वर्ष 2025 को नारली पूर्णिमा इस दिन है: जानें पौराणिक कथा, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त व इसको मनाने वाले उत्सव स्थलों की जानकारी

नारली पूर्णिमा: पौराणिक कथा, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, और इसको मनाने वाले उत्सव स्थल की संपूर्ण जानकारी के लिए नीचे लिखे गए लेख पढ़िए। यह महोत्सव 09 अगस्त 2025 दिन शनिवार को मनाया जायेगा।

नारली पूर्णिमा (जिसे श्रावणी पूर्णिमा भी कहा जाता है) एक प्रमुख भारतीय त्योहार है, जो विशेष रूप से पश्चिमी और तटीय भारत के समुद्र तटों पर मनाया जाता है। इस दिन समुद्र और जल देवताओं को नारियल अर्पित कर उनकी कृपा और सुरक्षा के लिए प्रार्थना की जाती है। 

(तस्वीर में दिख रहा है कि समुद्र तट पर मछुआरों का समूह नारियल से सजी पूजा थालियां लेकर खड़ा है। महिलाएं पारंपरिक साड़ी पहने हुए हैं, और पुरुष धोती-कुर्ता में समुद्र देव की पूजा कर रहे हैं। पीछे लहरें उठती हैं, और सूर्यास्त का दृश्य पूरे वातावरण को भव्यता प्रदान कर रहा है।)

नारली पूर्णिमा की पौराणिक कथा

नारली पूर्णिमा से संबंधित पौराणिक कथाओं में समुद्र और वरुण देव की महिमा का वर्णन मिलता है। प्रमुख कथा इस प्रकार है:

1. समुद्र देव की पूजा की कथा:

एक समय की बात है, समुद्र तट पर रहने वाले मछुआरों के गांव में अचानक समुद्री तूफान आने लगा। उनकी नावें डूबने लगीं और मछुआरों को समुद्र में जाने से डर लगने लगा। तब गांव के बुजुर्गों ने समुद्र देवता को प्रसन्न करने का सुझाव दिया। 

उन्होंने नारियल (जो पवित्र फल माना जाता है) समुद्र में अर्पित करके प्रार्थना की। ऐसा करने के बाद तूफान शांत हो गया, और मछुआरों की रक्षा हुई। तब से हर श्रावणी पूर्णिमा को नारियल अर्पित करने की परंपरा शुरू हुई।

2. वरुण देव और भगवान परशुराम की कथा:

एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान परशुराम ने नारली पूर्णिमा के दिन समुद्र से प्रार्थना की कि वह कोंकण और मलाबार तटों की भूमि मानव सभ्यता के लिए उपलब्ध कराए। वरुण देव ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की और यह भूमि समुद्र के जल से बाहर निकली। इस दिन को वरुण देव की कृपा और समुद्र की शक्ति का उत्सव माना जाता है।

पूजा की विधि:

नारली पूर्णिमा की पूजा मुख्य रूप से मछुआरों और तटीय क्षेत्रों के निवासियों द्वारा की जाती है। पूजा की विधि निम्नलिखित है:

1. सफाई और तैयारी:

सुबह जल्दी स्नान कर घर और पूजा स्थल की सफाई की जाती है। पूजा स्थल पर नारियल, फूल, चावल, हल्दी, और कुमकुम रखे जाते हैं।

2. समुद्र की पूजा:

तटीय क्षेत्रों में लोग समुद्र तट पर जाते हैं। एक पवित्र नारियल को कुमकुम और हल्दी से सजाया जाता है।। समुद्र देवता (वरुण देव) की प्रार्थना कर नारियल को समुद्र में अर्पित किया जाता है। साथ ही, जल देवताओं से नाविकों और मछुआरों की सुरक्षा और समृद्धि की कामना की जाती है।

3. विशेष व्यंजन:

इस दिन नारियल से बने विभिन्न व्यंजन जैसे नारियल की खीर, लड्डू, और नारियल चटनी बनाई जाती है। सामूहिक भोज का आयोजन भी होता है।

4. रक्षासूत्र बांधना:

इस दिन ब्राह्मणों और यजमानों द्वारा रक्षासूत्र बांधने की परंपरा भी होती है। इसे श्रावणी व्रत के रूप में जाना जाता है।

शुभ मुहूर्त

श्रावण पूर्णिमा तिथि के आधार पर नारली पूर्णिमा का समय निर्धारित होता है। 2025 में नारिल पूर्णिमा की तिथि और समय इस प्रकार हो सकते हैं:

तिथि: 09 अगस्त 2025, दिन शनिवार 

पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 08 अगस्त 2025, दिन शुक्रवार को दोपहर 02:12 बजे

पूर्णिमा तिथि समाप्त: 09 अगस्त 2025, दिन शनिवार को दोपहर 01:02 बजे तक रहेगा।

पूजा का मुहूर्त: प्रातः 06:00 बजे से दोपहर 04:44 बजे तक है। स्थानीय पंचांग के अनुसार के अनुसार शुभ मुहूर्त इस प्रकार है। 

09 अगस्त दिन शनिवार को सूर्योदय सुबह 05:20 बजे पर और सूर्यास्त शाम 06:30 बजे पर होगा। चंद्रोदय शाम 06:35 बजे पर होगा। 

सुबह 06:57 बजे से लेकर 08:35 बजे तक शुभ मुहूर्त, दिन के 11:51 बजे से लेकर 01:28 बजे तक चर मुहूर्त, दोपहर के 11:25 बजे से लेकर 12:17 बजे तक अभिजीत मुहूर्त, दिन के 02:01 बजे से लेकर 02:30 बजे तक विजय मुहूर्त, दिन के 01:28 बजे से लेकर 03:06 बजे तक लाभ मुहूर्त और 03:06 बजे से लेकर 04:44 बजे तक अमृत मुहूर्त रहेगा। इस दौरान अपनी सुविधा के अनुसार पूजा अर्चना कर सकते हैं।

नारिल पूर्णिमा कहां-कहां मनाई जाती है

नारिल पूर्णिमा मुख्य रूप से तटीय क्षेत्रों में मनाई जाती है। ये स्थान इस उत्सव के प्रमुख केंद्र हैं:

1. महाराष्ट्र:

कोंकण क्षेत्र में मछुआरे समुद्र की पूजा करते हैं और पारंपरिक नृत्य व गीतों के साथ उत्सव मनाते हैं।

2. गुजरात:

सौराष्ट्र और कच्छ के तटीय क्षेत्रों में वरुण देव की पूजा और समुद्र में नारियल अर्पित करने की परंपरा है।

3. गोवा और कर्नाटक:

यहां के मछुआरे समुद्र से जुड़े अपने जीवन और व्यवसाय के लिए आभार प्रकट करते हैं।

4. केरल:

केरल में यह त्योहार ‘आवानी अवित्तम’ के रूप में मनाया जाता है।

5. तमिलनाडु:

यह त्योहार श्रावणी व्रत और समुद्र पूजा के रूप में तटीय गांवों में मनाया जाता है।

नारिल पूर्णिमा का सांस्कृतिक महत्व

समुद्री व्यापार का प्रारंभ:

इस दिन से मछुआरों का समुद्र में मछली पकड़ने का शुभारंभ  करते हैं।

पर्यावरण संरक्षण:

समुद्र को पवित्र मानकर उसकी रक्षा के लिए प्रार्थना की जाती है।

सामाजिक एकता:

सामूहिक भोज और उत्सव का आयोजन समाज में मेलजोल बढ़ने के लिए किया जाता है।

धार्मिक आस्था:

वरुण देव और समुद्र देवता की पूजा करना जल के प्रति मानव आस्था को पारदर्शी बनाता है।

डिस्क्लेमर 

नारली पूर्णिमा पर लिखा गया यह लेख पूरी तरह सनातन धर्म पर आधारित लेख है। इस लेख समुद्र के प्रति लोगों के बीच मधुर संबंध को दर्शाता है। लेख लखने से पूर्व विद्वान बह्मणों और सामाजिक लोगों को से विचार विमर्श लिखा गया है। शुभ मुहूर्तों की गणना पंचांग से किया गया है। इंटरनेट का भी अवलोकन कर लिखा गया है। हमारा लक्ष्य सनातनियों के बीच अपने पौराणिक धर्म की जानकारी देना मात्र उद्देश्य है। लेख की पूर्ण गारंटी हम नहीं लेते हैं। यह सिर्फ सूचना प्रद लेख है।

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने