कठिन व निर्जला भीमसेनी एकादशी 31 को, कैसे करें अनुष्ठान जानें विस्तार से

31 मई, दिन बुधवार, जेष्ठ शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि को भीमसेनी एकादशी कहते हैं।

भीमसेन निर्जला सभी 26 एकादशियों में सर्वश्रेष्ठ एकादशी है। इस एकादशी का विशेष महत्व है।

यह एकादशी महाभारत काल और बाहुबली भीम की कहानियों से जुड़ा हुआ है।

भीम सेन एकादशी की दिन कैसा रहेगा जानें, पंचांग के अनुसार

31 मई 2023, दिन बुधवार को जेष्ठ मास शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि को निर्जला भीमसेनी एकादशी मनायी जायेगी।

एकादशी तिथि 30 मई दिन मंगलवार को दिन के 01:07 बजे से आरंभ होकर दूसरे दिन 31 मई बुधवार को 01:45 बजे तक रहेगा। इसके बाद द्वादशी तिथि का शुभारंभ हो जाएगा।

भीमसेन एकादशी के दिन सूर्योदय 05:24 बजे पर और सूर्यास्त शाम 07:14 बजे पर होगा। चंद्रोदय दिन के 03:29 बजे पर और चंद्रास्त रात 03:09 बजे पर होगा। दिनमान 13 घंटा 59 मिनट का और रात्रिमान 10 घंटा 09 मिनट का रहेगा।

सूर्य वृषभ राशि में, चंद्रमा कन्या राशि में शाम 06:30 बजे तक, इसके बाद तुला राशि में गोचर करेंगे। आयन उत्तरायण और ऋतु ग्रीष्म रहेगा।

भीमसेनी एकादशी के दिन नक्षत्र हस्त शाम 06 बजे तक, इसके बाद चित्रा हो जायेगा। प्रथम कारक बिष्टि/भद्रा 01:45 बजे तक, इसके बाद बव हो जायेगा। 

आनंदादि योग आनंद है। होमाहुति शनि, दिशा शूल उत्तर, राहु कालवास दक्षिण-पश्चिम, अग्निवास पाताल दिन के 01:45 बजे तक इसके बाद पृथ्वी और चंद्रवास दक्षिण पश्चिम रहेगा।

पूजा करने का शुभ मुहूर्त

किसी भी एकादशी व्रत करने पर चारों पहर पूजा करने का विधान है। भीमसेनी एकादशी सभी एकादशियों में कठिन होता है। निर्जला भीमसेनी एकादशी जेष्ठ माह में होने के चलते और कठिन हो जाता है।

अब जानें क्या चारों पहर पूजा करने का शुभ मुहूर्त। भीमसेनी एकादशी करने वाले व्रतधारियों को सुबह 04:30 बजे से लेकर 4:00 बजे का 43 मिनट तक ब्रह्म मुहूर्त रहेगा। उसी प्रकार लाभ मुहूर्त 05:24 बजे से लेकर 07:08 बजे तक और अमृत मुहूर्त 07:08 बजे से लेकर 08:51 बजे तक रहेगा। इस दौरान आप सुबह का पूजा विधि विधान से कर सकते हैं।

दोपहर का पूजा:- एकादशी करने वाले व्रतधारियों को 10:35 बजे से लेकर 12:19 बजे तक दोपहर का पूजा करने का शुभ मुहूर्त हैै। इस दौरान दोपहर का पूजा कर सकते हैंं। वैसे 2:37 बजे से लेकर 3:30 बजे तक विजय मुहूर्त है इसमें भी आप दोपहर का पूजा निपटा सकते हैं।

संध्या पूजन:-निकासी करने वाले व्रत धारियों को संध्या का पूजा करने का शुभ मुहूर्त इस प्रकार है। गोधूलि मुहूर्त शाम 07:00 बजे से लेकर 07:24 बजे तक है। उसी प्रकार 05:30 बजे से लेकर 07:14 बजे तक लाभ मुहूर्त हैै। इस दौरान उचित समय अपनाते हुए आप संध्या बेला का पूजा अर्चना कर सकते हैं।

मध्य रात्रि पूजा करने का शुभ मुहूर्त:-मध्य रात्रि में पूजा करने का शुभ मुहूर्त रात 11:03 बजे लेकर 12:19 बजे तक चर मुहूर्त रहेगा। उसी प्रकार 11:58 बजे से लेकर 12:39 बजे तक निशिता मुहूर्त है। इस दौरान आप मध्य रात्रि का पूजा अर्चना कर सकते हैं।

प्रातः कालीन पूजा करने का शुभ मुहूर्त:-सुबह के वक्त पूजा करने का शुभ मुहूर्त इस प्रकार है। ब्रह्म मुहूर्त 04:02 बजे से लेकर 04:43 बजे तक और प्रातः सांध्य मुहूर्त 04:30 बजे से लेकर 05:24 बजे तक है। इस दौराान आप अंतिम पहर की पूजा कर पारण कर सकते हैं।

जानें भीमसेन निर्जला एकादशी की पौराणिक कथा

भीमसेन वेदव्यासजी से कहते हैं कि हे ! पितामह, भाई युधिष्ठिर, माताश्री कुंती, द्रौपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव आदि सभी एकादशी का व्रत करते हैं। परन्तु ऋषिवर वेदव्यास हम कहता हूं कि भाई हम भगवान की शक्ति कि पूजा तो कर सकता हूं। हर तरह के दान-दक्षिणा भी दे सकता हूं, परंतु एक छन भी भोजन की बिना हम रह नहीं सकते।


भीम की बातें सुनने के बाद महर्षि वेदव्यासजी ने कहा कि हे भीमसेन यदि तुम नरक को खराब और स्वर्ग को अच्छा मानते हो तो प्रति मास की दोनों एकादशियों को अन्न मत खाया करो।


भीमसेन ने कहा कि हे ! पितामह, हम तो आप से पहले ही कह चुका हूं कि हम किसी भी कीमत पर भूखा नहीं रह सकते। अगर साल भर में कोई ऐसा  एक व्रत हो, तो मैं भूखा रह सकता हूं। क्योंकि मेरे पेट में वृक नाम वाली अग्नि है। इसलिए मैं भोजन किए बिना नहीं रह सकता। भोजन करने से जेठाअग्नि शांत रहती है। इसलिए पूरा दिन उपवास तो क्या हम तो एक वक्त भी बिना भोजन किए रहना हमारे लिए विकट समस्या है।


हे मार्गदर्शक पितामह आप मुझे कोई ऐसी व्रत करने को कहें जो सालभर में केवल एक ही व्रत करना पड़ें और मुझे स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति हो जाए।


वेदव्यासजी ने कहा कि हे ! पुत्र भीम बड़े-बड़े ऋषियों ने बहुत वेद और शास्त्र लिखें हैं। जिनसे बिना धन खर्च किए और थोड़े परिश्रम करने से ही स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है। इस प्रकार धर्म ग्रंथों में दोनों पक्षों की एकादशी व्रत मोक्ष और विष्णु धाम की प्राप्ति के लिए किया जाता है।


वेदव्यासजी के वचन सुनकर बाहुबली भीम नर्क में जाने के नाम से डरने और कांपने लगे कि अब क्या करूं ? महीने में दो एकादशी व्रत तो हम कर ही नहीं सकते। हां वर्ष में एक एकादशी व्रत करने का प्रयत्न हम जरूर कर सकता हूं। इस प्रकार सालभर में एक दिन व्रत करने से अगर मेरा मोक्ष हो जाए तो ऐसा कोई व्रत हो तो आप मुझे बताइए।


भीमसेन की बातें सुनकर वेदव्यासजी कहने लगे वृषभ और मिथुन की संक्रांति के बीच जेष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की जो एकादशी पड़ती है, उसका नाम निर्जला एकादशी है। भीमसेन तुम उस निर्जला एकादशी का व्रत करो। इस एकादशी के व्रत में स्नान और आचमन के अलावा जल से किसी भी प्रकार के अन्य कार्य करना वर्जित है। 

अचमन में छह मासे से अधिक जल नहीं होना चाहिए। अन्यथा यह मद्यपान के सदृश हो जाता है। इस दिन भोजन नहीं करना चाहिए क्योंकि भोजन करने से व्रत नष्ट हो जाता है।


अगर भीमसेन तुम एकादशी के दिन सूर्योदय से लेकर द्वादशी तिथि के सूर्योदय तक किसी भी प्रकार के अन्न सहित जल ग्रहण न करें तो उसे सभी 26 एकादशियों व्रत करने का फल प्राप्त होता है। द्वादशी तिथि के सूर्योदय से पहले उठकर स्नान, पूजा-पाठ करने के उपरांत ब्राह्मणों को दान देने चाहिए। इसके बाद भूखे और धर्मनिष्ठ ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद पारण करके भोजन कर लेना का विधान है। भीमसेन एकादशी का फल पूरे वर्ष भर की सभी एकादशियों के बराबर मिलता है।


महर्षि व्यासजी कहने लगे कि हे ! भीमसेन यह मुझ को स्वयं भगवान ने बताया है। इस एकादशी का पुण्य समस्थ तीर्थों और दानों से अधिक है। केवल एक दिन मनुष्य निर्जला रहने से सभी पापों से मुक्ति हो जाता है।


जो जातक निर्जला भीमसेन एकादशी का व्रत करता है। जब उनकी मृत्यु होती है। उस समय यमदूत नहीं आते हैं बल्कि श्रीहरि विष्णु के पार्षद आते हैं और मृतक आत्मा पुष्पक विमान में बैठा कर विष्णु धाम ले जाते हैं। अतः संसार में सबसे श्रेष्ठ निर्जला भीमसेन एकादशी का व्रत है। इसलिए पूरे मनोभाव के साथ इस व्रत को करना चाहिए। उस दिन ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का जप करना चाहिए और ब्राह्मणों को गौ दान, भू दान और पैसे का दान करना चाहिए।


इस तरह वेदव्यास जी के आदेशानुसार भीमसेन ने निर्जला एकादशी व्रत को विधिपूर्वक किया। इसलिए इस एकादशी व्रत का नाम पांडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं। 

भीमसेन निर्जला व्रत करने से पहले भगवान श्रीहरि विष्णु से प्रार्थना करें कि हे ! श्रीहरि विष्णु आज मैं निर्जला व्रत कर रहा हूं। द्वादशी के दिन भोजन करूंगा। मैं इस व्रत को श्रद्धा, निष्ठा और विश्वास पूर्वक कर रहा हूं। व्रत के प्रभाव से और आपकी कृपा मेरे सारे पाप नष्ट हो जाए। इस दिन जल से भरा एक मिट्टी से बने घड़ें को वस्त्र से ढंक कर स्वर्ण या पैसे रखकर गरीब ब्राम्हण को दान करने चाहिए।


जो मनुष्य इस व्रत को करते हैं उनको हजारों किलो सोने के दान का फल मिलता है। और जो इस दिन व्रत के साथ यज्ञ भी करते हैं, उनके मिलने वाले फलों का वर्णन नहीं किया जा सकता है। इस एकादशी व्रत करने से जातकों को विष्णु धाम की प्राप्ति होती है। 

जो मनुष्य एकादशी व्रत के दिन अन्न खाते या जल ग्रहण करते हैं वह निशाचर के समान है। और अंत में नर्क जाते हैं। जिसने निर्जला एकादशी का व्रत पूरे श्रद्धा और भक्ति पूर्वक करते हैं। वह चाहे गौ का वध किया हो या ब्राह्मण हत्यारा किया हो, मदिरापान करता हो, चोरी-डकैती की हो या गुरु को धोखा दिया हो मगर इस भीमसेन एकादशी व्रत के प्रभाव से विष्णु धाम को जाता है।


हे ! कुंती पुत्र जो पुरुष या स्त्री श्रद्धा पूर्वक इस व्रत को करते हैं उन्हें अग्रलिखित कर्म करने चाहिए। प्रथम भगवान का पूजन,, फिर गोदान, ब्राह्मणों को मिष्ठान और दक्षिणा देना देनी चाहिए। तथा जल से भरे कलश का दान अवश्य करना चाहिए। निर्जला के दिन अन्न, वस्त्र और जूता आदि का दान भी करना चाहिए। जो मनुष्य भक्ति पूर्वक इस पौराणिक कथा को पढ़ते हैं या सुनते हैं, तो आपको निश्चय ही विष्णु धाम की प्राप्ति होती है।


डिस्क्लेमर

भीमसेनी निर्जला एकादशी व्रत पूरी तरह धर्म शास्त्रों और पौराणिक कथाओं में उल्लेखित कहानी को आधार बनाकर लिखा गया है। शुभ और अशुभ मुहूर्त पंचांग से लिया गया है। यह लेख सनातन धर्म वाले लोगों को पर्व के प्रति आकर्षण पैदा करने और कैसे व्रत किया जाता है। इसकी जानकारी देने के लिए लिखा गया है।

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