गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव 14 नवंबर को मनाया

रौशनी और सफाई का महापर्व दीपावली के पांच दिवसीय त्योहारिय श्रृंखला के चौथे दिन गोवर्धन पूजा मनाया जाता है। 

लेकिन गोवर्धन पूजा की तिथियों को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। हम आपको बताएंगे कि गोवर्धन पूजा 13 नवंबर को होगा या 14 नवंबर को मनाया जाएगा। तो चलिए आपका असमंजस्ता हम यहां पर दूर कर देते हैं।हमारी सनातनी परंपरा के अनुसार कार्तिक मास के प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव मनाया जाता है। रूकिए, यहां पर तिथि को लेकर गड़बड़ी है।

पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि का शुभारंभ 13 नवंबर दोपहर 02 बजकर 56 मिनट से हो रहा है और प्रतिपदा तिथि 14 नवंबर दोपहर 02 बजकर 36 मिनट पर समाप्त होगी। ऐसे में सिंथु निर्णय पुराण और उदया तिथि को देखते हुए गोवर्धन पूजा मनाने की सही दिन मंगलवार और सही तारीख 14 नवंबर 2023 है। 

गोवर्धन पूजा करने का शुभ मुहूर्त
गोवर्धन पूजा करने का शुभ मुहूर्त सुबह 09:24 बजे से लेकर 10:45 बजे तक चर मुहूर्त रहेगा। 
उसी प्रकार 10:45 बजे से लेकर 12:05 बजे तक लाभ मुहूर्त और 12:05 बजे से लेकर 01:26 बजे मिनट तक अमृत मुहूर्त रहेगा। 
इसके अलावा अभिजीत मुहूर्त दिन के 11:44 बजे से लेकर 12:27 बजे के तक रहेगा। इस दौरान आप गोवर्धन पूजा कर सकते हैं।

कैसा रहेगा गोवर्धन पूजा का दिन जाने पंचांग के अनुसार
गोवर्धन पूजा के दिन सूर्योदय 06:30 बजे पर और सूर्यास्त 05:28 बजे पर होगा। नक्षत्र अनुराधा, योग शोभन, सूर्य राशि तुला, चंद्रमा की राशि वृश्चिक, सूर्य नक्षत्र विशाखा रहेगा। दिनमान 10 घंटा 45 मिनट रात्रिमान 13 घंटा 15 मिनट का रहेगा।
हमाहुति सूर्य, दिशाशूल उत्तर, नक्षत्र शूल पूर्व, राहुकाल वास पश्चिम, अग्निवास आकाश दिन के 02:36 बजे तक इसके बाद पाताल हो जाएगा। चंद्रावास उत्तर दिशा में है।

अब जानें गोवर्धन पूजा विस्तार से
गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव 14 नवंबर को मनाया जाएगा। इस दिन गौ सेवा करना फलदाई रहेगा।

कार्तिक मास प्रतिपदा तिथि , दिन मंगलवार को गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव मनाया जाएगा।

सोमवार को सुबह उठकर गोपालक सबसे पहले अपने जानवरों को शुद्ध जल से स्नान कराकर उसके सिर में घी का लेप लगाते हैं।

इसके बाद उसके शरीर पर विभिन्न तरह के रंगों से भरे हुए चित्रकारी चलते हैं। और पैरों में घुंघरू बांध ते हैं। साथ ही तरह-तरह के सजावट के सामान अपने जानवरों के शरीर पर सजाते हैं।

पौराणिक कथाओं की जानकारियां
गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव का विस्तार से वर्णन श्रीमद्भागवत पुराण में किया गया है। कथा के अनुसार नंद जी ने सभी ग्वालों से कहे कि अब समय आ गया है। भगवान इंद्र को याद कर उन्हें खुश किया जाए।

इस विषय पर श्री कृष्ण ने कहा कि संसार की स्थिति, उत्पत्ति और उसके अंत क्रमशः सत्वगुण, रजोगुण और तमोगुण में है। यह संपूर्ण जगत स्त्री और पुरुष के संजोग से रजोगुण द्वारा उत्पन्न होता है। उसी रजोगुण की प्रेरणा से मेघगण सभी जगहों पर जल बरसाते हैं। उसी से अन्न और अन्न से ही सभी जीवों की जीविका चलती है।

इसमें भला इन्द्र का क्या लेना-देना है। पिताश्री न तो हमारे पास किसी देश का राज्य है। और ना तो बड़े-बड़े नगर ही हमारे अधीन है। हमारे पास गांव या घर भी नहीं है। इसलिए हम लोगों गौओं, ब्राह्मणों और गिरिराज का पूजा करने की तैयारी करें। इंद्र यज्ञ के लिए जो सामग्रियों इकट्ठा की गई है। उन्हीं से इस यज्ञ का अनुष्ठान होने दें।

पूजा के लिए खीर, हलवा, पुआ, पुड़ी आदि से लेकर मूंग की दाल तक बनाए जाएं। ब्रज का सारा दूध एकत्र कर लिया जाए। वेदवादी ब्राह्मणों के द्वारा भांति भांति हवन और यज्ञ कराया जाए तथा उन्हें अनेकों प्रकार के अन्न, गाय और दक्षिण दी जाए।

अंत में सज धज कर सभी गोपी और गोपिया गोवर्धन की परिक्रमा करें। यह मेरी इच्छा है। इसे करने से गौ, ब्राम्हण और गिरिराज को भी प्रिय लेगा। 

श्रीकृष्ण की इच्छा थी कि इंद्र का घमंड चूर चूर कर दें। नंद बाबा सहित सभी गोपों ने उनकी बात सुनकर बड़ी प्रसन्नता से स्वीकार कर ली। श्री कृष्ण के कहे अनुसार यज्ञ प्रारंभ किया गया।

श्रीकृष्ण ने धारे गिरिराज का रूप
श्री कृष्ण ने गोप और गोपियों को विश्वास दिलाने के लिए गिरिराज के ऊपर एक दूसरा विशाल शरीर धारण करके प्रकट हो गए। तथा मैं हूं गिरिराज ? इस प्रकार कहते हुए सारी सामग्री खाने लगे। भगवान श्री कृष्ण ने अपने उस स्वरूप को दूसरे व्रजवासियों के साथ स्वयं भी प्रणाम किया और कहने लगे देखो कैसा आश्चर्य है।

गिरिराज को साक्षात प्रकट होकर हम पर कृपा की है। यह चाहे जैसा रूप धारण कर सकते हैं। जो बनवासी जीव इसका निरादर करते हैं, उन्हें यह नष्ट कर डालते हैं। आओ अपना और अपने गौओं का कल्याण करने के लिए इस गिरिराज को हम नमस्कार करें।

गुस्से में इंद्र ने की भीषण बारिश
जब इंद्र को पता चला कि मेरी पूजा बंद कर दी गई है। तब नंद बाबा और गोपों पर बहुत ही क्रोधित हुए। इन्द्र को अपने पद का बड़ा घमंड था। 

वह समझते थे कि मैं ही त्रिलोकी का ईश्वर हूं। इन्द्र ने क्रोध से तिलमिलाकर प्रलय करने वाले मेघों और सांवर्तक नामक गणों को व्रज पर चढ़ाई करने का आज्ञा दी। इन्द्र ने गुस्से में भरकर कहा कि ओह गांव और जंगलों में रहने वालों को इतना घमंड है। अब उन ग्वालों का सचमुच में उनके धमंड और धन दोनों का नाश है।

भला देखो तो सही एक साधारण मनुष्य कृष्ण के बल पर उन्होंने मुझे देवराज का अपमान कर डाला। कृष्ण बकवादी, नादान, अभिमानी और मूर्ख होने पर भी अपने को बहुत बड़ा ज्ञानी समझता है। मेरे क्रोध से वह स्वयं (श्रीकृष्ण) मृत्यु का ग्रास बनेगा। फिर भी उसी का सहारा लेकर इन अहीरों ने मेरी अवहेलना की है।

सात दिनों तक होती रही बारिश, भगवान ने उठाए रखें पर्वत को
भीषण बारिश होते देखकर भगवान श्रीकृष्ण ने खेल खेल में एक ही हाथ से गिरिराज गोवर्धन को अखाड़ा कर हाथ में रख लेते हैं। उन्होंने उस पर्वत को धारण कर लिया। 

इसके बाद भगवान ने गोपों से कहा माता जी, पिता जी और ब्रजवासियों तुम लोग अपनी गौवधन सहित सभी सामग्रियों के साथ इस पर्वत के गड्ढे में आकर आराम से बैठ जाओ।

भगवान श्रीकृष्ण के आश्वासन देने पर सब के सब ग्वालों ने अपने-अपने गौधन, आश्रितों, पुरोहितों, बच्चों और महिलाओ को अपने साथ लेकर गोवर्धन पर्वत के गड्ढे में आ घुसे। 

श्रीकृष्ण ने 07 दिनों तक लगातार उस पर्वत को अपने कानी अंगुली पर उठा रखा। एक पग भी श्रीकृष्ण ने इधर-उधर नहीं किए।

श्रीकृष्ण की योग माया का प्रभाव देखकर भगवान इंद्र को आश्चर्य का ठिकाना न रहा। इसके बाद मेघों को वर्षा रोकने का आदेश दिया। भीषण तूफान बंद हो गया। 

सूर्य दिखने लगे। इससे बाल गोपाल काफी खुश हो गए, इसके बाद श्रीकृष्ण ने कहा बचे हुए सामग्रियों को लेकर आप अपने घर लौट सकते हैं क्योंकि सभी नदी और नालों में पानी कम हो गया है।

सात दिनों तक चला अन्नकूट महोत्सव
07 दिनों तक बृजवासी गोवर्धन पर्वत के नीचे आसरा लिए हुए थे। इस दौरान उन्होंने अपने साथ लाए सामग्रियों का एक जगह इकट्ठा कर भोजन बनाकर आपस में मिल बांट कर खाने लगे यह अन्नकूट महोत्सव 07 दिनों तक चलता रहा।

डिस्क्लेमर
गोवर्धन पूजा से संबंधित लेख पूरी तरह धर्म शास्त्रों पर आधारित है। शुभ मुहूर्त और कैसा रहेगा दिन इसकी जानकारी पंचांग से लिया गया है। इस लेख में कुछ दंतकथा, कुछ इंटरनेट और अधिकांश विषय वस्तु विद्वान पंडितो के द्वारा बताए गए सुझाव के अंतर्गत लिखा गया है। कथा लिखने का मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म का प्रचार प्रसार और सनातनियों के बीच अपने पर्व के प्रति जागृत करना मुख्य उद्देश्य है।

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