हिंदुस्तान के अलावा जापान, थाईलैंड और मलेशिया में मनाई जाती है दीपावली जानें विस्तार से

हिन्दुस्तान के अलावा जापान थाइलैंड और मलेशिया में कैसे मनाएं जाते हैं दीपावली। इसे भी पढ़ें विस्तार से
क्या आप जानते हैं दीपावली के दिन 10 ऐतिहासिक और धार्मिक घटनाएं घटी थी। जो हमारे जेहन में तो हैं, परंतु याद नहीं रहता है। आइए इस दीपावली के मौके पर हम आपको इन घटनाओं के बारे में विस्तार से जानकारी दे रहे हैं।

दीपावली से जुड़ी 10 प्रमुख ऐतिहासिक घटनाएं

सनातनी लोग दीपोत्सव अर्थात दीपावली मनाने का प्रमुख कारण भगवान श्रीराम के 14 वर्षों का वनवास समाप्त कर अयोध्या लौटने की खुशी के रूप में मनाते हैं। दूसरी ओर समुद्र मंथन के दौरान मां लक्ष्मी के प्राकट्य होने के दिवस के रूप में देखते हैं और मानते हैं।

इनके अलावा हमारे शास्त्रों में दीपावली मनाने का त्योहार युगों-युगों की अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं पर आधारित है। अब हम जानेंगे दीपावली से जुड़ी दस पौराणिक और ऐतिहासिक घटनाएं।

1. मां लक्ष्मी की अवतरण - कार्तिक मास, कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को समुद्र मंथन के दौरान मां लक्ष्मी धरती पर अवतरित हुई थीं। दीपावली के पर्व मनाने का सबसे महत्वपूर्ण कारक यही है। इस पर्व के माध्यम मां लक्ष्मी को धरती पर स्वागत करने के रूप में मनाते हैं। हर घर की साफ-सफाई कर दीयों की रोशनी से सजाया संवारा जाता है ताकि मां का आगमन शुभ हो।

2. भगवान विष्णु द्वारा लक्ष्मी जी को बचाना की पौराणिक कथा। वामन अवतार का उल्लेख हमारे शास्त्रों में मिलता है। कथाओं में कहा गया है कि भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि के यज्ञ में पहुंचकर माता लक्ष्मी को मुक्त करवाया था।

3. भगवान राम की लंका विजय के उपरांत अयोध्या लौटने पर दीपावली मनाई गई थी। रामायण के अनुसार भगवान राम, माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष का वनवास पूर्ण और लंका विजय कर अयोध्या लौटे थे। नगरवासियों ने उनके स्वागत में पूरी अयोध्या नगरी को दीपक जलाकर रौशन किया गया था।

4 नरकासुर वध की कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने राक्षस नरकासुर का वध कर 16 हजार एक सौ स्त्रियों को मुक्त कराएं थे। इसी खुशी का इजहार दो दिनों तक दीपावली का त्यौहार मनाकर किया गया था। लोग इसे विजय पर्व के रूप में मनाते हैं।

5 पांडवों की वनवास से वापसी के दिन मनी थी दीपावली। महाभारत महाकाव्य के अनुसार जब कौरव और पांडव के बीच चौसर (जुआ) खेला गया था। पांडव जुआ में हार गए, तो उन्हें 12 वर्षों का वनवास और एक वर्ष का अज्ञात वास दिया गया था। पांचों पांडव अपना 12 साल का वनवास और एक वर्ष का अज्ञात वास समाप्त कर हस्तिनापुर वापस लौटे थे। पांडवों के वापस लौटने पर नगरवासियों ने खुशी में दीप जलाकर उन लोंगो का स्वागत किए थे।

6. उज्जैन के महाराज विक्रमादित्य का राजतिलक का प्रसंग। राजा विक्रमादित्य के राजतिलक दीपावली के दिन हुआ था। कहा जाता है कि उज्जैन के राजा विक्रमादित्य का राजतिलक को नगरवासियों ने दोगुने उत्साव से मनाया था। एक नया राजा का मिलना और दूसरा दीपावली का त्यौहार।

7. आर्य समाज की स्थापना दीपावली के दिन हुए थे। स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना दीपावली के दिन किए थे। इस लिए भी दीपावली का त्योहार आर्य समाजियों के लिए विशेष महत्व और स्थान रखता है।

8. जैन धर्म के लोग दीपावली को मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं। दीपावली के दिन जैन संप्रदाय के लोगों के लिए भी खास महत्व रखता है।
जैन धर्मावलंबी इस पर्व को भगवान महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं। कहा जाता है कि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि के दिन ही भगवान महावीर को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी।
इसलिए जैनियों के लिए दीपावली के दिन खास महत्व रखता है। जैन समुदाय अपने नए साल का पहला दिन दीपावली के दूसरे दिन को मनाते हैं।

9. सिख धर्म में दीपावली का विशेष महत्व है। दीपावली के दिन सिख धर्मावलंबियो के लिए बहुत ज्यादा महत्व रखता है। इस दिन को सिख धर्म के तीसरे गुरु अमरदास जी ने दीपावली के दिन को लाल पत्र दिवस के रूप में मनाया था।
दीपावली के दिन सभी सिख श्रद्धालु अपने गुरु से आशीर्वाद लेने जाते हैं। इसके अलावा सन् 1577 दीपावली के दिन अमृतसर के स्वर्ण मंदिर अर्थात हरिमंदिर साहिब का शिलान्यास किया गया था।

10. सिखों के गुरु हरगोबिन्दजी कारागार से मुक्त हुए थे। सन् 1619 में सिखों के गुरु हरगोबिन्द जी को ग्वालियर के किले से 52 राजाओं के साथ उन्हें भी बंदी घर से मुक्त किया गया था।
यह घटना प्रमुख ऐतिहासिक घटनाओं में एक है। इसलिए इस पर्व को सिख समाज के लोग बंदी छोड़ दिवस के रूप में भी मनाते आ रहे हैं। मुगल बादशाह जहांगीर ने 52 राजाओं के साथ गुरु हरगोबिंद सिंह जी को भी नजरबंंद किया हुआ था।

अब जानें विदेशों में कैसे मनाया जाता है दीपावली
मलेशिया के लोग, दीपावली को हरि दीपावली के रूप में मनाते हैं। मलेशिया में दीपावली मनाने का तरीका हिन्दुस्तान से थोड़ा अलग है। मलेशिया के लोग दीपावली के दिन की शुरुआत अपने शरीर पर तेल मालिश कर करते हैं। इसके बाद मंदिर में जाकर पूजा-अर्चना करते हैं। मलेशिया में पटाखे जलाने की इजाजत नहीं हैं, इसलिए यहां के लोग एक दूसरे को उपहार में मिठाई और शुभकामनाएं देकर दीपावली का त्योहरा मनाते हैं।

थाईलैंड में दीपावली की रात को केले के पत्तों से बने दीएं जलाकर मनाया जाता है। यहां पटाखे नहीं फोड़ा जाता है। यहां के लोग दीपावली को ‘लोय क्रथांघ’ पर्व कहते हैं।
इस दिन थाईलैंड वासी केले के पत्ते से बने लैंप को नदी में प्रवाहित करते हैं। लोग यह कार्य भगवान गौतम बुद्ध और जल देवता के सम्मान में करते हैं।

सरसों के तेल से जलाए गए इस लैंप से वातावरण शुद्ध होता है 
इस दिन यहां नाव परेड भी होती है। बैंकॉक की चाओ फ्राया नदी के घाट पर इस पर्व की रौनक देखने लायक होती है। 

इसमें कागज की लालटेनों के अंदर बांस के स्टैंड में मोमबत्ती रखी जाती है। हॉट एयर बैलून जैसी इन लालटेनों को आसमान में उड़ाया जाता है। जब ये झिलमिलाती हैं तो ऐसा लगता है मानों आसमान रंग बिरंगे बल्बों अटा पड़ा है।

जापान में दीपावली की रात टहनियों पर झूलती लालटेनेंं। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि जापान में लोग दीपावली के अवसर पर अपने घरों को नहीं, बल्कि बगीचे सजाते हैं। वे कागज से बनी सुंदर-सुंदर लालटेनों को अलग-अगल तरीकों से पेड़ों पर लटका देते हैं। फलदार पेड़ों की डालियों से लटकती हुई असंख्य लालटेनें पूरे बगीचे को रोशन कर देती हैं। लोग रात भर म्यूजिक और डांस में मग्न रहते हैं। 

वहां इस मौके पर नए कपड़े पहनने और नाव की सवारी करने का भी प्रचलन है। इतना ही नहीं, यहां मंदिरों को खूबसूरत वॉलपेपर्स से सजाने की परंपरा भी है। बच्चे कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेते हैं। जापान स्थित योकोहामा के यमाशिता पार्क में हर साल मनाई जाने वाली दिवाली देखने लायक होती है।

डिस्क्लेमर
यह लेख इतिहास के पन्नों में दर्ज घटनाओं से लिया गया है। ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित इस लेख में हर सामग्री की सत्यता जांच कर लिखा गया है। यह आपकी जानकारी के लिए बहुत ही जरूरी है। इसे आप स्वयं पढ़ें और दूसरों को पढ़ने के लिए प्रेरित करें।

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