पूरी के रथयात्रा पर पढ़ें तीन-तीन पौराणिक कथा व संपूर्ण जानकारी

भगवान विष्णु के चार धाम में एक धाम जगन्नाथ पुरीधाम है। जहां प्रति वर्ष आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को रथ यात्रा निकाली जाती है।

पुरी में रथयात्रा इस वर्ष आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि अर्थात 20 जून 2023, दिन मंगलवार को निकलेगा।

भगवान जगन्नाथ, भाई बलराम और बहन सुभद्रा 04 जून, दिन रविवार, पूर्णिमा तिथि से बीमार पड़ गए हैं।

15 दिनों तक बीमार रहने के कारण एकांतवास में रह रहे हैं, भाई-बहन और भगवान।

15 दिनों तक भक्तों को भगवान के दर्शन और मंदिर में प्रवेश करना पूरी तरह बंद रहेगा।

15 दिनों तक रहते हैं जगन्नाथ मंदिर का कपाट बंद। सिर्फ पुजारी जो कविराज के रूप में भगवान और उनके भाई बहनों को इलाज के लिए मंदिर में प्रवेश कर सकते हैं।

15 दिनों तक भक्तों को प्रसाद के रूप में सिर्फ जड़ी-बूटी मिला जल मिलता है।

आषाढ़ मास, कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि अर्थात 18 जून दिन रविवार को भगवान बीमारी से ठीक हो जाएंगे।

19 जून दिन सोमवार, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि को भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र का भव्य श्रृंगार किया जाएगा और विशेष पूजा-अर्चना होगा।

20 जून 2023, दिन मंगलवार, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि को पुरी जगन्नाथ मंदिर रथ यात्रा निकाली जाएगी, जो मौसी बाड़ी में जाकर समाप्त हो जायेगी।

पौराणिक मान्यता है कि भगवान श्रीहरि विष्णु तामिलनाडु स्थित रामेश्वरम में स्नान करते हैं, गुजरात स्थित द्वारका में शयन करते हैं, उत्तराखंड स्थित बद्रीनाथ में ध्यान करते हैं और ओड़िशा स्थित पुरी में भोजन करते हैं।

पौराणिक मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ के दर्शन किए बिना चारों धामों की यात्रा अधूरी मानी जाती है।

अलग-अलग रथों पर भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा भाई बलभद्र सवार होकर अपने भक्तों के दर्शन के लिए मंदिर से बाहर निकलते हैं।

जगन्नाथ मंदिर से निकल कर रथ यात्रा अपने मौसी बाड़ी में जाकर सप्ताह भर भगवान श्रीकृष्ण, भाई बलराम और बहन सुभद्रा विश्राम करतीं हैं।

9 दिनों तक मौसी बाड़ी में विश्राम करने के बाद आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष हरिशयन एकादशी 29 जून, दिन गुरुवार को अपने घर भगवान कृष्ण, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा वापस आ जाते हैं।

पूरे एक माह तक चलता है भगवान जगन्नाथ रथयात्रा महोत्सव।
प्रतिवर्ष उड़ीसा के पूर्वी तट पर स्थित पुरी में भगवान जगन्नाथ जी की रथ-यात्रा का भव्य उत्सव पारंपरिक रीति के अनुसार बड़े धूमधाम से आयोजित किया जाता है।

जगन्नाथ रथयात्रा उत्सव आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया से आरंभ होकर शुक्ल पक्ष हरिशयानी एकादशी तक चलती है

रथ यात्रा के दिन कैसा रहेगा जानें पंचांग से

आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि 20 जून 2023 दिन मंगलवार को रथयात्रा निकलेग।
अब आप जानें रथ यात्रा के दिन कैसा रहेगा। पंचांग के अनुसार सूर्योदय सुबह 05:24 बजे पर और सूर्यास्त शाम 07:22 बजे पर होगा।
चंद्रोदय सुबह 06:53 बजे पर चंद्रास्त रात 09:28 बजे पर होगा। रथयात्रा के दिन द्वितीय तिथि दिन के 01:07 बजे तक रहेगा। नक्षत्र पुनर्वसु, योग ध्रुव, सूर्य मिथुन राशि में और चंद्रमा मिथुन राशि में दिन के 03:58 बजे तक इसके बाद कर्क के राशि में गोचर करेंगे।
सूर्य नक्षत्र मृगशिरा, दिनमान 13 घंटा 58 मिनट, रात्रिमान 10 घंटा 02 मिनट का रहेगा। त्रिपुष्कर योग बन रहा है जो अहले सुबह 05:24 बजे से शुरू होकर दिन के 01:07 बजे तक रहेगा। आनन्दादि योग स्थित, होमाहुति सूर्य, दिशाशूल उत्तर, राहुकाल वास पश्चिम, अग्निवास पाताल और चंद्रवास पश्चिम और उत्तर दिशा में रहेगा।

रात को हाथ से कितना काफी शुभ
इस दौरान रथ को अपने हाथों से खिंचना बेहद शुभ माना जाता है। रथ यात्रा से संबंधित कुछ पौराणिक कहानियां मौजूद हैं। भगवान कृष्ण और बलराम को छल से मारने के लिए, उनके मामा कंस ने दोनों भाइयों को मथुरा में आमंत्रित किया था। कंस ने अक्रूर जी को गोकुल रथ के साथ भेजा था।

पहली पौराणिक कथा
बलराम के साथ भगवान कृष्ण, रथ पर बैठे और मथुरा के लिए चल दिए। भगवान विष्णु के भक्त प्रस्थान के इस दिन को रथ यात्रा के रूप में मनाते हैं। भगवान कृष्ण मथुरा पहुंचने पर अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ रथ पर सवार होकर नगर वासियों को दर्शन देने के लिए निकले थे। नगर वासियों ने अपने हाथों से रथ खींच कर उनका स्वागत किया था।

दूसरी पौराणिक कथा
एक बार की बात है, भगवान कृष्ण की आठ पत्नियां, कृष्ण और गोपी की मां रोहिणी से जुड़ी कुछ दिव्य कथाओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहती थीं।
शुरू में मां रोहिणी कहानी नहीं बताना चाहती है। अंत में, एक लंबे अनुरोध के बाद, वह मान गई लेकिन इस शर्त पर कि सुभद्रा दरवाजे की रखवाली करेगी ताकि कोई भी अंदर आकर कहानियां सुन न लें।
सुभद्रा कहानी सुनकर इतनी मदमस्त और मोहित हो गईं कि भगवान कृष्ण और बलराम को कब अंदर आ गए पता ही नहीं चला। सुभद्रा जब होश में आई, तो उनके बीच में अपने हाथों को चौड़ा करके खड़े होकर उन्हें रोक दिया।

उसी समय, ऋषि नारद पहुंचे और उन्होंने तीन भाई-बहनों को एक साथ देखा। इसलिए, उन्होंने उन तीनों के लिए प्रार्थना की कि वे अपना आशीर्वाद हमेशा के लिए इस तरह प्रदान करें। तब देवताओं ने नारद की इच्छा पूरी की। अब तीनों देवता पुरी के जगन्नाथ मंदिर में सदा निवास करने लगे।

रथयात्रा की तीसरी पौराणिक कथा
जगन्नाथ यात्रा के बारे में एक और कहानी है। कई लोगों का कहना है कि द्वारका में रथ यात्रा उत्सव भगवान कृष्ण, बलराम और सुभद्रा से जुड़ा है।

द्वारका में, विष्णु भक्तों द्वारा उस दिन जश्न मनाया जब बलराम, भगवान कृष्ण, उनकी बहन सुभद्रा रथ पर सवार होकर विजया जुलूस के रूप में शहर की जनता के बीच गए थे।
जगन्नाथ रथ यात्रा क्यों मनाई जाती है?

भगवान जगन्नाथ यात्रा से जुड़ी कई कहानियां हैं, इसलिए हर कहानी के साथ इसे मनाने का तरीका अलग-अलग है। उदाहरण के लिए, यदि हम सबसे चर्चित कहानी के साथ जाते हैं, तो भगवान कृष्ण हर साल एक बार अपने घर लौटना चाहते हैं। इस प्रकार, सभी भक्त रथ खींचते हैं, जगन्नाथ मंदिर जाते हैं और सर्वशक्तिमान भगवान विष्णु से आशीर्वाद लेते हैं।
जगन्नाथ रथ यात्रा भगवान कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए भारी उत्साह के साथ मनाई जाती है।

जगन्नाथ रथ यात्रा का क्या महत्व है?
जगन्नाथ दो शब्दों से बना है। जग से बना है जो ब्रह्मांड का स्वरूप है और नाथ का अर्थ है भगवान, यानी 'ब्रह्मांड का भगवान। इसलिए भगवान जगन्नाथ को भगवान विष्णु के अवतारों के अवतार के रूप में जाना जाता है।

जगन्नाथ मंदिर से रथ निकल गुडिचा मंदिर जाता है
प्रतिवर्ष रथ यात्रा को भक्तों द्वारा व्यापक रूप से जाना जाता है। मूर्तियों को एक रथ पर ले जाया जाता है, और इसलिए, तीन रथ भक्तों द्वारा पुरी की सड़कों के माध्यम से कुछ किलोमीटर दूर गुंडिचा मंदिर तक खींचे जाते हैं।

रथ खींचने से सारे पाप हो जाते हैं नष्ट
ऐसी मान्यता है कि जुलूस के दौरान अपने भगवान के रथों को खींचना भगवान की भक्ति में शामिल होने का एक तरीका है। यह उन पापों को भी नष्ट कर देता है जो मनुष्य से जाने या अनजाने में किए गए पाप हो।
कई भक्त भगवान का आशीर्वाद लेने और अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए दुनिया भर में जगन्नाथ रथ यात्रा को व्यापक रूप से मनाने आते हैं। रथ यात्रा के समय वातावरण कितना शुद्ध और आनंदमय होता है। जगन्नाथ रथ यात्रा गुंडिचा यात्रा, रथ महोत्सव, दशावतार और नवदीना यात्रा के रूप में जगत में प्रसिद्ध है।

जगन्नाथ रथ यात्रा किसने शुरू की?
जगन्नाथ रथ यात्रा का इतिहास बहुत समृद्ध है। ऐसा माना जाता है कि मुगल काल में राजस्थान स्थित जयपुर के राजा रामसिंह को 18वीं शताब्दी में रथ यात्रा आयोजित करने का वर्णन पढ़ने को मिलता है। ओडिशा में, मयूरभंज और परलाखेमुंडी के राजाओं ने रथ यात्रा का आयोजन किया, हालांकि बड़े पैमाने और लोकप्रियता के मामले में सबसे भव्य त्योहार पुरी में मनाया जाता है।

रथ यात्रा के दौरान रथों द्वारा कितनी दूरी तय की जाती है?
रथ यात्रा, या रथ उत्सव 10 से 12 दिनों का चलने वाला वार्षिक उत्सव है। इस दौरान भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को रथों में बैठाकर ले जाया जाता है। नौ दिनों के लिए जगन्नाथ मंदिर से 3 किमी दूर गुंडिचा मंदिर में रहते हैं।
देवताओं को गुडिंचा क्यों ले जाया जाता है, इस पर हिंदू पौराणिक कथाओं में अलग-अलग मत हैं। एक कथा यह है कि देवराज इंद्र युम्ना की रानी गुडिंच से मिलते हैं, जिनके बारे में माना जाता है कि उन्होंने ही मंदिर का निर्माण करवाया था।
एक और कथा यह है कि त्योहार के चौथे दिन, भगवान जगन्नाथ की पत्नी देवी लक्ष्मी अपने पति को मिलने के लिए गुंडिचा मंदिर आती हैं।
नौ दिनों तक मौसी बाड़ी में रहने के बाद भगवान कृष्ण, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को वापस जगन्नाथ मंदिर में लाया जाता है। यात्रा का नाम बहुदा जात्रा या जगन्नाथ यात्रा कहा जाता है। इसलिए भक्तों द्वारा रथ खींचे जाते हैं।

जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक तीन रथों के जुलूस का नाम पहंडी है।
रथ यात्रा को गुंडिचा यात्रा क्यों कहा जाता है?
रथ यात्रा को प्रारंभिक रूप से गुंडिचा जात्रा, नवदीना जात्रा, घोसा जात्रा, दशावतार जात्रा और कई अन्य नामों से जाना जाता है।
ऐसा माना जाता है कि भगवान रानी की भक्ति से प्रसन्न हुए और उन्हें वर्ष में एक बार दो दिनों के प्रवास के लिए उनके महल में आने का वादा करते हुए वरदान दिया। रानी गुंडिचा का निवास बाद में एक मंदिर बन गया।
एक और कहानी है कि गुंडिचा भगवान जगन्नाथ की मौसी हैं, जो अपने बहिन बेटों को सालाना स्वागत करना पसंद करती हैं ताकि उन्हें प्यार और और दुलार दिया जा सके।

अब जानें तीनों रथों की खासिय
जगरनाथ रथ यात्रा में लगने वाले तीनों रथों का नाम तालध्वज, दर्पदलन और नंदीघोष है। रथ यात्रा में बलरामजी तालध्वज रथ की सवारी करते हैं। बहन सुभद्रा के रथ का नाम दर्पदलन है। भगवान जगन्नाथ नंदीघोष या ‘गरुड़ध्वज रथ पर सवार रहते हैं। कहा जाता है कि भगवान जगन्नाथ जी का रथ सबसे पीछे रहता है।
तीनों रथों में 16 पहिए लगे होते हैं और सभी रथों की ऊंचाई साढ़े 13 मीटर तक रहतीं है। रथ को चारों ओर से ढांकने के लिए लाल और पीले रंग के 1100 मीटर कपड़ों का इस्तेमाल किया जाता है। इस रथ को बनाने में 832 विभिन्न तरह की लकड़ियों के टुकड़ों को इस्तेमाल किया जाता है।

श्री कृष्ण रथ के झंडे नाम त्रिलोक्य मोहिनी है
श्रीकृष्ण रथ के सारथी का नाम दारुक है। इस रथ का रक्षा भगवान विष्णु के वाहन पक्षीराज गरुड़ और नृसिंह करते हैं। रथ पर लगे झंडें का नाम त्रिलोक्य मोहिनी है। रथ पर जय और विजय नामक दो द्वारपाल उपस्थित रहते हैं।

भगवान श्रीकृष्ण के घोड़ों का रंग सफेद है
श्रीकृष्ण के रथ में जोते जाने वाले घोड़ों का नाम शंख, बलाहक, श्वेत एवं हरिदाश्व है। घोड़े का रंग सफेद होता है। इसके अलावा भगवान जगन्नाथ के रथ की रक्षा के लिए शंख और सुदर्शन स्तंभ भी लगा रहता है। रथ को जिस रस्सी से खींचा जाता है, उसका नाम शंखचूड़ है।

जगन्नाथ के रथ के साथ आठ ऋषियों चलते हैं
श्रीकृष्ण रथ पर भगवान जगन्नाथ के अलावा अन्य सहायक देवता के रूप में वराह, गोवर्धन, कृष्ण, नृसिंह, राम, नारायण, त्रिविक्रम, हनुमान और रूद्र भी उपस्थित रहते हैं। भगवान जगन्नाथ के रथ के साथ आठ ऋषि भी चलते हैं। जिनके नाम नारद, पाराशर, विशिष्ठ, विश्वामित्र, देवल, व्यास, शुक, और रूद्र हैं।

श्रीकृष्ण के रथ का नाम तालध्वज है
भगवान श्रीकृष्ण के रथ का नाम तालध्वज है। इस रथ की ऊंचाई 13.2 मीटर है। रथ में 14 पहियों लगे रहते हैं। जो लाल, हरे रंग के कपड़े व लकड़ी के 763 टुकड़ों से बनता है। इस रथ के रक्षक वासुदेव और सारथी मताली हैं। इस रथ में झंडा का नाम उनानी हैं।

बलराम जी के रथ के घोड़े काले होते हैं
बलराम जी के रथ को काले रंग के 4 घोड़े खींचते हैं। इन घोड़ों का नाम दीर्घशर्मा, त्रिब्रा स्वर्णनवा और घोरा है। बलराम जी के रथ पर नंद और सुनंद नाम के 2 द्वारपाल रक्षा करते हैं। रथ की रक्षा के लिए हल और मुसल भी होते हैं। इनके रथ की शक्तियों के नाम शिवा और ब्रह्मा है। इनके रथ को खिंचने के लिए नागों के देवता वासुकी नाग के रुप में रस्सी इस्तेमाल किया जाता है।

रथ के साथ सात ऋषियों का दल चलता है
इस रथ में बलराम जी के अलावा उनके अन्य सहायक देवता के रूप में गणेश, कार्तिकेय, प्रलंबरी, हलायुध, मृत्युंजय, नटवर, सर्वमंगल, मुक्तेश्वर और शेषदेव होते हैं। बलराम जी के रथ के साथ अंगिरा, पौलस्त्य, कश्यप, पुलह, मुद्गल, आत्रेय और असस्ति ऋषियों का झूंड भी चलते हैं।

सुभद्रा के रथ का नाम देवदलन है
बहन सुभद्रा देवदलन रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण को निकती है। रथ अन्य नामों में दर्पदलन और पद्मध्वज भी है। रथ की ऊंचाई 12.9 मीटर है। रथ में 12 पहिए लगे रहते हैं। रथ को लाल रंग और काले रंग के कपड़ों से ढका रहता है। रथ में लकड़ी के 593 टुकड़ों का इस्तेमाल किया जाता है।

सुभद्रा का रथ लाल रंग का होता है
इस रथ के रक्षक मां दुर्गा और सारथी अर्जुन होते हैं। इस रथ की द्वारपाल यमुना और मां गंगा हैं। इनके रथ की झंड़े का नाम नदंबिका है। इनके रथ की रक्षा के लिए कल्हर और पद्म शस्त्र होते हैं।

इस रथ की शक्तियों के नाम भुवनेश्वरी और चक्र है। बहन सुभद्रा के रथ में लाल रंग होता है। रथ में चार घोड़े जोते जाते हैं। जिनके नाम अपराजिता, रोचिक, मोचिक और जिता है। इस रथ को खींचने वाली रस्सी का नाम स्वर्णचुड़ा हैं।
बहन सुभद्रा के अलावा रथ में सहायक देवियों के रुप में चंडी, चामुंडा, उग्रतारा, वनदुर्गा, वराही, श्यामा, काली, मंगला और विमला नाम की देवियां मौजूद रहते हैं। इनके रथ के साथ उलूक, भृगु, ध्रुव, श्रृंगी, व्रज और सुपर्व ऋषि साथ चलते हैं।

डिस्क्लेमर
यह लेख पूरी तरह से धार्मिक ग्रंथों, पौराणिक कथाओं और चलती आ रही परंपराओं पर आधारित है। कुछ बिंदुओं का मिलान इंटरनेट पर उपलब्ध साहित्यों लेख से भी किया गया है। रथ यात्रा का दिन कैसा रहेगा यह पंचांगों से उल्लेखित किया गया है। यह कथा आपको कैसा लगा जरूर पढ़ें और हमें ईमेल से सूचित करें। कथा में कुछ सुधार करना है या किसी प्रकार की आपत्ति हो, तो हमारे ईमेल से सूचित करें।

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