यम दीप, जिसे हम यम दीपदान भी कहते हैं, दीपावली के पांच दिनी त्योहार के पहले दिन, धनतेरस के अवसर पर निकाला जाता है। इसे यमराज, जो मृत्यु के देवता माने जाते हैं, की पूजा के रूप में मनाया जाता है। इस परंपरा का मुख्य उद्देश्य मृत्यु के देवता यमराज को प्रसन्न करना और घर के सदस्यों की अकाल मृत्यु से रक्षा करना है। इस दिन को यमराज और उनके दूतों से मुक्ति पाने का दिन भी माना जाता है।
पौराणिक कथा प्रथम
यम दीप से जुड़ी पौराणिक कथा में राजा हिम का उल्लेख मिलता है। कथा के अनुसार, राजा हिम के पुत्र की जन्मकुंडली में यह भविष्यवाणी की गई थी कि उसकी मृत्यु विवाह के चौथे दिन सांप के काटने से हो जाएगी। राजा और रानी इस बात से बहुत चिंतित थे, लेकिन उन्होंने उपायों की खोज शुरू की। जब उस राजकुमार का विवाह हुआ, तो उसकी पत्नी ने इस भविष्यवाणी के बारे में सुनते ही एक उपाय सोचा।
उस दिन की रात को, विवाह के चौथे दिन, राजकुमार की पत्नी ने अपने पति को जागते रहने का निश्चय किया। उसने उस रात को अपने घर के दरवाजे पर ढेर सारी सोने-चांदी की चीजें और गहने सजाए, और घर के अंदर हर जगह दीपक जलाए। उसने राजकुमार को सोने नहीं दिया और पूरी रात उसे कहानियाँ सुनाई और गीत गाए।
कथा के अनुसार, जब मृत्यु के देवता यमराज सांप के रूप में आए, तो दरवाजे पर रखे गहनों और दीपकों की रोशनी से उनकी आंखें चकाचौंध हो गईं। सांप रूपी यमराज घर के अंदर नहीं जा सके और पूरे रात वहीं बैठे रहे। अगली सुबह होते ही यमराज वापस लौट गए, और इस तरह राजकुमार की अकाल मृत्यु टल गई।
इस घटना के बाद से, धनतेरस के दिन यमराज के सम्मान में दीप जलाने की परंपरा शुरू हुई। इसे "यम दीपदान" कहा जाता है, और यह मान्यता है कि इस दिन दीप जलाने से अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है।
यम दीपदान का दूसरी पौराणिक कथा
स्कंद पुराण के अनुसार एक बार यमराज ने अपने दूतों से कहा कि कभी ऐसा भी होता है कि जब किसी का प्राण हरण करने तुम जाते हो तुम्हारी आंखों में आंसू आ जाता है। साथ ही उस व्यक्ति का प्राण हरण करने का मन नहीं करता है।
यमराज के कहने के बाद एक दूत में एक घटना को याद करते हैं कहा कि किसी राज्य में एक राजकुमार रहता था। राजकुमार के कुंडली के अनुसार उसके विवाह के उपरांत 04 दिन तक वह जीवित रहेगा। इसके बाद उसकी मृत्यु निश्चित है। राजा को बात पता चला तो राजकुमार को ब्राह्मण के भेष बनाकर जंगल में रहने का आदेश दिया।
राजकुमार सुख पूर्वक जंगल में रहने लगे। हंस देश की राजकुमारी जंगल में भ्रमण करने को आई थी। राजकुमारी ने राजकुमार को देखा और उसके रंग रूप पर मोहित हो गई। इसके बाद दोनों ने गंधर्व विवाह कर लिया। विवाह के उपरांत चौथे दिन राजकुमार की मौत हो गई।
यमराज के दूत जब राजकुमार के प्राण हरण करने के लिए आए तो राजकुमारी का रूदन देखकर यम दूतों के आंखें भर गई। होनी को कोई टाल नहीं सकता। इस कारण यमराज के दूत को राजकुमार का प्राण हरण करके ले जाना पड़ा।
दूत में यमराज से पूछा कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे किसी भी व्यक्ति को अकाल मृत्यु से मृत्यु न हो। यमराज जी ने कहा कि कार्तिक मास, कृष्ण पक्ष के त्रियोदशी तिथि को जो मेरे नाम का दीपदान करेगा उसे घर में अकाल मृत्यु किसी भी व्यक्ति को नहीं होगा।
यम दीपदान की विधि
1. समय: धनतेरस की रात यम का दीया जलाया जाता है। यह दीया घर के मुख्य द्वार पर बाहर रखा जाता है
2. दीप तैयार करें: एक मिट्टी का दीपक लें और उसमें सरसों का तेल डालें। इसमें रुई की बाती लगाएं।
3. दीप जलाएं: दीया जलाकर मुख्य द्वार के बाहर रख दें।
4. प्रार्थना: दीया जलाते समय यमराज से परिवार की सुरक्षा और दीर्घायु की प्रार्थना करें।
5. पुराने दीया और अगर नहीं हो तो नया दीया में सरसों का तेल डालकर, कपड़े का बात्ती लगाकर घर की सबसे बुजुर्ग महिला, घर के सभी सदस्यों को भोजन करने के उपरांत यम के दीया को पूरे घर के सभी कमरों में दिखाने के बाद घर के बाहर कचरे के ढ़ेर के नजदीक दक्षिण की ओर मुख करके दीया को रख देना चाहिए। क्योंकि दक्षिण दिशा यम की दिशा मानी जाती है।
6. इसके बाद भगवान यमराज का नाम लेकर जल अर्पितकर, बिना पीछे देखे घर में प्रवेश कर जाए। माना जाता है कि यम के दीया निकालने से घर के किसी भी सदस्य को अकाल मृत्यु नहीं होती है और घर के सभी नकारात्मक ऊर्जा बाहर चल जाता है और सकारात्मक ऊर्जा से पूरा घर भर जाता है
दीप मंत्र
यमदीप जलाते समय यह मंत्र बोल हुए जाना हैं
"मृत्युना पाशहस्तेन कालेन भार्यया सह।
त्रयोदश्यां दीपदानात सूर्यज: प्रीयतामिति।"
यम दीपदान करने से अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है और घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।
डिस्क्लेमर
यम दीपदान का यह लेख पूरी तरह सनातन धर्म पर आधारित है। लेख के संबंध में जानकारी विद्वान पंडितों, आचार्यों और ज्योतिषाचार्य से बातचीत कर लिखा गया है। साथ ही इंटरनेट का भी सहयोग लिया गया है। लेख लिखने का मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म का प्रचार प्रचार करना और सनातनियों को अपने त्यौहार के प्रति रूझान बढ़ाना है। हमने पूरी निष्ठा से इस लेख को लिखा है, अगर लेख में किसी प्रकार की गड़बड़ी या त्रुटि होगी तो उसके लिए हम जिम्मेदार नहीं है।