कौन थे संत कबीर हिन्दू या मुसलमान जानेंगे सिक्के के दोनों पहलुओं को विस्तार से

संत कबीर दास जी की जयंती 22 जून 2024 दिन शनिवार को है। जयंती पर यह विशेष लेख आपको पढ़ने में काफी हदतक ज्ञानवर्धक सूचनाएं देगी।

संत कबीर दास कौन थे ? यह रहस्य आज भी बनी हुई है। कोई कहता है कि उनका अवतार कमल के फूल पर हुआ था। तो कुछ लोग का मान्यता है कि वह विधवा महिला के गर्भ से जन्म लिए थे। 
विधवा ने समाज के लोकलाज के कारण नवजात को लहरताल तालाब के किनारे छोड़ आई थी। उसी समय जुलाहा दंपति को वह नवजात शिशु मिल गए थे।

संत कबीरदास जी 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। वे सनातन धर्म और इस्लाम को न मानते हुए धर्मनिरपेक्ष मूल्यों और मानव सेवा के प्रति पूरी तरह समर्पित थे। 

भारतीय समाज में फैली कुरीतियों, अंधविश्वास, कर्मकांड और सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना करते हुए उन्होंने समाज में अलख जगाई।

ज्येष्ठ महीने के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा को कबीर जयंती के रूप में मनाया जाता है। कबीर का जन्म संवत 1455 की ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को हुआ था।

संत कबीरदास जी ने जनवरी 1518 के जनवरी माह अर्थात सनातनी पंचांग के अनुसार विक्रम संवत् 1575 के माघ शुक्लपक्ष एकादशी तिथि को वे अपने शरीर को त्याग दिए थे।

कबीर का जीवन आज भी कई शोधकर्ताओं के लिए रहस्यपूर्ण बना हुआ है। उनकी जन्मतिथि दुनिया के लिए एक पहेली है, और इस पर कई बहसें लगातार चलती रहती हैं। 

वाराणसी के ग्रामीणों का मानना ​​है कि संत कबीरदास जी लहरतारा तालाब पर कमल के फूल में प्रकट हुए थे, और ऋषि आशानंद जी ने स्वयं इस घटना को देखा था। 

कबीरदास जी के जन्म को लेकर दूसरी मान्यता यह है कि संत कबीरदास जी ने रामानंद गुरु के आशीर्वाद से एक विधवा ब्रह्माणी के गर्भ से जन्म लिया था।

समाज के भय से उन्होंने कबीर को काशी के पास लहरतारा नामक तालाब के पास छोड़ दिया था। उसके बाद एक जुलाहे दंपति ने उस बालक का पालन पोषण किया। संत कबीरदास जी देशाटन करते थे और हमेशा साधु-संतों की संगति में रहते थे।

यह भी कहा जाता है कि उन्हें मुस्लिम बुनकरों अर्थात नीरू और उनकी पत्नी नीमा ने तालाब में स्नान करते समय पाया था। उसके बाद, गरीब मुस्लिम परिवार ने पूरे दिल से उन्हें अपनाया और उनके माता-पिता की तरह उनका पालन-पोषण किया। 

संत कबीरदास जी ने तब एक रहस्यवादी गृहस्थ का जीवन जिया। ऐसा माना जाता है कि संत का परिवार अभी भी वाराणसी के कबीर चौरा में रहता है

कमाल व कमाली उनके पुत्र और पुत्री माने जाते है।

कबीर ने मूर्ति पूजा, तीर्थयात्रा, पवित्र नदियों में स्नान या नमाज़ जैसी औपचारिक पूजा में भाग लेने की कड़ी निंदा की थी। वे मनुष्यों के बीच सभी प्रकार के भेदभाव के विरोधी थे। वे ईश्वर के निर्गुण रूप की पूजा करते थे, जिसे वे राम, अल्लाह, हरि, साईं, साहिब आदि कई नामों से पुकारते थे। 

संत कबीर ने जीवन पर आधारित 25 दोहे लिखे हैं। उनके दोहों की गहरी पंक्तियां जीवन और कर्म से जुड़े सभी सवालों के जवाब देती हैं। उनके दोहे पढ़कर आप मंत्रमुग्ध हो सकते हैं।
ऐसे रामानंदजी के शिष्य बने कबीर-

संत रामानंद जी ने कबीरदास जी को सबसे पहले तो अपना शिष्य बनाने से मना कर दिया था। उस समय काशी में संत रामानंद जी नाम के उच्च कोटि के महान संत माने जाते थे।
संत कबीरदास जी की हार्दिक इच्छा था कि वे रामानंद को ही अपना आराध्य गुरु बनाना चाहते थे। एक दिन जब रामानंद तालाब में स्नान करने जा रहे थे तो कबीरदास जी उनके रास्ते में तालाब घाट की सीढ़ियों पर लेट गए। गलती से रामानंद जी का पैर कबीरदास को लग गया।

रामानंद जी के मुख से राम-राम के बोल निकले पड़े। कबीर जी का तो गुरुमंत्र गया। साथ ही गुरुजी के दर्शन भी हो गए। उनकी चरणों का स्पर्श भी मिल गया और गुरुमुख से निकला रामनाम का मंत्र भी उन्हें प्राप्त हो गया।

अंधविश्वास पर मात दी अपनी मृत्यु से
सनातन धर्म में मान्यता है कि, कोई भी जातक (मनुष्य) की मृत्यु अगर बनारस में हो जाता है तो सीधे शिव धाम को प्राप्त कर स्वर्ग लोक वासी हो जाता है। 

संत शिरोमणि कबीरदास ने देशभर में फैले एक मिथक को तोड़ते हुए अपना भौतिक शरीर का त्याग मगहर में किया। मगहर के मामले में लोगों के बीच प्रचलित था कि अगर कोई भी व्यक्ति मगहर में मरता है तो उसे नरक मिलता है । इसी भ्रम को तोड़ने के लिए उन्होंने अपना शरीर मगहर में जाकर त्याग किया।
डिस्क्लेमर
संत रविदास जी की जीवनी पर आधारित कुछ अनसुलझे पहेलियों को इस लेख में उल्लेख किया गया है। लोगों और विद्वानों से के मुख से सुनी सुनाई  बातों के साथ ही इंटरनेट से भी इस लेख को लिखने में सहयोग लिया गया है। हमारा काम कबीर जी की जीवनी को करीब से देखने और लोगों को दिखने का कम किया है।

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