दीपोत्सव का महापर्व दीपावली 12 नवंबर 2023, दिन रविवार को कार्तिक माह, कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि को है।
कार्तिक मास, कृष्ण पक्ष, अमावस्या तिथि को दीपावली के साथ महालक्ष्मी पूजा, शारदा पूजा, केदार गौरी व्रत, कुबेर पूजा, कमला जयंती, चोपड़ा पूजा, रूप चौदश पूजा और मां काली की पूजा करने की परंपरा है।
दीपावली के दिन सूर्य तुला राशि में और चंद्रमा तुला राशि में होंगे।
तुला राशि भगवान श्रीराम और रावन दोनों का राशि है। दीपावली भगवान श्रीराम का लंका विजय के बाद अयोध्या लौटने की खुशी में अयोध्या वासियों ने घी का दीप जलाकर श्रीराम प्रभु, भाई माता सीता, भाई लक्ष्मण, भक्त हनुमान सहित सभी सैनिकों का स्वागत किए थे।
जानें पंचांग के अनुसार कैसा रहेगा दिन
दीपावली के दिन अमावस्या तिथि शाम 02:44 बजे से शुरू होगी। स्वाति नक्षत्र रहेगा।
प्रथम करण शकुनि है, जो शाम 02:44 बजे तक रहेगा। इसके बाद चतुष्पद हों जायेगा। योग दिन के 02:33 बजे तक आयुष्मान है। इसके बाद सौभाग्य हो जाएगा।
सूर्योदय सुबह 06:41 बजे पर और सूर्यास्त शाम 05:29 बजे पर होगा। ऋतू हेमंत है। दिनमान 10 घंटा 48 मिनट का और रात्रिमान 13 घंटे 12 मिनट का रहेगा।
आनन्दादि योग लुम्बक है। दिशा शूल पश्चिम, राहु काल वास उत्तर, अग्निवास पृथ्वी और चंद्रवास पश्चिम दिशा में रहेगा।
कब करें काली पूजा जानें पंचांग से
मध्य रात्रि में होती है मां काली की पूजा। इस वर्ष मध्य रात्रि में रोग और काल मुहूर्त के आने से थोड़ी देर के लिए बाधा है।
काली पूजा करने का शुभ मुहूर्त 11:39 बजे से शुरू होकर सुबह 03:24 बजे तक निशिता और लाभ मुहूर्त रहेगा। इस बीच 12:05 बजे से लेकर 01:44 बजे तक काल मुहूर्त रहेगा, जो एक ख़राब मुहूर्त है। इस दौरान पूजा अर्चना करना ठीक नहीं होगा।
दीपावली की रात कब करें महालक्ष्मी पूजा
दीपावली के दिन शाम से लेकर देर रात तक तीन शुभ मुहूर्त बन रहे हैं। जिस समय आप दीपदन और महालक्ष्मी की पूजा कर सकते हैं।
शाम 05:29 बजे से लेकर 07:08 बजे तक शुभ मुहूर्त, शाम 07:08 बजे से लेकर 08:47 बजे तक अमृत मुहूर्त है और रात 08:47 बजे से लेकर 10:26 बजे तक चर मुहूर्त के रहेगा। इस दौरान आप दीपदान और दीपावली की पूजा कर सकते हैं।
साथ ही महालक्ष्मी की पूजा, तिजोरी पूजा और बही-खाते की पूजा भी कर सकते हैं। यह पूजा काफी फलदाई और शुभ होगा।
इस समय मां महालक्ष्मी की पूजा भूलकर भी ना करें
दीपावली के दिन सभी धार्मिक कार्यक्रम शाम से लेकर देर रात तक होती है। इस दौरान शुभ और अशुभ मुहूर्त देखना जरूरी रहता है। रात 10:26 बजे से लेकर 12:05 बजे तक रोग मुहूर्त है और 12:05 बजे से लेकर रात 01:44 बजे तक काल मुहूर्त है। इस दौरान पूजा अर्चना करने से लोगों को बचना चाहिए।
दीपावली पर तीन पौराणिक कथा है प्रचलित
दीपावली के संबंध में दो पौराणिक कथा प्रचलित है। त्रेता युग में भगवान श्री राम का लंका विजय प्राप्त कर अयोध्या लौटने पर नगर वासियों ने घी का दीप प्रज्ज्वलित कर खूशी का इजहार किया था। द्वापर युग में महाबली और वामन अवतार का प्रसंग मिलता है।
बात महाभारत काल की है।
एक समय की बात है धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान् श्रीहरि श्रीकृष्ण से पूछा भगवन् आप हमें कृपा करके कोई ऐसा त्योहार, अनुष्ठान या व्रत, बतायें, जिसके करने से हम लोग अपने समाप्त हुए राज्य को फिर से प्राप्त कर सकूं। क्योंकि राज्यच्युत हो जाने के कारण में अत्यन्त दुःखी हूं।
श्रीकृष्ण ने कहा कि मेरा परमभक्त दैत्यराज बलि ने एक सौ बार अश्वमेघ यज्ञ करने का निर्णय लिया।
99 यज्ञ तो उसने निर्विध्न रूप से पूर्ण कर लिये, परन्तु 100 वें यज्ञ के पूर्ण होते ही उन्हें अपने राज्य से निर्वासित होने का भय सताने लगा।
देवताओं को साथ लेकर इन्द्र भगवान विष्णु के पास पहुंचकर सम्पूर्ण वृत्तान्त भगवान् विष्णु से कह सुनाया। सुनकर भगवान विष्णु ने उनसे कहा, मैं तुम्हारे कष्ट को शीघ्र दूर कर दूंगा।
भगवान विष्णु ने वामन का अवतार धारण कर ब्राम्हण के भेष में राजा बलि के यज्ञ स्थल पर पहुंचे। राजा बलि को वचनबद्ध कर भगवान् ने तीन पग भूमि उनसे दान में मांग ली।
बलि द्वारा दान का संकल्प करते ही भगवान् ने अपने विराट् रूप से एक पग में सारी पृथ्वी को नाप लिया । दुसरे पग से अंतरिक्ष और तीसरा चरण उसके सिर पर रख दिया ।
राजा बलि की दानशीलता से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उससे वर मांगने को कहा।
राजा के कहा - कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से अमावस्या तक अर्थात दीपावली तक इस धरती पर मेरा राज्य रहे। तीन दिनों तक सभी लोग दीप-दान कर लक्ष्मी जी की पूजा करें।
दूसरी कथा लंका विजय से जुड़ी हैं
पौराणिक कथा के अनुसार दीपावली के दिन अयोध्या के राजा भगवान श्रीराम 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे। अयोध्यावासियों अपने प्रिय राजा श्रीराम के आगमन से उत्साहित थे।
श्रीराम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीए जलाए। कार्तिक मास की घूप अंधेरी काली अमावस्या की वह रात दीयों की रोशनी से संपूर्ण अयोध्या नगरी जगमगा उठी।
तब से आज तक सनातनी प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। अमावस्या की रात देवी-देवता धरती पर भ्रमण करती हैं और लोगों को वैभव का आशीष देती है।
सतयुग में हुई थी दीपावली की प्रथम आयोजन तीसरी कथा
सबसे पहले दीपावली की शुरुआत सतयुग से हुई थी। देवता और दानवों ने मिलकर एक साथ समुद्र मंथन किया तो इस महा आयोजन से माता लक्ष्मी, हलाहल विष, धन्वंतरि महाराज अमृत कलश लिए प्रकट हुए थे। इसके अलावा ऐरावत हाथी, चंद्रमा, उच्चैश्रवा, परिजात, वारुणी, रंभा आदि 14 रत्नों के की प्राप्ति हुई थी।
अमृत कलश लिए धन्वंतरि महाराज भी प्रकटे। इसीलिए तो स्वास्थ्य के अनंत देव धन्वंतरि महाराज की जयंती से दीपावली का महापर्व शुरू होता है।
समुद्र मंथन के दौरान माता महालक्ष्मी प्रगट हुई और उसी दिन से सारे देवी-देवताओं ने माता महालक्ष्मी की पृथ्वी पर आने की खुशी और स्वागत करते हुए पहली बार दीपावली मनाएं थें।
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