अक्षय नवमी पर्व कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष नवमी तिथि, दिन शुक्रवार , 31 नवंबर 2025 को मनाया जायेगा।
अक्षय नवमी पर्व का महत्त्व और पौराणिक कथा
अक्षय नवमी पर्व सनातन धर्म में एक महत्वपूर्ण तिथि है, जो हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। इसे "आंवला नवमी" या "अक्षय नवमी" के नाम से भी जाना जाता है।
अक्षय नवमी का शाब्दिक अर्थ है "अक्षय" यानी जो कभी नष्ट नहीं होता और "नवमी" यानी नौवीं तिथि। इस दिन को धरती पर "सत्य युग" के प्रारंभ का दिन माना जाता है। इस दिन किए गए धार्मिक और पुण्य कार्यों का फल कभी क्षय (नाश) नहीं होता, इसलिए इसे अक्षय नवमी कहा जाता है।
अक्षय नवमी का पौराणिक महत्व
अक्षय नवमी का संबंध कई पौराणिक कथाओं और मान्यताओं से है। सबसे प्रचलित कथा यह है कि इस दिन भगवान विष्णु ने धरणी देवी (धरती माता) से आशीर्वाद प्राप्त किया था, जिसके परिणामस्वरूप पृथ्वी पर सुख-समृद्धि और शांति का आगमन हुआ। यह पर्व खास तौर पर महिलाओं द्वारा अपने परिवार की सुख-समृद्धि और कल्याण के लिए मनाया जाता है।
एक अन्य कथा के अनुसार, सत्ययुग के प्रारंभ में इस दिन भगवान विष्णु ने सभी जीवों की रक्षा के लिए वराह अवतार लेकर पृथ्वी को जल में से निकाला था। माना जाता है कि इस दिन वृक्षों में विशेष रूप से आंवला वृक्ष का पूजन करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। आंवला को विष्णुजी का रूप माना गया है, इसलिए इस दिन आंवला वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व होता है।
इस पर्व से संबंधित एक और पौराणिक कथा यह भी है कि इस दिन माता अन्नपूर्णा ने संसार को अन्न का वरदान दिया था। इस दिन को माता अन्नपूर्णा के पूजन का पर्व भी माना जाता है। इसीलिए, इसे प्रकृति की पूजा के रूप में भी देखा जाता है, और विशेष रूप से खेती में लगे लोग इस दिन को बड़े उल्लास के साथ मनाते हैं।
अक्षय नवमी पर पूजन विधि
अक्षय नवमी के दिन विशेष रूप से आंवला वृक्ष की पूजा की जाती है। सुबह स्नान आदि करके साफ-सुथरे वस्त्र पहनकर आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर पूजा की जाती है। आंवला वृक्ष के नीचे भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमाओं का पूजन किया जाता है। वृक्ष के चारों ओर परिक्रमा की जाती है और प्रसाद बांटा जाता है। मान्यता है कि इस दिन जो भी व्यक्ति आंवला का सेवन करता है, उसे स्वास्थ्य और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
मथुरा और अयोध्या परिक्रमा का महत्व और पौराणिक कथा
हिंदू धर्म में मथुरा और अयोध्या की परिक्रमा का बहुत महत्व है। मथुरा को भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि और अयोध्या को भगवान श्रीराम की जन्मभूमि के रूप में माना जाता है। इन दोनों तीर्थ स्थलों की परिक्रमा करना श्रद्धालुओं के लिए विशेष धार्मिक महत्व रखता है, क्योंकि यह परिक्रमा भगवान श्रीकृष्ण और भगवान श्रीराम की स्मृति में की जाती है।
मथुरा परिक्रमा की पौराणिक कथा
मथुरा की परिक्रमा के पीछे एक पौराणिक कथा है। कथा के अनुसार, जब भगवान श्रीकृष्ण ने मथुरा में जन्म लिया था, तभी से मथुरा को एक पवित्र स्थान माना गया। मथुरा के चारों ओर परिक्रमा करना भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का स्मरण करना माना जाता है। मथुरा परिक्रमा के दौरान गोवर्धन पर्वत की भी परिक्रमा की जाती है। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्रदेव के प्रकोप से गांववासियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया था। इसीलिए, इस परिक्रमा को करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त होती है।
अयोध्या परिक्रमा की पौराणिक कथा
अयोध्या की परिक्रमा भगवान श्रीराम के भक्तों के लिए विशेष महत्व रखती है। मान्यता है कि जब भगवान श्रीराम ने अयोध्या में जन्म लिया था, तब से ही यह स्थान बहुत पवित्र माना जाने लगा। अयोध्या परिक्रमा करने से भक्तों को श्रीराम के जीवन के हर पहलू का स्मरण होता है और उनकी कृपा प्राप्त होती है। इस परिक्रमा का प्रमुख उद्देश्य भगवान श्रीराम के आदर्शों का पालन करना और उनके प्रति श्रद्धा व्यक्त करना है।
अयोध्या परिक्रमा को करने से सभी दुख-दर्द दूर होते हैं, और भक्तों के पाप नष्ट हो जाते हैं। अयोध्या की परिक्रमा विशेष रूप से चैत्र माह में रामनवमी के अवसर पर की जाती है। इस परिक्रमा के दौरान लोग श्रीराम की जन्मभूमि, हनुमान गढ़ी, कनक भवन, और अन्य पवित्र स्थलों की यात्रा करते हैं।
मथुरा और अयोध्या परिक्रमा का धार्मिक महत्व
मथुरा और अयोध्या परिक्रमा का धार्मिक महत्व यह है कि ये दोनों स्थान भगवान के अवतारों से संबंधित हैं। मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया और उन्होंने मथुरा की भूमि पर कई दिव्य लीलाएं कीं। वहीं अयोध्या में भगवान श्रीराम ने जन्म
लेकर मानवता को जीवन के आदर्श रूप को दिखाया। इन दोनों तीर्थ स्थलों की परिक्रमा करने से भक्त भगवान की कृपा प्राप्त करते हैं और उनके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
निष्कर्ष
अक्षय नवमी पर्व और मथुरा-अयोध्या परिक्रमा भारतीय संस्कृति और धार्मिक मान्यताओं के महत्वपूर्ण हिस्से हैं। जहां अक्षय नवमी का पर्व मानवता और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता काप्रतीक है, वहीं मथुरा और अयोध्या परिक्रमा भगवान श्रीकृष्ण और भगवान श्रीराम की स्मृति में किए गए श्रद्धा और भक्ति के कार्यों का प्रतीक है।