महातारा जयंती की तिथि हर साल सनातन पंचांग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाई जाती है। इस वर्ष 06 अप्रैल 2025। दिन रविवार को है।
कौन हैं मां महातारा
महातारा देवी को शक्ति और ज्ञान की आदिशक्ति के रूप में पूजा जाता है। वे दस महाविद्याओं में से एक हैं। उन्हें रचनात्मकता और विनाश दोनों की प्रतीक माना जाता है। महातारा का स्वरूप गहरे नीले रंग का है, चार भुजाएं हैं, और वे त्रिनेत्री हैं। उनके हाथों में खड्ग (तलवार), कपाल (खोपड़ी), और अन्य अलंकार होते हैं।
महातारा माता की विस्तृत पौराणिक कथा
महातारा माता हिंदू धर्म और तांत्रिक परंपरा में आदिशक्ति के शक्तिशाली और रहस्यमय रूप में पूजी जाती हैं। उन्हें दस महाविद्याओं में से एक माना गया है, जो देवी दुर्गा या आदिशक्ति के विभिन्न स्वरूपों का प्रतिनिधित्व करती हैं। महातारा माता की कथा गहरे आध्यात्मिक अर्थ, प्रतीकों, और मानव अस्तित्व के गूढ़ रहस्यों से परिपूर्ण है। उनकी पूजा भक्तों को भय, अज्ञान, और अंधकार से मुक्ति प्रदान करती है। आइए, उनकी पौराणिक कथा को विस्तार से समझते हैं।
1. महातारा की कैसे हुई उत्पत्ति
पुराणों और तांत्रिक ग्रंथों में बताया गया है कि सृष्टि के आरंभ में जब संसार में अज्ञान और अंधकार व्याप्त था, तब भगवान शिव और आदिशक्ति ने ब्रह्मांड की रक्षा और मार्गदर्शन के लिए विभिन्न रूप धारण किए। महातारा देवी का जन्म उस समय हुआ जब दैवीय शक्तियों ने यह अनुभव किया कि केवल ज्ञान और करुणा से संसार की रक्षा नहीं की जा सकती; विनाशक शक्ति की भी आवश्यकता है।
महातारा, आदिशक्ति के उस स्वरूप का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो अज्ञान को नष्ट करती हैं और आत्मा को ब्रह्मांडीय सत्य से जोड़ती हैं। उनकी उपासना तंत्र और योग के माध्यम से की जाती है, जो मनुष्य को उसके आंतरिक भय और सांसारिक बंधनों से मुक्त करती है।
2. असुरों के विनाश का प्रसंग
एक समय, असुरों (दैत्य) ने अपनी शक्ति का अतिक्रमण करके देवताओं और मनुष्यों को आतंकित करना शुरू कर दिया। तारकासुर नामक एक असुर ने तपस्या के बल पर ऐसा वरदान प्राप्त कर लिया था कि केवल एक शक्तिशाली देवी ही उसका विनाश कर सकती थी। देवताओं ने भगवान शिव और आदिशक्ति से प्रार्थना की कि वे दैत्य के आतंक से संसार को मुक्त करें।
इस संकट के समय, आदिशक्ति ने अपनी तामसिक ऊर्जा से महातारा का रूप धारण किया। यह स्वरूप अत्यंत भयंकर, लेकिन अलौकिक था। महातारा के चार हाथ थे, जिनमें तलवार, खोपड़ी, और अन्य दिव्य अस्त्र थे। उनके नीले रंग का शरीर असीम ऊर्जा और शक्ति का प्रतीक था। उन्होंने दैत्य तारकासुर और उसके अनुयायियों का संहार करके संसार को मुक्ति दिलाई।
3. महातारा और भगवान शिव का संवाद
एक अन्य कथा के अनुसार, जब भगवान शिव ने स्वयं को काशी में एक तपस्वी के रूप में स्थापित किया, तब उन्होंने ब्रह्मांड की सभी शक्ति को अपने भीतर समेट लिया। इससे संसार में संतुलन बिगड़ गया। आदिशक्ति ने महातारा का रूप धारण करके शिव के साथ संवाद किया और उन्हें इस बात का स्मरण कराया कि उनकी शक्ति का उपयोग संसार की भलाई के लिए होना चाहिए।
महातारा ने शिव को यह भी समझाया कि आत्मज्ञान केवल शक्ति और साधना के सामंजस्य से प्राप्त किया जा सकता है। इस प्रसंग में महातारा को ज्ञान और विनाश की शक्ति के रूप में दिखाया गया है।
4. त्रिपुरा असुरों की कथा
त्रिपुरा नामक तीन भौतिक लोकों के स्वामी तीन असुर भाइयों ने देवताओं को पराजित कर दिया और ब्रह्मांड पर अधिकार कर लिया। इन असुरों को केवल एक दिव्य शक्ति से हराया जा सकता था। देवताओं ने फिर से महातारा की शरण ली।
महातारा ने शिव और विष्णु के साथ मिलकर त्रिपुरा का विनाश किया। यह घटना यह दर्शाती है कि महातारा न केवल विनाशक हैं, बल्कि वे रचनात्मक और संरक्षक शक्तियों के साथ संतुलन बनाए रखती हैं।
5. महातारा का स्वरूप और तात्त्विक अर्थ
महातारा का स्वरूप अत्यंत गूढ़ और प्रतीकात्मक है। उनका नीला रंग अनंत आकाश और ब्रह्मांडीय चेतना का प्रतीक है। उनके चार हाथ ब्रह्मांडीय शक्तियों और साधक के चारों ओर व्याप्त तत्त्वों (अग्नि, जल, वायु, और पृथ्वी) का संकेत देते हैं।
महातारा का खोपड़ी वाला पात्र (कपाल) यह दर्शाता है कि वे संसार के समस्त भय और मरण को अपने भीतर समेट लेती हैं। उनकी तलवार अज्ञान और अंधकार को काटने का प्रतीक है। उनका तीसरा नेत्र ब्रह्मांडीय सत्य और जागरूकता का प्रतीक है।
6. महातारा की तांत्रिक उपासना
महातारा की पूजा विशेष रूप से तांत्रिक परंपरा में की जाती है। तंत्र शास्त्रों में महातारा को ब्रह्मांड की मौलिक ऊर्जा के रूप में पूजित किया गया है। साधक उनके मंत्रों और ध्यान के माध्यम से आत्मज्ञान प्राप्त करते हैं।
तारा मंत्र
ॐ ऐं ह्रीं स्त्रीं हूं फट् स्वाहा।
यह मंत्र साधक को भय से मुक्ति और ज्ञान का प्रकाश प्रदान करता है।
7. महातारा और बौद्ध धर्म
महातारा देवी की पूजा बौद्ध धर्म में तारा देवी के रूप में भी होती है। बौद्ध ग्रंथों में उन्हें करुणा और सुरक्षा की देवी माना गया है। विशेषकर तिब्बत में, महातारा (या तारा) को 21 रूपों में पूजा जाता है।
महातारा मां की पूजा क्यों करें
महातारा की कथा यह सिखाती है कि जीवन में भय, अज्ञान, और नकारात्मकता को आत्मज्ञान, शक्ति, और करुणा से नष्ट किया जा सकता है। उनकी पूजा साधक को आत्मबोध और आध्यात्मिक मुक्ति प्रदान करती है।
महातारा माता की कथा मानव जीवन के गहरे अर्थ और आध्यात्मिकता का प्रतीक है। वे हमें यह सिखाती हैं कि अज्ञान का नाश करके ही आत्मा को उसकी असली पहचान से जोड़ा जा सकता है। उनकी उपासना हमें साहस, शक्ति, और आत्मज्ञान का वरदान देती है।
देश-विदेश में कहां-कहां है मंदिर
भारत
कामाख्या देवी मंदिर (असम)
तारापीठ (पश्चिम बंगाल)
महातारा मंदिर (उत्तराखंड और हिमाचल के कुछ स्थानों पर)
विदेश
नेपाल (काठमांडू स्थित शक्तिपीठों में महातारा का रूप)
तिब्बत (बौद्ध तारा देवी रूप में पूजा होती है)
थाईलैंड और इंडोनेशिया में भी तारा देवी की उपासना बौद्ध धर्म से प्रेरित है।
डिस्क्लेमर
माहतारा देवी शक्ति की एक रूप है इनकी पूजा देश विदेश में विभिन्न रूपों में की जाती है। लेख लिखने के पूर्व विद्वान ब्राह्मणों और आचार्यों से विचार विमर्श किया गया है। साथ ही धार्मिक ग्रंथों और प्रचलित लोककथाओं का भी इस लेख में समावेश किया गया है। लेख लिखते समय इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारियों और लोगों से चर्चा करने के बाद लिखा गया है। लेख लिखने का मुख उद्देश्य सनातन धर्म की प्रचार प्रसार करना और लोगों के बीच अपने धर्म के प्रति जागरूकता पैदा करना ही हमारा मकसद है।