करवा चौथ 20 अक्टूबर 2024 को मनाया जाएगा। यह त्योहार विशेष रूप से उत्तर भारत में विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए मनाती हैं।
कैसे मनाया जाता है करवा चौथ व्रत
1. सुबह सूर्योदय से पहले महिलाएं सरगी खाती हैं, जो उनकी सास द्वारा दी जाती है। इसमें फल, मिठाई, और ड्राई फ्रूट्स शामिल होते हैं।
2. पूरे दिन महिलाएं निर्जला व्रत (बिना पानी पिए) रखती हैं।
3. शाम को महिलाएं पूजा करती हैं। करवा (मिट्टी का बर्तन) और दीया जलाकर भगवान शिव, माता पार्वती, गणेश और कार्तिकेय की पूजा की जाती है।
- 4. चंद्रमा के दर्शन के बाद पति के हाथों से पानी पीकर और खाना खाकर व्रत तोड़ा जाता है।
करवा चौथ की पौराणिक कथा
प्राचीन समय में, वीरवती नाम की एक रानी थी। वह सात भाइयों की एकमात्र बहन थी और उसकी शादी एक शक्तिशाली राजा से हुई थी। वीरवती अपनी पहली करवाचौथ का व्रत रख रही थी। उसने सूर्योदय से लेकर चंद्रमा निकलने तक बिना कुछ खाए-पिए अपने पति की लंबी उम्र के लिए उपवास किया।
व्रत के दौरान, दिन भर की भूख और प्यास से वीरवती की तबीयत खराब होने लगी। उसकी हालत देख, उसके भाइयों से यह देखा नहीं गया। वे अपनी बहन को व्रत तोड़ने के लिए तैयार करने की योजना बनाने लगे। भाइयों ने छल से एक पेड़ के पीछे आईने का इस्तेमाल कर एक कृत्रिम चंद्रमा बनाया। उन्होंने वीरवती को दिखाया कि चंद्रमा निकल चुका है। अपनी भाइयों की बातों पर विश्वास करके वीरवती ने व्रत तोड़ दिया और खाना खा लिया।
जैसे ही उसने खाना खाया, उसे यह खबर मिली कि उसके पति की मृत्यु हो गई है। यह सुनकर वीरवती का दिल टूट गया, और वह अपने पति के शव के पास रोने लगी। उसकी करुणा और प्रेम को देखकर देवी मां प्रकट हुईं और उन्होंने वीरवती को सच्चाई बताई। वीरवती ने फिर से पूरी श्रद्धा के साथ करवाचौथ का व्रत किया। उसकी भक्ति और समर्पण से प्रसन्न होकर, देवी माँ ने उसके पति को जीवनदान दिया।
इस घटना के बाद से ही करवा चौथ का व्रत पति की लंबी उम्र और सुरक्षा के लिए विशेष महत्व रखता है।
करवा चौथ की दूसरी कथा सावित्री और सत्यवान की
एक अन्य प्रमुख कथा सावित्री और सत्यवान से जुड़ी है। सावित्री एक अत्यंत समर्पित पत्नी थी और उसका पति सत्यवान एक साधारण लेकिन धर्मपरायण व्यक्ति था। एक दिन नारद मुनि ने सावित्री को बताया कि उसके पति सत्यवान की मृत्यु एक वर्ष के भीतर हो जाएगी। सावित्री को यह जानकर बहुत दुख हुआ, लेकिन उसने अपने पति के साथ व्रत और पूजा का दृढ़ निश्चय किया।
सावित्री ने कठिन तपस्या और पूजा की। एक दिन, जब सत्यवान जंगल में लकड़ियां काटने गया, उसी दिन यमराज सत्यवान की आत्मा लेने के लिए आए। सत्यवान की मृत्यु हो गई, लेकिन सावित्री ने यमराज का पीछा करना शुरू किया। उसकी भक्ति और पति के प्रति अटूट प्रेम को देखकर यमराज ने उसे सत्यवान की आत्मा को वापस करने का वरदान दे दिया। इस प्रकार सत्यवान जीवित हो गया और सावित्री का त्याग और व्रत सफल हुआ।
करवा की तीसरी कथा करवा और उसके भाईयों का
एक और पौराणिक कथा करवा नामक एक पतिव्रता स्त्री की है। करवा अपने पति से बेहद प्रेम करती थी और उसकी भक्ति इतनी प्रबल थी कि उसके पुण्य से उसके पति की रक्षा हो सकती थी। एक दिन, करवा का पति नदी में स्नान कर रहा था, तभी एक मगरमच्छ ने उसे पकड़ लिया। करवा ने अपनी श्रद्धा और भक्ति के बल पर मगरमच्छ को एक धागे से बांध दिया और यमराज से प्रार्थना की कि वह उसके पति को बचाएं और मगरमच्छ को मृत्यु दंड दें।
करवा की भक्ति और शक्ति को देखकर यमराज ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली। उन्होंने मगरमच्छ को मृत्यु दंड दिया और उसके पति को जीवनदान दिया। इस कथा के अनुसार, करवा चौथ का नाम "करवा" नामक स्त्री से जुड़ा हुआ है, और यह व्रत पति की लंबी उम्र और सुरक्षा के लिए रखा जाता है।
तीनों कथाओं की मूल भावना
इन तीनों पौराणिक कथाओं का मूल संदेश यह है कि निष्ठा, भक्ति, और प्रेम में इतनी शक्ति होती है कि वह किसी भी विपरीत परिस्थिति को बदल सकता है। करवाचौथ के व्रत का उद्देश्य विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी उम्र, सुख और समृद्धि के लिए प्रार्थना करना है।
करवा चौथ के दिन पूजा करने का शुभ मुहूर्त
करवा चौथ की संध्या समय पूजा करने का विधान है। चंद्रोदय बाद अपने पति का चेहरा चलनी में देख भोजन ग्रहण करती है व्रतधारी महिलाऐं। करवा चौथ के दिन चंद्रोदय शाम 07:32 बजे पर होगा।
अब जानें पूजा करने का शुभ मुहूर्त। गोधूलि महूर्त शाम 05:16 बजे से लेकर 05:40 बजे तक रहेगा उसी प्रकार लाभ मुहूर्त शाम 05:16 से लेकर 06:50 तक, शुभ मुहूर्त रात 08:23 बजे से लकर 09:57 बजे तक और अमृत मुहूर्त 09:57 बजे से लेकर 11:30 बजे तक रहेगा। व्रतधारी अपने-अपने सुविधा के अनुसार भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती सहित उनके समस्त परिजनों की पूजा अर्चना कर सकते हैं।
डिस्क्लेमर
करवा चौथ का यह लेख पूरी तरह सनातन धर्म पर आधारित है। लेख के संबंध में जानकारी विद्वान पंडितों, आचार्यों और ज्योतिषाचार्य से बातचीत कर लिखा गया है। साथ ही इंटरनेट का भी सहयोग लिया गया है। शुभ मुहूर्त और समय आदि की गणना पंचांग से किया गया है। लेख लिखने का मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म का प्रचार प्रचार करना और सनातनियों को अपने त्यौहार के प्रति रूझान बढ़ाना है। हमने पूरी निष्ठा से इस लेख को लिखा है, अगर लेख में किसी प्रकार की गड़बड़ी या त्रुटि होगी तो उसके लिए हम जिम्मेदार नहीं है।