चैती छठ व्रत पूजा सनातनियों का एक महान और महत्वपूर्ण त्योहार है। यह पर्व भगवान सूर्य और छठी मैया की पूजा और आराधना के माध्यम से सूर्योपासना करने वाला त्यौहार है।
चार दिनी छठ व्रत के अवसर पर व्रती समर्पण और संयम के साथ भगवान सूर्य देव की पूजा-अर्चना और उपासना करते हैं।
छठ व्रत पूजा शुभ और पवित्र मानी जाती है। इस व्रत के दौरान साफ़-सफाई पर पूरा ध्यान और भगवान सूर्य के प्रति कृतज्ञता का भाव उत्पन्न करती है। चैती छठ व्रत पूजा 12 अप्रैल 2024 से लेकर 15 अप्रैल 2024 तक मनाई जाएगी। जिसमें प्रत्येक दिन विशेष अनुष्ठान और भगवान भास्कर और छठी मईया कि पूजा की जाएगी।
चैती छठ व्रत पूजा की तिथियां इस प्रकार है
इस वर्ष चैती छठ व्रत पूजा की शुभारंभ 12 अप्रैल दिन शुक्रवार को नहाय खाय से होगी और 15 अप्रैल दिन सोमवार को उगते सूर्य को अर्घ्य और पारण के साथ इसका समापन होगा।
12 अप्रैल दिन शुक्रवार को नहाय खाय है। चैती छठ व्रत पूजा का प्रथम दिन आत्म-शुद्धीकरण और साफ-सफाई के लिए समर्पित रहता है। इस दिन व्रती अहले सुबह स्नान करके सात्विक और शुद्ध शाकाहारी भोजन करते हैं। जिसमें आम तौर पर अरवा चावल, लौकी की सब्जी और चना का दाल शामिल होती है। भोजन के उपरांत घरों की साफ-सफाई के साथ ही पूजा सामग्री तैयार की जाती है।
13 अप्रैल दिन शनिवार को खरना / रसियाओ का विधान है। दूसरे दिन, दिनभर व्रत रखने और प्रसाद बनाने और खाने का दिन होता है। इसे खरना या रसियाओ के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रती शाम के समय गुड़ से बनी खीर और रोटी का प्रसाद बनाते हैं।
प्रसाद का एक हिस्सा शाम को सूर्य देव और छठी मईया समर्पित कर उन्हें अर्घ्य देकर पूजा-अर्चना की जाती है। बचे हुए प्रसाद व्रती स्वयं ग्रहण करते हैं। इसके बाद लोगों के बीच प्रसाद वितरण किया जाता है। इस दिन व्रती निर्जला व्रत रखते हैं। चन्द्रास्त से पहले पानी पीते हैं। इसके बाद शुरू होता है 36 घंटे का निर्जला व्रत।
कब तक वर्ती जल ग्रहण कर सकते हैं
खड़ना के दिन शाम को छठी मैइया और भगवान भास्कर को पूजा-अर्चना कर उन्हें अर्घ्य देकर तब तक जल ग्रहण कर सकते हैं जब तक आसमान में चंद्रमा दिखाई दे रहे हैं।
14 अप्रैल दिन रविवार को भगवान भास्कर को संध्या अर्घ्य देने का विधान है। व्रत का तीसरे दिन संध्या अर्घ्य देने का दिन होता है। इस दिन शाम को व्रती डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के लिए नदी, तालाब, पोखर, कुंआ, जलाशय के किनारे जाते हैं। अर्घ्य देने में गाय का दूध, मौसमी फलों सहित अन्य चीजें शामिल होती हैं। सूर्य देव को अर्घ्य देने के बाद छठी मैया की भी पूजा की जाती है और गीत गाए जाते हैं।
अर्घ्य देने का उचित और शुभ मुहूर्त
प्रथम दिन संध्या समय अर्घ्य देने का उचित मुहूर्त शाम 06:06 बजे तक है। करण शाम 06:06 बजे के बाद सूर्यास्त हो जाएगा। सूर्यास्त के समय के समय शुभ मुहूर्त रहेगा।
15 अप्रैल दिन सोमवार को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने का विधान है। चौथे और आखिरी दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के उपरांत व्रती पारण करते हैं। सुबह सूर्योदय से पहले व्रती गीत गाते फिर से उसी नदी, पोखर या तालाब के किनारे जाते हैं और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इसके बाद ही व्रत का पारण किया जाता है। अर्थात व्रती उपवास तोड़ते हैं। पारण करने के लिए व्रती गुड़, आटा और शुद्ध घी से बने ठेकुआ और चना का प्रसाद ग्रहण करते हैं।
सुबह के समय अर्ध्य देने का शुभ मुहूर्त
15 अप्रैल, दिन सोमवार को अहले सुबह 05:25 बजे सूर्योदय हो जाएगा। इस वक्त अर्ध्य देने का शुभ समय रहेगा। इस दौरान अमृत मुहूर्त का सुखद संयोग भी व्रत धारी को मिल रहा है।
छठ पर्व में लगने वाली पूजा सामग्री
आस्था के महापर्व छठ में अनेक तरह के पूजा सामग्री लगती है। कच्चे बांस की दो टोकरी, बांस या पीतल के सूप, जल अर्पण करने के लिए पीतल या तांबा का लोटा, पान पत्ता, गोटा सुपारी, अरवा चावल, सिंदूर, मिट्टी का दीया, शहद, गुड, दूध, धूप अगरबत्ती, शकरकंद, सुथनी, पत्ते सहित पांच गन्ने के पौधे, मूली, अदरख और हल्दी का हरा पौधा, केला, सेवन, संतरा, नाशपाती, शरीफा, पानी फल, आंवला, पानी वाला नारियल, ठेकुआ, नया वस्त्र, गाजर, बड़ा नींबू, कपूर, आम का सुखी लकड़ी और दातुन प्रमुख है
जानें छठ व्रत को लेकर पौराणिक कथा
छठ व्रत के संबंध में कई तरह के पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार सृष्टि की अधिष्ठात्री देवी के अंश को देवसेना कहा जाता है। देवसेना प्राकृतिक का छठा अंश है। इसलिए देवसेना को छठी मैया भी कहा जाता है।
पुराणों के अनुसार छठी देवी को नौनिहालों (बच्चों) की रक्षा करने वाली माता तथा लंबी उम्र प्रदान करने वाली देवी माना जाता है। आज भी देश के कई राज्यों में नौनिहालों (बच्चों) के जन्म के छठवें दिन को छठिहार के रूप में मनाने की परंपरा है।
ब्रह्मा जी की मानस पुत्री थी छठी मैया
पौराणिक कथाओं के अनुसार छठी मैया को ब्रह्माजी का मानस पुत्री भी कहा जाता है। छठी देवी की पूजा नवरात्रा की षष्ठी तिथि को कात्यायनी माता के रूप में मां के भक्त पूजा करते हैं। एक और मान्यता के अनुसार सूर्य देव की बहन भी छठी मैया को माना गया है।
महाभारत काल में मिलती है छठ पर्व की दो कथाएं
दो कथा महाभारत काल से भी जुड़े हैं। कर्ण का जन्म सूर्य देव के द्वारा दिए गए वरदान के कारण कुंती के गर्भ से हुआ था। कर्ण को भगवान सूर्य ने कवच और कुंडल भी प्रदान किया था। कर्ण प्रतिदिन सुबह समय कमर भर जल में खड़े होकर घंटों भगवान सूर्य की पूजा करते थे और नदी के जल से भगवान भास्कर को अर्घ्य देते थे। भगवान सूर्य को अर्घ्य दने की परंपरा कर्ण ने हीं शुरू किया था।
दूसरी कथा पांडव से जुड़ा है। पांडव जुए में अपना समस्त राजपाट हार गए थे। द्रोपती ने छठ व्रत कर अपने खोए राज-पाट को पुनः प्राप्त किया था।
डिस्क्लेमर
छठ व्रत कथा पूरी तरह धर्म और अध्यात्म पर आधारित है। छठ व्रत के शुभ समय की गणना पंचांग से की गई है। इंटरनेट से भी सहयोग लिया गया है। हमारा उद्देश्य सनातन धर्म के तहत आने वाले व्रत और त्योहार के बारे में विस्तार से जानकारी देना और लोगों के बीच अपने पर्व के प्रति आस्था दर्शाने के लिए दिशा निर्देश धर्म पर आधारित देना मात्र है।