आश्वनी माह शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि 16 अक्टूबर दिन बुधवार या 17 अक्टूबर 2024 दिन गुरुवार को है। इस बात को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। 16 सितंबर को रात भर पूर्णिमा है और पूर्णिमा तिथि की रात का विशेष धार्मिक और अध्यात्मिक महत्व होता है। इसलिए शरद पूर्णिमा 16 अक्टूबर 2024 को मनाई जाएगी।
16 अक्टूबर 2024 दिन बुधवार को रात 08:40 बजे से पूर्णिय शुरू हो जाएगा, जो 17 अक्टूबर शाम 04:55 बजे तक पूर्णिमा तिथि रहेगा। उदया तिथि 17 अक्टूबर को पड़ रहा है।
आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा, कोजागरी या लख्खी पूर्णिमा कहा जाता है, और इसका सनातन धर्म में विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। इसे सबसे शुभ और पवित्र पूर्णिमा माना जाता है। इसके प्रमुख महत्व इस प्रकार हैं:
1. शरद ऋतु का आगमन: यह पूर्णिमा शरद ऋतु के आगमन का संकेत देती है। इसी दिन से मौसम बदलने लगता है और ठंडक शुरू हो जाती है।
2. मां लक्ष्मी की पूजा: शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है। माना जाता है कि इस रात जो लोग जागकर मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं, उन्हें धन, समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। इसे "कोजागरी व्रत" भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है "कौन जाग रहा है?" पौराणिक मान्यता है कि मां लक्ष्मी शरद पूर्णिमा की रात यह देखने के लिए पृथ्वी पर आती हैं कि कौन भक्त जाग रहा है, ताकि मां लक्ष्मी उन्हें आशीर्वाद दे सकें।
3. चंद्रमा का महत्व: शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होता है। यह माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों में विशेष प्रकार की ऊर्जा होती है, जो सेहत के लिए लाभकारी होती है। लोग इस रात को दूध और चावल की खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रखते हैं और फिर उसका सेवन करते हैं।
4. रास लीला: शरद पूर्णिमा का संबंध भगवान कृष्ण से भी है। इसी रात को भगवान कृष्ण ने गोपियों के साथ वृंदावन में रास लीला का आयोजन किया था। इसे कृष्ण-गोपियों के दिव्य प्रेम का प्रतीक माना जाता है।
5. उपवास और व्रत: शरद पूर्णिमा के दिन व्रत रखने का भी विशेष महत्व है। इस दिन व्रत रखने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है और जीवन में सुख-शांति आती है।
इस प्रकार, आश्विन मास की पूर्णिमा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है।
आश्विन मास की पूर्णिमा, जिसे शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है, के दिन रात्रि में खीर रखने का विशेष धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व है। इसे रखने के पीछे कई मान्यताएं हैं:
1. चंद्रमा की किरणों का प्रभाव: शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होता है, और यह माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों में विशेष औषधीय गुण होते हैं। चंद्रमा की यह किरणें खीर पर गिरने से उसमें सकारात्मक ऊर्जा और औषधीय गुण आ जाते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माने जाते हैं। माना जाता है कि चंद्रमा की शीतल और मधुर किरणें खीर में मिलकर उसे अमृततुल्य बना देती हैं।
2. आयुर्वेदिक मान्यता: आयुर्वेद के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा की किरणें शरीर के पित्त दोष को शांत करती हैं। इस रात को ठंडी और शीतल चंद्र किरणों से प्रभावित खीर का सेवन पाचन तंत्र और अन्य शारीरिक समस्याओं के लिए फायदेमंद माना जाता है।
3. धार्मिक मान्यता: धार्मिक दृष्टिकोण से, शरद पूर्णिमा की रात को देवी लक्ष्मी धरती पर विचरण करती हैं और जिनके घरों में श्रद्धा पूर्वक खीर बनाकर रखा जाता है, उन्हें देवी की कृपा प्राप्त होती है। इस रात को रात्रि जागरण और लक्ष्मी पूजन करने का विशेष महत्व है।
4. आध्भयात्मिक भक्ति और समर्पण: इस दिन लोग खीर बनाकर उसे चंद्रमा की किरणों में रखते हैं, जिससे यह भावना उत्पन्न होती है कि ईश्वर की कृपा से जीवन में समृद्धि, शांति और स्वास्थ्य प्राप्त हो। रात्रि जागरण और खीर का प्रसाद रूप में सेवन करना भक्तों के समर्पण को दर्शाता है।
इन कारणों से शरद पूर्णिमा की रात को खीर को आकाश के नीचे रखकर, चंद्रमा की किरणों से अमृतमय बन जाता है।
कब करें मां लक्ष्मी की पूजा जानें विस्तार से
सनातन धर्म में धन की देवी के स्वरूप वाली मां लक्ष्मी शुक्रवार समेत हर दिन धरती पर भ्रमण के लिए निकलती हैं। माना जाता है कि इस समय मां की दृष्टि जिस घर पर पड़ती है उस घर में हमेशा खुशहाली बनी रहती है। वहीं, शास्त्रों के अनुसार, मां लक्ष्मी शाम के समय करीब 07 बजे से 09 बजे तक पृथ्वी भ्रमण पर निकलती हैं।
इस समय माता कुछ विशेष घरों में भी प्रवेश करती हैं। ऐसे में अगर आप चाहते हैं कि देवी लक्ष्मी आपके घर में प्रवेश करें तो आपको कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना होगा, तभी देवी की कृपा आप पर बनी रहेगी। आइए जानते हैं कि वह कौन से काम है जो आपको बिल्कुल नहीं करना चाहिए, वरना आपको मां लक्ष्मी की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है।
पूर्णिमा के दिन शाम के समय न करें ये काम नहीं तो पड़ जायेंगे संकट में
मां लक्ष्मी के भ्रमण या शाम के समय तुलसी के पौधे को भूलकर भी हाथ नहीं लगाना चाहिए। इससे देवी नाराज हो सकती हैं।
सूर्यास्त के बाद भूलकर भी घर में झाड़ू या घर की साफ सफाई न करें। इससे घर आई हुई लक्ष्मी वापस लौट जाती हैं। अगर झाड़ू लगना जरूरी है, तो घर से निकले कचड़ें को बाहर नहीं फेंकने चाहिए।
शाम के समय घर में हर तरफ रौशनी होनी चाहिए। माना जाता है कि अंधेरे युक्त स्थानों पर मां लक्ष्मी बिल्कुल नहीं आती है।
शाम की पूजा जरूर करें। अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो देवी लक्ष्मी की कृपा दृष्टि आपको कभी नहीं मिल सकती है।
शाम के समय मन को शांत रखें और किसी प्रकार का लड़ाई-झगड़ा न करें। इससे देवी रुष्ट होकर घर से जा सकती हैं।
इस समय किसी भी प्रकार का पैसों से जुड़ा लेन-देन बिल्कुल न करें। वरना ये आप पर भारी पड़ सकता है।
मां लक्ष्मी की पूजा करने का शुभ मुहूर्त
शरद पूर्णिमा के दिन अभिजीत मुहूर्त नहीं है। अमृत कल और रवि योग का अदभुत संयोग मिल रहा है।
वैसे मां लक्ष्मी की पूजा करने का उचित समय संध्या बेला होता है। गोधूलि महूर्त 05:19 बजे से लेकर 05:44 बजे तक, शुभ मुहूर्त 06:52 बजे से लेकर 08:25 बजे तक, अमृत मुहूर्त 08:25 बजे से लेकर 09:58 बजे तक और चार मुहूर्त 09:58 बजे से लेकर 11:31 बजे तक रहेगा। इस दौरान मां के भक्त अपने सुविधा अनुसार पूजा अर्चना कर सकते हैं।
डिस्क्लेमर
शरद पूर्णिमा की यह लेख पूरी तरह सनातन धर्म पर आधारित है। लेख के संबंध में जानकारी विद्वान पंडितों, आचार्यों और ज्योतिषाचार्य से बातचीत कर लिखा गया है। साथ ही इंटरनेट का भी सहयोग लिया गया है। शुभ मुहूर्त और समय आदि की गणना पंचांग से किया गया है। लेख लिखने का मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म का प्रचार प्रचार करना और सनातनियों को अपने त्यौहार के प्रति रूझान बढ़ाना है। हमने पूरी निष्ठा से इस लेख को लिखा है, अगर लेख में किसी प्रकार की गड़बड़ी या त्रुटि होगी तो उसके लिए हम जिम्मेदार नहीं है।