नृसिंह जयंती पर करें ये सात उपाय, हो जायेंगे मालामाल

श्री नृसिंह भगवान विष्णु के क्रोधावतार है। साथ ही शक्ति तथा पराक्रम के प्रमुख देवता माने जाते हैं। 

वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि, विक्रम संवत 2080, दिन गुरुवार, 04 मई 2023 को नृसिंह जयंती है।

इस दिन भगवान श्री नृसिंह ने खंभे को चीरकर भक्त प्रह्लाद की रक्षा हेतु अवतार लिए थे। इसलिए इस दिन को लोग नृसिंह जयंती को उत्सव के रूप में मनाते हैं।

नृसिंह जयंती पर करें ये सात आसान उपाय, हर मनोकामना होगी पूर्ण

अगर आपके शरीर में अधिक दिनों से कोई गंभीर बीमारी है। काफी दवा चलाने के वाद भी राहत नहीं मिल पा रही है। ऐसी स्थिति में एक सनातनी उपाय करके देख लें। नृसिंह जयंती के दिन सच्चे मन से और श्रद्धा भाव से भगवान नृसिंह को चंदन का लेप चढ़ाएं। ऐसा करने से आपको राहत मिलेगी।

किसी पद मिलने में हो रही प्रतिस्पर्धा से आप परेशान हैं। अनजान दुश्मनों का डर मन में हमेशा बना रहता है। ऐसी स्थिति में आप भगवान नृसिंह को बर्फ और गंगा जल को शुद्ध जल में मिलाकर चढ़ाएं। ऐसा करने से आपको हर तरफ से सफलता मिलने की संभावना बढ़ जायेगी। 

अगर आप धनवान बनना चाहते हैं या पैसे की बचत कर किसी कीमती वस्तु की खरीदारी करना चाहते हैं, तो भगवान नृसिंह को पूरे श्रद्धा भाव से नागकेसर चढ़ाएं। नागकेसर चढ़ाकर थोड़ा सा नागेकेसर अपने साथ घर लेकर आएं और उसे आप घर की तिजोरी या उस अलमारी में रख दें, जहां पर पैसे और गहने आदि रखें जाते हैं।

 अगर आप किसी तरह के कानूनी उलझन में फंस गए हैं। रोजाना कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाते हुए पूरी तरह से थक गए हैं। ऐसी स्थिति में आप नृसिंह चतुर्दशी पर भगवान को दही का प्रसाद चढ़ाएं। आपका कल्याण होगा।

अगर आपके कुंडली में कालसर्प दोष है। आप आर्थिक परेशानी या समय नहीं रहने के कारण पूजन नहीं कर पा रहे हैं। साथ ही कोई ज्योतिषीय उपाय नहीं लह पा रहा है। ऐसी स्थिति में नृसिंह जयंती को किसी नृसिंह मंदिर में जाकर एक मोरपंख चढ़ा दें। इससे आपको राहत मिलेगी।

अगर आप अगाध कर्ज में डूब चुके हैं। साथ ही आपका पैसा बाजार में फंस गया है। उधारी वसूल नहीं हो रही है। ऐसी परेशानियों से छुटकारा पाने के लिए नृसिंह भगवान को चांदी के बने भगवान नृसिंह की प्रतिमा या मोती के माला चढ़ाएं।

अगर कोई आपसे किसी भी तरह से नाराज हो गया है। अगर आप से दूर जा चुका है। ऐसी स्थिति में आप उससे रिश्ते को फिर वैसे ही बनाना चाहते हैं, तो मक्की का आटा नृसिंह मंदिर में जाकर दान कर दें।

नृसिंह जयंती व्रत ऐसे करें

नृसिंह जयंती के दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में सोकर उठें। सबसे पहले अपने संपूर्ण घरों की साफ-सफाई करें। इसके बाद गंगा जल या गौमूत्र का छिड़काव कर पूरा घर पवित्र कर लें। इसके बाद इस प्रकार मंत्र बोलें।

नृसिंह देवदेवेश तव जन्मदिने शुभे।

उपवासं करिष्यामि सर्वभोगविवर्जितः॥

इस मंत्र के साथ दोपहर के समय सबसे पहले तिल तेल, इसके बाद गोमूत्र, आंवला और मृत्तिका पूरे शरीर में मल कर बारी-बारी से तीन बार स्नान करने के उपरांत शुद्ध जल में गंगा जल मिलाकर चौथी बार स्नान करना चाहिए।

पूजा के स्थान को गोबर से लीपकर तथा तांबा या मिट्टी के कलश में पैसा, अक्षत, कसैली सहित पूजा सामग्रियों को डालकर स्थापना करें। इसके बाद अष्टदल कमल बनाना चाहिए।

अष्टदल कमल पर भगवान नृसिंह, प्रह्लाद, लक्ष्मीजी एवं सिंह की मूर्ति स्थापित करना चाहिए। इसके बाद वेदमंत्रों से इनकी प्राण-प्रतिष्ठा कर षोडशोपचार से पूजन करना चाहिए।

रात्रि जागरण के वक्त गायन, वादन, नृत्य, पुराण श्रवण या हरि संकीर्तन करना चाहिए। दूसरे दिन फिर पूजन कर ब्राह्मणों को भोजन करा, श्रद्धालुओं के बीच प्रसाद वितरण करना चाहिए।

नृसिंह जयंती पर कैसा रहेगा दिन जाने पंचांग के अनुसार

04 मई, दिन गुरुवार, वैशाख शुक्ल पक्ष चतुर्दशी तिथि, जानकी नवमी के दिन पंचांग के अनुसार कैसा रहेगा दिन ? जानें विस्तार से। सूर्योदय सुबह 05:38 बजे और सूर्यास्त शाम 06:58 बजे पर होगा। पर चंद्रोदय शाम 05:00 बज के 44 मिनट पर और चंद्रास्त अहले सुबह 05:12 बजे पर होगा। 

नक्षत्र चित्र, योग वज्र सुबह 09:35 बजे तक, इसके बाद सिद्धि हो जाएगा। सूर्य मेष राशि में और चंद्रमा सुबह 09:20 बजे तक कन्या राशि में इसके बाद तुला राशि में प्रवेश कर जाएंगे।

सूर्य नक्षत्र भरणी है। दिनमान 13 घंटे 19 मिनट का रहेगा, जबकि रात्रिमान 10 घंटे 39 मिनट का रहेगा। आनन्दादि योग चर है। होमाहुति चंद्र है। दिशाशूल दक्षिण है। राहुकाल वास दक्षिण है। अग्निवास पृथ्वी है। भद्रावास पाताल है और चंद्रवास दक्षिण पश्चिम दिशा में है।

नृसिंह जयंती व्रत के दौरान किस समय करें पूजन

नृसिंह जयंती के दिन संध्या वेला पूजा करने का विधान है। गोधूलि बेला जिस समय सूर्य अस्त हो रहा है और आसमान में हल्का काली छाई हो अर्थात ना तो दिन होना चाहिए और न ही रात होना चाहिए। 

उसी वक्त नृसिंह भगवान ने क्रोधा अवतार लिए थे। पूजा करने का उचित समय जिसे हम गोधूलि बेला कहते हैं। हम आपको विस्तार से बताते हैं कि कौन सा मुहूर्त किस समय है, जब आप पूजा-अर्चना कर सकते हैं।

शाम के वक्त पूजा करने का शुभ मुहूर्त गोधूलि मुहूर्त, अमृत मुहूर्त और शुभ मुहूर्त है। शुभ उत्तम मुहूर्त शाम 05:18 बजे से लेकर 06:58 बजे तक, गोधूलि मुहूर्त शाम 06:45 बजे से लेकर 07:09 बजे तक और अमृत मुहूर्त सर्वोत्तम 06:58 बजे से लेकर रात 08:58 बजे तक रहेगा इस दौरान आप सुविधा के अनुसार भगवान नृसिंह का पूजा अर्चना कर सकते हैं।

विष्णु नृसिंह अवतार पौराणिक कथा

शास्त्रों में वर्णित कथाओं के अनुसार, हिरण्यकश्यप को ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त था कि वह न तो किसी मनुष्य द्वारा मारा जा सके  न ही किसी पशु द्वारा। न दिन में मारा जा सके, न रात में, न जमींन पर मारा जा सके, न आसमान में। इस वरदान के नशे में आकर उसके अंदर अहंकार भर गया। जिसके बाद उसने स्वर्ग के राजा भगवान इंद्र के राज्य पर कब्जा कर लिया और तीनों लोक में रहने वाले जातकों को तरह-तरह से प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। उसने तीनों लोकों में रहने वाले लोगों के बीच घोषणा कर दी कि मैं ही इस पूरे ब्रह्मांड का भगवान हूं और सभी जीव-जंतु मेरी पूजा करें।

दूसरी ओर हिरण्कश्यप के स्वभाव से ठीक उल्टा उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान श्रीहरि विष्णु का परम भक्त था। पिता के बार-बार मना करने और प्रताड़ित करने के बाद भी प्रह्लाद भगवान विष्णु की पूजा करता रहा।

हजारों बार समझाने के बाद भी जब विष्णु भक्त प्रह्लाद ने अपने दुष्ट पिता  हिरण्यकश्यप की कोई भी बात नहीं मानी तो उसने अपने पुत्र प्रह्लाद को ऊंची पहाड़ से धकेलकर मारने की अथक प्रयास की, परन्तु भगवान श्रीहरि विष्णु ने अपने परम भक्त प्रह्लाद की जान बचा ली। इसके बाद हिरण्कश्यप ने प्रहलाद को जिंदा जलाने के लिए अपनी बहन होलिका की गोद में बैठकर मारने की नाकाम कोशिश की।

अंत में अत्यंत क्रोधित हिरण्कश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद को खंभे में बांधकर आग लगा दी और बोला पड़ा बता तेरा भगवान विष्णु कहां है, प्रहलाद ने बताया कि भगवान श्रीहरि विष्णु यहीं हैं, जहां आपने मुझे खंभे से बांध रखा है। जैसे ही हिरण्कश्यप अपने गदे से प्रह्लाद को मारना चाहा, उसी वक्त भगवान श्रीहरि विष्णु नरसिंह का अवतार लेकर खंभे से बाहर निकल आए और हिरण्कश्यप का वध कर दिया। जिस दिन भगवान नृसिंह ने हिरण्यकश्यप का वध करके अपने परम भक्त प्रहलाद के जीवन की रक्षा की। जिस दिन श्रीहरि विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर भक्त प्रह्लाद के जान बचाएं। उस दिन को नृसिंह जयंती के रूप में लोग मनाते हैं।

वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को नृसिंह जयंती मनाई जाती है। यह भगवान नृसिंह के जन्मोत्सव का पर्व माना जाता है। नृसिंह, भगवान श्रीहरि विष्णु के क्रोधावतार हैं। भगवान विष्णु ने हिरण्यकशिपु पर क्रोध करते हुए उसे मारने के लिए ये नृसिंह अवतार लिया था। चूंकि, क्रोध से भगवान नृसिंह का शरीर जलता है, इसलिए उन्हें ठंडी चीजें अर्पित की जाती हैं। तरह-तरह चीजें चढ़ाने से भक्तों को अलग-अलग तरह के फल मिलता है। 

नृसिंह जयंती के मौके पर तरह-तरह के उपाय करने से हर तरह की समस्या और बीमारियां दूर होती हैं। नृसिंह जयंती के मौके पर सुबह स्नान के बाद भगवान नृसिंह के मंदिर में जाकर उनकी पूजा करने का सनातनी विधान हैं। चंदन और फूल से भगवान नृसिंह की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद आपके मन में जो भी मनोकामना हो उसके अनुसार भगवान नृसिंह को उसी तरह के सामान चढ़ाना चाहिए।

नृसिंह चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु अपने भक्त प्रह्लाद के रक्षा करने के लिए आधा सिंह व आधा मनुष्य रूप में प्रकट हुए, भगवान श्रीहरि विष्णु के इस रूप को नृसिंह कहा गया। वैशाख शुक्ल चतुर्दशी तिथि को नरसिंह जयंती व्रत के नियम, दिशा-निर्देश और प्रक्रिया श्रीहरी विष्णु के एकादशी व्रत के समान ही होते हैं।

नरसिंह जयंती से एक दिन पहले अर्थात त्रयोदशी तिथि को भक्त केवल एक ही वक्त भोजन ग्रहण करते हैं। नृसिंह जयंती व्रत के उपवास के दौरान सभी प्रकार के अनाज निषिद्ध अर्थात नहीं खाना चाहिए। परंपरा के अनुसार यह सलाह दी जाती है कि रात को पूजा करें एवं अगले दिन सुबह विसर्जन पूजा तथा दान-दक्षिणा करने के उपरांत ही व्रत का समापन करें।

भगवान नृसिंह की विशेष पूजा शाम के वक्त करनी चाहिए। अर्थात दिन खत्म होने और रात शुरू होने से पहले अर्थात गोधूलि बेला होती है। शास्त्रों के अनुसार इसी गोधूलि बेला में भगवान नृसिंह प्रकट हुए थे।

भगवान नरसिंह की पूजा में खासतौर से चंदन चढ़ाकर अभिषेक किया जाता है। नृसिंह भगवान विष्णु के रौद्र रूप का अवतार है। इसलिए इनका गुस्सा शांत करने के लिए भक्त चंदन चढ़ाते है। जो कि शीतलता प्रदान करता है। दूध, मधु, दही, पंचामृत और शुद्ध पानी से किया गया अभिषेक ही भगवान नृसिंह के रौद्र रूप को शांत करता है। 

डिस्क्लेमर

यह लेख पूरी तरह धर्मशास्त्र और धार्मिक पुस्तकों पर आधारित है। विद्वान पंडित और आचार्यों से विचार-वमर्श करने के बाद लिखा गया है। शुभ मुहूर्त और आज का पंचांग का विवरण पंचांग से लिया गया है। यह लेख सनातन धर्म को आगे बढ़ाने और सनातनी पर्व त्यौहार को विस्तार देने के लिए लिखा गया है।


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