संत कबीर दास की जयंती 04 जून 2023, दिन रविवार, ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि को मनाया जायेगा है।
संत कबीरदास जी का जन्म साल 1440 में हुआ था। कबीर दास जी के जन्म तिथि और वर्ष को लेकर साहित्यकारों में मतभेद है। आधुनिक साक्ष्य की मानें तो साल 1440 में कबीरदास जी का जन्म उत्तर प्रदेश के बनारस स्थित मगहर गांव में हुआ था। कुछ विद्वान कबीर दास जी का जन्म स्थान उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित लहर ताल गांव में हुआ मानते हैं।
विश्व विख्यात समाज सुधारक और पथप्रदर्शक संत कबीर दास जी के पिता का नाम नीमा और माता का नाम नीरू था। पत्नी की नाम लोई थी। पुत्र का नाम कमाल और पुत्री का नाम कमली थी। संत कबीर दास जी का मृत्यु 1578 में बनारस के मगहर गांव में हुई थी।
संत कबीरदास जी के गुरु का नाम स्वामी रामानंद दास था।
संत कबीर दास जी ने मर कर प्रमाणित कर दिया है कि स्वर्ग और नरक पृथ्वी लोक में ही है।
महान यथार्थवादी संत कबीर दास जी एक प्रगतिशील विचारधारा के स्वामी थे। वे सभी धर्मों के पाखंड पर संत कबीर दास जी ने अपनी कविता के माध्यम से गहरा प्रतिधात किए हैं। संत कबीर दास जी ने सभी भी धर्मों के अंदर व्याप्त अंधविश्वास, पाखंड और कुरीतियों पर गहरा प्रहार उन्होंने अपने कविता के माध्यम से किए हैं।
उनकी रचनाएं इस भौतिक युग में मनुष्यों को जीवन जीने का एक कला सिखाने का काम किए हैं।
अंधविश्वास, पाखंड और कुरीतियों से परे ईश्वर की भक्ति कैसे किया जाए, उन्होंने सरल और सुगम भाषा में जनमानस को समझाने का काम किया है।
सनातन धर्म में मान्यता है कि कोई भी व्यक्ति (मनुष्य) की काशी में अगर मृत्यु हो जाता है, तो वैसे व्यक्ति की आत्मा सीधे शिव धाम जाता है और स्वर्ग लोक वासी कहलाता है। संत कबीर दास जी ने इस मिथक को तोड़ते हुए अपना भौतिक शरीर का त्याग काशी के मगहर गांव में किया।
मगहर के मामले में प्रचलित था कि अगर कोई भी व्यक्ति मगहर में मरता है तो उसे नरक मिलता है। इसी भ्रम को तोड़ने के लिए उन्होंने अपना शरीर मगहर में जाकर त्याग किया था।
कबीर दास की रचनाएं और भाषा
संत कबीरदास की रचनाएं साक्षी, शरद और रमैनी है। उन्होंने अवधि्, पंजाबी, राजस्थानी, पंचमेल, खिचड़ी ,घुमक्कड़ी और खड़ी भाषाओं में कविता लिखी। उन्होंने समाज में फैली कुर्तियां ,कर्मकांड और अंधविश्वास जैसी सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना की।
कबीर दास जी के अनमोल वचन जो हमारे जीवन में गहरा प्रभाव छोड़ता है। जीवन जीने का सीख देता है।भगवान से मिलाने के सीधे रास्ता बताता है। जानें उनके चंद दोहे से।
कबीरा खड़ा बाजार में, मांगे सबकी खैर,
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।
ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोए,
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होय।
राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय,
जो सुख साधु संग में, सो बैकुंठ ना होए।
साईं इतना दीजिए, जामे कुटुम समाय,
मैं भी भूखा ना रहूं, साधु न भूखा जाए।
आया है सो जाएगा, राजा रंक फ़कीर,
एक सिंघासन चढ़ी चले, एक बंधे जंजीर।
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाय
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताएं।
संत कबीर दास के अनछुए पहलू जिसे आप को जानना जरूरी है
1.संत कबीर दास जी का पहनावा विचित्र था। कबीर दास जी कभी सूफी संत जैसा कपड़ा पहनते थे, तो कभी साधु-संत अर्थात वैष्णवों जैसा पहनावा पहनते थे।
2.संत कबीर दास जी प्रभु श्रीराम की भक्ति करते थे। कुछ लोग कहते हैं कि वे अयोध्या के श्रीराम की नहीं बल्कि निराकार राम की भक्ति और उपासना करते थे।
3.वैष्णव संत रामानंद ने कबीर दास जी को गुरुमंत्र देकर उनके मन में वैराग्य भाव उत्पन्न कर दिया था। कबीर दास जी ने संत रामानंद जी से गुरु दीक्षा लिए थे।
4.संत कबीर दास जी ने निराकार परमात्मा को मानते थे। उन्होंने जो मार्ग अपनाया था, वह निर्गुण ब्रह्म (परमात्मा) की उपासना का मार्ग था। निर्गुण ब्रह्म अर्थात ओ परमात्मा जिसका स्वरूप निराकार है। उन्होंने ईश्वर की उपासना उसी निर्गुण मार्ग के माध्यम से किया करते थे। संत कबीर दास जी लोगों के बीच भजन गाकर उस परमसत्य परमात्मा की साक्षात्कार करने का कोशिश करते रहते थे। उन्होंने वेदों में बताएं गए परमसत्य निकाराकर परमात्मा को ही सत्य मानते थे।
5.प्रचलित मान्यता है कि संत कबीर दास जी के मृत्यु होने के बाद उनके पार्थिव शरीर को लेकर हिन्दू और मुसलमानों के बीच गंभीर विवाद उत्पन्न हो गया था। सनातन धर्म वाले मानते थे कि कबीर दास का अंतिम संस्कार सनातन रीति-रिवाज के साथ होने चाहिए। दूसरी ओर मुसलमानों का कहना था कि कबीर दास मुस्लिम थे और उनका अंतिम संस्कार मुस्लिम रीति-रिवाज के साथ होना चाहिए।
विवाद बढ़ने के बाद जब उनके शव पर से चादर हटाई गई, तब उपस्थित लोगों ने देखा उनके शव फूलों के ढ़ेर में बदल गया था। अंत में वहां उपस्थित हिन्दू आधे फूल स्वयं ले लिए और आधे फूल मुसलमानों को दे दिया।
मुसलमानों ने अपने रीति-रिवाज से और हिंदुओं ने अपने रीति-रिवाज से उनका अंतिम संस्कार किया। मगहर में कबीर की समाधि है और दरगाह दोनों स्थित है।
6.संत कबीर दास जी का काव्य और भजन दोनों रहस्यवाद और रहस्यवाद का प्रतीक है। उनके हर भजन निर्गुणी है। संत कबीर दास अपने भजन के माध्यम से समाज में फैले पाखंड, रूढ़ीवाद और कूरीतियों को उजागर करते थे।
7.कबीर दास जी के अनेक उपदेशक दोहों, साखियों, पदों, शब्दों, रमैणियों तथा उनकी वाणियों में देख सकते हैं, जो धर्म और समाज में फैले पाखंड, रूढ़ीवाद और कूरीतियों को उजागर करते हैं। इसी वजह से संत कबीर दास जी को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रियता मिली और वे जननायक कवि और संत बने।
वर्तमान समय में भी उनके भक्ति गीत और कविता ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचलित हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के गांवों में संत कबीर दास जी के गीतों और कविताओं की धून जिंदा है।
8.संत कबीर दास जी का पालन-पोषण जुलाहे जाति के नीमा और नीरू ने किये थे। ये दोनों पति-पत्नी उनके माता और पिता नहीं थे। कुछ लोग उन्हें हिन्दू दलित समाज का मानते थे।
9.संत कबीर दासजी का विवाह वैरागी समाज की कन्या लोई के साथ हुआ था। पत्नी लोई से कबीरदास जी को दो संतानें हुईं। लड़के का नाम कमाल था और लड़की का नाम कमली थी।
10.कबीरदास जी संत रामानंदाचार्य के बारह शिष्यों में से एक थे। रामानंदाचार्य प्रभु श्रीराम के परम भक्त थे। तो कहा जाता हैं कि संत कबीरदास जी भी श्रीराम के भक्त थे।
11.मान्यता है कि संत कबीरदासजी ने आंध्रप्रदेश के अक्कलकोट स्वामी अर्थात साईं बाबा के रूप में एक बार फिर से जन्म लिए थे। परन्तु इस पर विवाद बहुत ज्यादा है।
12.संत कबीर दास एक महान विचारक ही नहीं बल्कि धर्म में फैली कुर्तियों पर प्रहार करने वाले पुरोधा थे। वे सभी धर्मों के अंदर फैलें अंधविश्वास को कविता के माध्यम से जबरदस्त प्रहार करने में उन्हें महारत हासिल था।
डिस्क्लेमर
संत कबीर दास जी के जयंती पर प्रचलित पौराणिक कथाओं को एक जगह समेटने का काम इस लेख में किया गया है। कबीरपंथी विद्वानों से विचार विमर्श कर इस लेख को लिखा गया है। कबीर दास की जयंती से लोगों को रूबरू कराना हमारा मुख्य उद्देश है। यह लेख सिर्फ प्रचार-प्रसार के लिए लिखा गया है। इसलिए हम सत्यता की जिम्मेवारी नहीं लेते हैं।