36 घंटे के निर्जला व्रत छठ का शुभारंभ 05 नवंबर दिन मंगलवार, कार्तिक माह शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि को नहाए-खाए से होगा। 06 नवंबर दिन बुधवार कार्तिक माह शुक्ल पक्ष पंचमी तिथि को खरना है। 07 नवंबर दिन गुरुवार कार्तिक माह शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को संध्या अर्घ्य और 08 नवंबर दिन शुक्रवार कार्तिक माह शुक्ल पक्ष सप्तमी तिथि को सुबह का अर्घ्य दिया जायेगा।
कार्तिक छठ, जिसे छठ पूजा के नाम से भी जाना जाता है, एक प्रमुख हिंदू त्योहार है जिसे विशेष रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ हिस्सों में धूमधाम से मनाया जाता है। वर्तमान समय पूरे देश सहित बहुत से अन्य देशों में छठ पर्व मनाने की परंपरा शुरू हो गई है।
यह त्योहार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है और सूर्य भगवान और उनकी पत्नी उषा को समर्पित होता है। यह मुख्य रूप से चार दिन का पर्व है जिसमें व्रत, उपवास, पूजा, और विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान शामिल होते हैं।
कार्तिक छठ का महत्व और पौराणिक कथा
छठ पूजा का धार्मिक और पौराणिक महत्व अत्यंत व्यापक है। यह पर्व प्रकृति, सूर्य देवता, और उनकी बहन छठी मैया को समर्पित है। सूर्य देवता को जीवन और ऊर्जा का स्रोत माना जाता है, और यह माना जाता है कि उनकी पूजा से व्यक्ति को रोग, दुख, और दरिद्रता से मुक्ति मिलती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, छठी मैया को भगवान सूर्य की बहन माना जाता है, और उनकी पूजा से सूर्य देवता प्रसन्न होते हैं। एक अन्य कथा के अनुसार, महाभारत काल में द्रौपदी और पांडवों ने अपनी कठिनाइयों को दूर करने और खोए हुए राज्य को पुनः प्राप्त करने के लिए छठ पूजा की थी। यह भी कहा जाता है कि लव-कुश ने माता सीता के साथ छठ पूजा की थी। इस प्रकार, छठ का पौराणिक महत्व विभिन्न कथाओं और मान्यताओं से जुड़ा हुआ है।
छठ पूजा के चार दिन
1. पहला दिन (नहाय-खाय) - छठ पूजा का आरंभ नहाय-खाय से होता है। इस दिन व्रत करने वाले व्यक्ति स्नान करके शुद्धि के प्रतीक के रूप में केवल शुद्ध और सात्विक भोजन करते हैं। यह दिन शरीर और मन की शुद्धि के लिए होता है। इस दिन व्रतधारियों को कद्दू की सब्जी, चना दाल और अरवा चावल खाने का विधान है।
2. दूसरा दिन (खरना) - इस दिन उपवास रखा जाता है और शाम को पूजा के बाद विशेष प्रसाद बनाकर सूर्य देवता को अर्पित किया जाता है। खरना के दिन गुड़ से बनी खीर (रसियाव) और रोटी का प्रसाद ग्रहण किया जाता है।
इस दिन व्रती पूरे दिन बिना जल ग्रहण किए उपवास रखते हैं और शाम को प्रसाद खाकर व्रत खोलते हैं। व्रतधारी रात 08:46 बजे तक पानी पी सकते हैं। चन्द्रास्त के बाद 24 घंटा निर्जला व्रत शुरू हो जाएगा। मान्यता है कि जब तक आकाश में चंद्र उदय रहेगा तब तक व्रतधारी पानी पी सकते हैं।
3. तीसरा दिन (संध्या अर्घ्य) - इस दिन मुख्य पूजा होती है। व्रती डूबते हुए सूर्य को नदी, तालाब, सरोवर सहित अन्य किसी जलाशय के किनारे जाकर अर्घ्य अर्पित करते हैं। इस दिन बांस की टोकरी में ठेकुआ, चावल के लड्डू, मौसमी फल, नारियल आदि रखकर सूर्य देव को अर्पित किया जाता है।
4. चौथे दिन (प्रातः अर्घ्य) छठ पूजा का अंतिम दिन होता है। इस दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन व्रती फिर से जल में खड़े होकर सूर्य देवता को अर्घ्य अर्पित करते हैं और उनकी आराधना करते हैं। इस पूजा के बाद व्रत का पारण किया जाता है।
सुबह ओर शाम अर्ध्य देने का शुभ समय
सूर्यास्त का समय: 07 नवंबर की संध्या 05:04 बजे सूर्यास्त होगा। इसके समय व्रतधारी महिलाऐं अर्घ्य दे सकती है।
सूर्योदय का समय: 08 नवंबर का प्रातः 05:54 बजे सूर्योदय होगा। इसी समय व्रतधारी अर्ध्य दे सकते हैं।
पूजा की विधि
छठ पूजा की पूजा-विधि विशेष होती है, जो शुद्धता और नियमों का पालन करने पर केंद्रित होती है। इसके अंतर्गत शामिल हैं:
1. सफाई - छठ पूजा में शुद्धता का बहुत महत्व है। इसलिए पूजा स्थल और घर की सफाई की जाती है। व्रत करने वाले व्यक्ति स्वयं भी स्नान करके साफ कपड़े पहनते हैं।
2. व्रत और उपवास - चार दिनों तक व्रत रखना होता है, जिसमें पहले दिन हल्का भोजन किया जाता है, दूसरे दिन उपवास रखा जाता है, तीसरे दिन संध्या अर्घ्य और चौथे दिन प्रातः अर्घ्य के साथ व्रत समाप्त होता है।
3. अर्घ्य देना - छठ पूजा का मुख्य अनुष्ठान सूर्य देव को अर्घ्य देना है। व्रती पानी में खड़े होकर डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। इसे अत्यंत भक्तिभाव से किया जाता है।
4. प्रसाद चढ़ाना - छठ पूजा में ठेकुआ, चावल के लड्डू, गुड़ से बनी खीर, मौसमी फल, गन्ना आदि का प्रसाद बनाया जाता है और सूर्य देव को चढ़ाया जाता है। इन चीजों को व्रती स्वयं बनाते हैं और पूरी पवित्रता का पालन करते हैं।
छठ पूजा के वैज्ञानिक लाभ
छठ पूजा में सूर्य देवता की उपासना के साथ-साथ शुद्ध जल और सूर्य की रोशनी का संपर्क होता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, पानी में खड़े होकर सूर्य की ओर देखने से शरीर को विटामिन डी मिलता है, जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है। इसके अतिरिक्त, उपवास से शरीर की शुद्धि होती है और पाचन तंत्र मजबूत होता है।
छठ पूजा में पूजा सामग्री का विशेष महत्व होता है, और प्रत्येक वस्तु का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व होता है। पूजा में उपयोग होने वाली सामग्रियां न केवल सूर्य देवता और छठी मैया को अर्पित की जाती हैं, बल्कि इनसे व्रती का श्रद्धा भाव भी प्रकट होता है। यहां छठ पूजा की आवश्यक सामग्री की सूची और उनका महत्व विस्तार से दिया गया है:
1. बांस की टोकरी और सूप
बांस से बनी टोकरी और सूप छठ पूजा की पूजा सामग्री में प्रमुख होते हैं। इनका उपयोग पूजा की सामग्री और प्रसाद को रखने के लिए किया जाता है। यह टोकरी और सूप प्राकृतिक होने के कारण पर्यावरण को भी सुरक्षित रखते हैं और इसे लोक परंपरा का अभिन्न हिस्सा माना जाता है। कुछ व्रतधारी पीतल से बनी सूप का भी उपयोग अर्ध्य देने में करते हैं।
2. ठेकुआ
ठेकुआ एक खास प्रकार का मीठा पकवान होता है जो आटे और गुड़ से बनाया जाता है। इसे तिल के तेल या घी में तला जाता है। ठेकुआ छठ पूजा का मुख्य प्रसाद होता है और इसे छठी मैया को अर्पित किया जाता है। इसे बड़े प्रेम और शुद्धता से बनाया जाता है और इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है।
3. गुड़ और चावल से बनी खीर
छठ पूजा में गुड़ और चावल से बनी खीर का विशेष महत्व होता है। इसे पूजा के दूसरे दिन खरना के अवसर पर बनाया जाता है। यह प्रसाद का एक महत्वपूर्ण भाग है और इसे पूरी पवित्रता और श्रद्धा के साथ बनाया जाता है।
4. फलों का प्रसाद
पूजा में मौसमी फलों का भी विशेष स्थान होता है। जैसे नारियल, केला, गन्ना, सिंघाड़ा, अनार, सेब, कच्चे हल्दी, अदरक, गाजर, आंवला एवं बैर का प्रसाद चढ़ाया जाता है। ये सभी फल पूजा के सूप और टोकरी में रखे जाते हैं और सूर्य देवता को अर्पित किए जाते हैं। गन्ना विशेष रूप से पूजा में शामिल होता है, जो छठ पूजा का प्रतीक माना जाता है।
5. सुथनी या कन्द
सुथनी या कन्द एक प्रकार की जड़ वाली सब्जी होती है जो छठ पूजा में उपयोग की जाती है। इसे प्रसाद में शामिल किया जाता है और इसे छठी मैया को चढ़ाने का धार्मिक महत्व होता है।
6. दीपक और धूप
पूजा में दीपक जलाने का महत्व होता है। शुद्ध घी का दीपक जलाकर सूर्य देवता की आराधना की जाती है। धूप और अगरबत्ती भी पूजा में शामिल होते हैं जो वातावरण को पवित्र और सुगंधित बनाते हैं।
7. जल से भरा लोटा
एक लोटे में जल भरकर उसे पूजा में रखा जाता है। यह जल संध्या और प्रातः अर्घ्य के समय सूर्य देवता को अर्पित किया जाता है। इसे बहुत पवित्र माना जाता है और इसे सूर्य देव की कृपा पाने के लिए उपयोग में लाया जाता है।
8. सिंदूर और कुमकुम
सिंदूर और कुमकुम का उपयोग विशेष रूप से विवाहित महिलाएं करती हैं। यह सुहाग का प्रतीक होता है और छठ पूजा में इसका धार्मिक महत्व होता है। सिंदूर का उपयोग सूर्य देव और छठी मैया की पूजा में किया जाता है।
9. नए वस्त्र
पूजा के दौरान व्रती शुद्ध और नए वस्त्र पहनते हैं। महिलाएं प्रायः साड़ी और पुरुष धोती पहनते हैं। यह शुद्धता और नए जीवन की शुरुआत का प्रतीक होता है।
10. गुड़ और चीनी का प्रसाद।
छठ पर्व में गुड़ और चीनी के प्रसाद का भी महत्व होता है। इसे प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है और पूजा के बाद इसे व्रती और श्रद्धालु ग्रहण करते हैं।
11. पीला कपड़ा या लाल कपड़ा
पूजा में पीले या लाल कपड़े का भी प्रयोग किया जाता है। इसे पूजा सामग्री के साथ रखा जाता है और इसे शुभ माना जाता है। काले कपड़ों का प्रयोग करना वर्जित है।।
डिस्क्लेमर
कार्तिक छठ पर्व की यह लेख पूरी तरह सनातन धर्म पर आधारित है। लेख के संबंध में जानकारी विद्वान पंडितों, आचार्यों और ज्योतिषाचार्य से बातचीत कर लिखा गया है। साथ ही इंटरनेट का भी सहयोग लिया गया है। शुभ मुहूर्त और समय आदि की गणना पंचांग से किया गया है। लेख लिखने का मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म का प्रचार प्रचार करना और सनातनियों को अपने त्यौहार के प्रति रूझान बढ़ाना है। हमने पूरी निष्ठा से इस लेख को लिखा है, अगर लेख में किसी प्रकार की गड़बड़ी या त्रुटि होगी तो उसके लिए हम जिम्मेदार नहीं है।