सनातन धर्म में वरुथिनी एकादशी का व्रत सुख, सौंदर्य और सौभाग्य का प्रतीक माना गया है। पौराणिक मान्यता है कि वरुथिनी एकादशी व्रत के प्रभाव से सभी तरह के पाप नष्ट हो जाते हैं और ईश्वरीय शक्ति मिलती है। एकादशी के दिन भक्तिभाव और विधि-विधान से भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा करनी चाहिए।
सूर्य ग्रहण के समय जो फल दान और जप करने से प्राप्त होते हैं। वहीं पुण्य और फल वरुथिनी एकादशी का व्रत रखने से मिलती है।वरुथिनी एकादशी 04 मई, दिन शनिवार, वैशाख कृष्ण पक्ष को पड़ रहा है। एकादशी तिथि का शुभारंभ शुक्रवार की रात्रि 11:24 बजे से शुरू होकर दूसरे दिन शनिवार को रात 08: 38 बजे तक रहेगा।
दशमी तिथि को लें व्रत करने का संकल्प
वरूथिनी एकादशी व्रत के दिन भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा करने का विधान है। जो व्यक्ति वरूथिनी एकादशी व्रत करना चाहता है, उसे व्रत के एक दिन पहले अर्थात दशमी के दिन एक बार ही व्रतधारियों को शुद्ध शाकाहारी भोजन करने चाहिए।
कैसे करें पूजा जानें सनातनी विधि
वरूथिनी एकादशी व्रत करने के उपरांत सर्वप्रथम गौरी गणेश का पूजन करें। गौरी गणेश को स्नान कराएं। गंध, पुष्प और अक्षत से पूजन करें। इसके बाद श्रीहरि का पूजन शुरू करें।
भगवान विष्णु को आवाहन करें इसके बाद भगवान विष्णु को आसान दें। अब भगवान विष्णु को स्नान कराएं स्नान से पहले जल से, फिर पंचामृत से और अंत में फिर से जल से स्नान कराएं।
फिर भगवान को वस्त्र पहनाएं वस्त्र पहनाने के बाद आभूषण और जनेऊ पहनाएं। इसके बाद पुष्प माला पहनाने चाहिए। इसके बाद सुगंधित इत्र अर्पित करें। तिलक करें। तिलक के बाद अष्टगंध का प्रयोग करें।
अब धूप और दीप अर्पित करें। भगवान विष्णु को तुलसी दल विशेष प्रिय है, इसलिए तुलसी पत्ता अर्पित करें। भगवान विष्णु के पूजन में चावल का प्रयोग ना करें। तिल का प्रयोग करें। घी या तेल का दीपक जलाएं और आरती करें। आरती करने के बाद परिक्रमा करें और अंत में नैवेद्य अर्पित करें।
व्रत वाले दिन इन बातों का रखें ध्यान
व्रत वाले दिन जुआ भुलकर भी नहीं खेलना चाहिए। व्रत के दिन पान खाना मना है, दातुन करना मना है, दूसरे की निंदा करना मना है तथा चुगली करना सख्त मना है। पापी और अधर्मी व्यक्तियों के साथ बातचीत करना और साथ में रहना नहीं चाहिए अर्थात त्याग देना चाहिए। उस दिन क्रोध और मिथ्या भाषणों का प्रयोग नहीं करने चाहिए। व्रत के दौरान तेल, नमक और अन्न को पूरी तरह त्याग कर देना चाहिए।
वरूथिनी एकादशी के दिन ये 9 काम भुलकर भी न करें
01. कांसे के बर्तन में भोजन करना और पानी पीना मना है। 02. मांस का भोजन वर्जित है। 03. मसूर की दाल न खाएं 04. चने का साग नहीं खाना चाहिए, 05. कोदो का साग भी नहीं खाना चाहिए 06. मधु (शहद) का सेवन वर्जित है। 07. दूसरे का अन्न नहीं खाना चाहिए 08. दूसरी बार भोजन करना मना है और 09. स्त्री प्रसंग अर्थात ब्रह्मचर्य रहना चाहिए।
विस्तार से जानें पौराणिक कथा
धर्मराज युधिष्ठिर बोले कि हे भगवन्! वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि का क्या नाम है। व्रत करने की विधि क्या है। तथा उसके करने से क्या फल प्राप्त होते हैं ? वरूथिनी एकादशी व्रत कथा के संबंध में विस्तारपूर्वक मुझसे कहिए। मैं आपको नमस्कार करता हूं।
श्रीकृष्ण ने कहा कि हे धर्मराज वैशाख मास, कृष्ण पक्ष में पढ़ने वाली एकादशी का नाम वरूथिनी एकादशी है। यह व्रत सौभाग्य देने वाली है। सभी तरह के पापों को नष्ट करने वाली तथा अंत में मुक्ति प्रदान करने वाली है।
इस व्रत को यदि कोई अभागिनी स्त्री करें तो उसको सौभाग्यशाली बन जाती है। इसी वरूथिनी एकादश के प्रभाव से राजा मान्धाता को स्वर्ग की प्राप्ति हुई थी। वरूथिनी एकादशी करने का फल दस हजार वर्षों तक तप करने के बराबर मिलता है। कुरुक्षेत्र में सूर्यग्रहण के दौरान एक मन स्वर्णदान करने से जो फल की प्राप्ति होती है वही फल हमें वरूथिनी एकादशी के व्रत करने से मिलता है। वरूथिनी एकादशी के व्रत करने से मनुष्य इस लोक में सुख तो भोगता ही है बल्कि परलोक जाने पर स्वर्ग की प्राप्त होता है।
अन्न दान सबसे बड़ा दान
धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि हाथी का दान करना घोड़े के दान से श्रेष्ठ है। हाथी के दान से भूमि दान श्रेष्ठ है। भूमि के दान से तिलों का दान श्रेष्ठ है। तिलों के दान से स्वर्ण का दान श्रेष्ठ है जबकि स्वर्ण के दान से अन्न का दान श्रेष्ठ है। अन्न दान के बराबर कोई दान नहीं है। अन्नदान करने से देवता, पितर और मनुष्य तीनों को तृप्ति मिलती हैं। धर्म शास्त्रों और पुराणों में इसको कन्यादान के समान माना जाता है।
कन्यादान व अन्न दान के बराबर मिलता है फल एकादशी व्रत करने से
वरूथिनी एकादशी के व्रत करने से अन्न के दान और कन्या की दान करने के बराबर जातकों को फल मिलता है। जो मनुष्य लोभ के वश में होकर अपनी कन्या के विवाह के दौरान धन लेते हैं या देते हैं, तो वैसे व्यक्तियों को प्रलयकाल तक नरक का दुःख भोगना पड़ता हैं। नरक के दुःख भोगने के बाद वैसे व्यक्तियों को अगले जन्म में बिलार योनि में जन्म लेना पड़ता है।
जो व्यक्ति अपने शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार कन्या का दान करते हैं। वैसे दान से मिलने वाले पुण्य को चित्रगुप्त भी लिखने में असमर्थ हो जाते हैं। वैसे व्यक्तियों को कन्यादान का अनंत फल मिलता है।
पंचांग के अनुसार देखें एकादशी का दिन
वरुथिनी एकादशी 04 मई, दिन शनिवार, वैशाख कृष्ण पक्ष को पड़ रहा है।
एकादशी के दिन सूर्योदय सुबह 05:10 बजे से शुरू होकर सूर्यास्त शाम 06:14 बजे पर होगा। चंद्रोदय रात 02:56 बजे से शुरू होकर दूसरे दिन दोपहर 02:23 बजे पर अस्त होगा।
वरुथिनी एकादशी के दिन नक्षत्र पूर्व भाद्रपद रात 10:07 बजे तक रहेगा। इसके बाद उत्तर भाद्रपद नक्षत्र हो जाएगा। योग इन्द्र सुबह 11:04 बजे तक रहेगा, इसके बाद वैधृति हो जायेगा। सूर्य मेष राशि में रहेंगे जबकि चंद्रमा कुंभ राशि में शाम 04:38 बजे तक इसके बाद मीन राशि में गोचर करेंगे।
एकादशी के दिन आनंदादि योग कालदंड है जो रात 10:07 बजे तक रहेगा। इसके बाद धुम्र हो जाएगा। होमाहूति राहु रात 10:00 बज के 07 मिनट तक रहेगा। इसके बाद केतु हो जाएगा। दिशाशूल पूर्व दिशा में स्थित है। नक्षत्रशूल दक्षिण दिशा में और राहु काल वास पूर्व दिशा में स्थित है। अग्निवास पाताल रात के 08:38 बजे तक, इसके के बाद पृथ्वी हो जाएगा। चंद्रवास पश्चिम दिशा में है।
पूजा करने का शुभ मुहूर्त जानें पंचांग और चौघड़िया के अनुसार
अभिजीत मुहूर्त दिन के 11:16 बजे से लेकर दोपहर 12:08 बजे तक है।
एकादशी व्रत में चारों पहर पूजा करने का विधान है। चारों पहर अगर विधि विधान और सनातनी परंपरा के अनुसार पूजा अर्चना किया जाए तो आपको उत्तम फल की प्राप्ति होगी।
सुबह के वक्त 06:00 बजे से लेकर 11:00 बजे तक पूजा करने का शुभ मुहूर्त है। सुबह 06:52 बजे से लेकर 08:29 बजे तक चार मुहूर्त रहेगा। उसी प्रकार 08:29 बजे से लेकर 10:06 बजे तक लाभ मुहूर्त और 10:06 बजे से लेकर 11:45 बजे तक अमृत मुहूर्त रहेगा।
दोपहर के वक्त पूजा करने का शुभ मुहूर्त अभिजीत मुहूर्त के रूप में है जो दिन के 11:16 बजे से लेकर 12:08 बजे तक है। उसी प्रकार विजय मुहूर्त दोपहर के 01:53 बजे से लेकर 2:45 बजे तक और शुभ मुहूर्त 01:20 बजे से लेकर 02:57 बजे तक रहेगा।
संध्या बेला पूजा करने का उत्तम मुहूर्त शाम 6:00 बजे से लेकर 07:30 बजे तक है। शुभ मुहूर्त 06:11 बजे से लेकर 07:34 बजे तक और गोधूलि मुहूर्त 06:12 बजे से लेकर 06:34 बजे तक है।
उसी प्रकार मध्य रात्रि का मुहूर्त इस प्रकार है। निशिता मुहूर्त रात 11:20 से लेकर 12:04 बजे तक और लाभ मुहूर्त रात 01:05 बजे से लेकर 02:38 बजे तक रहेगा। इस प्रकार व्रत तोड़ने का शुभ मुहूर्त सुबह 05:11 बजे के बाद आप उचित समय देखकर पूजा अर्चना कर पारण कर सकते हैं।
डिस्क्लेमर
यह लेख सनातन धर्म में पड़ने वाले पर्व और त्योहारों के प्रचार-प्रसार करने और अपनी परंपरा के अनुसार मनाने के लिए लिखा गया है। लेख पूरी तरह धार्मिक ग्रंथों और मान्यताओं पर आधारित है। कथा लिखने के दौरान पंचांगों का गहन अध्ययन कर तिथि, समय और मुहूर्त लिखा गया है। इंटरनेट से भी सहयोग लिया गया है।