वर्ष 2024 को पड़ने वाला मकर संक्रांति इस बार 14 जनवरी की जगह 15 जनवरी को मनाया जाएगा। कारण 14 जनवरी देर रात 02:54 बजे पर सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेंगे। सूर्य मकर राशि में प्रवेश करने के बाद ही मकर संक्रांति मनाया जाता है।
भारत एक कृषि प्रधान देश है। मकर संक्रांति का पर्व कृषि पर आधारित है। नए धान और नए गुड़ के उपज होने के बाद मकर संक्रांति मनाया जाता है। मकर संक्रांति के दिन नया चूड़ा और नया गुड़ खाने का विधान है।
भगवान विष्णु ने मकर संक्रांति के मौके पर असुरों का वध किया था।
मकर सक्रांति के दिन यशोदा मां ने भगवान श्रीकृष्ण की प्राप्ति के लिए व्रत रखी थी।
मकर संक्रांति दिन करें इन देवताओं का पूजन
मकर संक्रांति के दिन ही पृथ्वी पर अवतरित हुई थी गंगा। इसलिए गंगासागर और प्रयागराज में लगता है मकर संक्रांति पर मेला
तिल खाने के औषधीय गुण
मकर संक्रांति के संबंध में पौराणिक कथा
भगवान भास्कर को खिचड़ी का भोग लगाना शुभ
मकर संक्रांति के दिन सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा पूरा करती है
भगवान विष्णु के शरीर से तिल की उत्पत्ति हुई है।
पितरों को करें तिल से तर्पण, मिलेगी मुक्ति
मकर संक्रांति पूजा कैसे करें, जानें विधि
मकर सक्रांति के दिन किस चीजों का करें दान
मकर सक्रांति के दिन चंद्रमा कुंभ राशि में और सूर्य मकर राशि में गोचर करेंगे
पूजा और तर्पण करने का शुभ मुहूर्त
भूलकर भी ना करें इस समय पूजा
और कुछ ज्यादा जानें मकर सक्रांति के बारे में
पौष मास में भगवान सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं। एक वर्ष में सूर्य 12 राशियों प्रवेश करते हैं
सूर्य को मकर राशि में प्रवेश करने के बाद दिन बड़ा और रात छोटा होने लगता है
उसी प्रकार सूर्य जब कर्क राशि में प्रवेश करते हैं, तो रात बड़ा और दिन छोटा होने लगते हैं
पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार मकर सक्रांति के दिन भगवान सूर्य देव अपने पुत्र शनि देव से मिलने उनके घर जाते हैं। कहा जाता है कि पिता सूर्य देव अपने पुत्र शनि देव से नाराज चल रहे थे। नाराजगी दूर करने के लिए भगवान सूर्य देव अपने पुत्र शनिदेव के घर गए थे।
पौराणिक कथा के अनुसार अगर पिता पुत्र के बीच में किसी प्रकार की नाराजगी हो और अगर पिता अपने बेटे के घर मकर सक्रांति के दिन पहुंच जाएं तो पुत्र का सौभाग्य जाग जाता है। कई जगहों पर इस त्यौहार को नए फसल और नई ऋतु के आगमन के तौर पर मनाया जाता है।
मकर संक्रांति के देवता शनि देव है। शनि देव को मकर और कुंभ राशि के स्वामी माना जाता है।
वर्ष 2024 में 15 जनवरी को मकर संक्रांति त्योहार मनाया जाएगा। इसके अलावा मकर संक्रांति कथा के विषय में महाभारत में भी वर्णन मिलता है। इसी दिन भीष्म पितामह ने प्राण त्यागे थे।
मकर संक्रांति के दिन पितरों के उद्धार के लिए तिल से तर्पण करना शुभ माना जाता है, क्योंकि महाराजा भागीरथ ने भी अपने पितरों के उद्धार के लिए इसी दिन तर्पण किए थे।
मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य को खिचड़ी का भोग लगाने चाहिए। पौराणिक परंपरा के अनुसार मकर संक्रांति के दिन तिल से बने तिलकुट, चूड़ा, गुड़ और खिचड़ी खाने चाहिए।
बहुत जगहों पर पतंग उड़ाने की परंपरा है। भविष्य पुराण के अनुसार इस दिन प्रयाग और गंगासगर में स्नान करने का विशेष महत्व है।
जब सूर्य देव दक्षिणायन की ओर रहते हैं, तो उस समय को अशुभ माना जाता है। दक्षिण दिशा को यम का वास या यम के द्वार कहा जाता है। मृत आत्मा जैसे ही नरक के द्वार पहुंचते हैं, उसी समय यमदूत लेने आ जाते हैं। दूसरी ओर उत्तर दिशा को, स्वर्ग का द्वार कहा जाता है। जहां, मृतक आत्मा को लेने स्वयं देवदूत आते हैं।
वर्ष को दो भागों में बांटा गया है, उत्तरायण और दक्षिणायन। मकर संक्रांति के दिन सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा को पूरा कर लेते हैं और उत्तर की ओर अग्रसर हो जाते हैं। इसलिए इस दिन से सूर्य उत्तर दिशा की ओर गतिमान हो जाते हैं।
दक्षिणायन दिशा को दानव, दुष्ट और दुराचारियों का दिशा कहा जाता है जबकि उत्तरायण दिशा को देवताओं का दिशा माना गया है। इसी दिशा में स्वर्ग लोक स्थित है।
मकर संक्रांति के संबंध में पौराणिक कथा
संक्रांति कथा के विषय में महाभारत में भी वर्णन मिलता है। महाभारत में वर्णित कथा के अनुसार महाभारत युद्ध के महान योद्धा और कौरव सेना के सेना नायक गंगापुत्र भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। संक्रांति की महत्ता को जानते हुए उन्होंने अपनी मृत्यु के लिए इसी दिन को चुनें थे।
भीष्म पितामह जानते थे कि सूर्य दक्षिणायन दिशा होने पर मृत आत्मा को मोक्ष प्राप्त नहीं होता है और उसे मृत्युलोक में फिर जन्म लेना पड़ता है। महाभारत युद्ध के एक महीने बाद जब सूर्य उत्तरायण दिशा में हुए तभी भीष्म पितामह ने अपना प्राण त्यागे थे, वह दिन मकर संक्रांति था।
मकर संक्रांति के दिन ही अवतरित हुई थी गंगा
धार्मिक मान्यता के अनुसार मकर संक्रांति के दिन ही मां गंगा स्वर्ग से अवतरित होकर राजा भागीरथ के पीछे पीछे कपिल मुनि के आश्रम होते हुए गंगासागर तक पहुंची थी।
मां गंगा के पवित्र जल से राजा भागीरथ ने अपने पितरों को तर्पण कर मोक्ष की प्राप्ति करा स्वर्ग लोक भेजने का काम किए थे। इसलिए मकर संक्रांति के दिन गंगा सागर, काशी विश्वनाथ मंदिर स्थित गंगा नदी और प्रयागराज में स्नान करना काफी शुभ माना जाता है।
भविष्य पुराण में गंगासागर और प्रयागराज में मकर संक्रांति पर्व के मौके पर गंगा स्नान करने का उल्लेख मिलता है।
मकर संक्रांति के दिन भगवान विष्णु ने असुरों का वध किया था
मकर सक्रांति के दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत कर युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी। श्रीहरि ने सभी असुरों के सिरों को मंदार पर्वत में दबा दिए थे। इस प्रकार मकर संक्रांति के दिन बुराइयों और नकारात्मकता को खत्म करने का समय भी माना जाता है।
मकर सक्रांति पर माता यशोदा मैया ने रखी थी व्रत श्रीकृष्ण की प्राप्ति के लिए। उस समय भगवान सूर्य उत्तरायण दिशा में पदार्पण कर रहे थे और उस दिन मकर संक्रांति थी।
उसी दिन से मकर सक्रांति व्रत का प्रचलन शुरू हुआ था। कहा जाता है कि तिल की उत्पत्ति भगवान विष्णु के शरीर से हुई थी। इसलिए इसका प्रयोग करने से सभी तरह के पापों से मुक्ति मिलती है। तिल खाने से शरीर निरोग रहता है और शरीर में गर्मी आती है।
पितरों को करें तिल-जल मिश्रण से तर्पण, मिलेगी मुक्ति
मकर संक्रांति के दिन पितरों को तिल से तर्पण करना काफी शुभ माना जाता है। इसी दिन महाराजा भागीरथ में अपने पितरों के लिए तर्पण किया था। तर्पण विधि पूर्वक करनी चाहिए।
क्योंकि भगवान सूर्य सूर्योदय के समय धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। यही कारण है कि सूर्योदय के समय ही पितरों को तर्पण करनी चाहिए। इसी दिन भगवान सूर्य को खिचड़ी का भोग लगाना भी लाभप्रद होता है।
विभिन्न प्रदेश में किस नाम से जाना जाता है मकर संक्रांति
भारत के विभिन्न राज्यों में मकर संक्रांति पर्व अलग-अलग प्रकार से मनाये जाते हैं। केरल, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में संक्रांति कहा जाता है।
तमिलनाडु में इसे पोंगल के रूप में लोग मनाते है। पंजाब और हरियाणा में लोहरी, असम में बिहू। मध्य भारत सहित बिहार और यूपी में मकर संक्रांति के नाम से प्रचलित है।
मकर संक्रांति के दिन इन देवताओं का करें पूजन
मकर संक्रांति के दिन भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु, भगवान शिव, भगवान गणेश, आदि शक्ति माता, सूर्य देव और शनि देव की आराधना करने का दिन माना गया है। मकर संक्रांति के दिन अपने पितरों का तर्पण करने से, पुरखों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
तिल खाने के औषधीय गुण
मकर सक्रांति के दिन तिल खाने, लगाने और स्नान करने का धार्मिक, अध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व है। जानें तिल में और कौन-कौन से औषधीय गुण है। तिल में कई तरह के पोषक तत्व जैसे कॉपर, प्रोटीन, जिंक, फाइबर, कैल्शियम, काम्प्लेक्स बी, कार्बोहाइड्रेट और मैग्नीशियम आदि प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।
तिल में मोनो सैचुरेटेड फैटी एसिड होता है। यह शरीर में बुरे केलेस्ट्रॉल को कम करके अच्छा केलेस्ट्रॉल को बनाने में मदद करता है। यह ह्रदय रोग, दिल का दौरा और अथेरोक्लेरोसिस की संभावना को कम करता है।
आयुर्वेद में तिल मधुमेह, कफ, पीत कारक, निम्न रक्तचाप में लाभ, स्तनों में दूध उत्पन्न करने वाला, गठिया, मल रोधक और वात नाशक माना जाता है। तिल की तासीर गर्म होता है। इसका सेवन सर्दियों में करने से शरीर में ऊर्जा बनी रहती है।
गुड़ सेहत के लिए है लाभदायक
गुड़ का तासीर गर्म है। गुड़ में लवण, मैग्नेशियम, आयरन, विटामिन ए, बी, लौह तत्व, पोटेशियम, गंधक, फासफोरस और कैल्शियम प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। गुड़ खाने से मनुष्य का शरीर स्वस्थ रहता है।
चूड़ा में पाये जाते हैं कार्बोहाइड्रेट
मकर संक्रांति के दिन तिलकुट और गुड़ के साथ चूड़ा का भी भोजन किया जाता है। चूड़ा में आयरन, फास्फोरस, फाइबर, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन बी, मैंगनीज, फैटी एसिड जैसे महत्वपूर्ण तत्व पाए जाते हैं। चूड़ा खाने से पित्त को शांति मिलती है, यह शरीर को बल प्रदान करता है।
दही के औषधीय गुण
आयुर्वेद में दही को चिकनाई युक्त, कफ और पाचन शक्ति बढ़ाने वाला पदार्थ माना जाता है। दही को सर्वश्रेष्ठ और पौष्टिक आहार माना गया है। छोटे बच्चों से लेकर बड़ों तक सबके लिए दही का सेवन फायदेमंद है। दही में भरपूर मात्रा में कैल्शियम, विटामिन और प्रोटीन पाए जाते हैं।
चरक संहिता, सूत्र स्थान 27 में दही की उपयोगिता बताई गई है। इससे दही कैसे स्वादिष्ट एवं पौष्टिक है यह पता चलता है।
स्वाद, पाचन शक्ति, यौन शक्ति, और स्नेह शक्ति तैयार करने वाला दही ताकत और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाने वाला होता है।
दही स्तंभक, स्वाद युक्त, गर्म, वात और पित्त को संतुलित करने वाला होता है। इसे पवित्र और पोषण बढाने वाला, श्वसन मार्ग को गीला रखने वाला, दस्त को नियंत्रित करने वाला होता है। जुकाम और ज्वर को शांत करने वाला है।
दही भोजन का स्वाद बढाने वाला और मूत्र मार्ग की बाधा कम करने वाला होता है। दुर्बलता कम करने वाला, पतझड़, गर्मी और वसंत ऋतू में अयोग्य पूर्ति, पित्त और कफ में काम आने वाला दही स्वादिष्ट, चिकना, बलवर्धक, गर्म और पौष्टिक आहार है।
खिचड़ी में औषधीय गुण
खिचड़ी भी औषधि गुना से भरपूर होता है। खिचड़ी में न्यूट्रिशन्स पाया जाता है।खिचड़ी खाने से इनडाइजेशन से बचाव और वेट लॉस में हेल्पफुल होती है। साथ ही डायबिटीज से बचाव में मदद करती है। खिचड़ी कफ, वात और पित्त से बचाव करता है। खिचड़ी में आयरन, प्रोटीन, पोटेशियम, कैल्शियम और फैट अच्छी मात्रा में पाए जाते हैं। अगर आप अपने वजन को घटाना चाहते हैं, तो इसे अपने भोजन में शामिल कर सकते हैं।
खिचड़ी में चावल, दाल, घी और चोखा का संयोजन आपको कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फाइबर, कैल्शियम, फास्फोरस, विटामिन सी, मैग्नीशियम और पोटेशियम प्रदान करता है। जो हमारे इम्यूनिटी पावर बढ़ाने में मदद करते हैं। खिचड़ी आपको बीमार होने से भी बचाता है।
मकर संक्रांति के दिन कैसे करें पूजा, जानें संपूर्ण विधि
मकर संक्रांति के दिन अहले सुबह स्नान करने विधान है। इस दिन नदी, सरोवर, कुआं या घर में गंगाजल और तिल डालकर स्नान करने चाहिए।
इसके बाद पितरों को तिल मिले जल से तर्पण देना चाहिए। भगवान ब्रह्मा, विष्णु, शिव, आदिशक्ति माता, शनि देव, और भगवान सूर्य को विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए।
सुहागन महिलाएं एक थाली में गुड़, तिल से बने लड्डू या तिलकुट, चूड़ा, दही और अपने सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा रख लें।
थाली को रोली और चावल से सजा दें। इसके बाद उस थाली को अपने सास को दें यदि आपकी अपनी सास नहीं है तो ननंद, जेठानी, या किसी भी ब्राह्मण स्त्री को भी दे सकते हैं।
मकर संक्रांति पूजा में लगने वाले सामग्रियों की सूची
अगरबत्ती, पान का पत्ता, नारियल, सिक्के, फूल का माला, चावल, रोली, गंगाजल, फूलों का माला, कपूर, इत्र, सूर्य भगवान की तस्वीर, गुड़, तिल, चूड़ा, तिल का तेल, घी, दीया, मौली, चंदन और आम की लकड़ी प्रमुख हैं।
किस चीज का करें दान मकर सक्रांति के दिन
मकर संक्रांति के दिन गर्म वस्त्र, तिल से बने मिठाईयां, खिचड़ी के साथ पैसा आदि दान करने से शनि से त्रस्त लोगों को कष्टों से मुक्ति मिलती है। गरीब, असहाय, निर्धन, विकलांग और मजदूर वर्ग के, ये सभी लोग शनि के प्रतिनिधि माने जाते हैं।
इसलिए इस दिन बड़े बुजुर्गों के चरण स्पर्श करके उनका आशीर्वाद लेना चाहिए और उन्हें तिल से बनी मिठाइयों और गर्म वस्त्र उपहार स्वरूप देना चाहिए। ऐसा करने से सूर्य देव प्रसन्न होते हैं।
मकर सक्रांति के दिन चंद्रमा और सूर्य किस राशि में रहेंगे, जानें पंचांग के अनुसार
पौष मास, शुक्ल पक्ष, पंचमी तिथि, सोमवार दिन, 15 जनवरी को मकर संक्रांति पड़ रही है। इस दिन सूर्य मकर राशि में और चंद्रमा कुंभ राशि में रहेंगे। इस दिन नक्षत्र शतभिषा, योग वरीयान, ऋतु शिशिर और सूर्योदय सुबह 07:15 पर होगा।
पूजा और तर्पण करने का शुभ मुहूर्त
मकर संक्रांति के दिन सुबह 07:15 बजे से लेकर 08:34 बजे तक अमृत मुहूर्त, सुबह 09:53 बजे से लेकर 11:12 बजे तक शुभ मुहूर्त, 01:49 बजे से लेकर 03:08 बजे तक चार और मुहूर्त विजय मुहूर्त 02:16 बजे से लेकर 02:58 बजे तक रहेगा। इस दौरान पूजा और तर्पण लोग कर सकते हैं। इसके अलावा अभिजीत मुहूर्त 12:09 बजे से लेकर 12:51 बजे तक रहेगा।
भूलकर भी ना करें इस समय पूजा
मकर संक्रांति के दिन कुछ समय ऐसा भी है जब पूजा-अर्चना, दान और तर्पण करना वर्जित है। सुबह 08:34 बजे से लेकर 09:53 बजे तक राहु काल का संयोग बन रहा है। उसी प्रकार सुबह 12: 31 बजे से लेकर कि 01:49 बजे तक यमगंड काल रहेगा। दोपहर 01:49 बजे से लेकर 03:08 बजे तक गुलिक काल और दिन के 12:51 बजे से लेकर 01:33 बजे तक दूमुहूर्त कल रहेगा। इस दौरान पूजा अर्चना, दान और तर्पण करना वर्जित है।
अपने राशियों के अनुसार लोग इन सामग्रियों का करें दान
मेष :काले कंबल का दान करना लाभप्रद रहेगा।
वृषभ :श्वेत वस्त्रों का दान संकटों से रक्षा करेगा।
मिथुन : हरे रंग और लाल रंगों का कंबल दान करें।
कर्क :रंग-बिरंगे नए वस्त्र दान करें।
सिंह : अशुभ प्रभाव कम करने के लिए लाल, काला और सफेद रंग का कंबल दान करें।
कन्या : लाल, गुलाबी और हरे रंग के वस्त्र या हरे फल दान करें।
तुला :श्वेत अनाज का दान करें।
वृश्चिक : तिल, चूड़ा, खिचड़ी और फलों का दान करें।
धनु : फलों, तिलकुट और चूड़ा का दान करना लाभप्रद रहेगा।
मकर : काले तिल, काले कंबल और काले वस्त्र का दान करें।
कुंभ :गायों को हरा चारा खिलाएं। तिल दान करें।
मीन : मूंग से बने दाल, तिल और चावल की खिचड़ी दान करें।
डिस्क्लेमर
मकर सक्रांति के संबंध में लिखा गया यह लेख काफी ज्ञानवर्धक और स्वास्थ्यवर्धक है। ज्योतिषाचार्य, प्रवचन कर्ता और विद्वान आचार्यों से मिलकर और संवाद कर लिखा गया है। पौराणिक कथाओं वेद, पुराण और महाभारत से लिया गया है। पूजा करने का शुभ और अशुभ मुहूर्त पंचांग से लिया गया है। यह लेख आपको अपने पर्व की महत्ता को समझाने और सनातनी परंपराओं का पहचान बनाएं रखने के लिए लिखा गया है।