सनातनी पंचांग के अनुसार, प्रत्येक वर्ष कुल 04 नवरात्रि आती हैं। दो गुप्त नवरात्रि और 02 शारदीय एवं चैत्र नवरात्रि होती है।
गुप्त नवरात्रि को तंत्र-मंत्र साधना के लिए शुभ माना जाता है। उसी प्रकार चैत्र और शारदीय नवरात्रि गृहस्थ आश्रम में रहने वाले लोग करते हैं।
हम आपको बता दें कि चैत्र माह शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवरात्रा आरंभ हो रही है। देश विदेश में चैत्र नवरात्रि धूमधमा और पूरे आस्था पूर्वक मनाया जाता है।
09 दिनों तक चलने वाले इस महापर्व महोत्सव में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है।
अब हम आपको बताएंगे कि इस वर्ष कब से शुरू हो रही है चैत्र नवरात्रि, साथ ही कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त और महत्व।
सनातनी पंचांग के अनुसार, चैत्र मास की प्रतिपदा तिथि 08 अप्रैल 2024, दिन सोमवार को रात 11 बजकर 50 मिनट से शुरू हो रही है, जो 09 अप्रैल, दिन मंगलवार को रात 08 बजकर 30 मिनट पर समाप्त हो जायेगी।
इसलिए चैत्र नवरात्रि 09 अप्रैल दिन मंगलवार से आरंभ हो रही है, जो 18 अप्रैल दिन गुरुवार को समाप्त हो जायेगी।
चैत्र नवरात्रि कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
कलश स्थापना शुभ मुहूर्त 09 अप्रैल को सुबह 08 बजकर 38 मिनट से लेकर दोपहर 01 बजकर 21 मिनट तक रहेगा। इस दौरान चर, लाभ और अमृत मुहूर्त है।
अभिजीत मुहूर्त- 09 मार्च को दोपहर 12 बजकर 03 मिनट से 12 बजकर 54 मिनट तक है। इस दौरान आप सुविधा अनुसार शुभ मुहूर्त पर कलश स्थापना कर सकते हैं।
चैत्र नवरात्रि का पहल दिन 09 अप्रैल दिन मंगलवार को मां शैलपुत्री की पूजा और कलश स्थापना
चैत्र नवरात्रि का दूसरा 10 अप्रैल, दिन बुधवार को मां ब्रह्मचारिणी की पूजा
चैत्र नवरात्रि का तीसरा दिन 11 अप्रैल, दिन गुरुवार को मां चंद्रघंटा की पूजा
चैत्र नवरात्रि के चौथे दिन 12 अप्रैल, दिन शुक्रवार को मां कुष्मांडा की पूजा
चैत्र नवरात्रि के पांचवें दिन 13 अप्रैल, शनिवार दिन को मां स्कंदमाता की पूजा
चैत्र नवरात्रि के छठे दिन 14 अप्रैल, दिन रविवार को मां कात्यायनी की पूजा
चैत्र नवरात्रि सातवें दिन 15 अप्रैल, दिन सोमवार को मां कालरात्रि की पूजा
चैत्र नवरात्रि के आठवें दिन 16 अप्रैल, दिन मंगलवार को मां महागौरी की पूजा और दुर्गा महाअष्टमी पूजा
चैत्र नवरात्रि के नौवें दिन 17 अप्रैल, दिन बुधवार को मां सिद्धिदात्री की पूजा, महा नवमी और रामनवमी
चैत्र नवरात्रि के दसवें दिन 18 अप्रैल, दिन गुरुवार को मां दुर्गा की प्रतिमा विसर्जन के साथ ही नौ दिनों तक चलने वाले दुर्गोत्सव समाप्त हो जायेगी।
चैत्र नवरात्रि के दौरान प्रत्येक दुर्गोत्सव की तरह मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा होती है। शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि और मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है।
चैत्र नवरात्रि क्यों है महत्वपूर्ण
चैत्र नवरात्रि के दौरान मां भगवती दुर्गा और उनके नौ स्वरूपों की पूजा करने का सर्वश्रेष्ठ विधान है।
मां की नौ रूपों का विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने के साथ व्रत रखने से भक्तों को हर तरह के कष्टों से राहत मिल जाती है और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही हमेशा घरों में खुशहाली और समृद्धि बनी रहती हैं।
इस वर्ष चैत्र नवरात्रि पर मां दुर्गा घोड़े पर सवार होकर आने वाली है और मनुष्य पर सवार होकर जाने वाली है। हम आपको बता दें कि मां के वाहन का चुनाव दिन के हिसाब से होता है।
इस साल चैत्र नवरात्रि मंगलवार को शुरू हो रही है। इसलिए मां दुर्गा घोड़े पर सवार होकर आ रही है। घोड़े में सवार होने का मतलब है कि सत्ता में परिवर्तन। देश दुनिया में मार काटा और उथल-पुथल मचा रहेगा।
मां दुर्गा के आगमन का श्लोक है
शशिसूर्ये गजारूढ़ा शनिभौमे तुरंगमे।
गुरौ शुक्रे च दोलायां बुधे नौका प्रकीर्त्तिता'।
गजे च जलदा देवी छत्र भंगस्तुरंगमे। नौकायां सर्व सिद्धि स्यात् डोलायां मरणं ध्रुवम्
श्लोक में क्या कहा गया है जानें विस्तार से
इसका मतलब हुआ की मां का आगमन अगर सोमवार और रविवार को होता है। अर्थात प्रतिपदा तिथि को होता है तो मां हाथी पर सवार होकर कैलाश से पृथ्वी लोक आती है।
उसी प्रकार अगर मां दुर्गा मंगलवार और शनिवार को आने पर घोड़ा की सवारी करतीं है। बुधवार के दिन आने पर नांव पर, गुरुवार और शुक्रवार को डोली और शनिवार को आने पर मां दुर्गा घोड़ा की सवारी मां करती है।
यह श्लोक है मां दुर्गा को जानें का है
गजे च जलदा देवी छत्र भंगस्तुरंगमे।
नौकायां सर्व सिद्धि स्यात् डोलायां मरणं ध्रुवम्
बुध शुक्र दिने यदि सा विजया गजवाहन गा शुभ वृष्टि का।
सुरराजगुरौ यदि सा विजया नरवाहन गा शुभ सौख्य करा।
यह श्लोक है 9 दिनों तक पृथ्वी लोक में रहने के बाद दसवें दिन मां कैलाश के लिए प्रस्थान कर जाती है। मां दुर्गा दशमी तिथि को इस भूलोक से प्रस्थान करती है।
मां दुर्गा सोमवार और रविवार को अगर पृथ्वी लोक से प्रस्थान करती है तो, भैसे पर सवार होकर जाती है। मंगलवार और शनिवार को प्रस्थान करने पर मुर्गे की सवारी करती है। बुधवार और शुक्रवार को प्रस्थान करने पर हाथी की सवारी है। गुरुवार को प्रस्थान करने पर मनुष्य की सवारी करती है।
डिस्क्लेमर
चैत्र नवरात्र का यह लेख पूरी तरह सनातन धर्म पर आधारित है। लेख के संबंध में जानकारी विद्वान पंडितों, आचार्यों और ज्योतिषाचार्य से बातचीत कर लिखा गया है।
साथ ही इंटरनेट का भी सहयोग लिया गया है। शुभ मुहूर्त और समय आदि की गणना पंचांग से किया गया है। लेख लिखने का मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म का प्रचार प्रचार करना और सनातनियों को अपने त्यौहार के प्रति रूझान बढ़ाना है।
हमने पूरी निष्ठा से इस लेख को लिखा है, अगर लेख में किसी प्रकार की गड़बड़ी या त्रुटि होगी तो उसके लिए हम जिम्मेदार नहीं है।