संकष्टी चतुर्थी 18 दिसंबर 2024 को पढ़ें महर्षि वेदव्यास व भगवान गणेश की पौराणिक कथा

 संकष्टी गणेश चतुर्थी का महत्व, पौराणिक कथा, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त। संकष्टी चतुर्थी 18 दिसंबर 2024 दिन बुधवार को है।

संकष्टी गणेश चतुर्थी का पर्व सनातन धर्म में विशेष स्थान रखता है। इस दिन भगवान गणेश की आराधना करने से सभी विघ्न दूर होते हैं और जीवन में सुख-शांति प्राप्त होती है। 

संकष्टी चतुर्थी 18 दिसंबर 2024 दिन बुधवार मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि को है। चतुर्थी तिथि का आगमन बुधवार को सुबह 10:06 पर होगा।

संकष्टी चतुर्दशी की रात चंद्रमा की पूजा की जाती है। चंद्र दर्शन शुभ माना जाता है। इसलिए इस दिन उदय तिथि का महत्व नहीं रहता है। चतुर्थी तिथि की रात चंद्र उदय होना चहिए।

यह पर्व प्रत्येक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन व्रत रखकर गणपति की पूजा करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का आगमन होता है।

संकष्टी गणेश चतुर्थी का पौराणिक कथा 

गणेश संकष्टी चतुर्थी का पौराणिक कथा भगवान गणेश के अद्वितीय गुणों और उनकी भक्तों के प्रति करुणा का उदाहरण प्रस्तुत करती है। इस कथा के अनुसार, महाभारत के रचयिता महर्षि वेदव्यास ने भगवान गणेश को इस महाकाव्य को लिखने के लिए आमंत्रित किया था। 

वेद व्यास को एक तेजस्वी और सशक्त लेखक की आवश्यकता था , जो महाभारत की कथा को लिपिबद्ध कर सके। भगवान गणेश ने इस कार्य को स्वीकार किया, लेकिन उन्होंने एक शर्त रखी कि वे बिना रुके, निरंतर लिखते रहेंगे। यदि महर्षि वेदव्यास रुके या कुछ कहने में देरी की तो गणेशजी लेखन बंद कर देंगे।

वेदव्यास जी ने भगवान गणेश की इस शर्त को स्वीकार कर लिया, लेकिन वे भी अत्यंत बुद्धिमान थे। उन्होंने एक तरकीब निकाली जिससे गणेशजी को बिना रुके और बिना थके लिखने में सहायता मिल सके। 

वेदव्यास जी प्रत्येक महत्वपूर्ण श्लोक या घटना के बीच में एक कठिन श्लोक का उच्चारण करते थे ताकि गणेशजी उसे ठीक से समझने में थोड़ा समय ले सकें और इस प्रकार वेदव्यास जी को थोड़ा समय मिल सके।

इस कथा के दौरान गणेशजी को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, क्योंकि लगातार लिखने के लिए उन्हें अत्यधिक ऊर्जा और ध्यान की आवश्यकता थी। 

वेदव्यास जी की कथा इतनी लंबी और जटिल थी कि लिखते-लिखते गणेशजी का लेखनी टूट गई। इससे वे रुक सकते थे, लेकिन उन्होंने अपनी जिम्मेदारी को सर्वोपरि मानते हुए अपने एक दांत को तोड़ लिया और उसे लेखनी के रूप में प्रयोग करना प्रारंभ कर दिया। 

इसी कारण से गणेशजी को "एकदंत" भी कहा जाता है। यह गणेशजी के धैर्य, समर्पण और कर्तव्यनिष्ठा का प्रतीक बन गया।

यह भी कहा जाता है कि इस प्रकार के कठिन कार्य को करके भगवान गणेश ने अपने भक्तों को यह संदेश दिया कि जीवन में कोई भी कार्य कठिन नहीं है, यदि उसमें संकल्प और समर्पण हो। 

उनकी इस कथा का यही संदेश है कि जीवन में कोई भी कार्य असंभव नहीं है यदि इंसान अपने मन में अडिग संकल्प और दृढ़ विश्वास रखे। गणेशजी ने यह साबित किया कि वे केवल विघ्नकर्ता ही नहीं हैं, बल्कि विघ्न विनाशक और संकल्प के प्रतीक भी हैं।

इस कथा का महत्व संकष्टी चतुर्थी व्रत में इसलिए है क्योंकि संकष्टी का अर्थ ही "संकट हरने वाला" है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने और उनके व्रत का पालन करने से उनके भक्त अपने जीवन के सभी संकटों से मुक्त हो जाते हैं।

संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत की विधि

संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत में भगवान गणेश की पूजा और व्रत का विशेष महत्व है। व्रत की सही विधि से पूजा करने पर भगवान गणेश शीघ्र प्रसन्न होते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूरा करते हैं। इस व्रत की पूजा विधि निम्नलिखित है:

स्नान एवं शुद्धि: व्रत करने वाले को प्रातः काल स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करना चाहिए।

प्रतिज्ञा एवं संकल्प: गणेश चतुर्थी व्रत का संकल्प लेकर गणेश जी की मूर्ति या तस्वीर के सामने बैठें। दीपक जलाकर, पूजा का संकल्प लें और अपने कष्टों से मुक्ति की प्रार्थना करें।

पूजा की तैयारी: भगवान गणेश की प्रतिमा को पुष्प, धूप, दीप, चंदन, रोली, मोदक और दूर्वा अर्पित करें। गणेश जी को मोदक का भोग अत्यंत प्रिय है, अतः इसे अवश्य अर्पित करें।

गणेश मंत्र का जाप: पूजा के समय "ॐ गं गणपतये नमः" का जाप करना अत्यंत शुभ होता है। इस मंत्र का 108 बार जाप करने से भगवान गणेश की कृपा प्राप्त होती है।

व्रत का पालन: इस दिन व्रत करने वाले को एक समय फलाहार करना चाहिए और दिन भर भगवान गणेश का स्मरण करते रहना चाहिए।

आरती और प्रसाद: पूजा के अंत में गणेश जी की आरती करें और प्रसाद बांटें। दूर्वा (घास) को गणेश जी पर अर्पित करना अत्यंत शुभ माना जाता है।

संकष्टी गणेश चतुर्थी का शुभ मुहूर्त 

संकष्टी गणेश चतुर्थी का शुभ मुहूर्त इस प्रकार है।

चतुर्थी तिथि प्रारंभ: [तिथि व समय] 18 दिसंबर 2024, दिन बुधवार को सुबह 10:06 बजे से चतुर्थी तिथि आरंभ होगा।

चतुर्थी तिथि समाप्त: [तिथि व समय] दूसरे दिन गुरुवार को सुबह 10:02 बजे तक चतुर्थी तिथि रहेगा। इसके बाद समाप्त हो जाएगा। 

चंद्रोदय रात 08:02 बजे से हो जायेगा। इसके बाद आप चंद्र दर्शन कर पूजा अर्चना कर सकते हैं।

व्रत का चंद्रोदय मुहूर्त: संकष्टी चतुर्थी की रात चंद्रमा के दर्शन और अर्घ्य देने का विशेष महत्व होता है। चन्द्र उदय के समय आप अर्घ्य देकर भगवान गणेश से अपने सभी संकट दूर करने की प्रार्थना कर सकते हैं।

पूजा करने का शुभ मुहूर्त 

संकष्टी चतुर्थी व्रत करने का विधान संध्या बेला है। गोधूलि मुहूर्त शाम 05:02 बजे से लेकर 05:28 बजे तक रहेगा। उसी प्रकार शुभ मुहूर्त शाम 06:44 बजे से लेकर 08:30 बजे रात तक और अमृत मुहूर्त रात 08:30 बजे से लेकर रात 10:03 बजे तक रहेगा। इस दौरान आप सुविधा अनुसार पूजा अर्चना कर सकते हैं।

संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने से जीवन के सभी संकट (कष्ट) दूर होते हैं। यह व्रत करने से भगवान गणेश व्यक्ति के जीवन में विघ्न, बाधा, रोग और दरिद्रता को दूर करते हैं। साथ ही, व्रत का पालन करने वाले को मानसिक शांति, शारीरिक स्वास्थ्य और आर्थिक समृद्धि प्राप्त होती है।

डिस्क्लेमर 

संकष्टी चतुर्थी पवित्र व्रत पुरी तरह सनातन धर्म पर आधारित है। लेख के संबंध में जानकारी विद्वान पंडितों, आचार्यों और ज्योतिषाचार्य से बातचीत कर लिखा गया है। साथ ही इंटरनेट का भी सहयोग लिया गया है। शुभ मुहूर्त और समय आदि की गणना पंचांग से किया गया है। लेख लिखने का मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म का प्रचार प्रचार करना और सनातनियों को अपने त्यौहार के प्रति रूझान बढ़ाना है। 

हमने पूरी निष्ठा से इस लेख को लिखा है, अगर लेख में किसी प्रकार की गड़बड़ी या त्रुटि होगी तो उसके लिए हम जिम्मेदार नहीं है।





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