पद्म करम पूजा 14 सितंबर 2024 को, जानें संपूर्ण जानकारी

पद्म कर्मा पर्व अर्थात करम पूजा 14 सितंबर 2024, दिन शनिवार को मनाई जाएगी। यह पर्व भाद्रपद (भादो) महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इसी दिन पद्म एकादशी भी है। यह पर्व मुख्यतः झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, बिहार और बंगाल के आदिवासी समुदायों द्वारा धूमधाम और विधि-विधान से मनाया जाता है। 



 करमा पर्व में करम देवता की पूजा-अर्चना की जाती है,जो फसलों और समृद्धि के देवता माने जाते हैं। बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र और समृद्धि के लिए करमा व्रत रखती हैं और करम की डाल की पूजा करती है। पद्म कर्मा पर्व की पौराणिक कथा पद्म कर्मा पर्व की पौराणिक कथा इस प्रकार है। कथा के अनुसार करमा और धरमा नामक दो भाई एक गांव में रहते थे। करमा बड़ा भाई था, जो व्यापार करने में विश्वास रखता था, जबकि छोटा भाई धरमा खेती-बाड़ी करने के साथ ही धर्म में अटूट आस्था रखता था। एक दिन करमा व्यापार के सिलसिले में विदेश चला गया और खूब धन कमाकर अपने गांव लौट आया। जब वह वापस आया, तो उसने अपने छोटे भाई धरमा को बुलाया, लेकिन धरमा उस समय पूजा में व्यस्त था और समय पर उसका स्वागत नहीं कर सका। इससे करमा नाराज हो गया और उसने पूजा की सारी सामग्रियों को अपमानित करते हुए कूड़ेदान में फेंक दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि करमा पर देवी-देवताओं का प्रकोप से घीर गया, जिससे उसकी सारी संपत्ति नष्ट हो गई। बाद में, करमा को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने धरमा के साथ मिलकर देवी-देवताओं से क्षमा याचना की। इसके बाद ही करमा की किस्मत सुधरी और दोनों भाइयों ने साथ मिलकर जीवन को समृद्ध बनाया। इस पौराणिक कथा से यह ज्ञान मिलती है कि धर्म और प्रकृति का सम्मान करना आपके जीवन में अनिवार्य है। साथ हीं कर्म के साथ ही धर्म का पालन करने से ही आपके जीवन में सुख और समृद्धि प्राप्त होती है। व्रत करने का क्या है विधान पद्म कर्मा पर्व व्रत करने का विशेष विधान है, जो खासकर अविवाहित लड़कियों द्वारा किया जाता है। इस व्रत का मुख्य उद्देश्य भाइयों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करना होता है। व्रत के नियम निम्नलिखित हैं करमा व्रत की शुरुआत। यह व्रत भाद्रपद महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है। व्रत की शुरुआत से पहले लड़कियां नदी, तालाब या किसी पवित्र जलस्रोत से बालू (मिट्टी) लेकर आती हैं और उसमें नौ प्रकार के बीज (जौ, चना, मक्का, मुंग, मसुर आदि) डालकर अंकुरित करती हैं। इसे जावा कहा जाता है। करमा व्रतधारी लड़कियां 3, 5, 7 या 9 दिन तक उपवास रखती हैं। इस दौरान वे भोजन नहीं करतीं और विशेष प्रार्थनाओं एवं गीतों का जाप करती हैं। यह उपवास भाइयों की सुरक्षा और समृद्धि के लिए किया जाता है। करमा पूजा करने के पूर्व गांव वाले स्त्री-पुरुष करम की डाली को गांव में भ्रमण करते हुए गांव के अखाड़े में लगाया जाता है, जिसे फूलों और गोबर से सजाया जाता है। इसके बाद करम देवता की पूजा की जाती है। पूजा के दौरान अनाज, सिंदूर, धान, सुपारी, दूध, घी, मौसमी फल, मिठाईयां और फूलों का इस्तेमाल होता है। देवता की पूजा के बाद करम देवता की कथा सुनाई जाती है, जो करमा और धरमा की पौराणिक कथा पर आधारित होती है। इसके बाद सामूहिक नृत्य और गीतों का आयोजन होता है, जिसमें महिलाएं और पुरुष ढोल-नगाड़ों की थाप पर नाचते हैं। पूजा के अगले दिन करम की डाली को नदी या तालाब में विसर्जित कर दिया जाता है। विसर्जन के दौरान वातावरण संगीत मय रहता है। इस प्रकार करमा व्रत संपन्न होता है। पूजा करने का शुभ मुहूर्त करमा पूजा संध्या समय करने का विधान है। संध्या समय गोधूलि मुहूर्त शाम 05:49 बजे से लेकर 06:30 बजे तक है, उसी प्रकार लाभ मुहूर्त शाम 05:49 बजे से लेकर 07:17 बजे तक और शुभ मुहूर्त 08:45 बजे से लेकर 10:13 बजे के बीच रहेगी। इस दौरान व्रतधारी महिलाएं अपने सुविधा अनुसार भगवान कर्मा और धर्मा की पूजा अर्चना कर सकते हैं। डिस्क्लेमर करमा पर्आव आदिवासी समुदाय की महिलाओं द्वारा मनाएं जाने वाला प्रमुख त्योहार है। लेख लिखते समय आदिवासी समुदाय विद्वान पहनों द्वारा विचार-विमर्श करने के बाद लिखा गया है। साथ ही इंटरनेट से सेवाएं ली गई है। पूजा करने शुभ मुहूर्त पंचांग से लिया गया है। लेख लिखने का मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म का प्रचार प्रसार करना और सनातनियों के बीच त्योहार के प्रति जागरूक करना हमारा मुख्य उद्देश्य है।

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