गोधन कूटने, चित्रगुप्त पूजा, भाई फोटा व भाई के हाथों में रक्षा सूत्र बांधे अमृत मुहूर्त में

पांच दिवसीय दीपोत्सव महोत्सव के क्रमानुसार आज अंतिम महोत्सव भैया दूज अर्थात यम द्वितीया, भाई फोटा और चित्रगुप्त पूजा है। 

दीपोत्सव का प्रथम महोत्सव धनतेरस से शुरू होकर नरका चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा और आज अंतिम भैया दूज है। पांचों महोत्सव का ऐतिहासिक महत्व है।
भैया दूज या गोधन, भाई फोटा, चित्रगुप्त पूजा और यम द्वितीया 15 नवंबर दिन बुधवार को मनाया जाएगा‌। 

कार्तिक माह, शुक्ल पक्ष, द्वितीय तिथि, ज्येष्ठा नक्षत्र में पड़ने वाले इस पर्व में चंद्रमा वृश्चिक राशि में और सूर्य तुला राशि में रहेंगे। 

यमुना के भाई यमराज के 14 नाम इस प्रकार है। यम,औदुभ्बर, धर्मराज, मृत्यु, वृकोदर, अन्तक, वैवस्वत, काल, चित्र, परमेष्ठी, सर्वभूतक्षय, दघ्न, नील और चित्रगुप्त।  

इन 14 नामों से यमराज की तर्पण और आराधना की जाती है। भगवान ब्रह्मा के पुत्र दक्ष प्रजापति की 84 कन्याओं हुई। जिसमें से 23 कन्याओं का विवाह यमराज हुआ था। 

भाई फोटा, चित्रगुप्त पूजा, गोधन कूटने व भाई के हाथों में रक्षा सूत्र बांधने का शुभ मुहूर्त

गोधन कूटने, चित्रगुप्त पूजा, भाई फोटा और भाई के हाथों में रक्षा सूत्र बांधने का शुभ मुहूर्त बुधवार को सुबह 06:43 बजे से लेकर 08:04 बजे तक लाभ मुहूर्त के रूप में रहेगा। 

इसके बाद 08:04 बजे से लेकर 09:24 बजे तक अमृत मुहूर्त रहेगा। इस बार अभिजीत मुहूर्त का संयोग नहीं रहेगा। दोपहर को दो मुहूर्त है। 

एक शुभ मुहूर्त और दूसरा विजय मुहूर्त है। शुभ मुहूर्त दिन के 10:45 बजे से लेकर 12:05 बजे तक और विजय मुहूर्त 01:53 बजे से लेकर 02:36 बजे तक रहेगा। 

यह समय काफी अच्छा और शुभ है। इस दौरान आप शुभ कार्य और पूजा पाठ कर सकते हैं।

पंचांग के अनुसार आज का दिन कैसा रहेगा

15 नवंबर 2023, दिन बुधवार, कार्तिक मास, शुक्ल पक्ष, द्वितीय तिथि दिन के 01 बजकर 47 मिनट तक रहेगा। 

ऋतू हेमंत, अयन दक्षिणायन, नक्षत्र ज्येष्ठा और योग अतिगण्ड है। सूर्योदय 06:43 बजे पर और सूर्यास्त 5:00 बज के 28 मिनट पर होगा। 

चंद्रोदय सुबह 08:36 बजे पर और चंद्रास्त शाम 06:51 बजे होगा।
दिनमान 10 घंटा 44 मिनट का और रात्रिमान 13 घंटा 16 मिनट का होगा।
आनंदादि योग ध्वांक्ष है। 

होमाहुति सूर्य, दिशा शूल उत्तर, राहुवास दक्षिण-पश्चिम, अग्निवास पृथ्वी और चंद्र वास उत्तर दिशा में रहेगा।

जानें क्यों मनाते हैं भैया दूज
भैया दूज के दिन बहनें अपने भाइयों को दीर्घायु की कामना कर व्रत रखती है। साथ ही यह त्योहार भाई बहन के स्नेह को और ज्यादा सुदृढ़ बनाने का काम करता है। 

बहनों का पर्व भैया दूज दीपावली के दो दिन बाद मनाया जाता है। आज ही के दिन कायस्थ समाज के लोग भगवान चित्रगुप्त की पूजा करते हैं।

हिन्दू (सनातन) धर्म में भाई-बहन की प्रेम और विश्वास के प्रतीक दो पर्व मनाए जाते हैं। पहला पर्व रक्षाबंधन जो श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को मनाएं जाते हैं। 

रक्षा बंधन के अवसर पर भाई बहन की रक्षा करने की शपथ लेते हैं जबकि दूसरा पर्व भाई दूज आता है। जिसमें बहनें अपने भाइयों की दीर्घायु की कामना करती हैं।

भैया दूज को भ्रातृ द्वितीया, भाई फोटा, यम द्वितीया और गोधन भी कहा जाता हैं। इस त्योहार का प्रमुख कारक भाई और बहन के मधुर संबंध व प्रेमभाव को प्रगाढ़ बनाना है।

इस दिन बहनें गोबर से बने यम और यमी की पूजा भी करती है। बहनें भाइयों के स्वस्थ्य तथा दीर्घायु होने की मंगल कामना करके व्रत भी रखतीं हैं।

इस दिन बहनें भाइयों के शरीर में तेल की मालिश कर यमुना में स्नान कराती हैं। बहनें अपने हाथों से भाइयों को खिलाने पर भाई दीर्घायु होते हैं और जीवन भर कष्टों से मुक्त रहते हैं। 

इस दिन बहनों को चाहिए कि भाई को चावल सहित विभिन्न तरह के पकवान खिलाएं। इस दिन बहन के घर भोजन करने का धार्मिक महत्व है।

गोबर से बने याम-यमी को बहनें क्यों कुटती हैं

भैया दूज के दिन गोधन कूटने की पौराणिक प्रथा और परंपरा है। गाय के गोबर से यम और यमी की प्रतिमा जमीन (भूमि) पर बना कर उसके छाती पर सुपारी, ईंट, पत्थर, रेगनी के कांटा रखकर बहनें उसे मूसलों से कुटती है और तोड़ती भी हैं।

मुसल से कुटते समय बहनें पारंपारिक गीत गाते हुए अपने भाई की दीर्घायु और मंगल कामना करती हैं। अंत में बहनें रेगनी के कांटे से अपने जिव्हा में छुभाती है और प्रायश्चित करती है। इस दिन यमराज और बहन यमुना की पूजा करने का विधान है।

भैया दूज की धार्मिक और पौराणिक कथा

भगवान सूर्य की पत्नी का नाम छाया था। छाया के पुत्र यमराज और पुत्री यमुना थी। यमुना यमराज की अपनी सगी बहन थी। इसलिए यमराज की बहन होने के कारण उसका एक नाम यमी भी है। यमी अपने भाई यमराज से बहुत ही ज्यादा लाड़-प्यार और स्नेह करती थी। यमी अपने भाई यमराज से हरदम विनती करती रहती थी कि भाई यमराज उसके घर आए और भोजन करें।

अपने कार्य में व्यस्त रहने के कारण यमराज बहन की बात टालते रहते थे। कार्तिक माह शुक्ला पक्ष द्वितीया तिथि के दिन यमुना ने एक बार फिर से यमराज को अपने घर भोजन के लिए आमंत्रित कर, उन्हें अपने घर आने के लिए विवश कर दिया।

यमराज बहन यमुना को दिए वचन में बंधकर बहन से मिलने उसके घर पहुंच गए। भाई यमराज को अपनेे घर आएं हुए देखकर बहन यमुना खुश के मारे झुम उठी। यमुना को खुशी का ठिकाना ना रहा।

सबसे पहले यमुना ने भाई केे साथ यमुना नदी में स्नान कर भाई को टीका लगा आशीर्वाद लिया। इसके बाद घर ले जाकर विभिन्न तरह के व्यंजन परोसकर भोजन करायी। बहन यमुना के सत्कार को देखकर यमराज काफी प्रसन्न हुए। बहन से वर मांगने को कहा।

यमुना ने कहा कि भाई आप इसी तरह प्रत्येक वर्ष इसी दिन मेरे घर आया करो। मेरी तरह जो बहनें इस दिन अपने भाई को अपने घर में भोजन करा माथे पर टीका लगाएं उसे तुम्हारा भय न रहे। ऐसा आशीर्वाद दो। यमराज ने वचन दिया और अपनी बहन यमुना को उपहार देकर यमलोक चल गए।

डिस्क्लेमर
गोधन कूटने, चित्रगुप्त पूजा, भाई फोटा व भाई के हाथों में रक्षा सूत्र बांधने का महापर्व है भाई दूज। कथा लिखने के पहले धार्मिक पुस्तकों, इंटरनेट और विद्वान ब्राह्मणों से विचार विमर्श कर लिखा गया है। लेख लिखने का मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म का प्रचार प्रसार करना और सनातनियों को अपने पर्व के प्रति जागरूक करना मुख्य उद्देश्य है।

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