16 जुलाई से शुरू हुआ मलमास, जो 16 अगस्त को समाप्त हो जायेगा। इसके बाद शुरू होगा शुद्ध श्रावण मास जो 31 अगस्त सावन पूर्णिमा के दिन हो रहा है समाप्त।
धर्म शास्त्रों में मलमास को दूषित महीने के रूप में माना गया है। सनातन धर्म में मलमास के दिनों को अत्यंत अशुभ माना है। मलमास में सभी प्रकार के शुभ कार्यों पर ब्रेक लग जाते हैं। मलमास में मुंडन, नया व्यापार आरंभ करना, नामकरण संस्कार, गृह प्रवेश, शादी-विवाह सहित अन्य किसी भी तरह के शुभ कार्य करना वर्जित हो जाते हैं।
मलमास का मतलब होता है क्या ?
सनातनी धर्म शास्त्रों के अनुसार, भगवान सूर्यदेव प्रत्येक माह एक राशि से दूसरे राशि में प्रवेश अर्थात गोचर करते हैं, जिसे हम संक्रांति कहते हैं। 12 तरह के सौर मास होते हैं और 12 तरह की राशियां होती हैं। जब दोनों पक्षों में संक्रांति नहीं होती, तब मलमास लगते हैं। कहने का मतलब यह है कि 12 माह के लिए 12 राशियां हैं, जो एक दूसरे में संक्रांति करती है। अधिमास होने की स्थिति में संक्रांति करने के लिए कोई राशि नहीं मिलती है। इसीलिए इसे राशि विहिन मल-मास कहा जाता है।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार मलमास 32 माह 16 दिनों के बाद आते हैं। अर्थात प्रत्येक तीसरे वर्ष में मलमास लगते हैं। यह मलमास 3 साल के बाद बनने वाली तिथियों के योग से बनते हैं। देश के कई भागों में इसे पुरुषोत्तम मास, अधिक मास या मलमास के नाम से जानें जाते हैं।
कब से शुरू हुआ मलमास, जानें विस्तार से
पौराणिक कथाओं के अनुसार माना गया है कि हिरण्यकशिपु ने भगवान ब्रह्मा से ऐसा वरदान मांग लिया था कि कोई भी प्राणी अर्थात नर हो या नारी या हो नारायण, किसी भी अस्त्र-शस्त्र से, किसी भी जगह पर और किसी भी समय अर्थात काल में उसे कोई मार नहीं सकता था। भगवान श्रीहरि विष्णु ने अपने परम भक्त प्रह्लाद की आत्म रक्षा के लिए अपनी दूरदृष्टि से सभी शर्तों का पालन करते हुए हिरण्यकशिपु के वध करने की एक व्यूह के समान योजना बनाई। श्रीहरि विष्णु ने आधा प्राणी और आधा सिंह के रूप धारण कर नृसिंह का अवतार लेकर, खंभे से प्रकट होकर, घर और द्वार के बीच में अपनी जंघा पर सोलाकर, न दिन और न रात अर्थात गोधूलि की वेला में, बिना अस्त्र-शस्त्र के अपने नाखूनों से हिरण्यकशिपु की छाती को फाड़ डाली, जिससे उसकी मृत्यु हो गई।
दुष्ट राक्षस को मारने के लिए भगवान श्रीहरि विष्णु ने बारह महीनों में से किसी भी महीने को न चुनकर तेरहवें माह का उपयोग किया जिसे हम मलमास अर्थात पुरुषोत्तम मास के नाम से जानते हैं ।
पुरुषोत्तम मास की गणना कैसे होती है
पुरुषोत्तम मास अर्थात मलमास की गणना इस प्रकार किया जाता है। सूर्य का एक वर्ष जिसे हम सौर वर्ष कहते हैं।वह 365 दिनों का रहता है। उसी प्रकार चन्द्र वर्ष 354 दिनों का होता है। सूर्य और चन्द्र के एक वर्ष की समय-सीमा में 11 दिनों का अंतर रहता है। अर्थात पंचांग गणना के अनुसार प्रत्येक तीसरे चन्द्र वर्ष में एक और अतिरिक्त माह को जोड़कर सौर वर्ष और चन्द्र वर्ष का समय समान कर दिया जाता है। इसी मास को पुरुषोत्तम, मलमास या अधिक मास कहते हैं। मलमास 28 से 36 महीनों के बाद आते हैं ।
इस महीना को मल-मास इसलिए कहा जाता है क्योंकि सभी तरह के शुभ कार्य बंद हो जाते हैं और और इस माह में सूर्य की संक्रांति भी नहीं होती है।
मलमास कैसे बना पुरुषोत्तम माह, जानें श्रीकृष्ण कथा से
जिस किसी पर भगवान श्रीकृष्ण की कृपा हो जाते हैं। वाह तीनो लोक में सर्वश्रेष्ठ और पूजनीय बन जाते हैं। ऐसा ही वाक्य मलमास के साथ घटित हुआ। जानें कथा विस्तार से।
सूर्य की संक्रांति नहीं होने पर मलमास के दिनों में देवी-देवताओं सहित पितरों की पूजा और शुभ काम वर्जित हो गया। इस कारण मलमास को लोग हेय दृष्टि से देखने लगे और निंदा करने लगे।
लोगों के अपमान से दु:खी होकर मलमास पहुंच गया वैकुण्ठ धाम। वैकुंठ धाम पहुंचकर मलमास ने भगवान श्रीहरि विष्णु से रो-रोकर बोला हे, भगवान श्रीहरि विष्णु मैं एक ऐसा अभागा हूं जिसका न कोई अच्छा सा नाम ही है। न ही हमारा कोई स्वामी है और न ही कोई ठिकाना है हमारा। इसलिए सभी जीव-जंतु हमारा अपमान और तिरस्कार करते रहते हैं। इतना कहकर मलमास श्रीहरि विष्णु के चरणों में गिर पड़ा।
शरणागत हुए मलमास को लेकर श्री हरि विष्णु गोलोक अर्थात भगवान श्रीकृष्ण की नगरी पहुंच गए। जहां भगवान श्रीकृष्ण स्वर्ण जड़ित सिंहासन पर विराजमान थे।
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा हमारे गोलोक में शोक और मोह के लिए कोई स्थान नही है। पर यह कौन है जो रो रहा है। कांप रहा है और आंसू बहा रहा है। तुम अपना संपूर्ण परिचय दो।
भगवान श्रीहरि विष्णु ने मलमास की सारी व्यथा भगवान श्रीकृष्ण को विस्तार से सुनाई। व्यथा सुनने के बाद श्रीकृष्ण ने कहा।
‘षडैश्वर्य, प्रभाव, कीर्ति सद् गुण और पराक्रम जो भक्तों को वरदान देने सहित जितने भी सद् गुण जो मुझे पुरुषोत्तम बनाता हैं। उन सभी को मैं आज से ही मलमास को सौप रहा हूं। मेरा नाम जो शास्त्रों, वेदों और लोकों में प्रसिद्ध है। आज से ‘पुरुषोत्तम’ नाम से यह दुःखी मलमास तीनों लोकों में प्रख्यात होगी। मैं स्वयं इस माह का स्वामी बन गया हूं। इस पुरुषोत्तम मास में जो नर-नारी मेरी पूजा और आराधना करते हैं, उसे मरने के बाद मैं गोलोकधाम प्रदान करुंगा।
मलमास को भगवान का घर बताया गया है, अथर्ववेद में।
‘त्रयोदशो मास इन्द्रस्य गृह:’
मलमास खत्म होने के बाद और कितने पड़ेंगे सोमवारी व्रत
मलमास की समाप्ति के बाद दो सोमवारी व्रत पड़ेगा। एक 21 अगस्त को तो दूसरा 28 अगस्त को।
21 अगस्त सावन का सातवां सोमवारी व्रत है। 21 अगस्त को पड़ने वाले सोमवारी के दिन नाग पंचमी और तक्षक पूजा होगी। इस कारण यह सोमवारी व्रत बेहद शुभ रहेगा।
28 अगस्त को अंतिम सोमवारी व्रत
श्रावण माह के आखिरी सोमवार 28 अगस्त को पड़ रहा है। सोमवारी व्रत के दिन ही प्रदोष व्रत पड़ रहा है। प्रदोष का व्रत भगवान भोलेशिव को समर्पित है। इस कारण यह दिन अत्यन्त शुभ और कल्याणकारी बन गया है।
डिस्क्लेमर
मल मास की कथा उपलब्ध धार्मिक ग्रंथों और पुस्तकों से लिया गया है। साथ ही सनातनी परंपरा का भी समावेश किया गया है। विद्वान पंडितों से विचार विमर्श कर लिखा गया है। इसके अलावा इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्रियों का भी कमोवेश समावेश किया गया है। यह कथा सनातन धर्म की प्रचार प्रसार के लिए लिखा गया है। लेखक की हार्दिक इच्छा है कि सनातनी इस लेख को जरूर पढ़ें।