आषाढ़ी गुरु पूर्णिमा, वेदव्यास की जयंती व गोपद्म व्रत 03 जुलाई को, जानें संपूर्ण जानकारी

अषाढ़ी गुरु पूर्णिमा 3 जुलाई दिन सोमवार को है। इस दिन गुरु की पूजन करने का विधान है क्योंकि महर्षि वेदव्यास का जन्म इसी दिन हुआ था।
वर्ष के प्रत्येक माह की पूर्णिमा तिथि धार्मिक और सनातनी दृष्टिकोण से बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण होती है, परन्तु आषाढ़ माह की पूर्णिमा तिथि को और भी खास बनाती है। आषाढ़ माह की पूर्णिमा को ही गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन गोपद्म व्रत भी रखा जाता है।
आषाढ़ी पूर्णिमा को भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा की जाती है। हम आपको बताते हैं आषाढ़ी पूर्णिमा के महत्व, पौराणिक कथा, शुभ मुहूर्त और व्रत करने की संपूर्ण विधि के बारे में।

आषाढ़ पूर्णिमा का महत्व
सनातनी हिंदूओं में पूर्णिमा पर आधारित पंचांग के अनुसार हर माह का नामकरण पूर्णिमा तिथि को चंद्रमा जिस नक्षत्र में गोचर करता है उसी के अनुसार रखा जाता है। पौराणिक मान्यता है कि आषाढ़ माह की पूर्णिमा तिथि को चंद्रमा पूर्वाषाढ़ा या उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में गोचर करता है। आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को चंद्रमा अगर उत्ताराषाढ़ा नक्षत्र में रहे हैं, तो वह पूर्णिमा बहुत ही भाग्यशाली और पूर्ण फलदायी मानी जाती है। ऐसे संयोग में अगर आप पूजा करते हैं, तो दस विश्वदेवों की पूजा करने के सामान माना जायेगा।

आषाढ़ पूर्णिमा ही है गुरु पूर्णिमा
आषाढ़ मास की पूर्णमा को ही गुरु पूर्णिमा के रूप में भी मनाई जाती है। आषाढ़ मास में गुरु पूर्णिमा मनाये जानें को लेकर संत ओशो ने बड़े ही अच्छे से परिभाषित किया है। ओशो का मानना है कि अगर साधु-संतों ने गुरु पूर्णिमा को आषाढ़ मास में मनाने का परंपरा शुरू किया है इसके पिछे उन लोगों का कोई न कोई खास ईशारा है। क्योंकि आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि के दिन तो पूर्णिमा जैसी नज़र भी नहीं आती है। आषाढ़ी पूर्णिमा से सुंदर और भी पूर्णिमाएं हैं। मसलन शरद पूर्णिमा है जिसका चांद बहुत सुंदर और आकर्षक होता है। परन्तु शरद पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में नहीं चुना गया। इसका प्रमुख कारण यह है कि गुरु तो पूर्णिमा जैसा तेजस्वी होते हैं और शिष्य आषाढ़ के जैसा अनिश्चिता जैसा माहौल में रहता है। आषाढ़ माह में चंद्रमा बादलों से घिरा रहता है। यानि गुरु शिष्यों से घिरे रहते हैं।
शरद पूर्णिमा पर अकेला चांद चमकता नज़र आता है वहां सिर्फ गुरु ही है। शिष्य का कोई अता-पता ही नहीं रहता। दूसरी ओर जन्म-जन्मांतर के अज्ञान रूपी अंधकार स्वरूपी बादल ही शिष्य हैं। जिनमें गुरु चांद की तरह अपनी चमक से अंधेरे वातावरण को चिर कर उसमें रोशनी पैदा करते हैं। इसलिये आषाढ़ पूर्णिमा में ही गुरु पूर्णिमा की सार्थकता छिपा है।
आषाढ़ पूर्णिमा पर मनाया जाता है गोपद्म व्रत
आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को ही गोपद्म व्रत भी मनाया जाता है। इस व्रत में भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा की जाती है। सनातनी मान्यता है कि गोपद्म व्रत सभी प्रकार के सुख-समृद्धि और पुण्य प्रदान करने वाला होता है।
गोपद्म व्रत पूजा की विधि
सनातनी हिंदूओं के विभिन्न धार्मिक ग्रंथों और पौराणिक कथाओं में भिन्न-भिन्न तरह के पर्व-त्योहारों और व्रतों पर विशेष पूजा करने का धार्मिक विधान हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार आषाढ़ माह के पूर्णिमा तिथि पर रखे जाने वाले गोपद्म व्रत की विशेष विधि-विधान से पूजा करनी पड़ती है।
गोपद्म व्रत में भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा की जाती है। हालांकि देवशयनी एकादशी से भगवान श्रीहरि विष्णु चार मास के लिए चीर निद्रा में सो जाते हैं, परन्तु गोपद्म व्रत के दिन भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा की जाती है।
इसके लिए व्रतधारियों को अहले सुबह उठकर स्नानादि करने के उपरांत साफ-सुथरी वस्त्र पहनने चाहिए। व्रत के दिनभर भगवान श्रीहरि विष्णु के चरणों में ध्यान लगाएं और दिन भर भजन-कीर्तन करते रहने चाहिये।
भगवान श्रीहरि विष्णु की चरणों के साथ ही चतुर्भुज रूप का भी सुमिरन करते रहे, जिसमें भगवान श्रीहरि विष्णु गरूड़ पर सवार हों। इसके साथ ही साथ माता लक्ष्मी का भी ध्यान लगानी चाहिये। समस्त देवी-देवता भगवान श्रीहरि विष्णु की स्तुतिगान कर रहे हैं और उनकी आराधना कर रहे हैं, ऐसी बातें सोचते रहना चाहिेए।
पुष्प, धूप, गंध, दीप आदि से विधि-विधान से पूजा-अर्चना करें। भगवान श्रीहरि विष्णु के पूजन के बाद आचार्य, विद्वान ब्राह्मण या किसी जरूरदमंद को भोजन करवाकर अपने सामर्थ्य के अनुसार दान-दक्षिणा देकर प्रसन्न करना चाहिये।
सनातनी मान्यता है कि अगर पूरी श्रद्धा के साथ इस व्रत का पालन किया जाये तो इससे भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और व्रतधारियों की संपूर्ण मनोकामनाएं को पूर्ण करते हैं। संसार में रहते समस्त भौतिक सुखों का आनंद लेकर अंत काल में व्रती को मोक्ष मिलने के उपरांत विष्णु धाम की प्राप्ति होती है।
आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। हिन्दुस्तान में यह पर्व पूरी श्रद्धा और निष्ठा पूर्वक मनाया जाता है। पौराणिक काल में गुरु के आश्रम में जब छात्र निःशुल्क शिक्षा प्राप्त करते थे तो गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु का पूजन करके उन्हें दान-दक्षिणा देकर उन्हें पैर (पाद) पूजन करते थे।
गुरु पूर्णिमा के दिन कैसा रहेगा जाने पंचांग के अनुसार
आषाढ़ माह, शुक्ल पक्ष, पूर्णिमा तिथि, 03 जुलाई 2023, दिन सोमवार, विक्रम संवत 2080 को है। इस दिन सूर्योदय सुबह 05:27 बजे पर और सूर्यास्त शाम 07:23 बजे पर होगा।
दिनमान 13 घंटे 55 मिनट का, रात्रि मान 10 घंटे 04 मिनट का रहेगा। पूर्णिमा तिथि का शुभारंभ 02 जुलाई दिन रविवार को रात 08:30 बजे से शुरू होकर 03 जुलाई दिन सोमवार को शाम 05:08 बजे तक रहेगा।
अषाढ़ी पूर्णिमा के दिन नक्षत्र पूर्वाषाढ़ा, योग ब्रह्म, सूर्य मिथुन राशि में, चंद्रमा धनु राशि में और सूर्य का नक्षत्र आर्द्रा होगा। होमाहुति चन्द्र, दिशाशूल पूर्व, राहु काल वास उत्तर पश्चिम, अग्निवास पाताल, भद्रावास पाताल और चंद्रवास पूर्व दिशा में रहेगा।
गुरु पूर्णिमा के दिन पूजा करने का शुभ मुहूर्त
गुरु पूर्णिमा के दिन प्रातः काल से ही गुरु पूजन का कार्य शुरू हो जाता है। इसलिए हम पहले सुबह का ही शुभ मुहूर्त का गन्ना कर रहे हैं। अहले सुबह 05:27 बजे से लेकर 07:12 बजे तक अमृत मुहूर्त रहेगा। उसी प्रकार सुबह 08:56 बजे से लेकर 10:41 बजे तक शुभ मुहूर्त, 11:57 बजे से लेकर 12:30 बजे तक अभिजीत मुहूर्त, दोपहर के 02:45 बजे से लेकर 03:40 बजे तक विजय मुहूर्त और 02:10 बजे से लेकर 03:54 बजे तक चर मुहूर्त रहेगा। इस दौरान आप सुविधा अनुसार गुरु की पूजा अर्चना कर सकते हैं।
सांध्य मुहूर्त
शाम के समय पूजा करने का शुभ मुहूर्त 05:00 बजे से शुरू होता है, जो रात 07:30 बजे तक रहेगा। इस दौरान आप सुविधानुसार पूजा अर्चना कर सकते हैं। अमृत मुहूर्त का संयोग शाम 05:39 बजे से लेकर 07:30 बजे तक और गोधूलि मुहूर्त शाम 07:09 बजे से लेकर 07:33 बजे के बीच रहेगा।

व्रत कैसे करें, जानें संपूर्ण उपयोगी जानकारी
सुबह उठकर सबसे पहले घर की सफाई करें। इसके बाद स्नानादि कर, नित्य क्रिया से निवृत्त हो जाएं।
अपने घर में ही किसी पवित्र स्थान पर लकड़ी के चौकी पर सफेद रंग का वस्त्र बिछाकर उस पर पूर्व से पश्चिम तथा उत्तर से दक्षिण अरवा चावल के चौरेठे से बारह-बारह रेखाएं बनाकर व्यासपीठ स्थापित करें। इसके बाद
'गुरु परंपरा सिद्धयर्थं व्यास पूजां करिष्ये'
मंत्र का जाप करते हुए पूजा करने का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद दसों दिशाओं में अक्षत छिटें।
श्रीहरि भगवान विष्णु के पूजा के उपरांत ब्रह्माजी, वेदव्यासजी, ऋषि शुकदेवजी, गोविंद स्वामीजी और शंकराचार्य के नाम मंत्र से पूजा कर, उन्हें आवाहन करने चाहिए।
इसके उपरांत अपने गुरु अथवा उनके तस्वीर की पूजा कर उनके नाम से दक्षिणा निकल दें।
आषाढ़ी गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु की पूजा करने की परंपरा है। आषाढ़ माह के शुक्‍ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन ही महर्षि वेद व्‍यास का जन्‍म हुआ था। आषाढ़ी पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा महर्षि वेदव्यासजी के सम्‍मान और उनकी याद में मनाई जाती है। इसलिए गुरु पूर्णिमा को महर्षि वेदव्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है |

गुरु पूर्णिमा का महत्‍व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की गुरु पूर्णिमा तिथि के दिन ही गुरु की पूजा करने की परंपरा है।
गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु की पूजा इसलिए भी जरूरी है क्‍योंकि गुरु की कृपा से ही मनुष्य असंभव से भी असंभव कार्य करने में सक्षम हो जाता है और कुछ भी हासिल कर सकता है। गुरु की महिमा अपरंपार है।
गुरु के बिना ज्ञान की प्राप्ति करना संभव ही नहीं बल्कि नामुमकिन है। गुरु को तो भगवान से भी ऊपर दर्जा दिया गया है। पुराने समय में गुरुकुल में रहने वाले छात्र गुरु पूर्णिमा के दिन विशेष रूप से अपने गुरु की श्रद्धा पूर्वक पूजा-अर्चना करते थे।
वर्षा ऋतु में गुरु पूर्णिमा पड़ता है। वर्ष ऋतु का मौसम को काफी सुहाना माना जाता है। इस मौसम में न अधिक सर्दी पड़ती है और न ही अधिक गर्मी लगती है।
इस मौसम को पढ़ने-पढ़ाने के लिए उचित समय माना गया है। यही वजह है कि गुरु पूर्णिमा से लेकर अगले चार महीनों तक साधु-संत विचार-विमर्श करते हुए ज्ञान की बातें करते हैं।
सनातनी हिन्‍दू धर्म में गुरु को भगवान से ऊंचा दर्जा दिया गया है। गुरु के माध्यम से ही ईश्वर तक पहुंचा जा सकता है। ऐसे में गुरु की पूजा भी भगवान की तरह ही करनी चाहिए।
गुरु पूर्णिमा के दिन अहले सुबह उठकर स्‍नान करने के बाद साफ-सुथरी कपड़े पहने। इसके बाद घर के पूजा घर में किसी चौकी पर सफेद या लाल कपड़ा बिछाकर उस पर अरवा चावल के चौरेठा से 12-12 रेखाएं बनाकर व्यास-पीठ स्थापित करें।
इसके बाद नीचे दिए गए मंत्र का उच्‍चारण करें
गुरु परंपरा सिद्धयर्थं व्यास च। पूजां करिष्ये’|
पूजा के बाद अपने गुरु या उनके तस्वीर की पूजा करें। अगर गुरु सामने ही हैं तो सबसे पहले उनके पांव पखारे। इसके बाद तिलक लगाएं और फूल और फलों से पूजन करें। अंत में भोजन कराएं। इसके बाद दक्षिणा देकर चरण स्पर्श कर विदा करें।
आषाढ़ की पूर्णिमा को ही क्यों कहते हैं गुरु पूर्णिमा
आषाढ़ की पूर्णिमा के दिन ही गुरु पूर्णिमा मनाने के पीछे गहरा अर्थ है। मतलब यह है कि है कि गुरु तो पूर्णिमा के चंद्रमा की तरह पूर्ण प्रकाशमान हैं और शिष्य आषाढ़ के बादलों की तरह अंधकारमय है।
आषाढ़ में चंद्रमा बादलों से घिरा रहता है जैसे बादल रूपी शिष्यों से गुरु घिरे हों। शिष्य हर तरह के हो सकते हैं। वैसे छात्रों के जीवन में अज्ञान रूपी अंधकार को मिटाकर ज्ञान रूपी ज्योति के प्रकाश का सोपान करने का काम गुरु करते हैं।
शिष्य अंधेरे बादल की तरह होते हैं। परनु गुरु अपने शिष्य को चांद की तरह चमक देते हैं। मतलब अंधेरे से घिरे छात्रों के वातावरण को प्रकाश मय बना सके, वैसे ही गुरु श्रेष्ठता पद के अधिकारी होते हैं।
इसलिए आषाढ़ की पूर्णिमा अन्य पूर्णिमा से श्रेष्ठ होते हैं। इसमें गुरु और शिष्य दोनों की श्रेष्ठता प्रदर्शित होता है।
डिस्क्लेमर
यह लेख आषाढ़ माह में पड़ने वाली गुरु पूर्णिमा के संबंध में लिखा गया है। महर्षि वेदव्यास के जन्मोत्सव पर आयोजित होने वाले गुरु जी गुरु पूर्णिमा के संबंध में सारी जानकारी इस लेख में दी गई है। शुभ मुहूर्त की गन्ना पंचांग से किया गया है। यह लेख सनातन धर्म की प्रचार प्रसार के लिए लिखा गया है। साथ ही हमारे पौराणिक पर्व त्यौहार की जानकारी देने के लिए यह लेख लिखना हमारा मकसद है।

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