वैशाख माह के शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि विक्रम संवत 2080, 5 मई 2023 दिन शुक्रवार को मनाया जायेगा।
सनातन धर्म में वैशाख पूर्णिमा का अत्यधिक महत्व है। वैशाख पूर्णिमा को सत्य विनायक पूर्णिमा भी कहा जाता है।
वैशाख पूर्णिमा पर ही भगवान श्रीहरि विष्णु का नौवां अवतार महात्मा बुद्ध के रूप में हुआ था। बौद्ध धर्मावलंबी इस दिन को बड़े ही धूमधाम और उल्लास के साथ मनाते हैं।
वैशाख पूर्णिमा के दिन अगर लोग व्रत करने के उपरांत गरीब ब्राह्मणों को दान देते हैं, तो उन्हें अनंत फलों की प्राप्ति होगी।
वैशाख पूर्णिमा के दिन आप करें ये ग्यारह उपाय हो जाएंगे धनपति
1.वैशाख पूर्णिमा की शाम पीपल वृक्ष के नीचे घी का दीपक जलाने से मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु अत्याधिक प्रश्न होते हैं। इस दिन पूजा करने का बहुत अधिक महत्व है। साथ ही घर में माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करें। पूजा करने से धन और वैभव की प्राप्ति होगी।
2.वैशाख पूर्णिमा के दिन कौड़ी, हल्दी की गांठ या गोमती च्रक से मां लक्ष्मी की पूजा करें। लक्ष्मी माता को प्रसन्न करने के लिए भक्तगण 11 गोमती चक्र, 11 हल्दी की गांठ या फिर 11 कौड़ी ले लें। पूजा के समय इन पर तिलक लगाएं। और पूजा करने के उपरांत अगले दिन इन सामानों को अपनी तिजोरी में रख दें। ऐसा उपाय करने से आपके जीवन में सदैव धन, वैभव और समृद्धि बनी रहेगी।
3.वैशाख पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी को इत्र चढ़ाना चाहिए। पूजा करने के दौरान माता लक्ष्मी को खुश करने के लिए इत्र का छिड़काव करें और सुगंधित पुष्प चढ़ाएं। इत्र का छिड़काव माता लक्ष्मी के वस्त्रों पर जरूर करे। ऐसा करने से आपके दुश्मन सदा के लिए खत्म हो जाएंगे।
4.वैशाख पूर्णिमा के दिन शिवलिंग के समक्ष दीपक जलाएं, पूजा करें और जल चढ़ाएं और हवन करें। " ऊँ रुद्राय नमो नमः" मंत्र का जाप करें। इस तरह से पूजा करने से आपको माता लक्ष्मी के साथ ही साथ भगवान भोले शिव का आशीर्वाद भी प्राप्त होगा। ऐसा करने से आपके आर्थिक संकट दूर होंगे।
5.वैशाख पूर्णिमा के दिन व्रत और पुण्य कार्य करने पर अत्यंत शुभ फलों की प्राप्ति होती है। वैशाख पूर्णिमा व्रत की पूजा विधि भी अन्य पूर्णिमा व्रत करने के सामान ही करनी चाहिए।
6.वैशाख पूर्णिमा के दिन प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व ब्रह्म मुहूर्त में किसी पवित्र नदी, तालाब, कुआं, जलाशय या बावड़ी में स्नान करना चाहिए। स्नान करने के उपरांत सूर्य मंत्रों का उच्चारण करते हुए भगवान भास्कर को अर्घ्य देना चाहिए। ऐसा करने से घर में शांति स्थापित होंगे।
7.शुद्ध पानी में गंगा जल मिलाकर स्नान करने के बाद पूर्णिमा व्रत करने का संकल्प लेकर भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा करनी चाहिए। व्रत करने से बिगड़े हुए काम बन जाएंगे।
8.वैशाख पूर्णिमा के इस दिन धर्मराज को ध्यान करके जल से भरा कलश और विभिन्न तरह के बनें पकवान गरीब या ब्राह्मणों को दान देने से गोदान के समान फल मिलता है। ऐसा करने से घर में किसी को अकाल मृत्यु नहीं होगा।
9.पांच, सात या ग्यारह जरुरतमंद गरीब व्यक्तियों और ब्राह्मणों को गुड़ के साथ तिल दान देने से सभी तरह के पापों का खात्मा हो जाता है। ऐसा करने से मां लक्ष्मी की कृपा सालोंभर आपके ऊपर में बनी रहेगी
10.इस दिन तिल के तेल से दीपक जलाएं और तिलों को जल में मिश्रण कर तर्पण करने से विशेष रूप से फल प्राप्त होता है। वैवाहिक अड़चनें दूर होंगे।
11.वैशाख पूर्णिमा व्रत करने के दौरान व्रतधारियों को सिर्फ एक वक्त भोजन करना चाहिए। ऐसा करने से आपके द्वारा किए गए व्रत का संपूर्ण फल मिलेगा।
पंचांग के अनुसार वैशाख पूर्णिमा के दिन कैसा रहेगा
वैशाख शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि विक्रम संवत 2080, 5 मई 2023, दिन शुक्रवार को वैशाख पूर्णिमा सह बुद्ध जयंती है।
4 मई, दिन गुरुवार को रात 11:44 बजे तक चतुर्दशी तिथि है। इसके बाद पूर्णिमा तिथि प्रारंभ हो जाएगा। जो दूसरे दिन अर्थात शुक्रवार को रात 11:00 बज कर 3 मिनट तक रहेगा।
वैशाख पूर्णिमा के दिन सूर्योदय सुबह 05:38 बजे पर और सूर्यास्त शाम 06:00 बज के 39 मिनट पर होगा।
उसी प्रकार चंद्रोदय शाम 06:00 बज के 45 मिनट पर और चंद्रास्त सुबह 06:45 बजे पर हो जाएगा। दिनमान 13 घंटा 20 मिनट का रहेगा। जबकि रात्रिमान 10 घंटा 38 मिनट का होगा।
वैशाख पूर्णिमा के दिन नक्षत्र स्वाति, योग सिद्धि सुबह 09:17 बजे तक इसके बाद व्यतीपात हो जाएगा। सूर्य मेष राशि में चंद्रमा तुला राशि में और सूर्य का नक्षत्र भरनी रहेगा।
आनन्दादि योग गंद, होमाहुति चंद्र, दिशाशूल पश्चिम, राहुकाल वास दक्षिण-पूर्व अग्निवास पाताल, भद्रावास पाताल दिन के 11:27 बजे तक, इसके बाद पृथ्वी हो जायेगा। चंद्रवास पश्चिम दिशा में स्थित रहेगा।
चारों पहर पूजा करने का शुभ मुहूर्त
पूर्णिमा व्रत करने वाले व्रतधारियों को चारों पहर पूजा करने की सनातनी विधान है। आइए हम आपको बताते हैं किस पहर के कौन सी घड़ी में शुभ मुहूर्त है। सबसे पहले प्रातः कालीन मुहूर्त के संबंध में जानें।
सुबह के वक्त
प्रातः कालीन शुभ मुहूर्त सुबह 05:38 बजे से लेकर 07:18 बजे तक चर सामान्य मुहूर्त, 07:18 बजे से लेकर 08:00 बज कर 58 मिनट तक लाभ उन्नति मुहूर्त और 08:58 बजे से लेकर 10:38 बजे तक अमृत सर्वोत्तम मुहूर्त रहेगा। इस समय सुबह का पूजा कर सकते हैं।
दोपहर के वक्त
वैशाख पूर्णिमा व्रत रखने वाले व्रतधारी दोपहर 12:18 बजे से 01:58 बजे तक शुभ मुहूर्त रहेगा। उसी प्रकार दिन के 11:51 बजे से लेकर 12:45 बजे तक अभिजीत मुहूर्त और दोपहर 02:32 बजे से लेकर 03:25 बजे तक विजय मुहूर्त रहेगा। अपनी सुविधा के अनुसार इस दौरान दोपहर की पूजा कर सकते हैं।
संध्या पूजन
संध्या समय चर सामान्य मुहूर्त 05:18 बजे से लेकर 06:49 बजे तक, गोधूलि मुहूर्त शाम 06:45 बजे से लेकर 07:09 बजे तक और सायाह्य सांध्य मुहूर्त 06:59 बजे से लेकर 08:02 बजे तक रहेगा। इस दौरान संध्या का पूजन अपने सुविधानुसार कर सकते हैं।
मध्य रात्रि पूजन
मध्य रात्रि को निशिता मुहूर्त रात 11:56 बजे से लेकर 12:40 बजे तक, शुभ उत्तम मुहूर्त 12:18 बजे से लेकर रात 01:37 बजे तक और अमृत सर्वोत्तम मुहूर्त रात 01:37 बजे से लेकर 02:57 बजे के बीच रहेगा। इस दौरान आप रात्रि समय की पूजा कर सकते हैं।
प्रातः कालीन मुहूर्त
सुबह का पूजा का मुहूर्त ब्रह्म मुहूर्त से आरंभ हो जाता है। ब्रह्म मुहूर्त सुबह 04:12 बजे से लेकर 04:54 बजे तक रहेगा। उसी प्रकार लाभ मुहूर्त सुबह 04:16 बजे से लेकर 05:36 बजे तक और प्रातः सांध्य मुहूर्त 04:33 बजे से लेकर 05:37 बजे तक रहेगा। इस दौरान आप पूजा कर व्रत का पारण कर सकते हैं।
वैशाख पूर्णिमा का है विशेष महत्व
वैशाख पूर्णिमा के दिन धर्मराज यमराज की पूजा करने का विशेष महत्व है। कारण इस व्रत के प्रभाव से लोगों में अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। पौराणिक मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण के बचपन के साथी सुदामा जब द्वारिका उनके पास मिलने पहुंचे थे, तो भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें सत्य विनायक पूर्णिमा व्रत करने की बात कही। इसी व्रत के प्रभाव से सुदामा की सारी दरिद्रता दूर हो गई थी।
सनातनी वेद और पुराणों में वैशाखी पूर्णिमा को सर्वश्रेष्ठ, फलदायी और पवित्र तिथि माना जाता है। इस दिन पिछले एक महीने से चले आ रहे वैशाख स्नान एवं विशेष धार्मिक अनुष्ठानों की पूर्णाहूति पूर्णिमा के दिन की जाती है। मंदिरों में पूजा-पाठ और हवन के उपरांत वैशाख पूर्णिमा महात्म्य की कथाएं सुनाएं जाते हैं।
भविष्य पुराण और आदित्य पुराण में वर्णित कथाओं के अनुसार इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में नदियों एवं पवित्र तालाबों में स्नान करने के बाद दान-पुण्य का विशेष महत्व बताया गया है।
वैशाखी पूर्णिमा के दिन तिल और
गुड़ दान करने से अनजाने में किए हुए सभी तरह के पाप क्षय हो जाते हैं।
पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने घी से भरा हुआ पात्र स्थापित कर, तिल और गुड़ से पूजन करना चाहिए।
अच्छा होगा अगर हो सके तो पूजा के दौरान मिट्टी से बने दीया में तिल के तेल डालकर जलाना चाहिए।
पवित्र नदियों में स्नान करने के उपरांत पितरों को याद करते हुए हाथ में तिल रखकर तर्पण करने से पितर तृप्त होते हैं और उनका आशीर्वाद हमें मिलता है।
वैशाख पूर्णिमा पर की जाती है सत्य विनायक पूर्णिमा व्रत
वैशाख पूर्णिमा के दिन सत्य विनायक व्रत रखने का भी धार्मिक विधान है। मान्यता है कि वैशाख पूर्णिमा के दिन सत्य विनायक व्रत रखने से व्रतधारियों की सारी दरिद्रता खत्म हो जाती है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के पास मदद पाने के लिए आए अपने दोस्त ब्राह्मण सुदामा को भी इसी व्रत करने का विधान भगवान श्रीकृष्ण ने बताएं थे। व्रत करने के बाद सुदामा की गरीबी दूर हो गई।
वैशाख पूर्णिमा को धर्मराज यमराज की पूजा करने का भी विधान है। पौराणिक मान्यता है कि धर्मराज सत्य विनायक व्रत करने से प्रसन्न होते हैं। इस व्रत को विधि-विधान और पूरी निष्ठा से करने पर व्रतधारियों को अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है।
वैशाख पूर्णिमा व्रत व पूजा विधि
वैशाख पूर्णिमा पर तीर्थ स्थलों, पवित्र नदियां, तालाब और बहते पानी में स्नान करने अपना अलग ही महत्व है। इसके साथ ही इस दिन सत्य विनायक का व्रत भी रखा जाता है।
जिससे धर्मराज यमराज भी प्रसन्न होते हैं। इस दिन व्रतधारियों को जल से भरे घड़े सहित विभिन्न तरह के पकवानों से किसी जरूरतमंद और गरीबों को दान देने चाहिये।
सोने का दान इस दिन करना काफी महत्व माना जाता है।
व्रतधारियों को पूर्णिमा के दिन अहले सुबह अर्थात ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्यकर्म से निवृत हो साफ-सुथरे वस्त्र धारण करना चाहिए। इसके बाद व्रत का संकल्प लेकर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिये।
रात्रि के समय दीप, धूप, पुष्प, अन्न, गुड़ आदि से पूर्ण चंद्रमा की पूजा करनी चाहिये और जल अर्पित करना चाहिये। इसके बाद किसी योग्य ब्राह्मण को जल से भरा घड़ा दान करना चाहिये।
ब्राह्मण या किसी जरूरतमंद को भोजन करवाने के बाद ही स्वयं भोजन ग्रहण करना चाहिये। भोजन के उपरांत लोगों के बीच प्रसाद का वितरण करना चाहिए।
पूर्णिमा की रात चंद्रमा को सबसे प्रिय लगता है।
क्योंकि पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपने पूर्ण आकार और पूरे शबाब में रहता है। पूर्णिमा के दिन पूजा पाठ करना और दान देना बहुत ही शुभकारी माना जाता है।
माघ, कार्तिक और वैशाख की पूर्णिमा को तीर्थों में स्थित नदियों में स्नान और गरीबों के बीच अन्न, फल, मिष्ठान और पैसे दान देने को बहुत ही अच्छा माना जाता है। साथ ही पित्रों का तर्पण करना भी बहुत ही शुभ माना जाता है।
वैशाख पूर्णिमा की पौराणिक कथा
वैशाख पूर्णिमा व्रत कथा और महात्म्य द्वापुर युग में श्रीकृष्ण ने मां यशोदा को सुनाएं थे। एक दिन माता यशोदा ने श्रीकृष्ण से कहा कि हे कृष्ण तुम सारे ब्रह्माण्ड के उत्पन्नकर्ता और पोषणकर्ता हो आज तुम मुझे ऐसे व्रत के संबंध में जानकारी दो, जिस व्रत को करने से स्त्रियों को मृत्युलोक में विधवा होने का भय समाप्त हो जाता है। साथ ही यह व्रत करने से मनुष्यों को हर तरह की इच्छाएं पूर्ण हो जाते हैं।
श्रीकृष्ण ने माता की सुंदर वचन सुनकर कहा कि हे माता आपने हमसे बहुत ही अनुपम और सुंदर सवाल किया है। मैं आपको एक व्रत के संबंध में विस्तार पूर्वक बताता हूं। सदा सौभाग्यवती की प्राप्ति के लिए स्त्रियों को 32 पूर्णिमा का व्रत करना चाहिए। इस व्रत करने से स्त्रियों को पुत्र प्राप्ति, अखंड सौभाग्य, शांति और संपत्ति आदि की प्राप्ति होती है।
साथ ही संतान की रक्षा होती है। यह व्रत अखंड सौभाग्य को देने वाला और भोले शिव के प्रति भक्ति बढ़ाने वाला व्रत है। इसके बाद माता यशोदा कहती है कि हे श्रीकृष्ण मुझे बताओ सर्व प्रथम इस व्रत को मृत्युलोक में किस महिला और पुरुष ने किया था। इस विषय में विस्तार पूर्वक मुझे बताओं।
इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण कहते है कि इस पृथ्वी पर हर तरह के सुविधाओं से युक्त एक विख्यात राजा चंद्रहास्य कि कातिका नाम की एक सुंदर नगरी थी। वहां पर धनेश्वर नाम का एक ब्राह्मण निवास करता था। उसकी अति सुशील रूपवती स्त्री थी।
पति-पत्नी दोनों ही उस नगरी में बड़े प्रेम के साथ रहते थे। घर में धन धान्य आदि की कोई कमी नहीं थी। दोनों को सभी सुखों से बढ़कर एक बहुत बड़ा दुख था। उनके यहां कोई संतान नहीं थी। संतान नहीं होने के कारण दोनों अत्यन्त दुखी रहा करते थे। एक दिन एक योगी उनके नगरी में आया था।
वह योगी उस ब्राह्मण के घर को छोड़कर के सभी के घर से भिक्षाटन भोजन किया करता था। ब्राह्मण की पत्नी से वह भिझा नहीं लेता था। योगी का यह रोज का काम था। एक दिन ब्राह्मण की पत्नी रूपवती ने योगी वाली घटना कह सुनायी।
एक दिन योगी भिझा में मिले अन्न को लेकर गंगा के किनारे जाकर के बड़े प्रेम से भोजन बनाकर खा रहा था। उसी समय धनेश्वर ने योगी से कहा अपने मेरे घर के भिझा को कैसे अनादर कर दिए। इसका कारण क्या है।
योगीराज ने कहा कि मैं नि:संतानों के घरों से भीख नहीं लेते हैं। कारण वह अन्न पतितों के घरों से मिले अन्न के समान हो जाते हैं और जो पतितों का अन्न खाता है वह भी पतित अर्थात पापी हो जाता है। तुम नि:संतान हो तुम्हारे यहां कोई संतान नहीं है।
अत: पतित हो जाने के भय से तुम्हारे घर की भीझा नहीं लेता हूं। धनेेश्वर यह बात सुनकर बड़ा दुखी हुआ और हाथ जोड़कर उनके पैरों पर गिर कर आतुर भाव से कहा कि हे महाराज ऐसा बात है तो आप कृपा करके मुझे पुत्र की प्राप्ति कैसे होगा कोई अच्छा उपाय बताइए। आप सब कुछ जानने वाले हैं। मुझ पर कृपा करें।
मेरे यहां धन दौलत की कोई कमी नहीं है, लेकिन संतान न होने के कारण बहुत दुुःखी हो गया हूं। मेरे इस दुुःख का हरण कर दिजिए।
योगी जी ने कहा सुनो ब्राह्मण तुम चंड़ीदेवी की आराधना करो, तब ब्राह्मण घर आकर अपनी पत्नि को पूरी बात कहकर स्वयं वन में चला गया। वन में उसने चंडी की उपासना की और व्रत भी रखा।
चंडी ने सोलहवें दिन उसको स्वप्न में दर्शन दिए और कहा कि हे धनेश्वर जा तेरे यहां पुत्र होगा। पर सुन उसकी सोलह वर्ष की उम्र में मृत्यु हो जाएगी। यदि तुम दोनों स्त्री पुरुष 32 पूर्णमासियों (पूर्णिमा व्रत) व्रत का पालन विधि-विधान से करोगे तो वह बालक दीर्घ आयु हो जाएगा।
अब तुम सुन पूजा करने की विधि। अपने सामर्थ्य के अनुसार आटे लेकर उससे दीए बनाकर शिव जी का पूजन करना होगा। 32 पूर्णिमासी जरूर करना चाहिए।
32 पूर्णिमासी पूर्ण होने पर सुबह के समय इस स्थान के समक्ष एक आम का वृक्ष दिखाई देगा, उस तुम उस वृक्ष पर चढ़कर फल तोड़कर शीघ्र अपने घर चले जाना और अपनी स्त्री को फल देकर संपूर्ण बातें बात देना।
एक दिन ब्राह्मण अहले सुबह उठा तो उसने उस स्थान के पास एक आम का वृक्ष दिखा, जिस पर एक सुंदर आम का फल लटका हुआ था। उस ब्राह्मण ने आम के पेड पर चढ़कर फल को तोड़ने का प्रयास किया और असफल रहा।
अंत में धनेश्वर ने भगवान गणेश की स्तुति करने लगा।
भगवान गणेश की परम कृपा से ब्राह्मण ने आम का फल तोड़ लिया। तत्पश्चात उक्त आम को धनेश्वर ने लाकर अपनी पत्नी को दे दिया। पत्नी ने शुद्ध जल से रितु स्नान करने के बाद, उसने भोलेनाथ का ध्यान करके फल को खा गयी। इसके बाद भगवान शिव जी की कृपा से गर्भ ठहर जाएगा।
देवीजी की कृपा से उसे एक पुत्र की प्राप्ति हुई। उसका नाम देवीदास रखा गया। बालक अपने पति के घर में पढ़ने लगा। भवानी की कृपा से वह बालक पढ़ने में बहुत ही तेज तर्रार था। माता भगवती के अज्ञानुसार उसकी मां ने 32 पूर्णमासी के व्रत रखना शुरू कर दिया था, जिससे उसके पुत्र दीर्घ आयु हो जाएं।
सोलहवा साल लगते ही देवीदास को लेकर पिता को चिंता होने लगी। कहीं उनके पुत्र की मृत्यु इस वर्ष हो न जाए। उनके मन में विचार आया कि पुत्र शोक उनके सामने हो गया तो वे कैसे सहन कर पाएंगे।
उन्होंने देवीदास के मामा को बुलाकर कहा कि देवीदाश को एक वर्ष के लिए काशी (बनारस) में जाकर विद्या का अध्ययन करवाकर आओ। उसे अकेला मत छोड़ना है। इसलिए साथ में तुम चले जाओं और एक वर्ष के बीत जाने के बाद उसको वापस लेकर घर लौटा आना।
हर तरह के इंतजाम माता और पिता ने देवीदास को एक घोड़े पर बैठाकर मामा के साथ काशी भेज दिया। यह बातें उसके मामा सहित किसी को भी पता नहीं था। दूसरी ओर धनेश्वर ने अपनी पत्नि के साथ अपने पुत्र दीर्घ आयु और सलामती माता के लिए भगवती की आराधना और पूजन करना शुरू कर दिया।
एक दिन भांजा और मामा रात्रि विश्राम के लिए एक गांव में रूक गए। उस गांव में एक ब्राह्मण कि सुंदर लड़की की विवाह होने वाली थी। जिस स्थान पर बरात रुकी हुई थी अर्थात जलमासा था। उसी जगह पर मामा और देवीदास ठहरे हुए थे।
इसके बाद लड़की ने देवीदास को देखकर मोहित हो गई। उसे अपना पति मान लेती है और उससे ही विवाह करने के लिए कहती है। लड़की की बातें सुनकर देवीदास ने अपनी अल्प आयु के बारे में बताता है।
ब्राह्मण की लड़की ने कहा कि हे पतिप्रमेश्वर जैसा व्यवहार मां भगवती आपके साथ करेंगी वैसा ही व्यवहार मेरी करेंगी। स्वामी आप उठकर चलिए और भोजन कर लिजिए। इसके बाद देवी दास और उसकी पत्नि दोनों ने मिलकर भोजन किया।
सुबह देवीदास ने अपनी पत्नि को रुमाल, अंगुठी और तीन नगों से जड़ी दिया। मेरा मृत्यु और जीवन देखने के लिए एक फूलों का बगीचा बना लो। जब मेरा मृत्यु होगा तो ये फूल अपने आप सुख जाएंगे। इसके बाद फिर से ये फूल हरे भरे हो जायेंगे। उस समय तुम मान लेना की मैं जिंदा हूं।
भगवान श्रीकृष्ण कहते ही की हे माता यशोदा देवीदास विद्या प्राप्ति करने के लिए काशी (बनारस) चला गया। कुछ दिन बीत जाने के बाद एक दिन जहरीली सर्प देवीदास के पास आता है और देवीदास के ड़सने (काटने) का प्रयास करने लगता है।
व्रत करने के प्रभाव से देवीदास को सर्प काट नहीं पाया। कारण देवीदास की माता ने पहले से ही 32 पूर्णमासी (पूर्णिमा) के व्रत पूरे कर चुकी थी।
इसके बाद यमराज खुद वहां आएं और देवीदास के शरीर से उसके प्राणों को निकालने का प्रयास करने लगा।
जिससे देवीदास मूर्क्षित होकर भूमि पर गिर पड़ा। ईश्वर की कृपा से माता पार्वती के साथ भोलेशंकर वहां पर आए। माता पार्वती ने शंकर जी से कहा कि हे प्रभु इसकी माता ने पहले ही 32 पूर्णमासी (पूर्णिमा) का व्रत किया है इसलिए आप उसके प्राण दान दें दिजिए। इस प्रकार शिवजी उसको प्राण दान दे देते हैं। काल को भी पिछे हटना पड़ा।
देवीदास स्वस्थ्य होकर पुनः उठकर बैठ गया। उधर उसकी स्त्री उसके मृत्यु की प्रतिक्षा किया करती थी। जब उसने देखा की बागीचा में पुष्प और पत्ते नहीं रहे तो उसको अत्यंत आश्चर्य हुआ। लेकिन थोड़ी देर बाद बागीचा हरी भरी हो गई तो वह जान गई की उसके पति को जींदा है। यह देखकर के वह बहुत खुशी मन से अपने पिता से कहने लगी कि पिताश्री मेरे पति जीवत है। आप उनको खोज कराएं।
सोलहवा साल बीत जाने पर देवीदास अपने मामा के साथ काशी से वापस चल दिया। उधर उनके ससुराल वालों उसको खोजने के लिए निकलने वाले ही थे। उसी समय मामा और भांजे वहां पहुंच गए। ससुर ने नगर निवासियों अपने घर के समक्ष एकत्रित हो कर कन्या का विवाह इस देवीदास के साथ कर दिया गया।
कुछ दिनों के बाद देवीदास अपनी पत्नि और अपने मामा के साथ तरह-तरह के उपहार लेकर अपने घर की ओर चल पड़ा। जब वह अपने गांव के निकट पहुंच गया तो वहां पर उपस्थित लोगों ने देवीदास को देखकर उनके माता पिता को आने से पहले ही खबर दे दी।
तुम्हारा प्यारा पुत्र देवीदास अपनी पत्नि और मामा के साथ घर लौट रहा है। ऐसी सुखद खबर सुनकर देवीदास के माता पिता बहुत ज्यादा खुश हुए। पुत्र और बहु की आने की खुशी में धनेश्वर ने बहुत बड़े धूमधाम से उत्सव मनाया।
भगवान श्रीकृष्ण जी कहते है कि धनेश्वर 32 पूर्णमासी के प्रभाव से पुत्रवान हुआ। जो व्यक्ति या स्त्री इस व्रत को करते है जन्म जन्मांतर के पापों से छूटकारा मिल जाते हैं।
डिस्क्लेमर
नृसिंह जयंती व्रत कथा पूरी तरह धार्मिक पुस्तकों, वेद और पुराणों में वर्णित कथाओं से पर आधारित है। साथ ही विद्वान पंडितों और आचार्यों से विचार-वमर्श कर लिखा गया है। लेख लिखने का मुख्य उद्देश्य सनातनी पर्व और त्योहार का प्रचार प्रसार करना है। शुभ मुहूर्त सहित अन्य सामग्री पंचांग से लिया गया है।
Tags:
अगर आप वैशाख पूर्णिमा व्रत करना चाहते हैं
तो यह जरूर पढ़ें। पूर्णिमा के संबंध में सारी जानकारी इस लेख में आपको पढ़ने को मिलेगा।