नवरात्रि 2024 महाअष्टमी 10 को कन्या व शस्त्र पूजन 11 अक्टूबर को

 दुर्गोत्सव में महाअष्टमी और महानवमी का विशेष महत्त्व होता है, और दोनों दिन मां दुर्गा की महागौरी और माता सिद्धिदात्री की पूजा अत्यंत विधि-विधान से की जाती है

महाष्टमी को लेकर मां दुर्गा के भक्तों के बीच असमंजस की स्थिति कायम है। कोई कह रहा है 10 अक्टूबर को होगा तो कोई कह रहा है 11 अक्टूबर को ? आइए हम आपको सनातनी पंचांग के अनुसार बताते हैं कि किस तिथि को महाअष्टमी और महानवमी है।


आचार्य जीतेन्द्र उपाध्याय के अनुसार अष्टमी तिथि 10 अक्टूबर को मनाया जायेगा। महावीर और ऋषिकेश पंचांग के अनुसार 10 अक्टूबर को सुबह 07:30 बजे सप्तमी तिथि समाप्त हो जाएगी। 10 अक्टूबर के को दिन और रात के समय अष्टमी तिथि अधिक रहने के कारण अष्टमी का व्रत और निशा पूजा होगी। 

आचार्य जी का कहना है कि संधी या निशा पूजा के समय अष्टमी तिथि मौजूद रहना चाहिए। 10 अक्टूबर को रात भर अष्टमी तिथि है आचार्य जी का कहना है कि महागौरी का व्रत जो आठवीं तिथि को किया जाता है उसे 10 अक्टूबर को ही करना शास्त्र सम्मत होगा।

दूसरी ओर नवमी तिथि 11 अक्टूबर को मनाया जाएगा। हवन और शस्त्र पूजा भी इसी दिन किया जाएगा। नव दुर्गा अर्थात कुमारी कन्याओं को भोजन आज ही के दिन कराया जाएगा। बहुत से भक्त अष्टमी के दिन भी कुंवारी कन्याओं को पूजन कर भोजन करते हैं।

महाअष्टमी की विधि:

दुर्गा पूजन: माँ दुर्गा की मूर्ति या तस्वीर के सामने धूप, दीप, फूल, चंदन, और नैवेद्य अर्पित कर पूजन किया जाता है। माँ के आठवें रूप महागौरी की विशेष पूजा की जाती है

संधि पूजा: यह पूजा अष्टमी और नवमी के संधिकाल (संधि) में की जाती है। इस समय मां दुर्गा के चामुंडा रूप की पूजा की जाती है। इसमें 108 दीपक जलाकर उनका पूजन किया जाता है।

कन्या पूजन: अष्टमी के दिन कन्या पूजन का विशेष महत्व होता है। 9 कन्याओं को आमंत्रित कर उनकी पूजा की जाती है, उन्हें भोजन कराया जाता है और उपहार दिए जाते हैं। इन्हें नवदुर्गा के रूप में देखा जाता है।

महानवमी की विधि

पूजा विधि: नवमी के दिन माँ दुर्गा के नवम रूप सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है और मां दुर्गा से सिद्धि प्राप्त करने की प्रार्थना की जाती है।

हवन: नवमी के दिन हवन (यज्ञ) का विशेष महत्त्व होता है। हवन सामग्री में घी, चावल, तिल आदि मिलाकर अग्नि में आहुति दी जाती है।

भोग और प्रसाद: हवन के बाद मां दुर्गा को भोग अर्पित किया जाता है और प्रसाद बांटा जाता है। इस दिन विशेष रूप से खीर, पूड़ी, और हलवे का भोग लगाया जाता है।

दशमी तिथि पर दुर्गोत्सव के अंतिम दिन को विजयादशमी या दशहरा के रूप में मनाया जाता है। इस दिन मां दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन होता है, जो उनकी विदाई का प्रतीक होता है। इसी दिन घर और मंदिरों में स्थापित कलश को डोलाया जायेगा। यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। विजयादशमी के अवसर पर भगवान राम ने रावण का वध किया था, जिससे यह दिन असत्य पर सत्य की विजय का उत्सव माना जाता है।

इसके अलावा, इस दिन रावण दहन के कार्यक्रम भी होते हैं, जहां रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतलों को जलाया जाता है।

पूजा करने का शुभ मुहूर्त 

महाअष्टमी और महानवमी तिथि अर्थात 10 और 11 अक्टूबर 2024 को पूजा करने का शुभ मुहूर्त इस प्रकार है। अष्टमी तथि को पूजा करने का शुभ मुहूर्त अहले सुबह 05:40 बजे से लेकर 07:08 बजे तक चार मुहूर्त रहेगा। उसी प्रकार 07:08 बजे से लेकर 08:36 बजे तक लाभ मुहूर्त, 11:08 बजे से लेकर 11:55 बजे तक अभिजीत मुहूर्त, 01:29 बजे से लेकर 02:16 बजे तक विजय मुहूर्त और 01:00 बजे से लेकर 02:28 बजे तक अमृत मुहूर्त रहेगा इस दौरान आप सुविधा अनुसार पूजा अर्चना कर सकते हैं।

महानवमी तिथि अर्थात 11 अक्टूबर 2024, दिन शुक्रवार को पूजा करने का शुभ मुहर्त इस प्रकार है। 05:40 बजे से लेकर 07:08 बजे तक चार मुहूर्त, 07:08 बजे से लेकर 08:36 बजे तक लाभ मुहूर्त, 08:36 बजे से लेकर 10:04 बजे तक अमृत है । उसी प्रकार 11:08 बजे से लेकर 11:55 बजे तक अभिजीत मुहूर्त और 01:29 बजे से लेकर 02:16 बजे तक विजय मुहूर्त है। इस दौरान आप पूजा अर्चना कर सकते हैं।

डिस्क्लेमर

शारदीय नवरात्र का यह लेख पूरी तरह सनातन धर्म पर आधारित है। लेख के संबंध में जानकारी विद्वान पंडितों, आचार्यों और ज्योतिषाचार्य से बातचीत कर लिखा गया है। साथ ही इंटरनेट का भी सहयोग लिया गया है। शुभ मुहूर्त और समय आदि की गणना पंचांग से किया गया है। लेख लिखने का मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म का प्रचार प्रचार करना और सनातनियों को अपने त्यौहार के प्रति रूझान बढ़ाना है। हमने पूरी निष्ठा से इस लेख को लिखा है, अगर लेख में किसी प्रकार की गड़बड़ी या त्रुटि होगी तो उसके लिए हम जिम्मेदार नहीं है



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