शारदीय नवरात्र की कलश स्थापना 03 अक्टूबर 2024 को, जानें मां की आगवन और प्रस्थान की सवारी

शारदीय नवरात्र की कलश स्थापना 03 अक्टूबर 2024 दिन गुरुवार को होगा। इस वर्ष मां दुर्गा की आगमन डोली पर होगी और प्रस्थान मुर्गे पर करेगी।

कलश स्थापना का सनातन धर्म में विशेष महत्व है और यह धार्मिक अनुष्ठानों में शुद्धता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। खासकर नवरात्रि, दीपावली, विवाह, गृह प्रवेश, या अन्य किसी शुभ कार्य में कलश स्थापना की जाती है। कलश भगवान की उपस्थिति और शुभता का प्रतीक है। आइए, हम बताते हैं कलश स्थापना से जुड़ी संपूर्ण जानकारी और विशेषतः। 



मा दुर्गा के आगमन का श्लोक है

शशिसूर्ये गजारूढ़ा शनिभौमे तुरंगमे। 

गुरौ शुक्रे च दोलायां बुधे नौका प्रकी‌र्त्तिता'।

गजे च जलदा देवी छत्र भंगस्तुरंगमे। नौकायां सर्व सिद्धि स्यात् डोलायां मरणं ध्रुवम्

श्लोक में क्या कहा गया है जानें विस्तार से

इसका मतलब हुआ की मां का आगमन अगर सोमवार और रविवार को होता है। अर्थात प्रतिपदा तिथि को होता है तो मां हाथी पर सवार होकर कैलाश से पृथ्वी लोक आती है।

उसी प्रकार अगर मां दुर्गा मंगलवार और शनिवार को आने पर घोड़ा की सवारी करतीं है। बुधवार के दिन आने पर नांव पर, गुरुवार और शुक्रवार को डोली और शनिवार को आने पर मां दुर्गा घोड़ा की सवारी मां करती है।

यह श्लोक है मां दुर्गा को जानें का है

गजे च जलदा देवी छत्र भंगस्तुरंगमे। 

नौकायां सर्व सिद्धि स्यात् डोलायां मरणं ध्रुवम्

बुध शुक्र दिने यदि सा विजया गजवाहन गा शुभ वृष्टि का। 

सुरराजगुरौ यदि सा विजया नरवाहन गा शुभ सौख्य करा।

यह श्लोक है 9 दिनों तक पृथ्वी लोक में रहने के बाद दसवें दिन मां कैलाश के लिए प्रस्थान कर जाती है। मां दुर्गा दशमी तिथि को इस भूलोक से प्रस्थान करती है।

मां दुर्गा सोमवार और रविवार को अगर पृथ्वी लोक से प्रस्थान करती है तो, भैसे पर सवार होकर जाती है। मंगलवार और शनिवार को प्रस्थान करने पर मुर्गे की सवारी करती है। बुधवार और शुक्रवार को प्रस्थान करने पर हाथी की सवारी है। गुरुवार को प्रस्थान करने पर मनुष्य की सवारी करती है।

कलश स्थापना का क्या है महत्व 

कलश को ब्रह्मांड का प्रतीक माना जाता है, जिसमें देवी-देवताओं का वास होता है।

इसे घर में सुख, समृद्धि और शांति के आगमन के रूप में देखा जाता है।

कलश पर आम के पत्ते, नारियल, स्वास्तिक आदि विशेष रूप से सजाए जाते हैं, जो इसे और भी पवित्र बनाते हैं।

कलश स्थापना के लिए आवश्यक सामग्री

कलश (तांबे या मिट्टी का): यह पूजा के लिए सबसे महत्वपूर्ण है।

जल: कलश में शुद्ध जल भरा जाता है।

आम के पत्ते: इन्हें कलश के मुख पर सजाया जाता है।

नारियल: कलश के मुख पर रखा जाता है।

कलावा (मौली): कलश पर बांधा जाता है।

सुपारी, हल्दी, कुमकुम, अक्षत: यह पूजा के दौरान प्रयोग होती हैं।

स्वास्तिक चिह्न: इसे कलश पर बनाना शुभ माना जाता है।

3. कलश स्थापना की विधि

स्थान का चयन: कलश स्थापना के लिए घर के पूजा स्थान या विशेष मंडप का चयन किया जाता है।

भूमि शुद्धि: स्थान की शुद्धि गंगाजल या साफ पानी से की जाती है।

कलश की स्थापना: कलश को शुद्ध जल से भरकर उसमें गंगा जल, कुछ चावल, हल्दी और सुपारी डालें।

आम के पत्ते: कलश के मुख पर चार या पांच आम के पत्ते रखें।

नारियल: नारियल को लाल कपड़े में लपेट कर पत्तों के ऊपर रखें।

स्वास्तिक बनाना: कलश पर स्वास्तिक का चिह्न बनाएं और मौली बांधें।

मंत्र जाप: कलश स्थापना के समय देवी-देवताओं का आह्वान करते हुए मंत्रों का उच्चारण करें।

विशेष तिथियां और मुहूर्त

नवरात्रि के समय: शारदीय नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि के पहले दिन कलश की स्थापना की जाती है।

दीपावली पर: लक्ष्मी पूजन के दौरान कलश की स्थापना की जाती है।

ग्रह प्रवेश या विवाह: इन शुभ अवसरों पर भी कलश की स्थापना की जाती है।

पूजन के बाद

पूजा सम्पन्न होने के बाद कलश के जल को पूरे घर में छिड़कना चाहिए, ताकि घर में पवित्रता और शांति बनी रहे।

कलश का जल किसी पवित्र स्थान पर विसर्जित कर दिया जाता है।

कलश स्थापना एक महत्वपूर्ण धार्मिक प्रक्रिया है जो घर-परिवार में शां

ति, सुख, समृद्धि, और सकारात्मक ऊर्जा लाने का कार्य करती है।

कलश स्थापना करने का शुभ मुहूर्त 

शारदीय नवरात्र का कलश स्थापना तीन अक्टूबर दिन गुरुवार को होगा। सुबह के वक्त कलश स्थापना करने का विधान है। 03 अक्टूबर को अहले सुबह से ही शुभ महूर्त का शुभारंभ हो रहा है। सुबह 05:37 बजे से लेकर 07:07 बजे तक शुभ मुहूर्त, 08:45 बजे से लेकर 10:33 बजे तक अमृत कल, 10:05 बजे से लेकर 11:34 बजे तक चार मुहूर्त, 11:10 बजे से लेकर 11:58 बजे तक अभिजीत महूर्त और 11:34 बजे से लेकर दोपहर 01:30 बजे तक लाभ मुहूर्त का संयोग रहेगा इस दौरान मां दुर्गा के भक्त अपने सुविधा अनुसार कलश स्थापना कर सकते हैं।

डिस्क्लेमर

शारदीय नवरात्र का यह लेख पूरी तरह सनातन धर्म पर आधारित है। लेख के संबंध में जानकारी विद्वान पंडितों, आचार्यों और ज्योतिषाचार्य से बातचीत कर लिखा गया है। साथ ही इंटरनेट का भी सहयोग लिया गया है। शुभ मुहूर्त और समय आदि की गणना पंचांग से किया गया है। लेख लिखने का मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म का प्रचार प्रचार करना और सनातनियों को अपने त्यौहार के प्रति रूझान बढ़ाना है। हमने पूरी निष्ठा से इस लेख को लिखा है, अगर लेख में किसी प्रकार की गड़बड़ी या त्रुटि होगी तो उसके लिए हम जिम्मेदार नहीं है।



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