अन्नपूर्णा जयंती 2024 में 15 दिसंबर को मनाई जाएगी। यह दिन देवी अन्नपूर्णा को समर्पित है, जो अन्न और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं। यह व्रत मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा तिथि के दिन मनाया जाता है। यह व्रत विशेष रूप से उत्तर भारत में लोकप्रिय है। यहांऔ इसकी पौराणिक कथा, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और इससे जुड़े लाभों पर विस्तार से जानकारी दी गई है।
पौराणिक कथा
अन्नपूर्णा जयंती की पौराणिक कथा हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह पर्व देवी अन्नपूर्णा, जो अन्न और समृद्धि की देवी हैं, की पूजा-अर्चना कर और सम्मान देने के लिए मनाया जाता है। मान्यता है कि देवी अन्नपूर्णा ने सृष्टि में अन्न और भोजन के महत्व को स्थापित किया, जिससे संसार में जीवन बना रहे।
कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव ने मां पार्वती से कहा कि संसार में सबकुछ माया है, यहां तक कि भोजन भी। इस पर देवी पार्वती को बहुत क्रोध आया और उन्होंने संसार से भोजन गायब करने का निश्चय किया। उनके इस निर्णय से पूरे विश्व में अकाल की स्थिति उत्पन्न हो गई। सभी जीव-जंतु, मनुष्य, और यहां तक कि देवगण भी भूख से पीड़ित होने लगे।
देवताओं ने भोजन के बिना अपनी स्थिति को असहनीय महसूस किया और देवी पार्वती की शरण में आए। उन्हें समझाने के लिए भगवान विष्णु ने स्वयं शिव से आग्रह किया कि वे मां पार्वती से माफी मांगें और उनसे संसार में अन्न की वर्षा करने का निवेदन करें। तब भगवान शिव काशी पहुंचे, जहां देवी पार्वती ने अन्नपूर्णा के रूप में प्रकट होकर एक रसोईघर बनाया था।
भगवान शिव, साधु के वेश में, भिक्षा मांगने पहुंचे और मां अन्नपूर्णा ने उन्हें अन्न का पात्र भेंट किया। मां अन्नपूर्णा ने शिव से वचन लिया कि अन्न को कभी माया के रूप में नहीं माना जाएगा और इसकी महत्ता सदा बनी रहेगी। भगवान शिव ने यह स्वीकार किया, और संसार में फिर से अन्न की वर्षा होने लगी। इसी तरह से मां अन्नपूर्णा ने संसार को यह संदेश दिया कि अन्न ही जीवन का आधार है और इसके बिना संसार का संतुलन संभव नहीं है।
इस कथा के माध्यम से यह बताया गया है कि भोजन का सम्मान और उसका सही प्रयोग करना आवश्यक है। अन्नपूर्णा जयंती के दिन विशेष पूजा-अर्चना कर, देवी अन्नपूर्णा को प्रसन्न किया जाता है ताकि समाज में सदैव अन्न की प्रचुरता बनी रहे।
पूजा विधि
अन्नपूर्णा जयंती पर देवी अन्नपूर्णा की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन उपासक सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं। घर के मंदिर को सजाया जाता है और देवी अन्नपूर्णा की मूर्ति या तस्वीर को स्थापित किया जाता है। इसके बाद निम्नलिखित पूजा विधि अपनाई जाती है:
1. संकल्प: पूजा के आरंभ में संकल्प लें कि आप देवी अन्नपूर्णा की कृपा प्राप्ति के लिए यह पूजा कर रहे हैं।
2. आवाहित: देवी का आवाहन किया जाता है और उन्हें पंचामृत स्नान कराया जाता है। इसमें दूध, दही, घी, शहद और शक्कर मिलाई जाती है।
3. पूजन सामग्री: देवी को फल, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य और वस्त्र अर्पित किए जाते हैं। विशेष रूप से चावल, अनाज, और अन्न से बनी वस्तुएं अर्पित की जाती हैं।
4. अन्न दान: इस दिन अन्नदान का महत्व है। अन्नपूर्णा जयंती पर जरूरतमंदों को अन्नदान करके देवी की विशेष कृपा पाई जाती है।
5. आरती: अंत में देवी अन्नपूर्णा की आरती की जाती है और परिवार के सभी सदस्य इसमें सम्मिलित होते हैं।
6. प्रसाद वितरण: आरती के पश्चात प्रसाद बांटा जाता है और पूजा समाप्त होती है।
शुभ मुहूर्त
अन्नपूर्णा जयंती पर पूजा करने का शुभ मुहूर्त निम्नलिखित है:
पूर्णिमा तिथि: 22 दिसंबर, सुबह 8:00 बजे से 23 दिसंबर, सुबह 5:00 बजे तक।
इस दौरान, आप शुभ समयानुसार किसी भी समय पूजा कर सकते हैं, परंतु मध्याह्न और सायंकाल का समय विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
अन्नपूर्णा जयंती का महत्व और लाभ
अन्न और धन की वृद्धि: अन्नपूर्णा देवी की पूजा से अन्न और धन की वृद्धि होती है। ऐसा माना जाता है कि माता की कृपा से घर में कभी अन्न की कमी नहीं होती।
भूख और गरीबी का नाश: देवी अन्नपूर्णा की पूजा से भूख और गरीबी का नाश होता है। इस दिन अन्नदान करने से अनेक पुण्यों की प्राप्ति होती है।
परिवार में सुख-समृद्धि: यह व्रत परिवार में सुख-समृद्धि और शांति को बढ़ाता है। इसे करने से जीवन में धन, भोजन, और आवश्यकताओं की कमी नहीं रहती है। इस प्रकार, अन्नपूर्णा जयंती पर पूजा कर हम देवी अन्नपूर्णा की कृपा प्राप्त कर सकते हैं और जीवन में समृद्धि और शांति प्राप्त कर सकते हैं।
डिस्क्लेमर
अन्नपूर्णा जयंती पूजा से संबंधित लेख पूरी तरह धर्म शास्त्रों पर आधारित है। शुभ मुहूर्त कैसा रहेगा इस दिन, इसकी जानकारी पंचांग से लिया गया है। इस लेख में कुछ दंतकथा, कुछ इंटरनेट और अधिकांश विषय वस्तु विद्वान पंडितो के द्वारा बताए गए सुझाव के अंतर्गत लिखा गया है। कथा लिखने का मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म का प्रचार प्रसार और सनातनियों के बीच अपने पर्व के प्रति जागृत करना मुख्य उद्देश्य है।