काल भैरव के संबंध में अगर आप संपूर्ण जानकारी जानना चाहते हैं तो यह कथा जरूर पढ़ें

काल भैरव अष्टमी की पूजा नवंबर या दिसंबर माह में पड़ते हैं। माध माह, कृष्ण पक्ष, अष्टमी तिथि को लोग काल भैरव अष्टमी त्योहार मनातें है।
हम आपको काल भैरवी पूजन विधि, टोटके सहित पौराणिक कथा की संपूर्ण जानकारी देंगे। पढ़ें मेरे लेख ध्यान से।

भैरव हैं राहु ग्रह के देवता

बाबा भैरव की पूजा ग्रहो की विपरीत चाल और विकट स्थितियों से निकलने के लिए की जाती है। भैरव बाबा मनुष्यों को इस तरह के परिस्थितयो से निकालने में मदद करते है। भारतीय ज्योतिषी के अनुसार, राहु एक छाया ग्रह है। जिसके प्रभाव से जीवन में महत्वपूर्ण घटनाएं घटती है। कुंडली में आयी राहु की हानिकर स्थिति को काम करने के लिए भारतीय ज्योतिष अकसर भैरव पूजा करने की सलाह देते है।

भैरव बाबा हैं योगियों के देव

सिद्धिया प्राप्त करने के लिए योगियों और तांत्रिकों द्वारा भी भैरव को पूजा जाता है। भैरव को योगियों और तांत्रिको के गुरु कहते हैं। योगी और तांत्रिक मंत्र उच्चारण द्वारा साधना करके सिद्धिया प्राप्त करते है।

भैरव हीं हैं कोतवाल

भगवान भैरव भगवान शिव के मंदिर की रखवाली करते है। जिसके कारण उन्हें कोतवाल भी कहा कि जाता है।

कैसे करें काल भैरव की पूजा

भगवान काल भैरव की पूजा काले कपड़े पहनकर करनी चाहिए। आसन भी काले कपड़े का होना चाहिए। अष्टमी के दिन प्रातः स्नान करने के पश्चात पितरों का तर्पण और श्राद्ध कर कालभैरव की पूजा करनी चाहिए।

काल भैरव अष्टमी के दिन व्यक्ति को पूरे दिन व्रत रखने चाहिए। निशा रात्रि अर्थात आधी रात के समय धूप, दीप, गंध, काले तिल, उड़द, सरसों तेल से पूजा करनी चाहिए। जोर-जोर से भैरव बाबा की आरती उतारनी चाहिए। इस दिन व्रत रखने वाले व्यक्ति को पूरी रात जागरण करते रहने चाहिए।

माना जाता है कि भैरव बाबा और काल भैरव की सवारी कुत्ता है इसलिए व्रत की समाप्ति पर घर पर पकवान बनाकर कुत्ते को खिलाएं।

कब की जाती है भैरव बाबा की पूजा

पौराणिक मान्यताओं में भैरव अवतार प्रदोष काल अर्थात दिन-रात के मिलन की घड़ी में हुआ था। इसलिए भैरव पूजा शाम (गोधूलि बेला) या रात के वक्त करने चाहिए।

रुद्राक्ष शिव स्वरूप है। इसलिए भैरव पूजा रुद्राक्ष की माला पहनाकर करने चाहिए। रुद्राक्ष माला से ही भैरव मंत्रों का जप करें।

स्नान के बाद भैरव पूजा करें। जिसमें भैरव को भैरवाय नमः बोलते हुए चंदन, अक्षत, फूल, सुपारी, दक्षिणा, नैवेद्य लगाकर धूप या दीप से आरती करें।

भैरवजी की आरती तेल से भरे दीया या कपूर से करें।

तंत्र शास्त्रों में मदिरा चढ़ाने का महत्व है। गृहस्थ आश्रम के लोग इसके स्थान पर दही-गुड़ भी चढ़ाया जा सकता है।

कुत्ता भैरव जी का वाहन है इसलिये कुत्तों को भोजन अवश्य खिलाना चाहिए। भैरव बाबा हमेशा पूरे परिवार की रक्षा करते हैं। इसीलिये भैरव देवता को काले वस्त्र और नारियल चढाने से वह प्रसन होते हैं, साधना के आखरी दिन काला वस्त्र और नारियल चढाने से लाभ ही लाभ प्राप्त होगा।

भैरव पूजा व आरती के बाद विशेष रूप से शिव का ध्यान करें। दोष व विकारों के लिए क्षमा प्रार्थना करें। प्रसाद सुख और ऐश्वर्य की कामना करते हुए ग्रहण करें।

भैरवनाथ मंत्र का जाप लोगों को रोजाना एक माला के रूप में करने चाहिए। मंत्र जाप करने के लिए मुख दक्षिण दिशा में होने चाहिए।

आसन वस्त्र लाल या काले रंग के हो चाहिए। उसी वस्त्र पर भैरव बाबा के चित्र स्थापित करें जिसमे "महाकालि के साथ भैरव जी भी हो", यह साधना करने के विशेष पूजा की अंग है।

पूजन विधि और सामग्री

भैरव बाबा की पूजा के लिए नारियल, फूल, सिन्दूर, सरसों का तेल, काले तिल आदि की आवश्यकता पड़ती है। इन सभी सामग्रियों को भौरव बाबा पर चढ़ाकर पूजा की जाती है साथ में मन्त्रों का उच्चारण किया जाता है।

मदिरा पान भी करते है भैरव बाबा

भारत में काल भैरव के कई मंदिर है। उज्जैन के काल भैरव मंदिर के रहस्य पर आपको विशवास नहीं होगा। कहा जाता है, उज्जैन के मंदिर में काल भैरव साक्षात् मदिरा पान करते है। इसके अलावा यहां आने वाले भक्तगण बाबा को मदिरा चढ़ाते है। कहते है मंदिर में बाबा की मूर्ति के मुख पर मदिरा का प्याला लगाने के कुछ क्षण बाद ही वो प्याला खाली हो जाता है।

बाबा भैरवनाथ को प्रसन्न कैसे करें?

भैरव बाबा को माता वैष्णो देवी से वरदान प्राप्त है कि जो भी भक्त मेरे दर्शन करने आयेंगे। हमारे दर्शन के बाद तुम्हरे दर्शन भी करने होंगे, अन्यथा उसकी यात्रा पूर्ण नहीं मानी जाएगी।

इसीलिए मां वैष्णो के दर्शन करने जानें वाले प्रत्येक भक्त भैरव बाबा के दर्शन करना नहीं भूलते हैं। भैरव बाबा को खुश करना बेहद सरल और आसान है। लेकिन यदि वे किसी से रुष्ट हो जाएं तो उन्हें मनाना बेहद कठिन हो जाता है।

आज हम आपको कुछ ऐसे सरल टोटके बताने जा रहे है जिनकी मदद से आप भी भैरव नाथ को खुश कर सकते हैं।

01.भैरव बाबा को प्रसन्न करने के लिए रविवार, बुधवार या गुरुवार के दिन एक रोटी ले। अब इस रोटी पर अपनी तर्जनी और माध्यम अंगुली को तेल में डुबोकर उससे लाइन बनाये। यह रोटी किसी भी दो रंग वाले कुत्ते को खिलाये।

02. शनिवार की रात को सरसों तेल में उड़द की दाल के पकोड़े बनाये और रात भर उन्हें ढक कर रख दे। अगली सुबह जल्दी उठकर सुबह 06 से 07 बजे के बीच किसी से कुछ कहें बिना घर से निकले और राह में मिलने वाले सबसे पहले कुत्ते को यह पकोड़े खिला दे।

03. शनिवार के दिन अपने शहर में किसी ऐसे भैरव मंदिर की तलाश करे जहा लोगों ने पूजा करना लगभग बंद दी हो। वैसे मंदिर में रविवार के दिन सुबह शुद्ध होकर उस मंदिर में जाएं और भैरव बाबा पर सिंदूर, तेल, नारियल, पुए और जलेबी अर्पित करें और पूरे श्रद्धा भाव से बाबा की पूजा करे। आपकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी।

04.प्रत्येक गुरूवार अर्थात बृहस्पति वार को कुत्ते को गुड़ खिलाएं। लाभ जरूर मिलेगा।

05.किसी भी दिन रेलवे स्टेशन पर जाकर किसी कोढ़ी, भिखारी को मदिरा की बोतल दान में दे।

06.बुधवार के दिन सवा किलो जलेबी भैरव नाथ को चढ़ाएं और कुत्ते को खिलाएं। आपका भाग्य खुल जायेगा।


07. प्रत्यक गुरूवार अथात बृहस्पात वार का कुत्त को गुड़ खिलाएं। लाभ मिलेगा।

08. किसी भी दिन रेलवे स्टेशन पर जाकर किसी कोढ़ी, भिखारी को मदिरा की बोतल दान में दे।

09. बुधवार के दिन सवा किलो जलेबी भैरव नाथ को चढ़ाएं और कुत्ते को खिलाएं। आपका भाग्य खुल जायेगा।

10. शनिवार को सरसों तेल में पापड़, पकौड़े और पुए पकवानें बनाएं और रविवार के दिन किसी भी गरीबों की बस्ती में जा कर बांट दे। कहा जाता है कि दान करने वालों को भैरव बाबा बेहद पसंद करते हैं।

11. शुक्रवार और रविवार किसी भी दिन भैरव नाथ मनीर में गुलाब, चन्दन और गूगल की 33 खुशबूदार अगरबत्तियां जलाएं। लाभ होगा।

12. पांच गुरुवार को पांच नींबू भैरव बाबा पर चढ़ाएं।

13. बुधवार के दिन सवा सौ ग्राम काले तिल, सवा सौ ग्राम काले उड़द, सवा 11 रुपए, सवा मीटर काले कपड़े में पोटली बनाकर भैरव नाथ के मंदिर में जाकर चढ़ाएं।

काल भैरव की पौराणिक कथा

भगवान कपाल भैरव और उनके वृहद प्रभाव और अपार कृपा के बारे में हम आप को विस्तार से बताना चाहता हूं।जानिए काल भैरव की शक्ती, ऐश्वर्य,  प्रभुता और उपयोगिता के बारे में आप को बताना चाहता हूं। 

कपाल का मतलब खोपड़ी होती है। खोपड़ी सिर्फ मनुष्यों की ही नहीं अपितु हर प्रकार के जीव की होती है। ये तो हुआ कपाल का सरल सात्विक अर्थ अब हम बात करते हैं इसके आध्यात्मिक अर्थ और इसकी उपयोगिता की। कपाल को ब्रह्मरंध्र भी कहा जाता है और अत्यंत सरल भाषा में इसे दिमाग कहा जाता है।
 
भैरव का शाब्दिक अर्थ होता है रक्षा करने वाला या रक्षक। भैरव भगवान शिव के पांचवें अवतार हैं, जिनके मुख्य दो रूप है- काल भैरव और बटुक भैरव। अधिकांश लोग काल भैरव को ही बटुक भैरव मानते हैं, जो की गलत है, हालांकि दोनों शिवरूप ही है परंतु इनमें अगाध भेद है। अब मैं आपको काल भैरव, बटुक भैरव और कपाल भैरव के जन्म की कथा हम विस्तार से बताता हूं।
 
काल भैरव की उत्पत्ति की पौराणिक कथा के अनुसार जब ब्रह्मा और विष्णु में विवाद उत्पन्न हो गया। दोनों देवता एक दूसरे को अपना पुत्र बता रहे थे। कहने का मतलब यह है कि भगवान विष्णु का कहना था कि ब्रह्माजी का जन्म उनसे हुआ है और दूसरी ओर ब्रह्माजी कहते हैं कि भगवान विष्णु का जन्म उनसे हुआ है। 

इसी बीच उनके मध्य में एकाएक एक अग्नि स्तम्भ प्रगट हो गया। अग्नि स्तम्भ ने उन दोनों से कहा की आप दोनों में से जो भी इस अग्नि स्तम्भ का ओर और छोर पता लगा लेगा वही बड़ा होगा और वही समस्त ब्रह्माण्ड में पूज्य होगा।
 
ब्रह्मा ने एक सुंदर हंस का स्वरूप धारण किया और भगवान विष्णु ने एक विशाल वराह का रूप धारण किया। ब्रह्मा ने अग्नि स्तम्भ के ऊपर और विष्णु भगवान ने नीचे की ओर प्रस्थान कर गए। 

एक समय आया जब श्रीहरि विष्णु ने यह मान लिया की इस अग्नि स्तम्भ का कोई ओर-छोर नहीं है। परन्तु ब्रह्मदेव किसी भी कीमत पर अपनी पराजय मानने को तैयार नहीं थे। कुछ ऊपर पहुंचने पर उन्हें वहां केतकी नामक एक पुष्प मिला। 

उन्होंने उससे कहा की यदि तुम मेरे बातों का समर्थन करो तो मैं तुम्हें सबसे महत्वपूर्ण फूलों की उपाधि से अलंकृत कर दूंगा। 
 
केतकी ने लालच बस ब्रह्मा की ये बातें स्वीकार कर ली, और उस पुष्प को लेकर के ब्रह्मदेव वापस अग्नि स्तम्भ के पास आ गए। जब उस अग्नि स्तम्भ ने उन दोनों से पूछा कि क्या आप दोनों में से किसी एक को भी मेरा ओर-छोर पता चला ? 

तो इस पर नारायण ने तो मना कर दिया परन्तु ब्रह्मदेव ने कहा की हां मुझे अग्नि स्तम्भ का अंतिम छोर मिल गया है। ब्रह्मा जी ने सत्यापन के लिए केतकी पुष्प को अग्नि स्तम्भ के सामने खड़े कर दिया। केतकी ने भी ब्रह्मदेवजी की बातों का समर्थन किया। 
 
उसी समय अग्नि स्तम्भ से एक महा पुरुष की विशाल आकृति प्रकट हुई। जिसका स्वरूप महाकाल महारुद्र भगवान शिव का था। उन्होंने ब्रह्मदेव से कहा कि आप झूठ बोल रहे हैं। ब्रह्माजी को झूठ बोलने के कारण उन्हें किसी भी काल में नहीं पूजे जाने का श्राप दे दिया। दूसरी ओर केतकी पुष्प को झूठ बोलने के लिए उसे अपनी अर्थात शिव पूजा में उपयोग करने पर रोक लगा दिया। 

भगवान भोलेनाथ के श्रापित होने के बाद ब्रह्मदेव ने क्रोधित होकर भगवान् शिव को अपशब्द कहना शुरू कर दिया और अपने आप को सबसे बड़ा बताने लगे। उस समय ब्रह्मदेव के पांच मुख थे। तब भगवान् शिव को एहसास हुआ कि ब्रह्मदेव को अहंकार हो गया है और सृष्टि के रचना से पहले ही अहंकार हो गया तो असमय ही सम्पूर्ण सृष्टि अहंकार के भाव से भर जाएगी। 

भगवान भोलेनाथ ने ब्रह्मदेवजी के उस पांचवें सर को काटने का निर्णय लिया। परन्तु इसमें भी एक समस्या उत्पन्न हो गई। भगवान् शिव इस बात को जानते थे की यदि उन्होंने ब्रह्मदेव का एक सिर काटा दिया तो, उन्हें ब्रह्म हत्या का दोष लग जायेगा। अगर उन्हें ब्रह्म हत्या का दोष लग गया तो भगवान शिव उसमें उलझकर त्रिमूर्ति से अलग हो जाएंगे और ब्रह्मांड में असंतुलन व्याप्त हो जाएगा। 
 
इस कारण भगवान रूद्र ने अपने ही अंश से एक ऐसे विकराल गण को उत्पन्न किया जो कृष्णवर्ण के थे। अस्थियों के आभूषणों से सुशोभित थे, उस दिव्य महा पुरुष को देखकर और उनकी गर्जना को सुनकर ऐसा लगता था मानो हजारों भयानक काले मेघों ने जीवित रूप ले कर के गर्जना कर रहे हों। 

उनकी जटाएं देख कर ऐसा प्रतीत होता था मानो असंख्य भयानक विषधर हो। उनके मस्तक पर श्वेत त्रिपुण्ड की तीन रेखाएं ऐसी लगती थी मानो चन्द्रमा ने उनके ललाट पर शुशोभित होने के लिए स्वयं को तीन टुकड़ों में अलग कर दिया है। 

उस उग्र देवता की लम्बी भुजाएं ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो लौहे का खंभा हो, भयानक अष्ट भुजा नाग जिनका यज्ञोपवीत (जनेऊ) बने इतरा रहे थे, कमर पर बंधे मोटे मोटे घुंघरुओं से भयानक आवाजे आ रही थी। 
 
शिव से उत्पन्न हुए विशाल महाकाय और महाबाहु गण को भगवान् शिव ने साफ शब्दों में कहा की ब्रह्मदेव के पांचवें सर को काट दो। इतना सुनते ही उस वीर ने आव देखा न ताव अपने नाख़ून के एक ही प्रहार से ब्रह्मा का पांचवां सर उखाड़ लिया परन्तु वो सर उनके हाथ में ही चिपक गया। 

जब उन्होंने भगवान् शिव से इसका कारण पूछा तो उन्होंने उनसे कहा की ये केवल ब्रह्मा का सिर नहीं है अपितु ब्रह्महत्या है। इस ब्रह्महत्या के फलस्वरुप तुम्हें श्रापित होना पड़ेगा उन्होंने कहा की तुमने ब्रह्मा के सिर को काटकर इस सृष्टि की अहंकार से रक्षा की है। 

अतः आज से तुम्हारा नाम भैरव होगा अब तुम जाओ और ब्रह्मा के इस सिर को लेकर पूरे ब्रह्मांड में भ्रमण करो और जहां भी ये सिर तुम्हारे हाथ से छूट कर गिर जाए, वहीं तुम रुक जाना और इस सिर को स्थापित कर देना। 
 
शिव जी को कहने के बाद काल भैरव ने उस सिर को हाथ में लेकर पूरे ब्रह्मांड का चक्कर लगाने लगा। काल भैरव ने ब्रह्मा जी के उसे कटे सिर को लेकर पूरे सृष्टि के अनंत काल तक भ्रमण करते रहे। इसके बाद भी वह सिर उनके हाथ से नहीं छूटा। सृष्टि के चक्कर लगाते-लगाते भैरव की गति इतनी तेज हो गयी की वो समय से भी आगे निकल गए। 

भैरव के हाथ से वह सिर कहीं नहीं गिरा। दूसरी ओर सृष्टि के चक्कर लगाते लगाते भैरव की गति इतनी तीव्र हो गयी की वो समय (काल) से भी आगे निकल गए। जब भगवान नारायण के कर्ण कुण्डल गिरे और काशी नगरी स्थापित हुई तब वहां पर भगवान् भैरव के हाथ से ब्रह्मदेव का वो कपाल छूट गया। तब भगवान् भैरव वहीं रुक गए और तब वहां भगवान् शिव प्रकट हुए उन्होंने भैरव से कहां की यह मेरी अत्यंत प्रिय काशी नगरी है। 

आज से तुम इसके संरक्षक और रक्षक के रूप में यहां विराजमान रहोगे। हे भैरव तुम्हें इस काशी नगरी में केवल पैर के एक अंगूठे के बराबर जमीन मिलेगा और तुम्हें इसी ब्रह्म कपाल में भोजन करना पड़ेगा। भैरव तुम्हारे तीव्र गति के कारण समय से भी आगे चले गए थे। इसका मतलब यह हुआ कि तुमने कालचक्र पर भी विजय प्राप्त कर ली है। इस कारण आज से तुम काल भैरव के नाम से जगत में जाने जाओगे।
 
भगवान भोलेनाथ ने काल भैरव से कहा कि तुम्हारा आज से मात्र एक ही काम रहेगा काशी की पवित्रता और भक्तों की रक्षा करना। परन्तु ध्यान रहे काशी में मरने वाले को यमराज स्पर्श न करे। इसके बाद काल भैरव ने भोलेनाथ से पूछा की इससे तो पापी लोग अपने कर्म के दंड से निर्भीक हो जाएंगे और मृत्यु प्राप्त करने वालों को यमराज दंड नहीं दे पाएंगे। ऐसी स्थिति में तुम उन्हें दंड दोगे। बिना काल यातना प्राप्त किए कोई भी जीवा आत्मा यह काशी नगरी नहीं छोड़ पायेंगे। 

जिस जगह पर वह अग्नि स्तम्भ प्रकट हुआ था वह स्थान आज के वर्तमान समय में अरुणाचल प्रदेश में स्थित है। जिस स्थान पर ब्रह्मा का कपाल गिरा था वह स्थान आज के समय में काशी में स्थित कपाल मोचन तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध हो गया। 

बाबा बटुक भैरव की जन्म कथा

बटुक भैरव के जन्म की कथा इस प्रकार से है। एक समय परमेश्वरि महाकाली को शांत करने के लिए भगवान् भोलेनाथ मां काली के चरणों के नीचे लेट गए थे। इसके बाद माता काली को पश्चाताप ने घेरा लिया था। 

इसके बाद मां काली ने भगवान् भोलेनाथ से ये वचन ले लिया कि आज के बाद आप कभी भी मेरे सामने भूमि पर मत लेटिऐगा। तब भगवान् शिव ने माता को वचन दे दिया। 

कालांतर में जब माता ने दारुक नमक असुर का बध करने के लिए फिर से काली की रूप धारण किए। मां काली जब नियंत्रण से बाहर हो गयी तो भगवान् शिव वचन वद्ध होने के कारण एक नन्हें से बालक का रूप धारण किया और मां-मां कह कर काली मां को पुकारना शुरू कर दिया। 
 
 नन्हे  बालक की करूण पुकार को सुन कर मां काली का ह्रदय पीधल गया और वो अपना क्रोध भूलकर उसे बालक को अपनी गोद में लेकर दुलार करने लगी और मां काली की क्रोध और उग्र रूप शांत हो गया। 

इसके बाद उस बालक से मां काली ने पूछा की तुम कौन हो नौनिहाल ? उस बालक ने उत्तर दिया की मै शिव हूं। तुम्हारे उग्र रूप को शांत करने के लिए मैंने ये बटुक रूप धारण किया हूं। बटुक का अर्थ होता है बाल रूप। तब माता ने कहा कि आप अपने पूर्व रूप को धारण करिए। 

तब भगवान् शिव अपने शिवरूप में आ गए। तब माता ने उनसे पुनः आग्रह किया की आप अपने भीतर से उस बटुक रूप को बहार निकालिए। 
तो भगवान् शिव ने उनसे इसका कारण पूछा। इस पर उन्होंने कहाँ की उस स्वरूप में आपने मुझे माँ कहाँ है? आप तो मेरे स्वामी हैं पुत्र नहीं हो सकते। 

तब परमेश्वर ने पुनः बटुक रूप को प्रकट किया। तब माता ने उनसे कहा की आपने इस बटुक रूप में संसार की रक्षा की है मेरे क्रोध से इसलिए आज से आपको भैरव की उपाधि दी जाती है। आज से आप 'बटुक भैरव' के रूप में पूजे जाएंगे और मेरे पुत्र के रूप में जाने जाएंगे। 
 
बटुक भैरव पापियों के लिए काल है। बटुक भैरव की उपस्थिति जहां भक्तों को सुख और समृद्धि का उपहार देते हैं। दूसरी ओर पांच वर्षीय बालक पापियों का काल है। अब आप सोचिये की जिस नन्हे बालक ने मां काली के क्रोध को शांत कर दिया उसके सामने कौन ऐसा है जो अपनी शक्ति दिखाएगा। ये थी बाबा बटुक भैरव की उत्पत्ति की कथा।
 
उपरोक्त वर्णित दो भैरवों के आलावा कोई भी ऐसे भैरव नहीं है जिनकी उत्पत्ति साक्षात् भगवान् शिव से हुई हो। रक्षक की भूमिका निभाने के लिए समय समय पर बाबा काल भैरव से ही अन्य सभी भैरवों, उप-भैरवों की उत्पत्ति हुई है।

जिनका मुख्य उद्देश्य माता के विभिन्न रूपों की रक्षा करना ही था। परन्तु इन सभी भैरवों में से भी एक भैरव ऐसे हुए जो काल भैरव को सबसे प्रिय है। भगवान् काल भैरव ने उन्हें अपने अनुज का स्थान दिया अपना दंडाधिकारी बनाया जिनका नाम है कपाल भैरव।
 
कपाल भैरव की उत्पत्ति कथा

कपाल भैरव की उत्पत्ति कथा इस प्रकार हैं। यहां कपाल भैरव के जन्म की उत्पत्ति की कथा बताने से पहले मैं आप सबकी बाबा कपाल भैरव की कुछ विशेष बाते बताना चाहता हूं। 

अघोर आध्यात्म में सिद्धि करने की पराकाष्ठा कपाल भेदन क्रिया को माना जाता है। इस कपाल भेदन के मुख्य रूप से दो प्रतीकात्मक देवता है। प्रथम है माता छिन्नमस्तका। उन्होंने स्वयं अपनी सिर भेदन कर दिया था। 

दूसरी कथा के अनुसार ऋषि जमदग्नि की धर्मपत्नी और भगवान् परशुराम की माता रेणुका जिनका सिर पिता की आज्ञा से स्वयं परशुराम ने काट दिया था। जिस प्रकार जागृत कुण्डलिनी का प्रतीक सर्प होते हैं। उसी प्रकार ये दोनों माताएं कपाल भेदन क्रिया की प्रतीक है। 

परन्तु शास्त्रों के गूढ़ जानकार इस बात को जानते हैं कि इनके आलावा कुछ और देवता भी है जो कपाल के अधिष्ठात्र देवता है जिनमें प्रथम है माता हिंगलाज ये 52 शक्तिपीठो में प्रथम है यहां पर माता सती का ब्रह्मरंध्र गिरा था। 

यानी की माता सती का कपाल और दूसरे है बाबा कपाल भैरव जिनकी उत्पत्ति साक्षात् ब्रह्मदेव के ब्रह्मकपाल से हुई थी। इन्हीं बाबा कपाल भैरव की कथा अब मैं आपको बताने जा रहा हूँ।
 
जब काल भैरव को महादेव द्वारा काशी में स्थापित किया गया तो वो ये सोचने लगे की भगवान् शिव ने मुझे दंड देने का काम तो दिया परन्तु हम दंड देंगें कैसे, क्योंकि हमें कैसे पता चलेगा की कौन सा मनुष्य ठीक है और कौन सा मनुष्य गलत है? 

उसी समय उनकी नज़र पड़ी ब्रह्मकपाल के ऊपर। उनके मन में ये विचार आया की ब्रह्मदेव के इस सिर के कारण मुझे मेरे पाप का दंड मिला तो क्यों न एक ऐसे गण की रचना की जाए जो व्यक्ति के अच्छे बुरे का निर्णय कर सके और उनके कर्मो के हिसाब से उसे दंड प्रदान कर सके।
 
तब उन्होंने उस ब्रह्मकपाल का एक हिस्सा तोड़ा और अपनी योग शक्ति से उस कपाल में अपनी कुण्डलिनी ऊर्जा को जागृत करके उसे एक जीवंत रूप प्रदान किया। 

उस कपाल के अंश से जिस गण का प्राकट्य हुआ वो गण अत्यंत भयानक थे। साक्षात् दूसरे काल भैरव के सामान ही प्रतीत हो रहे थे उनके हाथो में जो त्रिशूल था उसमें से विद्युत् निकल रही थी, हड्डियों के टकराने का सा उनका अट्टहास था। उनके मस्तक पर तीसरा नेत्र विद्यमान था।
 
परमेश्वर शिव के सामान ही वो सर्पाभूषण धारण किए हुए थे। उनके एक हाथ में कपाल था और दूसरे हाथ में त्रिशूल। भगवान् काल भैरव ने उन्हें देखते ही प्रसन्नता से उन्हें अपने ह्रदय से लगा लिया और उनसे कहा की तुम ब्रह्मदेव के खंडित कपाल से प्रकट हुए हो और तुम्हारे अंदर मेरे कपाल की ही उर्जाएं हैं। 

भगवान भोलेनाथ ने कहा कि आज से तुम्हारा नाम कपाल भैरव रहेगा। कपाल हस्त रहने के कारण तुम्हें कपाली भैरव भी कहा जाएगा। 

आज से तुम काशी में साक्षात काल भैरव का दंड बनकर मेरे कार्य में मेरी सहायता करोगे। जिस लाट पर ब्रह्माजी का सिर गिरा था तुम उसी लाट पर स्थापित होंगे। तुम्हें आज से लाट भैरव भी कहा जाएगा। तुम्हारी पूजा के बाद ही मेरी पूजा होगी।
 
आज भी कपाल भैरव का ध्यान किए बिना भगवान् काल भैरव की पूजा नहीं की जाती। जिसका जीता-जागता प्रमाण है। काशी और उज्जैन के काल भैरव मंदिर। नीचे दिए गए निम्नलिखित श्लोकों से कपाल भैरव को स्मरण किया जाता है। 
 
वन्दे बालं स्फटिकसदृशं कुम्भलोल्लासिवक्त्रं।
दिव्याकल्पैफणिमणिमयैकिङ्किणीनूपुरञ्च।

दिव्याकारं विशदवदनं सुप्रसन्नं द्विनेत्रं।
हस्ताद्यां वा दधानान्त्रिशिवमनिभयं वक्रदण्डौ कपालम्।
 
काल अर्थात समय। काल भैरव अर्थात समय के भय से लोगों को रक्षा करने वाले। काल भैरव और ब्रह्मदेव के ब्रह्म कपाल से प्रकट होने के कारण बाबा कपाल भैरव त्रिनेत्र धारी और त्रिकालदर्शी देवता है। 

यह अति शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवताओं में से एक देवता हैं। साधकों को अहित किए हुए ये उसके साथ रहते हैं। काल भैरव की पूजा और साधना करने वाले व्यक्ति सदैव सुखी और समृद्ध रहते हैं। 

जैसा की आपको हमने बताया था कि साधना क्षेत्र में कपाल भेदन क्रिया कितनी जरूरी है। लोग इसे जल्दी से जल्दी सिद्ध नहीं कर पाते। 

कारण की उन्हें पता ही नहीं होता की कपाल भेदन क्या होता है और किस देवता की कृपा से वो कपाल भेदन क्रिया संपन्न कर सकते हैं। 

कलयुग में तीन देवता ऐसे हैं जिन्हें मुख्य रूप से जागृत माना गया है जो समस्त कलयुग में मानव कल्याण का वहन करते हैं। 

तीन देवता इस प्रकार है। भगवान् हनुमान, भगवान् भैरव और माता महाकाली। 

जागृत होने के कारण काल भैरव की थोड़ी साधना और उपासना करने पर भी साधकों को फल दे देते हैं। 

कपाल भैरव के आशीर्वाद से आप लोग कपाल भेदन क्रिया को सफलतापूर्वक संपन्न कर सकते हैं।


डिस्क्लेमर
यह कथा काल भैरव की संपूर्ण जीवनी की कथा है। यह कथा धर्म शास्त्रों से लिया गया है। साथ ही विद्वान ब्राह्मणों और आचार्यों से विचार विमर्श कर लिखा गया है। इंटरनेट से भी सहयोग लिया गया है। कथा लिखने का मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म का प्रचार प्रसार करना और अपने धर्म के प्रति सनातनियों को जागरूक करना मुख्य उद्देश्य है।

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