चित्रगुप्त पूजा 23 अक्टूबर 2025 को: सर्वार्थ सिद्धि योग व रवि योग मनेगा

 चित्रगुप्त पूजा: तिथि, पौराणिक कथा, विधि और शुभ मुहूर्त और कायस्थ समाज के गोत्र और वंश की जानकारी।

चित्रगुप्त पूजा एक महत्वपूर्ण सनातनी पर्व है जो दीपावली के अगले दिन अर्थात गोवर्धन पूजा के अगले दिन मनाया जाता है। यह दिन विशेष रूप से कायस्थ समुदाय के लोगों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है, जो भगवान चित्रगुप्त को अपना आराध्य देव मानते हैं। भगवान चित्रगुप्त को न्याय का देवता माना गया है, जो जन्म और मृत्यु के बीच हर व्यक्ति के कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं।

भगवान चित्रगुप्त पूजा कब है ?

चित्रगुप्त पूजा दीपावली के ठीक अगले दिन गोवर्धन पूजा के बाद, अन्नकूट पर्व के समय आती है। इस दिन को कायस्थ समाज के लोग भगवान चित्रगुप्त को विशेष रूप से पूजते हैं। 2025 में यह पूजा 23 अक्टूबर, दिन गुरुवार को पड़ रहा है।

पौराणिक कथा

चित्रगुप्त जी की कथा के अनुसार, जब ब्रह्मा जी सृष्टि की रचना कर रहे थे, तो उन्होंने धर्म, अधर्म, सुख, दुख और पाप-पुण्य के कार्यों का लेखा-जोखा रखने के लिए किसी विशेष देवता की आवश्यकता महसूस की। इसलिए, उन्होंने ध्यानमग्न होकर एक दिव्य आत्मा को उत्पन्न किया, जो हाथ में कलम और स्याही लेकर प्रकट हुई। 

इस दिव्य आत्मा को उन्होंने चित्रगुप्त नाम दिया, जिसका अर्थ है "चित्र" यानी चित्रण करना और "गुप्त" यानी गुप्त रूप से रखना। चित्रगुप्त जी का कार्य सभी प्राणियों के कर्मों का हिसाब रखना और मृत्यु के बाद उनके कर्मों के आधार पर न्याय करना है।

कथा के अनुसार, चित्रगुप्त जी को कायस्थ जाति का आराध्य देवता माना गया है और इस कारण से कायस्थ समाज के लोग उन्हें विशेष रूप से पूजते हैं। माना जाता है कि चित्रगुप्त जी की कृपा से व्यक्ति के जीवन में समृद्धि, सुख और शांति का संचार होता है।

धर्मराज ने भगवान ब्रह्मा जी से एक योग्य व्यक्ति कि मांग की, जो पाप और पुण्य की गणना करने में सक्षम हो। धर्मराज ने जब एक योग्य विद्वान सहयोगी की मांग ब्रह्माजी से की तो ब्रह्मा ध्यानमग्न हो गये और एक हजार वर्ष की तपस्या के बाद एक पुरूष को उत्पन्न किए। इस पुरूष का जन्म ब्रह्मा जी की काया (शरीर) से हुआ था।

ब्रह्मा जी की काया ही हैं कायस्थ समाज 

भगवान ब्रह्मा के काया से उत्पन्न होने के कारण कायस्थ कहलाये और इनका नाम चित्रगुप्त पड़ा। भगवान चित्रगुप्त के चार हाथ है। इन हाथों में कर्म की किताब, कलम, दवात और करवाल धारण किए हुए हैं।

चित्रगुप्तजी की पत्नियां थी एरावती और सूर्यदक्षिणा

एक समय की बात है। ऋषियों में श्रेष्ठ ऋषि सुशर्मा ने संतान की चाहत हेतु ब्रह्माजी का घोर तपस्या किए। ब्रह्माजी के कृपा से ऋषि को एरावती अर्थात शोभावति नाम की पुत्री प्राप्त हुई। अपनी पुत्री को ऋषि सुशर्मा ने चित्रगुप्त के साथ विवाह कर दिया। इरावती ने 08 पुत्रों जन्म दिया। इन आठ पुत्रों का नाम इस प्रकार हैं। पहला चारु, दूसरा सुचारु, तीसरा चित्र, चौथा मतिमान, पांचवां हिमवान, छठा चित्रचारु, सातवां अरुण और आठवां अतीन्द्रिय है।

चित्रगुप्त जी के 12 पुत्र थे

दूसरी पत्नी मनु की पुत्री सूर्यदक्षिणा अर्थात नंदनी थी। चित्रगुप्त से सूर्यदक्षिणा की विवाही हुई। सूर्यदक्षिणा से 4 पुत्र हुए। उनके नाम इस प्रकार है। प्रथम भानु, द्वितीय विभानु, तृतीय विश्वभानु और चौथे वीर्य्यावान् थे। चित्रगुप्त के ये 12 पुत्र विश्व विख्यात हुए और पृथ्वी लोक में रहने लगे।

वंश का नामकरण हुआ पुत्रों के कर्म पर

उनमें से प्रथम पुत्र चारु मथुराजी को गए और वहां रहने से मथुर वंश हुए। सुचारु गौड़ अर्थात बंगाल में बस गए। इससे वे गौड़ वंशज के हुए। पुत्र चित्रभट्ट विशाल नदी के किनारे स्थित एक नगर में बस गए, इससे वे भट्टनागर वंशज कहलाए। श्रीवास नगर में जाकर पुत्र भानु बसे। इससे उनके वंशज श्रीवास्तव कहलाए।

पुत्र हिमवान अम्बा दुर्गाजी की आराधन करने के लिए अम्बा नगर में बस गए। अंबा नगर में बसने के कारण उनके वंशज अम्बष्ट कहलाए। सखसेन नगर में अपनी भाई के साथ पुत्र मतिमान गए। इससे वे सूर्यध्वज कहलाएं। उनके वंशज अनेक स्थानों में बसे और अनेक जाति कहलाएं।

चित्रगुप्त पूजा की विधि

चित्रगुप्त पूजा के दिन कायस्थ समुदाय के लोग अपने लेखन के कार्यों की शुरुआत भगवान चित्रगुप्त की पूजा से करते हैं। यहाँ पूजा की विधि दी गई है:

1. साफ-सफाई और तैयारियां: पूजा करने से पहले पूजा स्थान की साफ-सफाई करें। भगवान चित्रगुप्त की मूर्ति या चित्र को एक साफ स्थान पर स्थापित करें। इस दिन लोग अपने लेखन कार्यों के लिए नई पुस्तकों और कलमों का उपयोग करते हैं।

2. स्नान और पूजा का स्थान तैयार करें: स्नान कर स्वयं को पवित्र करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद पूजा के स्थान पर भगवान चित्रगुप्त का चित्र रखें। एक नई किताब, कलम और स्याही की बोतल रखें।

3. पूजन सामग्री का प्रबंध: इस पूजा में फल, फूल, धूप, दीपक, मिठाई, चावल, अक्षत, सिंदूर, नारियल, पान, सुपारी और विशेष रूप से कागज और कलम की आवश्यकता होती है।

4. मंत्रों का उच्चारण: पूजा के दौरान भगवान चित्रगुप्त की आरती और मंत्रों का उच्चारण करें। सामान्यत: "ॐ चित्रगुप्ताय नमः" मंत्र का जाप किया जाता है। इसके अलावा, "ॐ ह्रीं चित्रगुप्ताय नमः" का 108 बार जाप भी लाभकारी माना जाता है।

5. लेखनी और पुस्तकों की पूजा: चित्रगुप्त पूजा में नई पुस्तकों और लेखनी की पूजा की जाती है। यह पूजा संपन्न होने के बाद इन पर "श्री गणेशाय नमः" लिखकर किसी भी कार्य को प्रारंभ करने की परंपरा है।

6. प्रसाद वितरण: पूजा समाप्त होने के बाद प्रसाद का वितरण करें। इस पूजा में हलवा, खीर, मिष्ठान्न आदि का विशेष महत्व है।

पूजा करने का शुभ मुहूर्त

चित्रगुप्त पूजा का शुभ मुहूर्त प्रदोष काल में होता है। ज्योतिष के अनुसार, इस दिन दोपहर या शाम का समय इस पूजा के लिए अत्यंत शुभ होता है। 2025 में यह पूजा, 23 अक्टूबर, दिन गुरुवार को है और इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त इस प्रकार है।

चित्रगुप्त पूजा के दिन सुबह 05:45 बजे से 07:11 बजे तक शुभ मुहूर्त, 10:03 बजे से लेकर 11:29 बजे तक चर मुहूर्त, 11:29 बजे से 12:55 बजे तक लाभ मुहूर्त, 12:55 से लेकर 02:23 बजे तक अमृत मुहूर्त रहेगा। उसी प्रकार 11:06 बजे से लेकर 11:52 बजे तक अभिजीत मुहूर्त और विजय मुहूर्त 01:24 से लेकर 02:10 बजे तक रहेगा। 

चित्रगुप्त पूजा का क्या है महत्व

चित्रगुप्त पूजा का धार्मिक और सामाजिक दोनों ही दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण स्थान है। इस पूजा के माध्यम से लोग अपने पिछले कार्यों का आत्मनिरीक्षण करते हैं और भविष्य के लिए सही मार्ग पर चलने का संकल्प लेते हैं। कायस्थ समाज में इस पूजा का विशेष महत्व है, लेकिन अन्य जातियों के लोग भी भगवान चित्रगुप्त की पूजा कर सकते हैं।

मान्यता है कि इस दिन पूजा करने से जीवन में सभी पापों का नाश होता है और भगवान चित्रगुप्त की कृपा से सफलता प्राप्त होती है।

डिस्क्लेमर 

अच्छे-बुरे कर्मों का यह लेखा-जोखा रखने वाले भगवान चित्रगुप्त पूजा पूरी तरह सनातन धर्म पर आधारित है। लेख के संबंध में जानकारी विद्वान पंडितों, आचार्यों और ज्योतिषाचार्य से बातचीत कर लिखा गया है। 

साथ ही इंटरनेट का भी सहयोग लिया गया है। शुभ मुहूर्त और समय आदि की गणना पंचांग से किया गया है। लेख लिखने का मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म का प्रचार प्रचार करना और सनातनियों को अपने त्यौहार के प्रति रूझान बढ़ाना है। हमने पूरी निष्ठा से इस लेख को लिखा है, अगर लेख में किसी प्रकार की गड़बड़ी या त्रुटि होगी तो उसके लिए हम जिम्मेदार नहीं है।


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