होलिका दहन 2025: जानें किस विधि से करें होलिका दहन क्या है भद्रा की स्थिति

होलिका दहन 13 मार्च 2025 दिन गुरुवार को है। जिसे हम छोटी होली भी कहते हैं। 

होलिका का नींव 03 फरवरी 2025 दिन सोमवार सरस्वती पूजा या 12 फरवरी 2025 दिन बुधवार माध पूर्णिमा के दिन रखा जाता है।  

होलिका का निर्माण (स्थापना) होली से लगभग 40 दिन पूर्व किया जाता है। होलिका का नींव सरस्वती पूजा या माध पूर्णिमा के दिन रखा जाता है।

होलिका दहन का शुभ मुहूर्त और भद्रा की स्थिति

होलिका दहन भारतीय त्योहारों में एक प्रमुख पर्व है, जिसे होली से एक दिन पहले मनाया जाता है। इस लेख में हम होलिका दहन का महत्व, शुभ मुहूर्त और भद्रा का प्रभाव क्या रहेगा जानें विस्तार से।

होलिका दहन का महत्व

होलिका दहन न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। इसे बुराई पर अच्छाई की विजय, अहंकार के नाश, और धर्म की विजय के रूप में मनाया जाता है। यह त्योहार आपसी सौहार्द, भाईचारे और नई ऊर्जा के संचार का प्रतीक है।

होलिका दहन के लिए शुभ मुहूर्त का महत्व और भद्रा काल की स्थिति 

होलिका दहन का शुभ मुहूर्त प्रदोष काल में (संध्याकाल) के दौरान ही करना चाहिए, जब दिन और रात का संधिकाल होता है। शुभ मुहूर्त में किया गया होलिका दहन अधिक शुभ फलदायक होता है।

भद्रा काल में होलिका दहन करना अशुभ माना जाता है। भद्रा काल में किसी भी प्रकार का शुभ कार्य वर्जित होता है, क्योंकि इसे अमंगलकारी समय माना गया है। अतः यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि होलिका दहन भद्रा काल समाप्त होने के बाद ही किया जाए।

भद्रा का महत्व और स्थिति

भद्रा पंचांग के अनुसार कालचक्र की एक विशेष अवधि होती है, जो शुभ कार्यों के लिए प्रतिकूल मानी जाती है। भद्रा काल का ध्यान न रखते हुए किए गए कार्यों में विघ्न, हानि, या अशुभ परिणाम हो सकते हैं।

भद्रा काल का निर्धारण चंद्रमा की स्थिति और ग्रह-नक्षत्रों के आधार पर किया जाता है। सामान्यतः, होलिका दहन से पहले यह सुनिश्चित किया जाता है कि भद्रा का समय समाप्त हो गया हो।

कैसे जानें भद्रा काल का समय

भद्रा काल की जानकारी पंचांग के माध्यम से प्राप्त की जा सकती है। हर वर्ष भद्रा की स्थिति बदलती रहती है। भद्रा काल सूर्यास्त के समय समाप्त हो तो होलिका दहन का शुभ मुहूर्त उसके तुरंत बाद होगा।

 13 मार्च 2025 दिन गुरुवार के लिए होलिका दहन का समय
होलिका दहन के भद्रा सुबह 10:35 बजे पर आरंभ होकर रात 10:26 बजे पर समाप्त होगी।

भद्रा पूंछ व भद्रा मुख का समय

भद्रा पूंछ - शाम 06:57 बजे से लेकर रात 08:14 बजे तक। 

भद्रा मुख - रात 08:14 बजे से 10:22 बजे तक रहेगा।

साल 2025 में होलिका दहन गुरुवार, 13 मार्च को होगा। इस दिन शुभ मुहूर्त रात 10:30 बजे से 12:24 बजे तक रहेगा, जो कुल 53 मिनट का समय है। यह समय होलिका दहन के लिए सबसे उपयुक्त माना गया है।

पूर्णिमा तिथि

प्रारंभ: 13 मार्च 2025, सुबह 10:30 बजे

समाप्त: 14 मार्च 2025, दोपहर 12:23 बजे

(यह समय स्थान विशेष के अनुसार थोड़ा भिन्न हो सकता है, इसलिए स्थानीय पंचांग का अवलोकन अवश्य करें।

होलिका दहन की प्रारंभिक तैयारी कैसे करें 

माघ पूर्णिमा या सरस्वती पूजा के दिन या उसके आसपास होलिका के लिए स्थान तय किया जाता है। यह स्थान आमतौर पर गांव, कस्बे, या मोहल्ले के किसी खुली जगह या चौराहे पर होता है। उस स्थान पर गोबर, लकड़ी, और उपलों का संग्रह करना शुरू किया जाता है।

होलिका का ढेर बनाना

फाल्गुन महीने की शुरुआत के साथ लोग होलिका के लिए लकड़ी, उपले, और सूखी टहनियों का संग्रह करना आरंभ कर देते हैं।

होलिका का ढेर धीरे-धीरे बढ़ाया जाता है ताकि होली के दिन यह पूर्ण आकार ले सके।

कैसे करें पूजा प्रारंभ

होलिका के निर्माण के बाद, लोग उस स्थान की नियमित रूप से पूजा करते हैं।

बच्चे और युवा भी इस कार्य में उत्साह से भाग लेते हैं।

सामूहिक योगदान

यह परंपरा सामूहिकता और सामाजिक सहभागिता का प्रतीक है। हर परिवार अपने हिस्से का गोबर, लकड़ी, या अन्य सामग्री होलिका में योगदान स्वरूप देता है।

होलिका के निर्माण का उद्देश्य

होलिका का निर्माण केवल दहन के लिए नहीं, बल्कि यह बुराई के प्रतीक को समाप्त करने और अच्छे की स्थापना के संदेश का प्रतीक है। यह परंपरा प्रकृति, समाज, और धार्मिक आस्था का प्रतीक है।

होलिका दहन में खाद्य पदार्थों की परंपरा और अग्नि प्रज्ज्वलित की विधि

होलिका दहन हिंदू संस्कृति का एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। इस दिन अग्नि प्रज्ज्वलित करने और उसमें विभिन्न खाद्य पदार्थ अर्पित करने की परंपरा है। यह परंपरा हमारे धार्मिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय मूल्यों को प्रकट करती है।

होलिका दहन में अग्नि प्रज्ज्वलित करने की परंपरा

होलिका दहन की अग्नि प्रज्ज्वलित करने का कार्य आमतौर पर गांव या मोहल्ले के बुजुर्ग या परिवार का मुखिया करता है। यह व्यक्ति पूरे समाज या परिवार का प्रतिनिधित्व करता है और धार्मिक विधि का पालन करता है।

होलिका के साथ प्रह्लाद का प्रतीक भी रखा जाता है, जो धर्म की विजय का प्रतीक है।

पूजन की विधि

होलिका दहन से पहले पूरे परिवार या समुदाय के लोग एकत्र होते हैं।

गोबर से बनी छोटी-छोटी मटकी (होलिका की प्रतीक) की पूजा की जाती है।

रोली, अक्षत, फूल, मिठाई और कच्चे सूत से होलिका की पूजा की जाती है।

कच्चे सूत का घेरा

होलिका के चारों ओर कच्चे सूत का धागा लपेटा जाता है। इसे "होलिका बांधना" कहा जाता है।

अग्नि प्रज्ज्वलित 

अग्नि प्रज्ज्वलित करने से पहले, परिवार या समाज के मुखिया द्वारा होलिका की परिक्रमा की जाती है।

अग्नि प्रज्ज्वलित करते समय "ओम विष्णवे नमः" या "असतो मा सद्गमय" जैसे मंत्रों का उच्चारण किया जाता है।

अब हम जानेंगे कैसे होगा होलिका दहन 

 होलिका दहन के वक्त किन पदार्थों को डालना चाहिए। भद्रा की स्थिति क्या होगी, जानें विस्तार से। होलिका दहन के वक्त अपनी श्रद्धानुसार खाद्य पदार्थ और अन्य सामग्री होलिका में अर्पित करने चाहिए।

होलिका दहन के समय निम्नलिखित खाद्य पदार्थ और सामग्री अग्नि में अर्पित की जाती है

1. नई फसल के अन्न (नया धान)

गेहूं की बालियां 

जौ

चना

सरसों

मकई

इन अनाजों को अग्नि में डालकर नई फसल की समृद्धि के लिए प्रार्थना की जाती है

मिठाइयां और गुड़

गुड़ और अन्य मिठाइयां चढ़ाई जाती हैं, जिससे घर में समृद्धि और मीठे संबंधों का वास हो।

सूखे मेवे और नारियल

होलिका में नारियल, काजू, बादाम, और किशमिश डालने की परंपरा है। ये समृद्धि और वैभव का प्रतीक हैं।

हल्दी और अन्य हर्बल सामग्री

हल्दी और अन्य औषधीय पौधों के हिस्से डालने का वैज्ञानिक महत्व है, जिससे वातावरण शुद्ध होता है।

गाय का घी और गोबर

गोबर के उपले और घी डालने से अग्नि शुद्ध होती है और पर्यावरण में सकारात्मक ऊर्जा फैलती है।

लकड़ी और पत्ते

होलिका की अग्नि के लिए लकड़ियों और पत्तों का उपयोग किया जाता है।

फूल और हवन सामग्री

फूलों और हवन सामग्री को होलिका में डालकर देवताओं का आह्वान किया जाता है।

होलिका का परिक्रमा करने चाहिए 

होलिका जलने के बाद उसकी सात बार परिक्रमा की जाती है।

परिवार के सदस्य होलिका की राख (भस्म) अपने माथे पर लगाते हैं, जो शुभ माना जाता है।

अग्नि से ले आशीर्वाद

होलिका की अग्नि से घर की समृद्धि, स्वास्थ्य और सुख-शांति की कामना की जाती है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण

होलिका दहन के दौरान वातावरण में फैले कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। अनाज की पूजा और उन्हें होलिका में डालना एक प्रकार से फसल कटाई का उत्सव मनाने का प्रतीक है।

क्यों किया जाता है होलिका दहन 

होलिका दहन भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो बुराई पर अच्छाई की विजय और धर्म की रक्षा का संदेश देता है। इसे सही विधि और शुभ मुहूर्त में करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। भद्रा काल में दहन से बचना चाहिए और धर्म-शास्त्रों के अनुसार पूजा-अर्चना करनी चाहिए। इस पवित्र पर्व के माध्यम से हम अपने जीवन में सकारात्मकता, प्रेम, और सौहार्द का संचार कर सकते हैं।

डिस्क्लेमर 

होलिका दहन की यह कथा पूरी तरह धार्मिक ग्रंथों और पंचांग पर आधारित है। लेख लिखने का उद्देश्य सनातन धर्म का प्रचार प्रसार करना और सनातनियों के बीच अपने पर्व पर त्यौहार के प्रति रुचि पैदा करना मात्र है। इस लेख को लिखते समय लोक कथाओं, विद्वान आचार्यों और इंटरनेट से भी सहायता लिया गया है। शुभ मुहूर्त की गणना पंचांग से किया गया है। यदि आप इस पर अधिक जानकारी या अन्य त्योहारों से जुड़े सवाल जानना चाहते हैं, तो हमें बताएं।



एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने