महाशिव रात्रि 26 फरवरी 2025 को पढ़ें पांच पौराणिक कथा पूजा की विधि व शुभ मुहूर्त

 शिवरात्रि 26 फरवरी 2025, दिन बुधवार, माध माह, कृष्ण  पक्ष त्रयोदशी तिथि को मनाया जायेगा। पांच पौराणिक कथा, पूजा की विधि और शुभ मुहूर्त, जानें विस्तार से।

शिवरात्रि सनातन धर्म का एक प्रमुख पर्व है, जो भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस वर्ष माघ मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। 

महाशिवरात्रि का क्या है पौराणिक महत्व

महाशिवरात्रि का अर्थ है "शिव की महान रात्रि।" इस दिन को भगवान शिव और उनकी शक्ति, माता पार्वती के मिलन का प्रतीक माना जाता है। इसके अलावा, यह रात ध्यान, साधना, और आंतरिक आत्मा को जागृत करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। भक्त इस दिन उपवास रखते हैं और भगवान शिव का जलाभिषेक कर उनकी कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।

महाशिव रात्रि पांच पौराणिक कथाएं 

महाशिवरात्रि से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं। इनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं।

01. समुद्र मंथन और हलाहल विष पीने की कथा

पुराणों के अनुसार, महाशिवरात्रि का पर्व सृष्टि की भलाई के लिए भगवान शिव के बलिदान और समर्पण का प्रतीक है। यह कथा समुद्र मंथन की घटना से जुड़ी है।

एक बार जब देवता और असुर अमृत की प्राप्ति के लिए मिलकर समुद्र का मंथन कर रहे थे, तो समुद्र से कई प्रकार के रत्न निकले। उनमें से एक भयंकर विष भी था, जिसे "हलाहल" कहा गया। इस विष में इतनी शक्ति थी कि उसके प्रभाव से समस्त सृष्टि नष्ट हो सकती थी।

ब्रह्माण्ड के कल्याण के लिए भगवान शिव का त्याग

इस विनाशकारी विष से बचने के लिए सभी देवता और असुर भगवान शिव के पास सहायता मांगने पहुंचे। भगवान शिव ने सृष्टि की रक्षा के लिए उस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया। विष को निगलने के कारण उनका कंठ नीला पड़ गया, और उन्हें "नीलकंठ" कहा जाने लगा।

02.शिव-पार्वती विवाह की पौराणिक कथा 

महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव और माता पार्वती का दिव्य विवाह हुआ था। यह कथा प्रेम, त्याग, और आराधना की शक्ति को दर्शाती है। माता पार्वती की मां नैना थी जबकि पिता हिमालय थे।

माता पार्वती का तप कर भगवान शिव को प्रसन्न करने का प्रयास 

सती के रूप में अपने पूर्व जन्म में माता पार्वती ने भगवान शिव को अपना पति मानकर उनकी भक्ति की थी। सती के देह त्याग के बाद वे हिमालय के राजा हिमावन और रानी मैना के यहां पार्वती के रूप में जन्मीं।

पार्वती जी ने अपने बाल्यकाल से ही भगवान शिव को अपना पति मान लिया था। उन्होंने कठोर तपस्या की और भगवान शिव को प्रसन्न करने का प्रयास किया।

कामदेव का प्रयास हुआ असफल 

जब भगवान शिव तपस्या में लीन थे, तब सभी देवताओं ने कामदेव को उनके तप को भंग करने के लिए भेजा। कामदेव ने भगवान शिव पर पुष्पबाण चलाया, जिससे भगवान शिव का ध्यान टूटा। इस पर क्रोधित होकर शिव ने अपनी तीसरी आंख से कामदेव को भस्म कर दिया।

पार्वती का दृढ़ संकल्प ने किया भोले शिव को विवश 

पार्वती जी ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की। उनकी भक्ति और तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया।

हिमालय महराज के यहां विवाह का आयोजन 

माघ मास की कृष्ण त्रयोदशी तिथि को भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ। इस दिन को शिव और शक्ति के मिलन का प्रतीक माना जाता है और महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है।

03.शिवलिंग के प्रकट होने की कथा

महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे। यह कथा भगवान शिव की अनंतता और ब्रह्मांडीय शक्ति को दर्शाती है।

ब्रह्मा और विष्णु का विवाद

एक बार भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु के बीच श्रेष्ठता का विवाद हुआ। दोनों ने यह दावा किया कि वे सृष्टि के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण देवता हैं। यह विवाद बढ़ता ही गया, जिससे देवताओं और ऋषियों में असमंजस उत्पन्न हो गया।

भगवान शिव का प्रकट होना

तभी एक अनंत ज्योतिर्मय शिवलिंग प्रकट हुआ, जो आकाश से पाताल तक फैला हुआ था। ब्रह्मा और विष्णु ने इस शिवलिंग का अंत और प्रारंभ खोजने का निर्णय लिया।

1. ब्रह्मा जी ने हंस का रूप धारण कर शिवलिंग के ऊपर का भाग खोजने का प्रयास किया।

2. विष्णु जी ने वराह का रूप धारण कर शिवलिंग के नीचे का भाग खोजने का प्रयास किया।

सत्य का प्रकट होना

दोनों देवता शिवलिंग का अंत नहीं खोज सके और उन्हें अपनी सीमा का एहसास हुआ। तभी शिवलिंग से भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने बताया कि वे ही सृष्टि के आदिदेव हैं।

04.राजा चित्रभानु की पौराणिक कथा

महाशिवरात्रि का एक अन्य संदर्भ राजा चित्रभानु की कथा में मिलता है। यह कथा उपवास और शिवभक्ति के महत्व को उजागर करती है।

चित्रभानु का पूर्व जन्म

राजा चित्रभानु ने अपने पूर्व जन्म में एक शिकारी के रूप में जीवन व्यतीत किया था। एक बार उसने जंगल में शिकार करते समय एक हिरणी का पीछा किया। जब रात हो गई, तो वह एक पीपल के पेड़ के नीचे ठहर गया।

अज्ञात उपवास और पूजा

उस दिन फाल्गुन मास की चतुर्दशी तिथि थी। शिकारी ने दिनभर कुछ नहीं खाया था और रातभर जागता रहा। उसने पेड़ की डालियों से एक शिवलिंग बना लिया और उस पर बेलपत्र चढ़ाए।

पुण्यफल मिलना 

अगले दिन जब शिकारी की मृत्यु हुई, तो उसे मोक्ष प्राप्त हुआ। अगले जन्म में वह राजा चित्रभानु के रूप में पैदा हुआ। उन्होंने महाशिवरात्रि का व्रत किया और अपने राज्य में इस पर्व को व्यापक रूप से मनाने का आदेश दिया।

05.गंगा का शिव के जटाओं में समाना

महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव ने पृथ्वी की रक्षा के लिए गंगा को अपनी जटाओं में धारण किया था।

भागीरथ की तपस्या

राजा भागीरथ ने अपनी पूर्वजों की आत्मा को मोक्ष दिलाने के लिए गंगा को पृथ्वी पर लाने की तपस्या की। गंगा ने पृथ्वी पर आने के लिए सहमति तो दी, लेकिन उनकी धारा इतनी तेज थी कि वह पृथ्वी को नष्ट कर सकती थी।

शिव का समर्पण

भगवान शिव ने गंगा की धारा को अपनी जटाओं में बांधकर नियंत्रित किया। इसके बाद गंगा धीरे-धीरे पृथ्वी पर प्रवाहित हुई।

कैसे करें पूजा जानें विधि-विधान 

1. प्रातःकालीन पूजा

1. सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।

2. शिवलिंग पर गंगाजल, दूध और शुद्ध जल से अभिषेक करें।

3. बेलपत्र, धतूरा, भांग, सफेद फूल और फल भगवान शिव को अर्पित करें।

4. दीपक जलाएं और "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जाप करें।

2. उपवास की विधि

महाशिवरात्रि के दिन व्रत रखकर दिनभर भगवान शिव की उपासना की जाती है।

व्रती फलाहार या सिर्फ जल ग्रहण कर सकते हैं।

दिनभर "ॐ नमः शिवाय" या "महामृत्युंजय मंत्र" का जाप करें।

3. रात्रिकालीन पूजा

महाशिवरात्रि की रात को विशेष पूजा की जाती है।

1. रात के चार प्रहर में शिवलिंग का जल, दूध, शहद, दही, और घी से अभिषेक करें।

2. प्रत्येक प्रहर में अलग-अलग वस्त्र चढ़ाएं और भगवान शिव की आरती करें।

3. रात्रि जागरण करें और शिवपुराण का पाठ करें।

4. शिव-पार्वती की कथा सुनें और भगवान शिव से सुख-शांति की प्रार्थना करें।

4. पंचामृत से अभिषेक

पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, और शुद्ध जल) से शिवलिंग का अभिषेक करना विशेष फलदायी माना जाता है। इसके बाद सफेद चंदन, अक्षत और फूल चढ़ाएं।

महाशिवरात्रि का शुभ मुहूर्त 2025

महाशिवरात्रि पर पूजा का शुभ समय चार प्रहरों में विभाजित होता है। 2025 के लिए अनुमानित समय इस प्रकार है:

1. प्रथम प्रहर: 26 फरवरी, सुबह 06:09 से 07:36 बजे लाभ मुहूर्त और 736 से 9:04 तक अमृत मुहूर्त रहेगा।

2. द्वितीय प्रहर: दोपहर 10:31 से 11:58 बजे तक शुभ मुहूर्त और दिन के 1:55 से लेकर 2:41 तक विजय मुहूर्त रहेगा।

3. तृतीय प्रहर: 27 फरवरी, रात्रि 10:25 से 11:58 बजे तक चर मुहूर्त और रात 11:33 से लेकर 12:30 तक निशा मुहूर्त रहेगा।

4. चतुर्थ प्रहर: अहले सुबह 04:30 से 05:20 बजे तक ब्रह्मा मुहूर्त, प्रातः संध्या मुहूर्त 4:55 से लेकर 6:09 तक और 6:08 से लेकर 7:36 तक शुभ मुहूर्त रहेगा। पूजा अर्चना कर आप पालन कर सकते हैं।

> (नोट: सटीक मुहूर्त पंचांग पर आधारित होगा।)

महाशिवरात्रि व्रत के लाभ

1. भगवान शिव की कृपा से सभी कष्ट दूर होते हैं।

2. मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।

3. मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।

4. व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है।

महाशिवरात्रि से जुड़ी अन्य मान्यताएं

1. महाशिवरात्रि को ध्यान और योग की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माना गया है।

2. इस दिन की ऊर्जा व्यक्ति को उसकी आंतरिक चेतना से जोड़ती है।

3. शिवलिंग पर जल चढ़ाने से मानसिक और शारीरिक तनाव कम होता है।

महाशिव रात्रि करने से क्या मिलता है फल 

महाशिवरात्रि भगवान शिव की भक्ति और साधना का विशेष पर्व है। इस दिन व्रत, पूजा और रात्रि जागरण करने से जीवन में सुख-शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं। श्रद्धा और नियमपूर्वक पूजा करने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। 2025 में इस पावन अवसर को सच्चे मन से मनाकर भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करें

महाशिवरात्रि केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धि और परमात्मा से जुड़ने का माध्यम है। शिवभक्त इस दिन कथा, व्रत, और पूजा के माध्यम से भगवान शिव के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं।

डिस्क्लेमर 

महाशिवरात्रि लेख पूरी तरह सनातन धर्म से संबंधित है। लेख में इंगित विभिन्न पहलुओं की जानकारी धार्मिक पुस्तकों से ली गई है। साथ ही शुभ मुहूर्त पंचांग से लिया गया है। लेख लखते समय  विद्वान ब्राह्मणों, आचार्यों, लोक कथाओं और इंटरनेट से भी सहयोग सहयोग लिया गया है। लेख को लिखने का उद्देश्य सिर्फ लोगों को अपने धर्म और अपने पर्व त्यौहार के बारे में सटीक जानकारी उपलब्ध कराना मात्र उद्देश्य है।




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