फाल्गुन माह कृष्ण पक्ष त्रयोदशी तिथि 08 मार्च दिन शुक्रवार को महाशिवरात्रि पर्व है।
महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव और माता शक्ति के अभिसरण और मिलन का महान पर्व कहा जाता हैं।
दक्षिण भारतीय पंचांग के अनुसार माघ महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महा शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है।
दूसरी ओर उत्तर भारतीय पंचांग के अनुसार फाल्गुन माह की मासिक शिवरात्रि को महाशिवरात्रि के नाम से जाना जाता है।
दोनों पंचांगों में चंद्र मास के नामकरण की अलग-अलग परंपरा है। इसके बाद भी उत्तर और दक्षिण भारतीय दोनों एक ही दिन महा शिवरात्रि मनाते हैं।
शिवरात्रि भोलेनाथ की उपासना और आराधना का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार माने जाते हैं।
जानें व्रत कैसे किया जाए। महाशिवरात्रि व्रत करने से एक दिन पहले, अर्थात द्वादशी के दिन शिव भक्तों को रात और दिन में केवल एक समय भोजन करना चाहिए।
शिवरात्रि के दिन, सुबह की अनुष्ठान समाप्त करने के बाद भक्तों को शिवरात्रि पर पूरे दिन का उपवास रखने और अगले दिन भोजन करने का संकल्प लेना चाहिए।
संकल्प लेने के दौरान शिव भक्त पूरे उपवास अवधि के दौरान आत्मनिर्णय और भक्ति पूर्ण जीवन जीने की प्रतिज्ञा करते हैं और बिना किसी व्यवधान के उपवास पूरा करने के लिए भगवान शिव से आशीर्वाद मांगते हैं। सनातनी व्रत सख्त होते हैं।
शिवरात्रि के दिन भगवान भोलेनाथ को गंगाजल चढ़ाने से विशेष पुण्य मिलता है। भगवान शंकर की मूर्ति या शिवलिंग को पंचामृत से स्नान कराकर ओम नमः शिवाय मंत्र का जाप करते हुए पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
साथ में बेलपत्र, फल, फूल शिवलिंग पर चढ़ाएं। इसके बाद रात्रि के चारों पहर शिवजी की पूजा करनी चाहिए और अगले दिन प्रातः काल ब्राह्मणों को दान दक्षिणा देकर व्रत का पारणा करना चाहिए।
शिवरात्रि के दिन भक्तों को शिव पूजा करने या मंदिर जाने से पहले शाम को एक बार फिर से स्नान करना चाहिए।
भगवान भोले शिव की पूजा रात के समय की जानी चाहिए और भक्तों को अगले दिन स्नान करने के बाद व्रत तोड़ना चाहिए। व्रत का अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए भक्तों को सूर्योदय के बीच और चतुर्दशी तिथि समाप्त होने से पहले व्रत तोड़ना उत्तम और धर्म सम्मत होता है।
एक विरोधाभासी मत के अनुसार भक्तों को चतुर्दशी तिथि समाप्त होने पर ही व्रत तोड़ना चाहिए। लेकिन ऐसा माना जाता है कि शिव पूजा और पारण अर्थात व्रत तोड़ना दोनों ही चतुर्दशी तिथि के भीतर ही करना चाहिए।
शिवरात्रि पूजा रात में एक बार या चारों पहर करनी चाहिए। चार बार शिव पूजा करने के लिए पूरी रात की अवधि को चार प्रहर में विभाजित किया जा सकता है।
वैसे कट्टर शिव भक्तों के लिए सभी चार प्रहर अवधियों को सूचीबद्ध करता है जो दिन और रात में चार बार शिव पूजन करते हैं। हम निशिता समय को भी सूचीबद्ध करते हैं, जब भगवान शिव लिंग के रूप में पृथ्वी पर प्रकट हुए थे और अगले दिन व्रत तोड़ने का समय भी बताया गया है।
भगवान भोलेनाथ की आराधना करने का सर्वश्रेष्ठ पर्व महाशिवरात्रि 08 मार्च को है।
महाशिवरात्रि के दिन अमृत मुहूर्त का सुखद और अद्भुत महासंजोग बन रहा है। अमृत मुहूर्त में पूजा करने पर कुंवारी कन्याओं को मनचाहे वर मिलेंगे। वहीं गृहस्थ आश्रम में रहने वाले लोगों को धन, सुुख और वैभव की प्राप्ति होगी।
व्यापारियों को शिवरात्रि व्रत करने पर लाभप्रद वर्ष साबित होगा। अब जानें किस समय आएगा अमृत मुहूर्त ? इसकी पूरी जानकारी के साथ ही साथ पूजा करने की विधि, पौराणिक कथा, पूजा करने की सामाग्रियों की सूची तथा सभी तरह के नवीन जानकारी इस लेख में पढ़़ने को मिलेगा।
इस वर्ष महाशिवरात्रि 08 मार्च दिन शुक्रवार को मनाई जाएगी। उस दिन फाल्गुन मास के त्रयोदशी तिथि है। त्रयोदशी तिथि का आगमन 07 मार्च रात के 01:00 बज कर 19 मिनट से शुरू होकर 08 मार्च रात्रि 09:47 तक रहेगा। उदया तिथि में त्रयोदशी पड़ने के कारण महाशिवरात्रि 08 मार्च को मनाई जाएगी।
08 मार्च को सुबह के 08:58 बजे से लेकर 10:27 तक और रात 01:27 से लेकर 02:58 तक अमृत योग का अद्भुत संजोग हो रहा है।
अमृत योग का स्वामी चंद्रमा है। शिवरात्रि के दिन चंद्रमा मकर राशि में रहेगा। मकर राशि में चंद्रमा को रहने पर मनुष्य का भाग्य उदय होता है। लोग यथार्थ जीवन जीने में विश्वास रखते हैं। मजबूत इरादे वाले होते हैं। ऐसी स्थिति में अमृत योग में पूजा अर्चना करना काफी फलदाई होगा।
जानें चौघड़िया व पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त, चारों पहर की
अभिजीत मुहूर्त दोपहर 11:32 बजे से लेकर 12:20 बजे तक रहेगा।
महाशिवरात्रि के दिन चारों पहर पूजा करने का विधान है। हम आपको पंचांग और चौघड़िया पंचांग में दिए गए शुभ मुहूर्त की जानकारी नीचे दे रहे हैं, जो इस प्रकार है।
पहला पहर अर्थात सुबह के समय शुभ मुहूर्त इस प्रकार है। सुबह 06:00 बजे से लेकर 07:29 बजे तक चार मुहूर्त रहेगा। उसी प्रकार 07:29 बजे से लेकर 08:58 बजे तक लाभ मुहूर्त और 08:58 बजे से लेकर 10:27 बजे तक अमृत मुहूर्त रहेगी। अपनी सुविधा के अनुसार इन सभी मुहूर्त के बीच भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना कर सकते हैं।
दूसरा पहर अर्थात दोपहर के समय अभिजीत मुहूर्त 11:32 बजे से लेकर 12:20 बजे तक, शुभ मुहूर्त 11:56 बजे से लेकर 01:25 बजे तक और विजय मुहूर्त दोपहर 01:55 बजे से लेकर 02:42 बजे तक रहेगा। इस दौरान आप दूसरे पहर की पूजा अर्चना कर सकते हैं।
तीसरा पहर संध्या बेला की पूजा गोधूलि मुहूर्त 05:49 बजे से लेकर 06:14 बजे तक रहेगा। उसी प्रकार चर मुहूर्त 04:23 बजे से लेकर 05:52 बजे और सायाह्य संध्या मुहूर्त शाम 05:52 बजे से लेकर 07:05 बजे तक रहेगा।
मध्य रात्रि अर्थात चौथी पहर की पूजा का शुभ मुहूर्त इस प्रकार है। रात 11:56 बजे से लेकर 01:27 बजे मिनट तक शुभ मुहूर्त है। उसी प्रकार रात 11:31 बजे से लेकर 12:20 बजे तक निशिता मुहूर्त और रात 01:27 बजे से लेकर 02:58 बजे तक अमृत मुहूर्त रहेगा। इस दौरान आप चौथे पहर की पूजा-अर्चना कर सकते हैं।
शिवरात्रि व्रत में लगने वाले पूजा सामग्रियों की सूची
शिवरात्रि पूजा के दौरान लगने वाले पूजा सामग्री की सूची इस प्रकार है। गाय का दूध, अरवा चावल, दीपक, चंदन, धतूरा, पीतल या तांबे का लोटा, अष्टगंध, रूई, धूपबत्ती, आंकड़े का फूल, बिल्वपत्र, शमी वृक्ष के पत्तें, भांग, गन्ना का रस, गंगाजल, जनेऊ, मिठाई, नारियल, सूखे मेवे, तिल, पंचामृत ( दूध, दही, घी, शहद और गुड़)।
शिवरात्रि व्रत की कथा
शिवरात्रि व्रत की कथा इस प्रकार है। किसी समय वाराणसी के जंगल में एक भील का परिवार रहता था। उसका नाम गुरुदुह था। वह जंगली जानवरों का शिकार कर अपने घर परिवार चलाता था। एक बार शिवरात्रि के दिन वह शिकार करने वन में गया।
उस दिन उसे दिनभर कोई शिकार नहीं मिला और रात हो गई। तभी वह शिकारी झील के किनारे पेड़ पर यह सोचकर चढ़ गया कि रात के समय कोई ना कोई जंगली जानवर पानी पीने जरूर आएगा।
पानी पीने के दौरान उसका शिकार कर लेंगे। जिस पेड़ पर शिकारी बैठा था। वह पेड़ बेल वृक्ष और नीचे शिवलिंग स्थापित था।
झील में पानी पीने एक हिरनी आई। शिकारी ने उसको मारने के लिए धनुष पर बाण चढ़ाया, तो उसी समय बेल पेड़ के पत्तें और जल शिवलिंग पर गिरीं। इस प्रकार शिवलिंग की पूजा हो गई। इस प्रकार रात के पहले प्रहर में अनजाने में ही उसके द्वारा शिवलिंग की पूजा हो गई और हिरनी भी भाग गई।
थोड़े समय के बाद एक और हिरनी झील के पास पानी पीने के लिए आयी। शिकारी ने उसे देखकर फिर से अपने धनुष पर तीर चढ़ाया। इस बार भी रात के दूसरे पहर में बिल्ववृक्ष के पत्ते और जल शिवलिंग पर गिरे और शिवलिंग की पूजा हो गई और हिरनी फिर एक बार भाग गई। इस प्रकार शिवलिंग पर दूसरे प्रहर की पूजा हो गई।
फिर एक बार हिरनों का झुंड एक साथ झील पर पानी पीने आया। बहुत से हिरनों को एक साथ देख कर शिकारी खुश हुआ और उसने फिर से धनुष पर बाण चढ़ाया। जिससे चौथे प्रहर में पुनः शिवलिंग की पूजा हो गई। इस प्रकार शिकारी दिन भर भूखा प्यासा रहकर रात भर जागरण करते हुए चारों प्रहर अनजाने में ही उसने शिवजी की पूजा की।
जिससें शिवरात्रि का व्रत पूरा हो गया और व्रत के प्रभाव से उसके सारे पाप नष्ट हो गए। उसे पुण्य प्राप्त हुआ और उसने हिरनो को मारने का विचार त्याग दिया।
उसी समय शिवलिंग से भगवान भोलेनाथ प्रकट हुए और उन्होंने शिकारी को वरदान दिया कि त्रेता युग में भगवान राम तुम्हारे घर आएंगे और तुम्हारे साथ मित्रता करेंगे। तुम्हें मोक्ष की प्राप्ति मिलेगा। इस प्रकार अनजाने में किए गए शिवरात्रि व्रत से भगवान शंकर ने शिकारी को मोक्ष प्रदान कर दिया।
डिस्क्लेमर
महाशिवरात्रि का लेख विभिन्न धर्म ग्रंथो पर आधारित है। खासकर शिव पुराण से भी कुछ प्रसंग लिए गए हैं। साथ ही कुछ प्रसंग को आचार्य द्वारा कहे गए शब्दों का भी समावेश किया गया है। इंटरनेट से भी सहायता ली गई है। यह लेख सनातन धर्म के प्रचार प्रसार के लिए और सनातनियों के बीच अपने पर्व त्यौहार के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने के लिए लिखा गया है। शुभ मूहूर्त पंचांग से लिया गया है। लेख अपनी तरफ से पूरी ईमानदारी से लिखे हैं।