कैसे कराएं कुंवारी कन्याओं को भजन जानें संपूर्ण विधि

नवरात्रा के मौके पर महाअष्टमी और महानवमी तिथि को कुंवारी कन्याओं को भोजन कराने का क्या है नियम।जानें संपूर्ण जानकारी।

10 वर्ष से ऊपर की कन्याओं को भोजन कराना वर्जित है। साथ ही 01 वर्ष से नीचे की कन्याओं को भोजन नहीं करानी चाहिए।

भागवत देवी पुराण में कन्या पूजन और भोजन कराने का विधि विस्तार से लिखा गया है।

कौन सी कन्या पूजा और भोजन कराने योग्य है। कौन सी कन्याओं को पूजन नहीं करनी चाहिए, इन सभी बातों को विस्तार से जानें।
भोजन करने के बाद देवी रूपी कन्याओं को अपने समर्थ के अनुसार दान और दक्षिण देना भी जरूरी है।

कैसे करें कुमारी कन्याओं का पूजन
नवरात्रि के दौरान अगर आप दुर्गा सप्तशती की पाठ या कलश स्थापना किए हुए हैं, तो कुंवारी कन्याओं का खिलाना जरूरी होता है।
पूजा के उपरांत कुंवारी कन्याओं का पूजन कर भोजन कराना चाहते हैं तो एक ही कन्या का रोजाना पूजन करें। अथवा प्रतिदिन एक-एक कुंवारी कन्याओं की संख्या में वृद्धि क्रम के अनुसार पूजा करें।
अर्थात पहला दिन एक, दूसरा दिन दो, तीसरा दिन तीन, चौथे दिन चार, पांचवें दिन पांच, छठे दिन छह, सातवें दिसन सात, आठवें दिन आठ और  नौवें दिन नौ। इसी प्रकार 9 दिनों तक नौ कन्याओं का पूजन कर सकते हैं।
अगर आप चाहते हैं कि प्रति दिन दुगुनी कन्याओं का पूजन कर सकते  हैं, वह भी शास्त्र सम्मत होगा। 


एक वर्ष से नीचे और 10 वर्ष से ऊपर वाली कन्याओं की पूजा करना वर्जित
भागवत देवी पुराण के अनुसार पूजा विधि में एक वर्ष की अवस्था वाली कन्या नहीं होनी चाहिए। क्योंकि वह कन्या गंध और भोग आदि पदार्थों के स्वाद से बिल्कुल अनभिज्ञ रहती है। कुमारी कन्या वह कही गई है जो 02 वर्ष की हो चुकी है। 10 वर्ष की ऊपर की कन्याओं को भी पूजन नहीं करनी चाहिए।

जानें किस उम्र की कन्या मां दुर्गा के किस रूप में जानते हैं
02 बरस की उम्र की कन्या को कुुंवारी भगवती कहा गया है। उसी प्रकार 03 वर्ष की कन्या को त्रिमूर्ति, 04 वर्ष की कन्या को कल्याणी, 05 वर्ष की कन्या को रोहिणी, 06 की कन्या को कालिका, 07 वर्ष की कन्या को चंडिका, 08 वर्ष की कन्या को शाम्भवी, 09 वर्ष की कन्या को दुर्गा और 10 वर्ष की कन्या को शुभद्रा कहलाती है।
इससे ऊपर की अवस्था वाली कन्या का पूजन नहीं करना चाहिए क्योंकि वह सभी कार्यों से निषेध मानी जाती है। इन नामों से कुंवारी कन्याओं का विधि विधान से पूजन और भोजन कराने चाहिए।

नौ कन्याओं के पूजन से क्या मिलता है फल
प्रथम कुंवारी नाम की कन्या पूजित होकर दुख तथा दरिद्रता का नाश करती है। शत्रुओं का क्षय करती है तथा धन, आयु और बल की वृद्धि करती है। त्रिमूर्ति नाम की कन्या का पूजन करने से धर्म, अर्थ और काम की पूर्ति होती है। धन-धान्य का आगमन होता है और पुत्र आदि की वृद्धि होती है।
जो जातक विद्या, विजय, राज्य तथा सुख की कामना करता है उसे सभी कामनाएं प्रदान करने वाली कल्याणी नामक कन्या का पूजन नित्य करना चाहिए। शत्रु का नाश करने के लिए भक्ति पूर्वक कालिका कन्या का पूजन करना चाहिए। धन तथा ऐश्वर्य की अभिलाषा रखने वाले को चंडिका कन्या का पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
सम्मोहन, दुख और दरिद्रता के नाश तथा संग्राम में विजय के लिए शाम्भवी कन्या की पूजा करनी चाहिए। क्रूर शत्रु के विनाश एवं उग्र कर्म की साधना के निमित्त और परलोक में सुख पाने के लिए दुर्गा नामक कन्या की भक्ति पूर्वक आराधना करनी चाहिए। मनुष्य अपने मनोरथ की सिद्धि के लिए सुभद्रा की पूजा करें। रोग नाश के लिए रोहिणी कन्या की पूजा करनी चाहिए।

कन्या पूजन के दौरान कैसे करें मां दुर्गे की आराधना
जो भगवती कुंवारी के रहस्मय तत्वों और ब्रह्मादि देवताओं की भी लीला पूर्वक रचना करती है उन कुंवारी मातारानी का मैं पूजन करता हूं। जो सत्य आदि तीनों गुणों से तीन रूप धारण करती है। जिनके अनेक रुप है तथा जो तीनों काल में सर्वत्र व्याप्त है। उस भवानी की त्रिमूर्ति की मैं पूजा करता हूं।
निरंतर पूजित होने पर जो भक्तों का नित्य कल्याण करती है सब प्रकार की कामनाओं को पूर्ण करने वाली भगवती कल्याणी का मैं भक्ति पूर्वक पूजन करता हूं। जो देवी संपूर्ण जीवों के पूर्व जन्म के संचित कर्म रूपी बीजों का रोपण करती है। उस भगवती रोहिणी कि मैं उपासना करता हूं।
अत्यंत उग्र स्वभाव वाली उग्र रूप धारण करने वाली चंड और मुंड का संहार करने वाली तथा घोर पापों का नाश करने वाली भगवती चंडिका का मैं पूजन करता हूं।
वेद जिनके स्वरूप है। उन्हीं वेदों के द्वारा जिनकी उत्पत्ति अकारण बताई गई है। उन सुख दायिनी भगवती शाम्भवी का मैं पूजन करता हूं।
जो अपने भक्तों को सर्वदा संकट से बचाती है। बड़े-बड़े विघ्नों तथा दुखों का नाश करती है और सभी देवताओं के लिए दूर्ज्ञेय है। उन भगवती दुर्गा की मैं पूजा करता हूं।
जो पूजित होने पर भक्तों का सदा कल्याण करती है। उन अमंगल नाशिनी भगवती सुभद्रा की मैं पूजा करता हूं। जातक को चाहिए कि वस्त्र, आभूषण माला और गंध आदि से कन्याओं का पूजन करें।

ये कन्याएं पूजने लायक नहीं, जानें पुराण के अनुसार
जो कन्या किसी अंग से हीन है। कोढ़ तथा घाव युक्त है। जिसके शरीर के किसी अंग से दुर्गंध आती हो। जो गलत कुल में उत्पन्न हुई हो। ऐसी कन्या का पूजन में परित्याग कर देना चाहिए।
जन्म से अंधी, तिरछी नजर से देखने वाली, कानी, कुरूप, बहुत रोम वाली, रोगी तथा रजस्वला कन्या का पूजन में परित्याग कर देना चाहिए। अत्यंत दुर्बल, समय से पूर्व ही गर्भ से उत्पन्न होने वाली, विधवा स्त्री से उत्पन्न होने वाली, कन्या से उत्पन्न ये सभी कन्याएं पूजा आदि सभी कार्यों से सर्वथा त्याज्य है।

कौन सी कन्या होती है पूजने योग
जो कन्या रोग से रहित, रूपवान अंगों वाली, सौंदर्यमयी व्रण रहित तथा एक वंश में अपने माता-पिता से उत्पन्न कन्याओं को ही विधिवत पूजा करनी चाहिए।
समस्त कार्यों की सिद्धि के लिए ब्राह्मण की कन्या, विजय प्राप्ति के लिए राज वंश में उत्पन्न कन्या तथा धन लाभ के लिए वैश्य वंश अथवा शूद्र वंश में उत्पन्न कन्या पूजन के योग मानी गई है।
किस वर्ण की कन्याओं का करें पूजन
ब्राम्हण को ब्राह्मण वर्ण में उत्पन्न कन्याओं की करनी चाहिए। उसी प्रकार क्षत्रियों को भी ब्राम्हण और क्षत्रिय वर्ण में उत्पन्न कन्याओं की, वैश्यों को ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य तीनों वर्णों में उत्पन्न कन्याओं की और शुद्र को चारों वर्णों में उत्पन्न कन्याओं की पूजा करनी चाहिए। शिल्प कार्य में लगे हुए मनुष्य को यथा योगा अपने-अपने वंश में उत्पन्न कन्याओं की पूजा करनी चाहिए।

कन्या पूजन करने की संपूर्ण विधि
कन्या पूजन करने के पूर्व सभी कुंवारी कन्याओं को अपने घर में उचित स्थान और सम्मान दें। इसके बाद उनके पांव पखारे और लाल रंग की आलता से उनके पांव रंगने चाहिए।
माथे पर जय माता दी की पट्टी लगाएं। भजन वैसा होने चाहिए, जो कुंवारी कन्याओं को पसंद है वैसा ही भोजन बनाने चाहिए। मसलन पुड़ी, खीर, चना की सब्जी, मिठाई एवं फल रहना जरूरी है।
सभी कन्याओं को लाइन में बैठकर पैर पखारने के उपरांत चंदन का टीका लगाए। इसके बाद कन्या रूपी माता को मन भर भोजन कराएं। मां भगवती का एक भाई भैरव है।
इसलिए नौ कन्याओं के साथ एक भैरव को भी भोजन कर यथा संभव सम्मान देना चाहिए। उक्त बालक का आयु 10 वर्षों से कम और एक वर्ष से कम होने चाहिए।
भोजन के उपरांत सभी कुंवारी कन्याओं और भैरव रूपी बालक का चरण स्पर्श कर यथा संभव दान-दक्षिणा देनी चाहिए।

डिस्क्लेमर
यह कथा भगवती पुराण से लिया गया है। भगवती पुराण में दिए गए आलेख को हु-ब-हू लिखा गया है। कथा पढ़ने के बाद आपको कैसा लगा इस बात की जानकारी हमें ईमेल के माध्यम से जरूर दें।



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