवी सरस्वती और ब्रह्मा जी की मूर्तियां रखकर धूप, दीप, चंदन और अक्षत चढ़ाएं।
5. ऋग्वेद का पठन
ऋग्वेद के कुछ प्रमुख मंत्रों का पाठ करें, जैसे: “ॐ अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम्। होताारं रत्नधातमम्॥”
यदि गुरु या विद्वान उपस्थित हों, तो उनसे वेदों की महत्ता पर प्रवचन सुनें।
6. यज्ञ और हवन
हवन कुंड में आम की लकड़ी, घी, गुग्गुल और वेद मंत्रों के साथ आहुति दें। “ॐ स्वाहा” के साथ प्रत्येक मंत्र पर आहुति अर्पित करें।
7. यज्ञोपवीत परिवर्तन
इस दिन नया यज्ञोपवीत धारण करना शुभ माना जाता है।यज्ञोपवीत धारण करते समय “ॐ यज्ञोपवीतम् परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्। आयुष्यमग्र्यं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतम् बलमस्तु तेजः॥” मंत्र का जाप करें।
8. भोजन और दान
पूजा के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान करें। चावल, घी, वस्त्र और दक्षिणा देने से विशेष पुण्य मिलता है।
शुभ मुहूर्त
2025 के लिए संभावित शुभ मुहूर्त:
ब्रह्म मुहूर्त सुबह 03:52 बजे से लेकर 04: 36 बजे तक, प्रातः सांध्य मुहूर्त सुबह 04:14 बजे से लेकर 05:20 बजे तक, शुभ मुहूर्त सुबह 06:57 बजे से लेकर 08:35 बजे तक और चर मुहूर्त 11:51 बजे से लेकर 01:28 बजे तक और अभिजीत मुहूर्त दिन के 11:25 बजे से लेकर 12:57 बजे तक रहेगा।
सांध्य मुहूर्त के रूप में गोधूलि मुहूर्त शाम 06:24 बजे से लेकर 06:44 बजे तक एवं लाभ मुहूर्त शाम 06:22 बजे से लेकर 07:44 बजे तक रहेगा।
ऋग्वेद उपाकर्म का महत्व
1. वैदिक ज्ञान का संरक्षण
यह पर्व हमें हमारे वैदिक ग्रंथों के अध्ययन और उनके महत्व को याद दिलाता है।
2. आध्यात्मिक उन्नति
वेद मंत्रों के उच्चारण से मन को शुद्धि, आत्मा को शांति, और मानसिक शक्ति मिलती है।
3. संस्कारों की पुनर्स्थापना
यज्ञोपवीत परिवर्तन और गुरु-शिष्य परंपरा को पुनर्जीवित करना इसका मुख्य उद्देश्य है।
डिस्क्लेमर
ऋग्वेद और यजुर्वेद उपाकर्म लेख पूरी तरह सनातन धर्म से संबंधित है। लेख में इंगित विभिन्न पहलुओं की जानकारी धार्मिक पुस्तकों से ली गई है। साथ ही शुभ मुहूर्त पंचांग से लिया गया है। लेख लखते समय विद्वान ब्राह्मणों, आचार्यों, लोक कथाओं और इंटरनेट से भी सहयोग लिया गया है। लेख को लिखने का उद्देश्य सिर्फ लोगों को अपने धर्म और अपने पर्व त्यौहार के बारे में सटीक जानकारी उपलब्ध कराना मात्र उद्देश्य है। यह लेख लिखनेे का उद्देश्य लोगों के बीच सिर्फ सूचना प्रदान करना ही मुख्य उद्देश्य है। इसकी सट्टा की गारंटी हम नहीं लेते हैं।