सनातनियों का महान और अति महत्वपूर्ण पर्व होली मानने को लेकर लोगों के बीच असमंजस की स्थिति कायम है। कुछ लोग 25 मार्च को होली मनाने की बात कर रहे हैं, तो कुछ लोग 26 मार्च को होली होगा ऐसा मांग कर चल रहे हैं।
होली एक जीवंत, उमंग और रंगीन त्योहार है जो लगातार दो दिनों तक चलता रहता है। होली का सनातन संस्कृति में बहुत ज्यादा महत्व है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाने का त्योहार है।
बसंत ऋतु की शुरुआत और सर्दियों के अंत का प्रतीक माना जाता है। इस त्यौहार के दौरान न अधिक गर्मी रहती है और ना अधिक ठंडा, मौसम सुहाना रहता है।
होली का महाउत्सव पूर्णिमा की शाम को शुरू होकर चैत्र माह के प्रतिपदा तिथि तक चलता है। त्योहार के दौरान, लोग एक-दूसरे पर अगजा के धूल, रंगीन गुलाल, रंगीन जल के साथ नृत्य-संगीत करते हैं। अंत में स्वादिष्ट पारंपरिक व्यंजनों का आनंद लेना जैसी रोमांचक गतिविधियों में शामिल होते हैं।
पूर्णिमा तिथि की शुभारंभ 24 मार्च, दिन रविवार सुबह 09 बजकर 54 मिनट पर होगी जबकि 25 मार्च, दिन सोमवार को 12 बजकर 29 मिनट पर समाप्त होकर चैत्र प्रतिपदा तिथि प्रारंभ हो जायेगा ।
इससे पहले 17 मार्च से होलाष्टक शुरू हो गया है। अर्थात 17 मार्च से हिरण्यकश्यपु अपने पुत्र प्रहलाद पर विभिन्न प्रकार की यातनाएं देना शुरू कर दिए थे और अंत में होलिका दहन के दिन अपनी बहन की होली जलाकर समाप्त हुआ।
गया के आचार्य और शिक्षाविद् पं. जीतेन्द्र उपाध्याय के अनुसार, होलाष्टक उसे कहते हैं जो होली से पहले के आठ दिनों को माना जाता है। इस दौरान सनातनियों को पूजा-पाठ, मंत्र जप और ध्यान विषेश रूप से करने चाहिए। मान्यता है कि होलिका दहन से पहले आठ दिनों तक दुष्ट राजा हिरण्यकश्यपु ने अपने श्रीहरि भक्त पुत्र प्रह्लाद को मारने के लिए अनेक तरह की यातनाएं दी थीं।
प्रह्लाद श्रीहरि विष्णुजी के परम भक्त थे। इसी वजह से दुष्ट हिरण्यकश्यपु अपने ही पुत्र को मारना चाहता था। श्रीहरि विष्णुजी की परम कृपा से प्रह्लाद के प्राण हर बार बच जाते थे। जब हिरण्यकश्यपु की सारी कोशिशें बेकार चली गई, तो अंत में अपनी बहन होलिका को, अपनी गोद में, प्रह्लाद को लेकर, आग में बैठ जाने को कहा।
होलिका को वरदान मिला हुआ था कि वह आग से नहीं जलेगी। श्रीहरि भगवान विष्णु जी की कृपा से आग प्रह्लाद को नहीं जला पाया, जबकि होलिका पूरी तरह जल गई। प्रहलाद ने इन आठ दिनों में भयंकर यातनाएं झेली और सही थीं। यातना भरें इन आठ दिनों को होलाष्टक महोत्सव कहा जाता है। इन आठ दिनों में श्रीहरि विष्णुजी की भक्ति करने का विशेष महत्व है।
होलाष्टक से जुड़ी आचार्यों, पंडितों और ज्योतिषाचार्यों की मान्यता
होलाष्टक महोत्सव के आठ दिनों में ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति ठीक नहीं रहते। स्वभाव उग्र होती है। ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति ठीक न होने से अधिकांश लोगों को इन आठ दिनों में मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है। काम करने में मन नहीं लगता है। हमेशा विचार नकारात्मक बनते रहते हैं। यह समय सकारात्मक बने रहने का है। अच्छी और धार्मिक किताबें पढ़ें। संत्संग में जाएं और साधु-संतों के प्रवचन सुनें। मंत्रों का जप के साथ ही ध्यान लगाने से नकारात्मकता शक्ति दूर हो सकती है।
होली को लेकर आचार्य, पंडित और ज्योतिषाचार्य के बीच में होली को लेकर भिन्न राय है। भद्रा को लेकर मचा कोहराम होली को 26 मार्च पहुंचा दिया है। जानें पंचांग क्या कहता है।
कब करें होलिका दहन ? जानें आचार्य के मुख
पंडित आचार्य जीतेंद्र उपाध्याय के अनुसार 24 मार्च को रात 12:15 बजे तक भद्रा काल है। इस कारण रात 12:15 बजे के बाद ही होलिका दहन होगा। भद्रा काल का निवास स्थान मृत्यु लोक में है। इसलिए सवा बारह बजे के बाद ही होलिका दहन करना ठीक रहेगा। मध्यरात्रि के बाद होलिका दहन होने से एक दिन आतर हो जाता है। इसलिए रंग महोत्सव अर्थात होली 26 मार्च को होगा।
कुछ विद्वान पंडितों का मानना है कि होलिका दहन रात 10:27 बजे के बाद किया जा सकता है।
अब जानें सूर्य और चंद्रमा की स्थिति
फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष, दिन रविवार, दिनांक 24 मार्च को होलिका दहन है। इस दिन सूर्यास्त 05:58 बजे पर और चंद्रोदय शाम 05:17 बजे पर हो जाएगा।
होलिका दहन के दिन चंद्रमा दोपहर 02:20 बजे तक सिंह राशि में रहेंगे इसके बाद कन्या राशि में गोचर करेंगे। सूर्य मीन राशि में रहेंगे। वसंत ऋतु, योग गण्ड रात 08:34 बजे तक रहेगा इसके बाद वृद्धि हो जाएगा। करण वणिज सुबह 09:54 बजे तक रहेगा। इसके बाद विष्टि अर्थात भद्रा शुरू हो जाएगा जो रात 11:13 बजे पर समाप्त हो जाएगा। इसके बाद बव शुरू हो जाएगा। होलिका दहन के दिन शक संवत 1945, गुजराती संवत 2080 और विक्रम संवत 2080 है।
इस दिन भूलकर भी ना करें ये शुभ कार्य
वैवाहिक कार्यक्रम, मुंडन, गृह प्रवेश, नामकरण, अन्नप्राशन अर्थात मुंह जुठी, विद्यारंभ, उपनयन, अर्थात जनेऊ संस्कार, जमीन की खरीद-फरोख्त। यह सभी शुभ कार्य करना सख्त मना है जो लोग इस दिन यह सभी कार्य करते हैं उन्हें विषम परिस्थितियों से गुजरते हुए दुख भोगना पड़ता है।
होलीका दहन के दिन शुभ मुहूर्त मायने रखता है
होलिका दहन का मुहूर्त किसी पर्व, त्यौहार या व्रत के मुहूर्त से ज्यादा महत्वपूर्ण और आवश्यक है। यदि किसी व्रत की पूजा शुभ मुहूर्त के समय न की जाए तो मात्र पूजा के लाभ से लोग वंचित रह जाएंगे।
परंतु होलिका दहन की पूजा और होलिका में अग्नि प्रज्जवलित अगर उपयुक्त समय पर ना किया जाए तो दुर्भाग्य, पीड़ादायक और घरों में दरिद्रता लेकर आती है। इसलिए होलिक दहन शुभ मुहूर्त पर करना फलदाई और उत्तम रहेगा।
लोग क्यों डालते हैं होलिका में अनाज
होलिका में आहुति क्यों दी जाती है?
सनातनी पुराणों के अनुसार हमारे जीवन के अधिकांश जरूरी सभी चीजें हमें प्रकृति से ही प्राप्त होती हैं। उसी प्रकार जो भी चीजें हमें प्रकृति देती हैं। वही चीजें होलिका में डालकर हम ईश्वर को अर्पित कर आभार व्यक्त करते हैं। फाल्गुन के अंतिम चरण में गेहूं, मसुरी, चने के साथ ही साथ कई अन्य फसलें पक कर तैयार हो जाती हैं। फसल उपजाने पर होलिकोत्सव मनाने की परंपरा है। पौराणिक काल से ही जब फसल पक जाती है। उसके बाद होलिका में जलाकर उत्सव मनाया जाता है। जलती होलिका को यज्ञ की संज्ञा दी गई है। यज्ञ में अलग-अलग तरह के अन्न, पूजन सामग्रियां और औषधियों की आहुति दी जाती है, ठीक इसी तरह जलती हुई होलिका में भी आहुतियां दी जाती हैं। लोग होलिका में आहूति देकर भगवान को प्रसन्न करते हैं।
इन चीजों की दें आहुतियां
होलिका दहन में आहुतियां देना बहुत ही जरुरी माना गया है, होलिका में कच्चे आम, नारियल, भुट्टे या सप्तधान्य, चीनी के बने खिलौने, नई फसल का कुछ भाग गेंहूं, उडद, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर। आदि की आहुति दी जाती है। ऐसा करने से आरोग्य की प्राप्ति होती है। साथ ही गुप्त शत्रुओं का नाश होता है। साथ ही आर्थिक स्थिति मजबूत होती है। वहीं होलिका दहन की रात्रि तंत्र साधना की रात्रि होने के कारण इस रात आपको कुछ सावधानियां रखनी चाहियें।
होलिका दहन के दिन तंत्र-मंत्र साधना भी किया जाता है। तांत्रिक मंदिरों और शमशान घाट में जाकर तंत्र-मंत्र साधना करते हैं। होलिका की रात तंत्र साधना के लिए बहुत खास माना जाता है। तंत्र-मंत्र साधक अपने इष्टदेव का विशेष पूजन और गुरु के मंत्रों का जप करते हैं।
फाल्गुन पूर्णिमा के दिन करें पितरों को तर्पण
फाल्गुन पूर्णिमा पर पितरों के लिए श्राद्ध कर्म, तर्पण, पूजा-पाठ जरूर करना चाहिए। माना जाता है कि इस तिथि पर किए गए श्राद्ध, तर्पण, धूप-ध्यान से घर-परिवार के मृत पितर देवता बहुत खुश होते हैं। इस दिन गरीब और जरूरतमंद लोगों को पैसे और अन्न का दान करना चाहिए।
फाल्गुन पूर्णिमा और होली से जुड़ी अन्य मान्यताएं
इस पर्व पर हिंडोला दर्शन करने का भी महत्व है। भविष्य पुराण के अनुसार नारद जी के कहने पर युधिष्ठिर ने फाल्गुन पूर्णिमा पर कई बंदियों को अभयदान दिया था। बंदियों को मुक्त करने के बाद कंडे जलाकर होली मनाई गई थी।
सफेद खाद्य पदार्थो के सेवन से बचें
मान्यता है होलिका दहन वाले दिन टोने- टोटके के लिए सफेद खाद्य पदार्थों का उपयोग किया जाता है। इसलिए इस दिन सफेद खाद्य पदार्थों के सेवन से बचना चाहिए।
होलका दहन को लेकर चार तरह की पौराणिक कथा प्रचलित है।
होलिका, पुतना, शिव-कामदेव, राजा रघु और धुधि की कथा
पहला कथा हिरण्यकशिपु, बहन होलिका और भक्त प्रह्लाद के बीच का है। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका ने अपने गोद में लेकर प्रह्लाद को बैठी थी। कारण स्पष्ट था होलिका को वरदान प्राप्त था कि उसे कोई जला नहीं पाएगा।
दूसरा कथा पूतना और श्रीकृष्ण की है। कंस ने पूतना को श्री कृष्ण को वध करने के लिए भेजा था और भगवान श्रीकृष्ण ने पूतना का वध कर दिया। तीसरा कथा राजा रघु और धुधि की और चौथा कथा भोलेनाथ और कामदेव का है।
डिस्क्लेमर
यह लेख धार्मिक और सनातनी परंपरा के अनुसार लिखा गया है। लेख लिखने का मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म के तहत आने वाले प्रमुख त्योहारों के बारे में लोगों के बीच अधिक से अधिक जानकारी देना और प्रेरित करना ही मुख्य उद्देश्य है। लेख लिखने के पहले प्रमुख आचार्यों, विद्वान पंडितों, शिक्षाविद् और ज्योतिषाचार्य से विचार विमर्श कर लिखा गया है। हर तरह की त्रुटि को ध्यान में रखकर लिखा गया है। इंटरनेट से भी सहयोग लिया गया है।