आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष एकादशी तिथि, दिन बुधवार, 14 जून को योगिनी एकादशी और देवरहा बाबा का जयंती है।
योगिनी एकादशी व्रतकथा के संबंध में पद्मपुराण में वर्णन मिलता है।
हर वर्ष आषाढ़ मास की कृष्ण पक्ष में पड़ने वाले एकादशी को योगिनी एकादशी या योगशयनी एकादशी भी कहते हैं।
योगिनी एकादशी व्रत कथा के वक्ता अर्थात कथाकार भगवान श्रीकृष्ण और ऋषि मार्कण्डेय थे जबकि धर्मराज युधिष्ठिर और हेम माली श्रोता थे।
प्राप्त जानकारी के अनुसार मेघदूत की रचना करते समय कालिदास ने एक शापित यक्ष के संबंध में वर्णन किया है।
मेघदूत में वह यक्ष मेघ माली जिसे उन्होंने एक दूत बनकर अपनी पत्नी के लिए सन्देश भेजता है।
माना जाता है कालिदास जी की मेघदूत की कथा कामिनी एकादशी कथा से प्रेरित है।
सनातन धर्म में हर एकादशी व्रत का अपना विशेष स्थान है। हर वर्ष चौबीस एकादशियां होती हैं।
अधिमास होने पर दो एकादशी तिथि बढ़ जाती है।
इस योगिनी एकादशी व्रत करने से सभी तरह के पाप नष्ट हो जाते हैं।
इस योगिनी एकादशी व्रत करने वाले जातक पृथ्वी लोक में आनंद पूर्व रहते हैं और मरने पर विष्णु धाम को प्राप्त करते हैं।
योगिनी एकादशी के दिन कैसा रहेगा दिन जानें विस्तार से
14 जून 2023, दिन बुधवार, आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादश को योगिनी एकादशी कहे जाते हैं।
योगिनी एकादशी के दिन सूर्योदय सुबह 05:23 बजे पर और सूर्यास्त शाम 07:20 बजे पर होगा। नक्षत्र अश्वनी दिन के 01:40 बजे तक इसके बाद भरणी नक्षत्र हो जाएगा।
योग अतिगंड, सूर्य वृषभ राशि में, चंद्रमा मेष राशि में और सूर्य नक्षत्र मृगशिरा रहेगा। आनन्दादि योग मृत्यु, होमाहुति राहु दिन के 01:40 बजे तक इसके बाद केतु हो जाएगा।
दिशाशूल उत्तर, राहुकाल वास दक्षिण-पश्चिम, अग्निवास पृथ्वी, चंद्रवास पूर्व दिशा में रहेगा।
13 जून 2023, दिन मंगलवार को सुबह 09:28 बजे से एकादशी तिथि प्रारंभ हो जाएगा, जो दूसरे दिन अर्थात बुधवार को सुबह 08:48 बजे तक एकादशी तिथि रहेगा। इसके बाद द्वादशी तिथि प्रारंभ हो जाएगा।
चारों पहर पूजा करने का शुभ मुहूर्त
एकादशी व्रत करने वाले व्रतधारियों को चारों पहर पूजा करने का विधान है। पंचांग और चौघड़िया पंचांग के अनुसार जानें शुभ मुहूर्त इस प्रकार है।
सुबह का शुभ मुहूर्त
योगिनी एकादशी के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त 04:02 बजे से प्रारंभ होकर 04:43 बजे तक, प्रातः सांध्य मुहूर्त सुबह 04:22 बजे से लेकर 05:23 बजे तक, लाभ मुहूर्त 05:23 बजे से लेकर 07:07 बजे तक और अमृत मुहूर्त सुबह 07:07 बजे से लेकर 08:52 बजे तक रहेगा। इस दौरान व्रतधारी सुबह स्नान कर एकादशी तिथि की प्रथम पूजन शुभ मुहूर्त के दौरान आप कर सकते हैं।
दोपहर का पूजा
दूसरे परह अर्थात दोपहर का पूजा करने का शुभ मुहूर्त दिन के 10:37 बजे से लेकर 12:00 बज के 21 मिनट तक शुभ मुहूर्त के रूप में रहेगा। इस दौरान व्रतधारी दोपहर का पूजा कर सकते हैं।
संध्या पूजन करने का शुभ मुहूर्त
तीसरे पहर अर्थात संध्या पूजन करने का शुभ मुहूर्त शाम 07:06 बजे से लेकर 07:30 बजे तक गोधूलि मुहूर्त के रूप में रहेगा। उसी प्रकार सायाह्य सांध्य मुहूर्त शाम 07:20 बजे से लेकर रात 08:30 बजे तक और लाभ मुहूर्त शाम 05:35 बजे से लेकर रात 07:20 बजे तक रहेगा। इस दौरान आप संध्या का पूजन अपने सुविधानुसार कर सकते हैं।
मध्य रात्रि का मुहूर्त
चौथे पहर अर्थात मध्य रात्रि को निशिता मुहूर्त रात 12:01 बजे से लेकर 12:42 बजे तक और चर मुहूर्त 11:06 से लेकर 12:21 बजे तक रहेगा। इस दौरान आप मध्यरात्रि की पूजा कर सकते हैं।
गुरुवार को पूजन कर पारण करने का शुभ मुहूर्त
गुरुवार अर्थात दशमी तिथि को प्रातः 04:02 बजे से लेकर 04:43 बजे तक ब्रह्म मुहूर्त और 04:30 बजे से लेकर 05:00 बज के 23 मिनट तक प्रातः सांध्य मुहूर्त रहेगा। इस दौरान पूजन कर आप पारण कर सकते हैं।
एकादशी तिथि की पूजा विधि
योगिनी एकादशी के उपवास की शुरुआत दशमी तिथि की रात्रि बेला से ही हो जाती है। व्रती को दशमी तिथि की रात्रि से ही मांसाहारी भोजन का त्याग कर शाकाहारी भोजन खाने चाहिेए। साथ ही ब्रह्मचर्य का पालन जरूर करें। अगर संभव हो सके तो जमीन पर ही सोना चाहिए।
एकादशी के दिन सबसे पहले ब्रह्म मुहूर्त में उठकर योगिनी एकादशी व्रत करने की संकल्प लें। इसके बाद नित्य कर्मों से निवृत्त होकर गंगा जल और तिल को मिश्रित कर स्नान करें। इसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें और एकादशी व्रत का संकल्प लें।
घर के मंदिर में पूजा करने से पहले एक वेदी बनाएं और उस पर 7 प्रकार के अन्न अर्थात (उरद, मूंग, गेहूं, चना, जौ, चावल और बाजरा) रखें।
05 या 07 आम या अशोक के पत्ते को कलश के ऊपर रखें। इसके बाद एक नारियल रख दें। उस कलश में जल, हल्दी, अक्षत, पैसा और कसैली डालकर बालू से बने वेदी पर रख दें।
इसके बाद वेदी पर भगवान श्रीहरि विष्णु की प्रतिमा या मूर्ति स्थापित करें।
उसके बाद भगवान विष्णु को पीले फूल, मौसमी फल और तुलसी की दाल चढ़ाएं।
अंत में अगरबत्ती, घी का दीपक या कपूर से भगवान विष्णु जी की आरती करें। पूजा खुद भी कर सकते हैं। किसी आचार्य ब्राह्मण से भी करवा सकते हैं। पूजा के दौरान योगिनी एकादशी की कथा भी जरुर सुननी चाहिये।
शाम को भगवान विष्णु की आरती करने के बाद फल खा सकते हैं।
रात को सोने के बजाय भजन-कीर्तन करते हुए जागरण करें।एकादशी के दिन गरीब और ब्राह्मणों को यथा शक्ति दान करना बहुत कल्याणकारी होता है। पीपल वृक्ष की पूजा एकादशी के दिन जरूर करनी चाहिये।
पीपल के वृक्ष पर भगवान विष्णु का वास रहता है। दूसरे दिन सुबह के समय किसी गरीब ब्राह्मण को भोजन कराएं और अपनी शक्ति के अनुसार जितना हो सके उतना दान और दक्षिणा देकर उसे ब्राह्मण को विदाई करें।
इसके बाद पारण करें और खाना खाकर व्रत तोड़ें। भगवान कृष्ण ने कहा कि महाराज युधिष्ठिर, योगिनी एकादशी व्रत करने से 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के तहत फल मिलता है। इस व्रत करने से सभी प्रकार के पाप दूर हो जाते हैं और अंत में जातकों को स्वर्ग प्राप्त हो जाता है।
एक समय की बात है धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवन श्रीकृष्ण से पूछा हे प्रभु हमने ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष एकादशी के व्रत और माहात्म्य के बारे में अपने हमें सुनाई। आप अब विस्तार पूर्वक आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाले एकादशी व्रत की कथा हमें सुनाइए। इस एकादशी व्रत कथा का नाम क्या है ? और क्या है इसका पौराणिक माहात्म्य?
श्रीकृष्ण कहते हैं कि हे राजन! आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाले एकादशी का नाम योगिनी एकादशी है। इस योगिनी एकादशी व्रत करने से सभी तरह के पाप नष्ट हो जाते हैं। इस एकादशी व्रत करने वाले इस पृथ्वी लोक में सुख शांति और समृद्धि पूर्वक रहते हुए परलोक सिधार पर मुक्ति धाम अर्थात विष्णु धाम में निवास करते हैं।
यह योगिनी एकादशी व्रत तीनों भुवन में प्रसिद्ध है। हम तुमसे पुराणों और धार्मिक पुस्तकों में वर्णित कथाओं को विस्तार से सुनाता हूं। ध्यान पूर्वक सुनो
श्रीकृष्ण कहा कि महाराज युधिष्ठिर आषाढ़ कृष्ण एकादशी का नाम योगिनी एकादशी है।
योगिनी एकादशी व्रत करने से मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। यह एकादशी व्रत पृथ्वी लोक में भोग और परलोक में मुक्ति देने वाली है। योगिनी एकादशी व्रत तीनों लोकों में प्रसिद्ध है।
मैं पुराणों और धार्मिक पुस्तकों में वर्णित योगिनी एकादशी कथा का वर्णन विस्तार से सुनाता हूं। कृपा करके ध्यान देकर सुनो।
योगिनी एकादशी की पौराणिक कथा
स्वर्गलोक की अलकापुरी नगरी में कुबेर नाम का एक राजा राज करता था। वह परम शिव भक्त था और रोजाना भगवान शिव की पूजा किया करता था। हेम नाम का एक माली शिव पूजन के लिए राजा कुबेर के पास पुष्प लेकर आया करता था।
हेम की विशालाक्षी नाम की सुंदर स्त्री थी। एक दिन वह मानसरोवर से पुष्प तोड़कर तो ले आया परन्तु कामा-वासना से युक्त होने के कारण वह अपनी स्त्री के संग हास्य-विनोद तथा रमण करने लगा।
दूसरी ओर राजा कुबेर उसकी दोपहर तक राह देखते रहे। अंत में राजा कुबेर ने सेवकों से कहा कि तुम लोग जाकर माली हेम के पास जाकर न आने का कारण पता करो। वह अभी तक फूल लेकर नहीं आया।
सेवकों ने आकर कहा कि महाराजा जी पापी हेमा माली अतिकामी हो गया है। वह माली अपनी स्त्री के साथ हास्य-विनोद और रमण कर रहा होगा। सेवकों के बात सुनकर राजा कुबेर क्रोधित होकर उसे शीघ्र बुलाने का आदेश दे दिए।
हेम माली राजा के भय से कांपता हुआ उनके पास उपस्थित हुआ। राजा कुबेर ने क्रोध में आकर कहा अरे नीच! पापी! और कामी! तूने मेरे परम पूजनीय देवों के देव महादेव का अनादर किया है, इसलिए मैं तुझे शाप देता हूं कि तू स्त्री का वियोग में जीतें हुए मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी के रूप में जन्म लेगा।
राजा कुबेर के शाप से माली हेमा का स्वर्ग से पलायन होकर वह उसी क्षण पृथ्वी पर आ गिरा। पृथ्वी लोक पर आते ही उसके शरीर श्वेत कोढ़ से भर गया। उसकी स्त्री भी उसी समय अंतर्ध्यान हो गई। मृत्युलोक में आकर माली ने महान दु:ख भोगे, भयानक जंगल में जाकर बिना अन्न और पानी के चारों ओर भटकता रहा।
रात को निंद नहीं आती थी। दूसरी ओर भोलेनाथ की पूजा के प्रभाव से हेमा माली को पिछले जन्म की घटनाओं का ज्ञान था। हेमा माली घूमते-घ़ूमते एक दिन वह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में पहुंच गया। मार्कण्डेय ऋषि ब्रह्मा से भी अधिक वृद्ध थे। उनका आश्रम ब्रह्मा की सभा के समान विशाल था। हेम माली ऋषि आश्रम पहूंचाकर मार्कण्डेय ऋषि के पैरों में गिर पड़।
हेमा माली को देखकर ऋषि मारर्कंडेय ने पूछा कि तुमने ऐसा कौन-सा महापाप किया है, जिसके कारण तुम्हारा यह हालत हो गया है। हेम माली ने सारा वृत्तांत ऋषि मार्कण्डेय को कह सुनाया। सारी बातें सुनकर मार्कण्डेय ऋषि बोले- यह सत्य है तूने मेरे सामने सत्य वचन कहा हैं। इसलिए मैं तेरे उद्धार के लिए एक व्रत बताता हूं।
तुम आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की योगिनी एकादशी व्रत का विधिपूर्वक संपन्न करेगा तो तेरे सारे पाप नष्ट हो जाएंगे।
मुनि के बात सुनकर हेम माली अत्यंत प्रसन्न होकर मुनि को साष्टांग प्रणाम किया। मुनि ने उसे स्नेह के साथ भुमि से उठाया। हेम माली ने मुनि के बताएं अनुसार विधिपूर्वक और निष्ठा पूर्वक योगिनी एकादशी का व्रत किया।
इस व्रत के प्रभाव से हेमा माली अपने पुराने स्वरूप में आ गया। तत्पश्चात उसे अपने शाप से छुटकारा मिल गया। वह फिर से अपने वास्तविक रुप में आकर अपनी पत्नी के साथ सुख से रहने लगा।
योगिनी एकादशी की दूसरी व्रतकथा
योगिनी एकादशी व्रत काफी प्रचलित है। पौराणिक ग्रंथों में योगिनी एकादशी को बहुत ज्यादा महत्व दिया गया है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार ही योगिनी एकादशी व्रत की कथा कुछ इस प्रकार है।
महाभारत काल की बात है कि एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद भगवान श्रीकृष्ण से पूछा हमें सारे पापों को नष्ट करने के लिए कौन सा एकादशी व्रत करना होगा। भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर से कहा कि आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की मोहिनी एकादशी करने से सारे पाप नष्ट हो जाएंगी
भगवान श्री कृष्ण ने कि योगिनी एकादशी के दिन विधिवत उपवास रखता है। प्रभु की पूजा करता है। उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। वह अपने जीवन काल में तमाम सुख-सुविधाओं और भोग-विलास का आनंद लेता हैं। अंत समय में उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
डिस्क्लेमर
योगिनी एकादशी कथा विभिन्न प्रकार के धार्मिक ग्रंथों और वेद-पुराणों से लिया गया है। शुभ मुहूर्त पंचांग से देखकर लिखा गया है। पौराणिक कथा सुप्रसिद्ध आचार्य के मुख से सुने गए कथाओं के आलेख को भी इस लेख में सम्मानित किया गया है। यह लेख सनातन धर्म की रक्षा करने और व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को प्रेरित करने के लिए लिखा गया है। कथा की जानकारी धर्म प्रचार के लिए है।
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