हमारे कर्मों का लेखा जोखा रखने वाले भगवान चित्रगुप्त जी की पूजा 15 नवंबर, दिन बुधवार को है।
शास्त्रिय मान्यता के अनुसार कार्तिक मास शुक्ल पक्ष द्वितीय तिथि को चित्रगुप्त पूजा मनाए जाते हैं।
कार्तिक माह शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि का शुभारंभ 14 नवंबर दोपहर 01 बजकर 36 मिनट पर होगा। समाप्ति 15 नवंबर को दोपहर 01 बजकर 47 मिनट पर होगा।
सिंधु निर्णय पुराण के अनुसार उदया काल में जो तिथि पड़ती है। उस तिथि का मान्यता दिनभर रहता है।
15 नवंबर के दिन उदया तिथि मैं कार्तिक माह के द्वितीय तिथि पड़ रहा है। इसलिए 15 नवंबर को ही चित्रगुप्त पूजा धर्म और शास्त्र सम्मत होगा।
यमराज किसी भी व्यक्ति के पाप और पुण्य कर्मों को देखकर दंड देने की पृष्ठभूमि भगवान चित्रगुप्त हीं तैयार करते हैं। भगवान चित्रगुप्त को सृष्टि का प्रथम न्यायाधीश कहा जाता है। सम्पूर्ण कायस्थ समाज भगवान चित्रगुप्त के हीं वंशज हैं। ब्राह्मणों की श्रवण विद्या को कायस्थ समाज ने लेखनी का रूप देकर स्थायित्व प्रदान किया है।
धर्मराज ने भगवान ब्रह्मा जी से एक योग्य व्यक्ति कि मांग की, जो पाप और पुण्य की गणना करने में सक्षम हो। धर्मराज ने जब एक योग्य विद्वान सहयोगी की मांग ब्रह्माजी से की तो ब्रह्मा ध्यानमग्न हो गये और एक हजार वर्ष की तपस्या के बाद एक पुरूष को उत्पन्न किए। इस पुरूष का जन्म ब्रह्मा जी की काया (शरीर) से हुआ था।
ब्रह्मा जी की काया ही कायस्थ है
भगवान ब्रह्मा के काया से उत्पन्न होने के कारण कायस्थ कहलाये और इनका नाम चित्रगुप्त पड़ा। भगवान चित्रगुप्त के चार हाथ है। इन हाथों में कर्म की किताब, कलम, दवात और करवाल धारण किए हुए हैं।
चित्रगुप्तजी की पत्नियां थी एरावती और सूर्यदक्षिणा
एक समय की बात है। ऋषियों में श्रेष्ठ ऋषि सुशर्मा ने संतान की चाहत हेतु ब्रह्माजी का घोर तपस्या किए। ब्रह्माजी के कृपा से ऋषि को एरावती अर्थात शोभावति नाम की पुत्री प्राप्त हुई। अपनी पुत्री को ऋषि सुशर्मा ने चित्रगुप्त के साथ विवाह कर दिया। इरावती ने 08 पुत्रों जन्म दिया। इन आठ पुत्रों का नाम इस प्रकार हैं। पहला चारु, दूसरा सुचारु, तीसरा चित्र, चौथा मतिमान, पांचवां हिमवान, छठा चित्रचारु, सातवां अरुण और आठवां अतीन्द्रिय है।
चित्रगुप्त जी के 12 पुत्र थे
दूसरी पत्नी मनु की पुत्री सूर्यदक्षिणा अर्थात नंदनी थी। चित्रगुप्त से सूर्यदक्षिणा की विवाही हुई। सूर्यदक्षिणा से 4 पुत्र हुए। उनके नाम इस प्रकार है। प्रथम भानु, द्वितीय विभानु, तृतीय विश्वभानु और चौथे वीर्य्यावान् थे। चित्रगुप्त के ये 12 पुत्र विश्व विख्यात हुए और पृथ्वी लोक में रहने लगे।
वंश का नामकरण हुआ पुत्रों के कर्म पर
उनमें से प्रथम पुत्र चारु मथुराजी को गए और वहां रहने से मथुर वंश हुए। सुचारु गौड़ अर्थात बंगाल में बस गए। इससे वे गौड़ वंशज के हुए। पुत्र चित्रभट्ट विशाल नदी के किनारे स्थित एक नगर में बस गए, इससे वे भट्टनागर वंशज कहलाए। श्रीवास नगर में जाकर पुत्र भानु बसे। इससे उनके वंशज श्रीवास्तव कहलाए।
पुत्र हिमवान अम्बा दुर्गाजी की आराधन करने के लिए अम्बा नगर में बस गए। अंबा नगर में बसने के कारण उनके वंशज अम्बष्ट कहलाए। सखसेन नगर में अपनी भाई के साथ पुत्र मतिमान गए। इससे वे सूर्यध्वज कहलाएं। उनके वंशज अनेक स्थानों में बसे और अनेक जाति कहलाएं।
चित्रगुप्त पूजा के दिन कैसा रहेगा पंचांग के अनुसार
15 नवंबर 2023, दिन बुधवार, कार्तिक मास, शुक्ल पक्ष, द्वितीय तिथि दिन के 01 बजकर 47 मिनट तक रहेगा।
ऋतू हेमंत, अयन दक्षिणायन, नक्षत्र ज्येष्ठा और योग अतिगण्ड है। सूर्योदय 06:43 बजे पर और सूर्यास्त 5:00 बज के 28 मिनट पर होगा।
चंद्रोदय सुबह 08:36 बजे पर और चंद्रास्त शाम 06:51 बजे होगा।
दिनमान 10 घंटा 44 मिनट का और रात्रिमान 13 घंटा 16 मिनट का होगा।
आनंदादि योग ध्वांक्ष है।
होमाहुति सूर्य, दिशा शूल उत्तर, राहुवास दक्षिण-पश्चिम, अग्निवास पृथ्वी और चंद्र वास उत्तर दिशा में रहेगा।
पूजा करने का शुभ मुहूर्त
गोधन कूटने, चित्रगुप्त पूजा, भाई फोटा और भाई के हाथों में रक्षा सूत्र बांधने का शुभ मुहूर्त बुधवार को सुबह 06:43 बजे से लेकर 08:04 बजे तक लाभ मुहूर्त के रूप में रहेगा।
इसके बाद 08:04 बजे से लेकर 09:24 बजे तक अमृत मुहूर्त रहेगा। इस बार अभिजीत मुहूर्त का संयोग नहीं रहेगा। दोपहर को दो मुहूर्त है।
एक शुभ मुहूर्त और दूसरा विजय मुहूर्त है। शुभ मुहूर्त दिन के 10:45 बजे से लेकर 12:05 बजे तक और विजय मुहूर्त 01:53 बजे से लेकर 02:36 बजे तक रहेगा।
पौराणिक कथा
सौराष्ट्र अर्थात आज के गुजरात और महाराष्ट्र के क्षेत्र में एक राजा हुआ करते थे। उनका नाम राजा सौदास था। राजा अत्याचारी, अधर्मी, दुराचारी और पाप कर्मों में लिप्त रहने वाला था। राजा सौदास ने अपने जीवन काल में कभी भी पुण्य का काम नहीं किया था। एक बार राजा सौदास शिकार खेलते-खेलते घनाघोर जंगल में जाकर भटक गए। जंगल में राजा को एक तपस्वी ब्रह्मण दिखा जो पूजा कर रहे थे।
राजा सौदास ने जानने की चाहत लेकर ब्रह्ममण के पास गए और उनसे पूछा कि इस विरान जंगल में आप किनकी पूजा कर रहे हैं। ब्रह्मण ने कहा आज कार्तिक मास के शुक्लपक्ष द्वितीया तिथि है। आज के दिन हम यमराज और चित्रगुप्त महाराज की पूजा कर रहे हैं। इन दोनों के पूजा करने से नरक की यातना से मुक्ति मिलती है।
इसके बाद राजा ने ब्राह्मण से पूजा करने का विधान पूछकर उसी स्थान पर चित्रगुप्त महाराज और यमराज भगवान की विधि विधान से पूजा-अर्चना किया।
समय काल की गति से बढ़ने लगे। एक दिन यमदूत राजा के प्राण लेने उसके महल पहूंच गए। दूत ने राजा की आत्मा को जंजीरों में बांधकर घसीटते हुए यमलोक ले गये।
लहुलुहान राजा यमराज के दरबार में जब पहुंचे तब चित्रगुप्त ने राजा के कर्मों की लेखा-जोखा देखा और यमराज से कहा कि यह राजा बड़ा ही पापी और अधर्मी है। इसने जीवन भर सदा पाप कर्म ही किए हैं।
राजा ने कार्तिक मास के शुक्लपक्ष द्वितीया तिथि को हमारा और आपका व्रत पूजन किया था। इस कारण राजा के सारे पाप खत्म हो गये हैं। अब राजा को धर्मानुसार नरक नहीं भेजा जा सकता। इस प्रकार राजा को नरक से मुक्ति मिल गयी और स्वर्ग लोक की ओर प्रस्थान कर दिए।
डिस्क्लेमर
चित्रगुप्त पूजा के संबंधित सारी जानकारी इस लेख में दिया गया है। जानकारी जुटाना के लिए धर्म शास्त्रों का अध्ययन, विद्वान आचार्यों से चर्चा और इंटरनेट से ली गई कुछ प्रसंग को समावेश किया गया है। हमारा उद्देश्य सनातन धर्म की प्रचार प्रसार करना और सनातनियों के बीच पर्व के महत्व को समझना।