वट सावित्री व्रत पूजन 19 मई को, महिलाएं करें ये उपाय सदा रहेगी सुहागिन

अपने पति की दीर्घायु की कामना कर, सुहागन महिलाएं करती है वट सावित्री व्रत और पूजा ?

बट सावित्री व्रत 19 मई दिन शुक्रवार ज्येष्ठ मास, कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि को पड़ रहा है। 

अमावस्या तिथि शुक्रवार रात 09:22 बजे तक रहेगा। जबकि 18 मई 2023 को रात्रि 09 बजकर 42 मिनट से अमावस्या तिथि प्रारंभ होगी।

वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास में दो आता है। एक अमावस्या तिथि के दिन और दूसरा पूर्णिमा तिथि के दिन।
ऐसे स्थिति में वट सावित्री अमावस्या तिथि व्रत 19 मई 2023 को मनाया जाएगा। इस दिन शोभन योग का निर्माण हो रहा है, जो संध्या 07 बजकर 37 मिनट तक रहेगा। इसके बाद अतिगण्ड हो जायेगा। इस दौरान पूजा-पाठ करने से आपको विशेष पुण्य मिलेगा।


पूजा करने का शुभ मुहूर्त जानें विस्तार से

पंचांग के अनुसार वट सावित्री व्रत के दिन पूजा करने का शुभ मुहूर्त 05:30 बजे सुबह से शुरू होकर शाम 03:30 बजे तक रहेगा। इस दौरान सबसे उत्तम मुहूर्त 09:00 बजे से लेकर 10:30 बजे तक अमृत मुहूर्त के रूप में है।

जानें विस्तार से शुभ मुहूर्त के समय सारणी चर मुहूर्त सुबह 05:28 बजे से लेकर 07:11 बजे तक, लाभ मुहूर्त 07:11 बजे से लेकर 08:53 बजे तक, अमृत मुहूर्त 08:53 बजे से लेकर 10:35 बजे तक, शुभ मुहूर्त दिन के 12:18 से लेकर दोपहर 02:00 बजे तक, अभिजीत मुहूर्त दिन के 11:50 बजे से लेकर 12:45 बजे तक और दोपहर 02:34 बजे से लेकर 03:29 बजे तक विजय मुहूर्त रहेगा। शुभ मुहूर्त देख कर व्रतधारी महिलाएं अपने सुविधानुसार पूजा अर्चना कर सकती है।

कौन सी तिथि में किस प्रदेश की महिलाएं मनाएगी वट सावित्री व्रत

काशी पंचांग के अनुसार वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाया जाता है। यह पंचांग उत्तरी भारत के प्रदेशों में मसलन बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब सहित अन्य क्षेत्रों की सुहागिन महिलाएं वट सावित्री व्रत करती है। इसलिए यह त्यौहार मुख्य रूप से इन जगहों पर ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाया जाता है।

वट पूर्णिमा व्रत के दूसरे पहलू के अनुसार ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को दक्षिण भारतीय मनाते है, जिसे वट पूर्णिमा व्रत भी कहते है। कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात व दक्षिण के क्षेत्रों में रहने वाली विवाहिता महिलाएं इस वट सावित्री व्रत इन जगहों पर ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। जबकि व्रत के पीछे की पौराणिक कथा दोनों क्षेत्रों में एक जैसी है.

पंचांग के अनुसार कैसा रहेगा वट सावित्री के दिन

वट सावित्री व्रत के दिन सूर्योदय सुबह 05:28 बजे एवं सूर्यास्त शाम 07:07 बजे पर होगा। वट सावित्री व्रत के दिन नक्षत्र भरणी सुबह 07:29 बजे तक रहेगा। इसके बाद कृतिका नक्षत्र हो जाएगा।प्रथम करण चतुष्पद सुबह 09:00 बज के 29 मिनट तक रहेगा। इसके बाद द्वितीय करण नाग हो जाएगा। सूर्य वृषभ राशि में और चंद्रमा मेष राशि में दोपहर 01:35 बजे तक रहेंगे। इसके बाद वृषभ राशि में गोचर करेंगे। सूर्य का नक्षत्र कृतिका है। इस दिन ऋतु ग्रीष्म है। सूर्य उत्तरायण दिशा में स्थित है।

वट सावित्री व्रत के दिन आनंदादि योग छत्र है। होम आहुति केतु सुबह 07:29 तक इसके बाद सूर्य हो जाएगा। दिशाशूल पश्चिम रा हुकाल वास दक्षिण पुर अग्निवास आकाश चंद्र वास दिन के 1:35 तक इसके बाद दक्षिण हो जाएगा।

इसके बाद वर्धमान हो जाएगा। होमाहूति केतु सुबह 07:12 बजे तक रहेगा। इसके बाद सूर्य हो जाएगा। दिशाशूल पूर्व दिशा में स्थित है। नक्षत्रशूल पश्चिम दिशा में और राहु वास उत्तर पश्चिम दिशा में स्थित है।

अग्निवास आकाश शाम के 04:59 बजे तक, इसके के बाद पृथ्वी हो जाएगा। चंद्रवास दक्षिण दिशा में है।

दक्षिण दिशा मुंह करके ना करें पूजा

दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पूजा करना पूर्णतः वर्जित माना जाता है। कारण नर्क का द्वार दक्षिण दिशा में ही स्थित है। वट सावित्री पूजा पूरब और उत्तर दिशा मैं करना श्रेष्ठ रहेगा।

ऐसे करें बट सावित्री पूजा, सदा बनी रहेगी सुहागिन

वट सावित्री व्रत में बरगद के पेड़ की पूजा करने की विधान है। सनातन धर्म शास्त्रों के अनुसार बरगद के पेड़ में सभी देवी-देवताओं निवास करते हैं। वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा, में विष्णु जी और पत्तों में भगवान भोले शंकर निवास करते हैं। 

वट सावित्री व्रत में सुहागिन स्त्रियां बरगद के पेड़ की 7, 9 एल 11 बार परिक्रमा करती हैं और साथ ही कच्चा सूत भी लपेटती हैं। पौराणिक मान्यता है कि बरगद के वृक्ष की पूजा-अर्चना करने से विवाहिता महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है और पति दीर्घायु होते हैं।

प्रतिमा बनाकर करें पूजा

वट वृक्ष के नीचे मिट्टी की बनी सावित्री और सत्यवान तथा भैंसे पर सवार यम की मूर्ति स्थापित कर पूजा करनी चाहिए तथा वट वृक्ष की जड़ में पानी से सिंचाई करने चाहिए।

बट वृक्ष को सींचे शुद्ध जल से

जल से वट वृक्ष को सींचकर तने को चारों ओर सात, नौ एवं ग्यारह बार कच्चा धागा लपेट कर उतने ही बार परिक्रमा करनी चाहिए। साथ ही पंखे से बट वृक्ष को हवा करें। इसके बाद उपस्थित सुहागिन स्त्रियों को सावित्री और सत्यवान की कथा सुननी चाहिए।
पूजा के उपरांत भीगे हुए चनों का बायना निकाल कर उस पर यथाशक्ति पैसा रखकर अपनी सास या घर में रहने वाली बुजुर्ग महिलाओं को देना चाहिए। इसके बाद उनके चरण स्पर्श करने चाहिए। घर आकर जल से अपने पति के पैर धोएं और आशीर्वाद लें। पति को पंखा से हवा करने चाहिए। उसके बाद अपना व्रतधारी महिलाएं पारण कर सकती हैं।

पूजा सामग्रियों की सूची

पूजा के लिए शुद्ध जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल, मौसम फल, गंगाजल, सत्यवान-सावित्री की मूर्ति, बांस का पंखा, लाल धागा,कच्चा सूत, इत्र, पान, सुपारी, नारियल, सिंदूर, अक्षत, सुहाग का सामान, भीगा चना, कलश, मूंगफली के दाने, मखाने का लावा बरगद का फल, मिट्टी का दीपक, धूप, घी और पांच फल जिसमें लीची, केला और आम अवश्य होनी चाहिए।सावित्री का व्रत रखने वाली सुहागिन महिलाओं को दो शुद्ध जल से धुले हुए टोकरियां लेनी चाहिए। दोनों टोकरियों में पूजा का सामान सजाकर रखना चाहिए।

अब जानें पौराणिक कथा

सावित्री ने पसंद किया सत्यवान

अपनी कन्या सावित्री के युवा होने पर पिता अर्थात मद्र देश के राजा अश्वपतिअश्वपति ने विवाह का विचार करने लगे। राजा के विशेष प्रयास करने पर भी सावित्री के लिए कोई योग्य वर नहीं मिला। सावित्री को अपने लिए स्वयं वर खोजने का आदेश पिता ने दिया।

पिता की आज्ञा स्वीकार कर सावित्री योग्य और विश्वासी मंत्रियों के साथ लेकर स्वर्ण से बने रथ पर बैठकर विभिन्न राज्यों की यात्रा के लिए चल पड़ी।

कुछ दिनों तक ब्रह्म ऋषियों और राज ऋषियों के तपोवन और तीर्थों में भ्रमण करने के बाद राज महल लौट आई। पिता के समीप देव ऋषि नारद जी को बैठे देखकर दोनों के चरणों को श्रद्धापूर्वक स्पर्श कर दंडवत प्रणाम किया।

राजा के पूछने पर सावित्री ने कहा पिताश्री तपोवन में माता-पिता के साथ निवास कर रहे धमत्सेन के पुत्र सत्यवान सर्वथा मेरे योग है। अतः सत्यवान की कृति सुनकर मैंने उन्हें पति के रूप में स्वीकार कर लिया है।

नारदजी ने सत्यवान की आयु बतायी एक वर्ष

नारादजी सत्यवान तथा सावित्री के ग्रहों की गणना कर राजा अश्वपति से बोले राजन सावित्री ने बहुत बड़ी भूल कर दी है। सत्यवान के पिता शत्रुओं द्वारा राज्य से वंचित कर दिए गए थे।

सत्यवान के माता-पिता वन में तपस्वी जीवन व्यतीत कर रहे हैं और अंधे हो चुके थे। सबसे बड़ी समस्या यह था कि सत्यवान की आयु अब केवल 1 वर्ष की शेष रह गया है।

नारद जी की बात सुनकर राजा अश्वपति व्याकुल हो गए और उन्होंने सावित्री को कहा बेटी अब तुम फिर से विभिन्न राज्यों की याऐ करो और किसी दूसरे सुयोग्य वर का चयन करो। सावित्री सती कन्या थी।

सावित्री ने दृढ़तापूर्वक अपने पिता से कहा हे पिताश्री मैं आर्य कन्या होने के नाते जब मैं सत्यवान का पति मान चुकी हूं तो, अब सत्यवान चाहे दीर्घायु हो या अल्प आयु हो, अब तो वही मेरे पति बनेंगे। जब मैंने एक बार उन्हें अपना पति स्वीकार कर लिया, फिर मैं दूसरे पुरुष को पति कैसे मान सकती हूं।

सत्यवान से शादी करने को ठान ली सावित्री ने

सावित्री नाम की धर्मनिष्ठ महिला जिसे पता था उसका पति की आयु मात्र 1 साल है। फिर भी उसे अपने नारी और सतीत्व पर यकीन था। उसमें यमराज से भी लड़ने कि शक्ति थी।

वन में सत्यवान ने प्राण त्यागा

घटना के दिन पति और पत्नी दोनों जंगल में लकड़ी काटने गए थे। सत्यवान के पिता राजा थे, परंतु नियति ने उन्हें आंधा और गरीब बना दिया था। सत्यवान लकड़ी काटने के उपरांत उसने सावित्री से कहा।

सर में दर्द हो रही है । सावित्री कुछ समझ पाती उसी बीच उसके पति के शरीर से प्राण निकल चुके थे। थोड़ी देर में सावित्री ने देखी एक दिव्य व्यक्ति जो यमराज थे, उसके पति सत्यवान की आत्मा को ले जाने के लिए आए हैं। यमराज ने सत्यवान की आत्मा को लेकर चलने लगे। यमराज के पीछे पीछे-पीछे सावित्री भी चलने लगी।

यमराज से मांगी सावित्री ने अपने ससुर और सास के आंखों की खोयी रोशनी और राज्य

यमराज ने कहा सावित्री से कहा पुत्री वर मांग लो और लौट जाओ। सावित्री ने अपने नेत्र हीन सास ससुर की आंखें और खोया हुआ राज्य मांग लिया। वर मिलने के बाद भी सावित्री ने यमराज की पीछा नहीं छोड़ी। तो यमराज ने कहां की पुत्री सशरीर लेकर स्वर्ग में कोई नहीं जाता है।

इसलिए तुम लौट जाओ। विधि का यहू विधान है। तुम्हारे पति की इतना ही आयु बची थी। मुझे तुम्हारे पति को ले जाना मेरी मजबूरी है।

यमराज से सावित्री ने मांगी 100 पुत्र प्राप्ति की वरदान

सावित्री ने कहा कि मुझे एक सौ पुत्र होने का वरदान दे। यमराज ने वरदान दे दिया। फिर भी जब सावित्री पीछा नहीं छोड़ी तो यमराज ने कहा अब क्या चाहिए ?

सावित्री ने कहा कि मुझे एक सौ पुत्र होने का वरदान दे। यमराज ने वरदान दे दिया। फिर भी जब सावित्री पीछा नहीं छोड़ी तो यमराज ने कहा अब क्या चाहिए ? सावित्री कही हे यमराज महाराज आपने मुझे सौ पुत्रों की मां बनने का वरदान तो दे दिया है, परंतु मेरे पति का आत्मा आप लेकर जा रहे हैं।

ऐसे में मुझे पुत्रों की प्राप्ति कैसे होगी। यमराजजी अपने वचन से हार चुके थे। इसके बाद यमराज ने सावित्री के पति का प्राण वापस कर दिया और फिर यमलोक लौट गए।

सावित्री की धर्मिनष्ठा, विद्या, विवेक, सदाचार और पतिव्रता धर्म की बात सुनकर यमराज ने सत्यवान के प्राणों को अपने पाश से स्वतंत्र कर दिया। सावित्री सत्यवान के प्राण को लेकर वट वृक्ष के नीचे पहुंची, जहां सत्यवान का मृतक शरीर पड़ा हुआ था। सावित्री ने वट वृक्ष की सात बार परिक्रमा की। वटवृक्ष के परिक्रमा के बाद सत्यवान जीवित हो गया।

सावित्री की धर्मिनष्ठा, विद्या, ज्ञान, विवेक और पतिव्रत धर्म की बात सुनकर यमराज ने सत्यवान के प्राणों को अपने पाश से स्वतंत्र कर दिया। सावित्री सत्यवान के प्राण को लेकर वट वृक्ष के नीचे पहुंची जहां सत्यवान का मृत शरीर पड़ा था।

सावित्री ने वट वृक्ष की सात बार परिक्रमा की तो सत्यवान जीवित हो उठा। खुशी पूर्वक सावित्री अपने सास−श्वसुर के पास पहुंची तो देखा कि उनके नेत्रों में ज्योति प्राप्त हो गई। इसके बाद सत्यवान के माता-पिता के कब्ज़ा हुआ राज्य भी उन्हें मिल गया।

कालांतर में सावित्री सौ पुत्रों की मां बनी। इस प्रकार चारों दिशाएं सावित्री के पतिव्रत धर्म पालन की कीर्ति चहुंओर गूंज उठीं।

कथा का सारांश है कि अगर कोई भी नारी निश्चय कर ले ,तो कुछ भी कर सकती है। वैसे भी भारतीय संस्कृति में नारी को शक्ति रूपा मानते हैं।

यह कथा पूरी तरह धार्मिक ग्रंथों पर आधारित है। साथ ही पूजा करने का उचित समय पंचांग के अनुसार दिया गया है। यह कथा आपको कैसा लगा, ईमेल से जरूर सूचित कीजिएगा

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