काली पूजा 31 अक्टूबर 2024, दिन गुरुवार को है। कार्तिक माह, कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को काली पूजा मनाएं जायेगा।
जिस रात को अमावस्या तिथि रात भर रहती है। उसी रात को मां काली की पूजा की जाती है।
दो विधि से होती है मां काली की पूजा। एक जो घरों में लोग करते हैं उसे श्यामली मां काली कहा जाता है। मंदिर सहित विभिन्न पंडालों में मां काली की पूजा होती है।
श्यामली काली मां का रूप सांवला होता है जबकि मां काली के रूप पूरी तरह काली होती है।
31 ऊ के दिन तमिल दीपावली, मुख्य दीपावली, लक्ष्मी पूजा, दीप मालिका, केदार गौरी व्रत, चोपड़ा पूजा, शारदा पूजा, काली पूजा और कमला जयंती प्रमुख रूप से मनाई जाएगी।
कौन है मां काली जानें उनकी वैदिक और सनातनी रूप
परमपिता परमात्मा की परा शक्ति महाकाली भगवती निराकार रूप में होकर भी देवी-देवताओं के दु:ख दूर करने के लिए हर युग में साकार रूप धारण करके विभिन्न तरह के अवतार लेती हैं।
देवी भगवती शरीर धारण करके अपने भक्तों के परम इच्छा के सम्मान कर हर तरह की दुःख दूर करतीं है। सनातनी शक्ति मां भगवती ही जगदम्बा है। मां जगदम्बा ही महामाया कही गयी हैं। मां महामाया ही सबके मन को खींच कर मोह-माया में डाल देती हैं।
मां महामाया की माया से मोहित होने के कारण ब्रह्मा सहित सभी देवी-देवता भी माया रूपी परम तत्त्व को नहीं जान पाते, फिर मानव की तो बात ही क्या है ? वे जगदम्बा ही सत्त्व, रज और तम ये तीनों गुणों की पुरोधा है। देवी इन तीनों गुणों का आश्रय लेकर समय अनुसार सम्पूर्ण जगत का सृजन, (जन्मदाता) पालन (पालनहार) और संहार (संहारकर्ता) किया करती हैं। जिसे हम मां काली कहते हैं। शिव पुराण के अनुसार उनके काली रूप में अवतार की कथा इस प्रकार है।
मां काली की पौराणिक कथा
प्रलयकाल के दौरान सम्पूर्ण जगत् जलमग्न था। उस समय भगवान श्रीहरि विष्णु योगनिद्रा में शेषशय्या पर विश्राम कर रहे थे।
उन्हीं दिनों भगवान श्रीहरि विष्णु के कानों के मल से दो असुर प्रगट हुए, जो प्रलयकार के सूर्य की भांति तेजस्वी थे। उनके जबड़े बहुत कठोर और बड़े-बड़े थे।
उनके मुख विशाल और बढ़ी दाढ़ी के कारण ऐसे विकराल प्रतीत हो रहा था, मानो वे सम्पूर्ण ब्रह्मांड को खा डालने के लिये उद्यम हों।
उन दोनों ने असुर भगवान श्रीहरि विष्णु की नाभि से उत्पन्न हुए। कमल के ऊपर विराजमान भगवान ब्रह्मा जी को मारने के लिये टूट पड़े।
ब्रह्माजी ने देखा कि ये दोनों राक्षस मेरे ऊपर आक्रमण करना चाहते हैं। जबकि दूसरी ओर भगवान श्रीहरि विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग के शय्या पर चीर निद्रा में सो रहे हैं।
ऐसे स्थिति में ब्रह्मा जी ने अपनी रक्षा के लिये महामाया परमेश्वरी अर्थात माता जगदम्बा की स्तुति की और माता से प्रार्थना करने लगे कि हे मां अम्बिके आप जगत जननी हो, इन दोनों असुरों को मोहित करके मेरी प्राण की रक्षा करो और गहरी नींद में सोए भगवान श्रीहरि नारायण को जगा दिजिए।
दोनों राक्षस मधु और कैटभ के नाश के लिये ब्रह्मा जी के प्रार्थना करने पर सम्पूर्ण विद्याओं की अधिदेवी जगत जननी महाविद्या धारणी मां काली फाल्गुन शुक्ला द्वादशी को त्रैलोक्य-मोहिनी शक्ति के रूप में पहले आकाश में प्रकट हुईं।
इसके बाद आकाशवाणी हुई 'कमलासन ब्रह्मा डरो मत। युद्ध में मधु-कैटभ का विनाश करके मैं तुम्हारे सारे संकट दूर करूंगी। फिर वे महामाया भगवान श्रीहरि के नेत्र, मुख, नासिका और बाहु आदि से निकल कर ब्रह्मा जी के सामने आ खड़ी हुईं।
उसी समय भगवान विष्णु भी योगनिद्रा से जग गये। फिर देवाधिदेव भगवान् श्रीहरि विष्णु ने अपने सामने मधु और कैटभ दोनों दैत्यों को देखा। उन दोनों महादैत्यों के साथ अतुल तेजस्वी भगवान विष्णु का पांच हज़ार वर्षों तक घोर युद्ध किया।
अन्त में महामाया के प्रभाव से मोहित होकर उन असुरों ने भगवान श्रीहरि विष्णु से कहा कि 'हम तुम्हारे युद्ध से अत्यन्त प्रभावित हुए। तुम हमसे अपनी इच्छानुसार वर मांग लो।'
भगवान विष्णु ने कहा- 'यदि तुम लोग मुझ पर प्रसन्न हो तो मुझे यह वर दो कि तुम्हारी मृत्यु मेरे हाथों से हो।
उन असुरों ने देखा कि सारी पृथ्वी एकार्णव जल में डूबी है। यदि हम सूखी धरती पर अपने मृत्यु का वरदान इन्हें देते हैं, तब यह चाह कर भी हम को नहीं मार पायेंगे।
साथ ही हमें वरदान देने का श्रेय भी प्राप्त हो जायेगा। अत: उन दोनों ने भगवान विष्णु से कहा कि 'तुम हमको ऐसी जगह मार सकते हो, जहां जल से भीगी हुई धरती न हो।
'बहुत अच्छा' कहकर भगवान् विष्णु ने अपना परम तेजस्वी चक्र उठाया और अपनी जांध पर उनके मस्तकों को रखकर काट डाला। इस प्रकार भगवती महाकाली की कृपा से उन दैत्यों की बुद्धि भ्रमित हो जाने से उनका अन्त हुआ।
डिस्क्लेमर
काली पूजा के संबंध में विभिन्न स्रोतों से जानकारी इकट्ठा की गई है। विद्वान ब्राह्मणों और आचार्यों से विचार निवास कर ले लिखा गया है। साथ है शुभ मुहूर्त पंचांग से लिया गया है। इंटरनेट की भी सहायता ली गई है। लेख लिखने का मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म का प्रचार प्रसार करना और सनातनी लोगों के बीच त्यौहार का महत्व को साझा करना है।