अखंड सौभाग्यवती रहने के लिए सुहागिन महिलाएं और मनवांछित पति की प्राप्ति के हेतु कुंवारी कन्याएं हरितालिका तीज व्रत करती है।
इस बार भद्रा माह की हरितालिका तीज सोमवार के दिन पड़ रहा है, जो भोलेनाथ का प्रिया दिन और माता पार्वती की अनंत प्रिया दिन है। इसलिए इस बार वर्ष 2023 में आयोजित होने वाले तीज की महत्ता और ज्यादा बढ़ गई है।
हरितालिका तीज 18 सितंबर 2023, दिन सोमवार को मनाया जायेगा।
भाद्रपद मास, शुक्ल पक्ष, तृतीया तिथि 18 सितंबर को दोपहर 12:39 बजे तक रहेगा। नक्षत्र चित्रा दिन के 12:08 बजे तक रहेगा। इसके बाद स्वाति नक्षत्र शुरू हो जाएगा।
हरितालिका तीज व्रत पूजा करने का शुभ समय शाम 06:23 बजे से लेकर रात 07:51 बजे तक है। इस दौरान गोधूलि मुहूर्त और चर मुहूर्त का अद्भुत सहयोग मिल रहा है।
एक नहीं हैं हरतालिका तीज और हरियाली तीज
हरियाली तीज और हरतालिका तीज दोनों व्रत अलग-अलग महीने में आते हैं। हरियाली तीज सावन माह में तो, हरतालिका तीज भादों महीने में मनाई जाती है।
हरियाली तीज पर साधारण और आसान व्रत रखा जाता है जबकि हरतालिका तीज का व्रत बहुत ही कठिन और पूरी तरह निर्जला होता है। इस दौरान व्रतधारियों को सख्त और कठिन नियमों का पालन करना पड़ता है।
हरियाली तीज व्रत त्योहार भगवान भोलेशिव और माता पार्वती के मिलन के उपलक्ष्य पर मनाया जाता है जबकि दूसरी ओर हरतालिका तीज का व्रत सुहागिन महिलाएं अपने अखंड सौभाग्य और पति के दीर्घायु के लिए रखा करतीं है। कुंवारी कन्याएं मन चाहे वर की प्राप्ति के लिए इस तीज व्रत को करती है।
हरियाली तीज को खासकर दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में धूमधाम से मनाया जाता है, जबकि हरतालिका तीज मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के पूर्वी इलाकों, झारखंड और बिहार में मनाएं जाते हैं।
हरितालिका तीन पर करें ये आसन उपाय, पति होंगे दीर्घायु
01.मिट्टी से अर्द्ध गोले का आकार का पींड बनाकर माता पार्वती की प्रतिमा बीच में रखें और माता की पूजा विधि विधान से करें।
02.हरितालिका तीज के दिन व्रतधारी सुहागिन महिलाएं किसी मंदिर या बगीचे में इकट्ठा होकर माता पार्वती की प्रतिमा को रेशमी वस्त्रों और आभूषणों से मनमोहक, आकर्षण और सुंदर ढंग से सजाने चाहिए।
03.सभी व्रतधारी महिलाओं में से एक महिला पौराणिक कथा सुनाएं, बाकी सभी व्रतधारी महिलाएं कथा को ध्यान से सुनें और मन में पति का ध्यान करें और अपने पति की दीर्घायु की कामना करते रहे।
04.हरितालिका तीज के दिन व्रतधारी सुहागिन महिलाएं अपनी-अपनी सास के पांव छूकर उन्हें सुहागी अर्थात सुहाग की सामान देती हैं। व्रतधारी महिलाएं घर में अगर सास न हो तो जेठानी या घर की बुजुर्ग महिला को भी सुहागी दे सकती हैं।
05. देश के कुछ हिस्सों में व्रतधारी महिलाएं माता पार्वती की पूजा करने के उपरांत लाल रंग की मिट्टी से स्नान करती हैं। यह एक धार्मिक परंपरा है। जिसमें माना जाता है कि लाल रंग की मिट्टी से स्नान करने पर महिलाएं पूरी तरह से शुद्ध और निरोग हो जाती हैं।
06.अनेक राज्यों में हरितालिका तीज के दिन भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। मेले के दौरान माता पार्वती और भोलेनाथ की शोभायात्रा बड़े धूमधाम से निकाली जाती है। दिन के अंत में व्रतधारी महिलाएं माता पार्वती और भोलेनाथ से संबंधित गीत गाते हुए नृत्य करती है और झूला झूलती है।
07.व्रतधारी महिलाएं तीज के दिन माता पार्वती की पूजा अर्चना कर अपने सुहाग को दीर्घायु प्रदान करने के लिए सच्चे मन से माता गौरी और भोलेशंकर से प्रार्थना करने चाहिए।
पूजा सामग्रियों की सूची
हरितालिका तीज के दिन देवी पार्वती और भगवान भोलेनाथ की पूजा करने की विधान है। पूजा करने के दौरान मां पार्वती, भगवान शिव और भगवान गणेश की तस्वीरें, तांबे या पीतल का लोटा, जल कलश के लिए मिट्टी का बर्तन, वस्त्र, आभूषण, सूखे मेवे, तिल, जौ, पान, दूध, दही, मधु, चावल, अष्टगंध, दीपक, तेल, रूई, चंदन, धतूरा, आंकड़े का फूल, बेलपत्र, भांग, घी, गन्ने का रस, गंगाजल, मौसमी फल, जनेऊ, मिठाई, नारियल, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और गुड़) अंत मे दक्षिण रख ले।
पूजा करने के पहले लें संकल्प
कैसे करें संकल्प, इसे हम विस्तार से बताता है। किसी विशेष मनोकामना के पूरी करने के लिए पूजन से पहले संकल्प लेने की जरूरत पड़ती है। जानें कैसे करें संकल्प पूजा ? पूजा करने से पहले अपने दोनों हाथों को शुद्ध जल से धो लें। इसके बाद दोनों हाथ जोड़कर संकल्प लेना चाहिए। संकल्प लेने से पहले हाथ में जल, दूर्वा, चावल और फूल रख लें।
संकल्प में यह कहें कि हे माता पार्वती और भोलेनाथ आप मेरे पति को दीर्घायु प्रदान करें। इसके बाद जिस दिन आप पूजा कर रहे हैं उस दिन का नाम, कौन सी तिथि, विक्रम संवत, देश का नाम, जगह का नाम, अपना नाम और गोत्र का नाम लेकर अपनी मन की इच्छा बोलेें। इसके बाद हाथ में रखे हुए सभी चीजों को भगवान भोलेनाथ, माता पार्वती और भगवान गणेश के चरणों में अर्पित कर दें।
माता पार्वती और भोलेनाथ की पूजा कैसे करें जानें संपूर्ण विधि
सबसे पहले माता पर्वती की प्रतिमा भगवान शिव की बाई तरफ स्थापित करना चाहिए। इसके बाद शिव पर्वती की पूजा आरंभ करें।
शिव और पार्वती को शुद्ध जल से स्नान कराएंं। स्नान के बाद गंगाजल से फिर पंचामृत से और इसके बाद एक बार फिर से शुद्ध जल से स्नान कराएंं। शिव पार्वती को वस्त्र और आभूषण अर्पित करें।
तीज के दिन स्त्रियां निर्जला व्रत रखती हैं। हाथों में हरे रंग की नई चूड़ियां, हरि साड़ी, मेहंदी और पैरों में अल्ता लगाती हैं। इसे सुहाग का प्रतीक माना जाता है। व्रतधारी महिलाएं नए वस्त्र पहनकर मां पार्वती की पूजा-अर्चना करती हैं।
पूजा के दौरान माता पार्वती को आभूषण और फूलों का माला पहना चाहिए। इसके बाद इत्र लगा कर तिलक करें।
ऊं साम्ब शिवाय नमः मंत्र जप करते हुए भगवान शिव को अष्टगंध का तिलक लगाएंं। ऊं गौयें नमः करते हुए माता पर्वती को कुमकुम का तिलक लगाएं। अब धूप, दीप और पुष्प अर्पित करें ।
श्रद्धा अनुसार घी या तिल तेल का दीपक जलााएं।
आरती के उपरांत परिक्रमा करें। इसके बाद नवैद्ध अर्पित करें। शिव और पार्वती को बिल्वपत्र से पूजन करें। कनेर का पुष्प अर्पित करें। गौरी शंकर के पूजन के समय ऊं उमामहेश्वराम्यां नमः मंत्र का जाप करें।
यह तीज व्रत सिर्फ महिलाओं तक ही सीमित नहीं है, बल्कि कई जगहों पर पुरुष मां पार्वती और भोलेनाथ की प्रतिमा को पालकी पर बैठाकर झांकी भी निकालते हैं।
मंत्र
गण गौरी शंकरार्धांगि यथा त्वं शंकर प्रिया।
मां कुरु कल्याणी कांत कांता सुदुर्लभाम्।।
इस मंत्र से भगवान शिव तथा माता पार्वती प्रसन्न होकर तत्काल अपने भक्त को अच्छा अनुसार वर प्रदान करती है। तीज पूजन के समय श्रीगणेश का पूजन करना परम फलदायक माना गया है।
हरितालिका तीज क्यों है महत्वपूर्ण
हरितालिका तीज व्रत में मां पार्वती के अवतार (स्वरूप) तीज माता की व्रत रख पूजा की जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार मां पार्वती ही भाद्रपद महीने की तृतीया तिथि को देवी के रूप में (तीज माता के नाम से) अवतरित हुई थीं। इसलिए इस दिन तीज माता की व्रत करने की विधान है।
तीज पर्व के एक दिन पहले ही विवाहित महिलाएं तथा कन्याएं अपने हाथों में मेहंदी लगाकर गीत गाते हुए मां पार्वती को खुश करने के लिए नृत्य भी करतीं हैं।
इस व्रत का महत्वपूर्ण पहलू यह है कि सुहागन महिलाएं अपना और अपने पति के सौभाग्य बनाए रखने के लिए माता पार्वती और भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए 24 घंटे की निर्जला व्रत रखती हैं। अविवाहित कन्याएं सुयोग्य पति प्राप्ति हेतु अखंड निर्जला व्रत रखती हैं।
शिव और पार्वती के पुनर्मिलाप के अवसर पर हरितालिका तीज मनाया जाता है। इसके बारे में सनातनी मान्यता है कि माता पार्वती ने 107 जन्म लिए थे। भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए, परन्तुु मिलन हो न सका। अंतत: मां पार्वती ने 108 वें जन्म में भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए कठोर तप और साधना की। अंंत में शिवजी ने पार्वतीजी को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया।
तभी से ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से मां पार्वती खुश होकर व्रतधारियों के पतियों को दीर्घायु और निरोग होने का आशीर्वाद देती हैं।
मनचाहे वर के लिए युवतियां करें हरितालिका तीज का व्रत
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरितालिका तीज के नाम से जाना जाता है। भविष्य पुराण में देवी पार्वती कहती है कि भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष के तृतीया तिथि का व्रत उन्होंने बनाया है और किया भी है। तीज व्रत करने से स्त्रियां सदा सुहागिन बनी रहती है।
भाद्रपद महीने में तृतीया तिथि को सौ वर्ष की तपस्या के बाद देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने का वरदान प्राप्त किया था। उसी प्रकार अगर कोई कुमारी कन्या इस व्रत को करती है तो उसे भी मनचाहा वर प्राप्त होते हैं।
तीज के दिन झूला और मेलों का होता है आयोजन
हरितालिका तीज के दिन जगह-जगह झूले झूलने का आयोजन किया जाता है। इस त्योहार में स्त्रियां हरी साड़ियां या चुनरी पहनकर लोक गीत गाती हैं और मेंहदी लगाती हैं।
श्रृंगार करती हैं। झूला झूलती हैं। नृत्य भी करती हैं। हरितालिका तीज के दिन अनेक स्थानों पर मेले का आयोजन किया जाता हैं। माता पार्वती और भोलेनाथ की शोभायात्रा बड़े धूमधाम और गाजे-बाजे के साथ से निकाली जाती है।
मायके से आते हैं श्रृंगार के सामान, मिठाइयां और नया वस्त्र
हरितालिका तीज के दिन विवाहिता स्त्रियों के मायके से श्रृंगार के सामान, नया वस्त्र, फल और मिठाइयां व्रत करने के लिए उनके ससुराल आती है। हरितालिका तीज के दिन महिलाएं सुबह घर के काम और स्नान करने के बाद सोलह श्रृंगार करके निर्जला व्रत रखती हैं। इसके बाद मां पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती है।
पूजन करने के उपरांत हरितालिका तीज की पौराणिक कथा सुनी जाती है। कथा के समाप्ति के पश्चात महिलाएं मां पार्वती से पति की दीर्घायु की कामना करती है।
तीज के दिन घर में उत्सव जैसा माहौल रहता है। भजन व लोक गीत और नृत्य का आयोजन किया जाता है। इस दिन हरे रंगों की वस्त्र, हरी चुनरी, हरे रंग की साड़ी और सोलह श्रृंगार, हाथ और पैरों में मेहंदी लगाती है और झूला-झूलने का आनंद उठाती है।
माता पार्वती और भोले शिव के मिलने का पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार माता पार्वती का जन्म हिमालय राजा के घर में हुई थी। शुरू से हैं माता पार्वती भोलेनाथ के भक्त थीं। उनकी मन में हमेशा भोलेनाथ को पति के रूप में देखने की प्रबल इच्छा रहती थी।
माता पार्वती ने भोलेनाथ को वर के रूप में पाने के लिए महल में रहते हुए कठिन व्रत करने लगी। पिता हिमालय ने अपनी पुत्री पार्वती को भोलेनाथ के प्रति अगाध भक्ति देखते हुए दुःखी रहते थे। उसी समय नारद जी आ गए। नारदजी पार्वती की कथा सुनने के बाद उन्होंने राजा हिमालय को मां पार्वती के लिए विष्णु भगवान को वर के रूप में स्वीकार करने का सुझाव दिया। राजा हिमालय ने नारदजी की बात मान ली और अपनी सहमति दे दी।
श्रीहरि के डर से महल से भागी पार्वती
राजा हिमालय से सहमति मिलने पर नारद जी ने क्षीर सागर में विश्राम कर रहे भगवान विष्णु को सुखद समाचार सुनाएं और नारदजी पार्वती से विवाह करने के लिए भगवान विष्णु से सहमति प्राप्त कर लिएं।
जब यह समाचार पर्वती जी को पता चला तो वह विचलित हो गई और अपने सखियों से अपनी मन की बात कही। साथ ही भोलेनाथ को प्राप्ति के लिए उपाय पूछी।
सखियों ने मां पार्वती को घने जंगल में ले जाकर एक गुफा में छिपा दिए और तपस्या करने का सुझाव दिया। माता पर्वती गुफा में भोलेनाथ की तपस्या करने लगी। जंगल के गुफा में संयोग बस भाद्रपद माह, शुक्ल पक्ष, तृतीय तिथि और हस्त नक्षत्र के सुखद संयोग के दिन बालू का शिवलिंग बनाकर माता पार्वती पूरी निष्ठा और विधि विधान से भगवान शिव जी कि पूजा अर्चना करने लगी।
माता पार्वती की हठ ने झुकाएं भोलेनाथ को
भगवान भोलेनाथ माता पार्वती की पूजा, आराधना, समर्पण और हठयोग देखकर काफी खुश हुए और अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार करने का वचन दे दिया।
दूसरी ओर माता पर्वती को घर से चले जाने पर पिता हिमालय काफी चिंतित हुए और जंगल में खोजते हुए गुफा के समक्ष पहुंच गए।
माता पार्वती ने अपनी पूजा और भोलेनाथ से दर्शन और पत्नी के रूप में स्वीकार करने की पूरी कथा कह सुनाई । राजा हिमालय पार्वती से कथा सुनकर काफी प्रसन्न हुए और शिव को दामाद के रूप में स्वीकार करने का वचन दे दिया।
पारण करने का उचित समय
पारण करने का उचित समय सुबह 06:08 बजे के बाद बनता है।
करण सुबह 06:08 बजे तक भद्राकाल चल रहा है। भद्रा काल का निवास स्थान पाताल लोक में है। इसलिए यह इतना ज्यादा अशुभ नहीं है। फिर भी भद्राकाल समाप्ति के बाद ही पारण करें, जो अच्छा रहेगा।
पारण करते समय क्या करें
पारण करने के पूर्व स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें। शिव पार्वती का विधि विधान से पूजन करें और व्रत के दौरान होने वाली गलतियों के लिए क्षमा मांगे। अपनी कार्य सिद्धि के लिए एक बार फिर प्रार्थना करें। इसके बाद पूर्व की ओर मुख करके सात्विक भोजन और शुद्ध जल ग्रहण करें। अंत में प्रसाद का वितरण करें।