यम का दीया और धनतेरस 10 नवंबर 2023, दिन शुक्रवार को है। शुक्रवार के दिन त्रियोदशी तिथि का शुभारंभ दोपहर के 12:35 बजे से लेकर दूसरे दिन अर्थात शनिवार को दिन के 01:57 बजे तक रहेगा।
धनतेरस की रात अर्थात त्रियोदशी तिथि के दिन यमराज की पूजन करने का विशेष शास्त्र सम्मत विधान है।
साल भर में सिर्फ एक ही दिन त्रियोदशी तिथि की रात यमराज की पूजा कर, दीप निकालने की धार्मिक और आध्यात्मिक परंपरा है।
धनतेरस की रात यमराज की पूजन कर अपने घर के बाहर दक्षिण दिशा में दीप का मुख रखने से भगवान यमराज खुश होते हैं और घर में अकाल-मृत्यु किसी को भी नहीं होती है।
पुराने दीया में सरसों का तेल डालकर, कपड़े का बात्ती लगाकर घर की सबसे बुजुर्ग महिला, घर के सभी सदस्यों को भोजन करने के उपरांत यम के दीया को पूरे घर के सभी कमरों में दिखाने के बाद घर के बाहर कचरे के ढ़ेर के नजदीक दक्षिण की ओर मुख करके दीया को रख दें।
इसके बाद भगवान यमराज का नाम लेकर जल अर्पितकर, बिना पीछे देखे घर में प्रवेश कर जाए। माना जाता है कि यम के दीया निकालने से घर के किसी भी सदस्य को अकाल मृत्यु नहीं होती है और घर के सभी नकारात्मक ऊर्जा बाहर चल जाता है और सकारात्मक ऊर्जा से पूरा घर भर जाता है।
यम दीपदान का पौराणिक कथा
स्कंद पुराण के अनुसार एक बार यमराज ने अपने दूतों से कहा कि कभी ऐसा भी होता है कि जब किसी का प्राण हरण करने तुम जाते हो तुम्हारी आंखों में आंसू आ जाता है। साथ ही उस व्यक्ति का प्राण हरण करने का मन नहीं करता है।
यमराज के कहने के बाद एक दूत में एक घटना को याद करते हैं कहा कि किसी राज्य में एक राजकुमार रहता था। राजकुमार के कुंडली के अनुसार उसके विवाह के उपरांत 04 दिन तक वह जीवित रहेगा। इसके बाद उसकी मृत्यु निश्चित है। राजा को बात पता चला तो राजकुमार को ब्राह्मण के भेष बनाकर जंगल में रहने का आदेश दिया। राजकुमार सुख पूर्वक जंगल में रहने लगे। हंस देश की राजकुमारी जंगल में भ्रमण करने को आई थी। राजकुमारी ने राजकुमार को देखा और उसके रंग रूप पर मोहित हो गई। इसके बाद दोनों ने गंधर्व विवाह कर लिया। विवाह के उपरांत चौथे दिन राजकुमार की मौत हो गई। यमराज के दूत जब राजकुमार के प्राण हरण करने के लिए आए तो राजकुमारी का रूदन देखकर यम दूतों के आंखें भर गई। होनी को कोई टाल नहीं सकता। इस कारण यमराज के दूत को राजकुमार का प्राण हरण करके ले जाना पड़ा।
दूत में यमराज से पूछा कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे किसी भी व्यक्ति को अकाल मृत्यु से मृत्यु न हो। यमराज जी ने कहा कि कार्तिक मास, कृष्ण पक्ष के त्रियोदशी तिथि को जो मेरे नाम का दीपदान करेगा उसे घर में अकाल मृत्यु किसी भी व्यक्ति को नहीं होगा।
यमदीप दान का श्रीकृष्ण संबंधित
श्रीकृष्ण से संबंधित पौराणिक कथा
यमदीप दान को नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है। इस पर्व के महत्व को बताने के लिए बहुत सारी कथाएं प्रचलित है। जिसमें से एक कथा श्रीकृष्ण से भी संबंधित है। श्रीमद् भागवत पुराण के अनुसार नरकासुर नामक राक्षस ने अपनी शक्ति से देवी-देवताओं और मानवों को परेशान किया हुआ था। असुर ने ऋषियों के साथ 16 हजार औरतों को बंदी भी बनाकर रखा था। उसके बढ़ते अत्याचार को देखते हुए देवताओं और ऋषि-मुनियों ने भगवान श्रीकृष्ण की पास गए और बोला कि इस नरकासुर का अंत कर पृथ्वी से पाप का भार कम करें।
इसके बाद भगवान कृष्ण ने देवताओं को आश्वस्त किया परंतु नरकासुर को एक स्त्री के हाथों मरने का श्राप था। इसी वजह से भगवान कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाया और उनकी मदद से नरकासुर का वध कर दिया। जिस दिन नरकासुर का अंत हुआ था उसी दिन से कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी थी।
यम दीप निकालने का समय और तरीका
कार्तिक मास कृष्ण पक्ष त्रयोदशी तिथि को धनतेरस के दिन यम का दीया घर से निकालने का विधान है। परिवार के सभी लोग खाना खाकर सोने के लिए जाने लगे उसी समय घर की सबसे बुज़ुर्ग महिला एक बड़े सा दीया जिसमें सरसों का तेल भरा हो, उसे लेकर घर से बाहर जाती है और कचरे के ढेर के सामने दक्षिण की ओर मुख करके दीया रखती है। उसके बाद यमराज को जल से अर्ध्य देती है। इसके बाद यमराज से अपने परिवार के खुशहाली और अकाल मृत्यु से बचने के लिए प्रार्थना करती है। इसके बाद बिना मुड़े घर की ओर प्रस्थान कर जाती है।
डिस्क्लेमर
यह लेख पूरी तरह धार्मिक परंपराओं पर आधारित है। लेख में दिए गए तिथियां पंचांग और इंटरनेट का सहयोग भी लिया गया है। साथ ही विद्वान पंडितों के विचारों को भी समावेश किया गया है। कथा लिखने का मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार और सनातनियों के बीच में त्योहार को लेकर सही जानकारी उपलब्ध करवाना है।