प्रयागराज में कुंभ मेला 14 जनवरी 2025 से शुरू होकर 26 फरवरी तक चलेगा

 महाकुंभ 2025 प्रयागराज में 14 जनवरी 2025 से शुरू होकर 26 फरवरी 2025 तक चलेगा। यह 44 दिनों तक चलने वाला एक महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजन है, जिसमें लाखों श्रद्धालु पवित्र त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाकर अपने आध्यात्मिक जीवन को समृद्ध बनाते हैं।

प्रयागराज का महाकुंभ 2025 में आयोजित होगा, और यह विश्व का सबसे बड़ा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक आयोजन माना जाता है। कुंभ मेला हर बारह वर्ष में आयोजित होता है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु, संत-महात्मा और तीर्थ यात्री भाग लेते हैं। 

2025 में प्रयागराज महाकुंभ 14 जनवरी से मकर संक्रांति के अवसर पर शुरू होकर 26 फरवरी तक चलेगा। इसके बाद भी कुंभ मेला चलते रहता है, और यह चैत्र पूर्णिमा तक जारी रहेगा। इस प्रकार यह मेला लगभग 68 दिनों तक चलता है। इस आयोजन में विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान, स्नान पर्व, और आध्यात्मिक गतिविधियां आयोजित की जाएंगी।

कुंभ मेला की पौराणिक कथा

कुंभ मेले का आयोजन भारतीय संस्कृति और हिंदू धर्म के गहन आध्यात्मिक मूल्यों से जुड़ा हुआ है। इसकी पौराणिक कथा समुद्र मंथन की घटना पर आधारित है, जो हिंदू धर्म के प्रमुख पुराणों में वर्णित है। समुद्र मंथन देवताओं और असुरों के बीच अमृत प्राप्ति के लिए हुआ था।

समुद्र मंथन की कथा

कथा के अनुसार, देवता और असुर अमरता प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन करने पर सहमत हुए। मंथन के लिए वासुकि नाग को रस्सी और मंदराचल पर्वत को मथानी के रूप में उपयोग किया गया। मंथन के दौरान 14 रत्न निकले, जिनमें से अमृत कलश भी एक था।

जब अमृत कलश निकला, तो उसे लेकर देवताओं और असुरों के बीच विवाद उत्पन्न हो गया। इस विवाद के दौरान भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर अमृत को देवताओं को बांटने का निर्णय लिया। लेकिन असुरों को इस बात का पता चल गया और उन्होंने अमृत कलश को हथियाने की कोशिश की।

अमृत कलश को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने गरुड़ को भेजा। गरुड़ ने अमृत कलश को लेकर उड़ान भरी। इस दौरान अमृत की कुछ बूंदें चार स्थानों पर गिरीं—हरिद्वार, प्रयागराज (इलाहाबाद), उज्जैन, और नासिक। यही कारण है कि इन चार स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है।

कुंभ मेला प्रत्येक चार बच्चों के बाद लगता है। चार स्थानों पर लगने के कारण प्रत्येक स्थान पर हर 12 साल के बाद मेले का आयोजन किया जाता है। हरिद्वार और प्रयागराज में अर्ध कुंभ मेला का भी आयोजन छह वर्षों के अंतराल में किया जाता है।

कुंभ का क्या है पौराणिक महत्व 

कुंभ मेला भारतीय धर्म, अध्यात्म और संस्कृति का प्रतीक है। यहां स्नान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। विशेषकर कुंभ के दौरान गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर स्नान करने का अत्यधिक महत्व है।

कुंभ में स्नान पर्व

कुंभ मेले के दौरान कई महत्वपूर्ण स्नान पर्व होते हैं, जैसे:

1. मकर संक्रांति (14 जनवरी): यह कुंभ का पहला स्नान पर्व है और इस दिन मेले की शुरुआत होती है।

2. पौष पूर्णिमा (25 जनवरी): इस दिन से कल्पवास का प्रारंभ होता है।

3. मौनी अमावस्या (9 फरवरी): इसे कुंभ का सबसे बड़ा स्नान पर्व माना जाता है।

4. बसंत पंचमी (14 फरवरी): यह पर्व ज्ञान और विद्या की देवी सरस्वती को समर्पित है।

5. माघी पूर्णिमा (24 फरवरी): धार्मिक अनुष्ठानों का यह महत्वपूर्ण दिन है।

6. महाशिवरात्रि (8 मार्च): शिवभक्तों के लिए यह दिन विशेष महत्व रखता है।

7. चैत्र पूर्णिमा (22 मार्च): यह कुंभ मेले का अंतिम स्नान पर्व है।

कुंभ का धार्मिक और सांस्कृतिक पहलू

कुंभ मेला न केवल धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यहां विभिन्न अखाड़ों के साधु-संत अपने अनुयायियों के साथ संगम में डेरा डालते हैं। शिविरों में धार्मिक प्रवचन, कथा वाचन और ध्यान-योग के सत्र आयोजित किए जाते हैं।

कुंभ मेले में देश-विदेश से लाखों तीर्थ यात्री आते हैं, जो भारतीय संस्कृति की विविधता और धार्मिक समृद्धि को करीब से अनुभव करते हैं।

कुंभ मेला की व्यवस्था

कुंभ मेला 2025 की भव्यता को देखते हुए प्रशासन ने व्यापक इंतजाम किए हैं। मेले में करोड़ों श्रद्धालुओं के आगमन को देखते हुए ट्रांसपोर्ट, स्वास्थ्य सेवाओं, सुरक्षा और स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा गया है।

कुंभ मेला में जाने का महत्व

जो लोग आध्यात्मिक जीवन की खोज में हैं, उनके लिए कुंभ मेला एक महान अवसर है। यहां का वातावरण ध्यान, शांति और आंतरिक विकास के लिए आदर्श है। कुंभ मेले में संगम पर स्नान करने से आत्मा की शुद्धि होती है और जीवन में सकारात्मकता आती है।

कुंभ में त्रिवेणी स्नान मिलती है मोक्ष

प्रयागराज का महाकुंभ भारतीय परंपरा और आध्यात्मिकता का उत्कृष्ट उदाहरण है। इसकी पौराणिक कथा, धार्मिक महत्व और भव्य आयोजन इसे अद्वितीय बनाते हैं। जो लोग जीवन में मोक्ष और आत्मा की शुद्धि की कामना करते हैं, उनके लिए कुंभ मेले में भाग लेना अत्यधिक महत्वपूर्ण है। 2025 का प्रयागराज महाकुंभ न केवल भारत के लिए,बल्कि पूरे विश्व के लिए एक ऐतिहासिक और आध्यात्मिक घटना होगी।

डिस्क्लेमर 

कुंभ मेला पर लिखे गए लेख हमारे विद्वानों और आचार्यों द्वारा विचार-विमर्श करने के बाद लिखा गया है। साथ ही इंटरनेट से सेवाएं ली गई है। लेख लिखने का मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म का प्रचार प्रसार करना और सनातनियों के बीच कुंभ मेला के प्रति जागरूक करना हमारा मुख्य उद्देश्य है।


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