अक्षय तृतीया पर पढ़ें राशि के अनुसार खरीददारी, परशुराम जन्म कथा, महाभारत व द्वापर युग के समाप्ति की कथा

अक्षय तृतीया के दिन ब्रह्मा जी के पुत्र अक्षय कुमार का जन्म, हयग्रीव और परशुरामजी का अवतार, इसी दिन बद्रीनाथ धाम का कपाट खुलते हैं। इसी दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुई थी। त्रेता युग का शुभारंभ हुआ था। वृंदावन के  श्रीविग्रह जी के चरणों के दर्शन होते हैं। अनबूझ मुहूर्त इसी दिन है। निर्भिक होकर करें शादी।



अक्षय तृतीया वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि जो विक्रम संवत 2080, दिन रविवार, दिनांक 23 अप्रैल को मनाया जाएगा।

सिंधु निर्णय पुराण के अनुसार जिस दिन सूर्योदय होगा। उस दिन को उस तिथि के अनुसार दिनभर माना जायेगा। इस प्रकार तृतीया तिथि 13 अप्रैल दिन रविवार को दिनभर मान्य रहेगा।

दिनांक 22 अप्रैल दिन शनिवार सुबह 07:49 बजे से तृतीया तिथि प्रारंभ हो जाएगी, जो दूसरे दिन अर्थात रविवार को सुबह 07:45 बजे को समाप्त हो जाएगी

अक्षय तृतीया 23 अप्रैल को है इस बात की जानकारी गया के आचार्य जीतेंद्र उपाध्याय और टाटानगर के आचार्य गोविन्द झा ने संयुक्त रूप से दी।

अब जानें अक्षय तृतीया के दिन क्या-क्या घटनाएं घटित हुई थी।

01.अक्षय तृतीया के दिन ब्रह्मा जी के पुत्र अक्षय कुमार का जन्म हुआ था।

02.इसी दिन हयग्रीव का अवतार हुआ था।

03.अक्षय तृतीया के दिन बद्रीनाथ धाम का कपाट खुलते हैं।

04.इसी दिन परशुराम जी का जन्म हुआ था।

05.अक्षय तृतीया के दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुई थी।

06.द्वापर युग की समाप्ति और त्रेता युग का शुभारंभ इसी दिन हुआ था।

07.वृंदावन के बांके बिहारीजी मंदिर में इसी दिन श्रीविग्रह जी के चरणों के दर्शन होते हैं। नहीं तो सालों भर उनके चरण वस्त्र से ढ़के रहते हैं।

अक्षय तृतीया के दिन खरीदारी करने की पौराणिक और धार्मिक परंपरा है। आइए हम आपको बताते हैं, अक्षय तृतीया के दिन किस राशि के लोग किस वस्तु की खरीददारी करें। हम आपको इस बात की जानकारी विस्तार से दे रहे हैं। नीचे पढ़ें।

मेष राशि--मेष राशि के स्वामी मंगल ग्रह है। इसलिए इस राशि के लोगों को लाल मसूर दाल की खरीदारी करें। इस दिन लड्डुओं का वितरण लोगों के बीच करना चाहिए। ऐसा करने से आपके ऊपर लक्ष्मी कृपा सालों दर साल बनी रहेगी।

वृषभ राशि-- वृषभ राशि के स्वामी गुरु है। नाम इस राशि वाले लोगों को चावल या बाजरे की खरीदारी करनी चाहिए। इसके अलावा मिट्टी के जल से भरे घड़े का दान करने से कुंडली में शुक्र की स्थिति मजबूत होगी। ऐसा करने से भौतिक सुख सविधा की प्राप्ति होती रहेग।

मिथुन राशि-- मिथुन राशि के स्वामी बुध ग्रह है। मिथुन राशि वाले स्वामी को नए कपड़े, हरा मूंग या धनिया की खरीदारी करनी चाहिए। ऐसा करने से बुध की स्थिति आपकी कुंडली में सालों मजबूत रहेगी।

कर्क राशि कर्क राशि के स्वामी चंद्रमा है। अक्षय तृतीया के दिन इस राशि के जातकों को दूध और चावल की खरीदारी करनी चाहिए। साथ ही दूध और चावल दान करना चाहिए। ऐसा करने से कुंडली में चंद्रमा की स्थिति मजबूत होगी और सालों भर आपके जीवन में सुख समृद्धि बनी रहेगी।

सिंह राशि-- सिंह राशि के स्वामी ग्रहों का राजा सूर्य देव है। इसलिए इस राशि के जातकों को तांबे के बर्तन की खरीददारी करना अत्यंत सुखदाई होगा। ऐसे जातकों को लाल मसूर, लाल कपड़े या गुड़ का दान करना चाहिए। ऐसा करने से आपके कुंडली में सूर्य देव की तिथि मजबूत होगी और आपके जीवन के हर परेशानियों का अंत हो जाएगा।

कन्या राशि-- कन्या राशि के स्वामी बुध है इसलिए इस राशि के लोगों को मूंग के दाल की खरीददारी करनी चाहिए। ऐसा करने से जातकों के कुंडली में बुध का मजबूत रहे रहेंगे। ऐसा करने से घरों में सुख शांति बनी रहेगी।

तुला राशि-- तुला राशि के स्वामी शुक्र देव है। तुला राशि वाले लोगों को चीनी और चावल की खरीदारी करनी चाहिए। अक्षय तृतीया के दिन ऐसे लोगों को सफेद चीजों अर्थात सफेद कपड़ा, चावल, दही और दूध का दान करने चाहिए। ऐसे करने से कुंडली में शुक्र की स्थिति मजबूत होगी। साथ ही श्री हरि की कृपा सालों भर आपके ऊपर बनी रहेगी।

वृश्चिक राशि-- वृश्चिक राशि के स्वामी मंगल देव हैं। अक्षय तृतीया के दिन गुुुड़़ की खरीदारी करनी चाहिए। साथ ही जल से भरे घड़े का के दान करने के अलावा लोगों को शर्बत पिलाए और प्याऊ लगााएं। ऐसा करने पर आपके कुंडली में मंगल ग्रह की स्थिति मजबूत होगी और आपके परिवार आपसी क्लेश से दूर रहेगीी,।

धनु राशि-- धनु राशि के स्वामी देवताओं के गुरु बृहस्पति हैै। इसलिए अक्षय तृतीया के दिन इस राशि वाले लोगों को केले और पीले चावल की खरीदारी करनी चाहिए। साथ ही इस राशि वाले लोगों को पीलेे वस्तु अर्थात पीले कपड़े पीले चावल और पीले केले का दान करना चाहिए। साथ ही पीले कपड़ों में हल्दी के गांठ को बांधकर पूजा स्थलकर रख देने चाहिए। ऐसा करने से आपके कुंडली में गुरु बृहस्पति की स्थिति मजबूत होगी और धन से संबंधित समस्याओं पर विराम लग जाएगा।

मकर राशि-- मकर राशि के स्वामी शनि देव है। अक्षय तृतीया के दिन ऐसे राशि वाले लोगों को दही और काली उरद के दाल की खरीदारी करनी चाहिए। साथ ही लोगों को काली चीजें जैसे काले कपड़े, काले तिल और काली उरद दाल को दान जरूर करना चाहिए। ऐसा करने से कुंडली में शनि की स्थिति मजबूत बने रहेंगे। साथ ही शनिदेव की शनि दोष से मुक्ति मिल जाती है।

कुंभ राशि-- कुंभ राशि के स्वामी भी शनिदेव ही हैंं। अक्षय तृतीया के दिन कुंभ राशि वाले जातकों को काला तिल और नए काले कपड़े की खरीदारी करनी चाहिए। साथ ही उस राशि वाले लोगों को सरसों का तेल, काले तिल और लोहे से बने वस्तुओं का दान करना चाहिए। ऐसा करने से आपके कुंडली में शनि की स्थिति मजबूत होगी और जीवन में चल रहे हर तरह की परेशानियों से मुक्ति मिल जायेगी।

मीन राशि के स्वामी देवताओं के गुरु बृहस्पति हैंं। इस राशि वाले लोगों को अक्षय तृतीया के दिन हल्दी और चने के दाल की खरीदारी करने चाहिए। साथ ही अक्षय तृतीया के दिन ज़रूरत मंंद लोगों को हल्दी और चने का दाल दान करना चाहिए। ऐसा करने से आपके कुंडली में गुरु बृहस्पति की स्थिति मजबूत बनी रहेगी।

पौराणिक कथा में पढ़ें महर्षि परशुराम की जीवनी, भगवान हयग्रीव जी की जीवनी और अमीर वैश्य की कहानियां

पंचांग के अनुसार जानें अक्षय तृतीया के दिन कैसा रहेगा

वैशाख माह, शुक्ल पक्ष, तृतीया तिथि, विक्रम संवत 2080, दिन रविवार, दिनांक 23 अप्रैल 2023 को अक्षय तृतीया है। अक्षय तृतीया के दिन सूर्योदय सुबह 05:58 बजे पर और सूर्यास्त शाम 06:01 बजे पर होगा।

उसी प्रकार चंद्रोदय सुबह 07:45 बजे पर और चंदास्त रात 10:00 बज के 17 मिनट को होगा। नक्षत्र रोहिणी, योग सौभाग्य सुबह 08:22 बजे तक इसके बाद शोभन हो जाएगा। सूर्य मेष राशि में और चंद्रमा वृषभ राशि में गोचर कर रहे हैं।

अक्षय तृतीया के दिन दिनमान 13 घंटा 03 मिनट का होगा जबकि रात्रि मान 10 घंटा 55 मिनट का रहेगा।

आनन्दादि योग धाता/प्रजापति, होमाहुति बुध, दिशाशूल पश्चिम, नक्षत्र शूल पश्चिम, राहुकाल वास उत्तर, अग्निवास आकाश सुबह 07:47 बजे तक इसके बाद पाताल हो जाएगा। भद्र स्वर्ग में और चंद्रवास दक्षिण दिशा में स्थित है।

अब पढ़े पूजा करने का और आंवले पेड़ के नीचे भोजन करने का शुभ मुहूर्त

अक्षय तृतीया के दिन आंवले वृक्ष के नीचे पूजा करने और भोजन करने का सनातनी विधान है। माना जाता है कि आज के दिन कोई भी शुभ कार्य करने से अक्षय हों जाता है अर्थात जिसका क्षय नहीं होता है। इसीलिए इस दिन को अक्षय तृतीया के नाम से जाना जाता है। इस दिन सुबह से लेकर दोपहर तक, अनेक शुभ मुहूर्त हैं। जानें विस्तार से।
सुबह 07:26 से लेकर 09:00 बज के 04 मिनट तक चर सम्मान मुहूर्त, 09:04 बजे से लेकर 10:12 बजे तक लाभ उन्नति मुहुर्त और अमृत सर्वोत्तम मुहूर्त 10:42 बजे से लेकर 12:20 बजे तक रहेगा। इसके अलावा शुभ मुहूर्त दोपहर 01:58 बजे से लेकर 03:30 बजे तक रहेगा। अभिजीत मुहूर्त 11:54 बजे से लेकर 12:40 बजे तक और विजय मुहूर्त 02:30 बजे से लेकर 03:22 बजे तक रहेगा। इस दौरान आंवला वृक्ष के नीचे पूजा और भोजन कर सकते है।

पढ़े परशुराम जी का जीवन कथा

पौरोणिक कथा के अनुसार महर्षि परशुराम जी का जन्म महर्षि भृगु के पुत्र महर्षि जमदग्नि के यहां हुआ था। परशुराम का जन्म पुत्रेष्टि यज्ञ से हुआ था। यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान के फल स्वरूप महर्षि जमदग्नि की पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया को मध्यप्रदेश इन्दौर जिला के गांव मानपुर के जानापाव पर्वत पर हुआ था।

परशुराम सतयुग के अंत और त्रेता युग के प्रारंभ में ऋषि जमदग्नि के यहां जन्म लिए थे। जो विष्णु के छठवें अवतार माने जाते हैं।

परशुराम भगवान विष्णु के क्रोधावतार हैं

परशुराम भगवान विष्णु के क्रोधावतार हैं। विष्णुपुराण के अनुसार परशुराम का पहला नाम राम था। प्रभु शिव ने उन्हें अपना परशु (फरसा) नामक अस्त्र दिए थे। परशु धारण करने के कारण उनका नाम परशुराम पड़ गया।

शिव के आश्रम में रहकर विद्या अर्जन किया परशुरामजी ने

प्रारंभिक शिक्षा उन्होंने महर्षि विश्वामित्र एवं ऋचीक के आश्रम में रहकर प्राप्त किए। ऋषि ऋचीक ने शार्ङ्ग नामक दिव्य अस्त्र और वैष्णव धनुष दिए। कश्यप ब्रह्मर्षि से शास्त्रानुसार अविनाशी वैष्णव मंत्र प्राप्त किए। इसके बाद कैलाश पर्वत के गिरिश्रृंग पर स्थित भगवान शंकर के आश्रम में रहकर उन्होंने विद्या प्राप्त कर अति दुर्लभ दिव्यास्त्र, विद्युदभि नामक परशु (फरसा) प्राप्त किए। भगवान भोलेनाथ ने श्रीकृष्ण का त्रैलोक्य विजय कवच, स्तवराज स्तोत्र एवं मन्त्र कल्पतरु उन्हें प्रदान किए।

पढ़े हयग्रीव की कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार उत्तराखंड का पूरा क्षेत्र भगवान भोलेनाथ के आधीन था। एक समय की बात है। एक बार भगवान विष्णु सहस्रकवच धारी दुर्द्धम्भ नाम के राक्षस का वध करने के लिए बद्रीनाथ धाम में नर और नारायण के रूप में तपस्या की थी।

दुर्द्धम्भ को एक हजार कवच का वरदान मिला

इस जगह की महत्ता और अलौकिकता का ही परिणाम है कि यहां एक दिन की तपस्या का फल एक हज़ार वर्ष की तपस्या के फल के समान है। सहस्रकवचधारी दुर्द्धम्भ को भगवान सूर्य ने एक हजार रक्षा कवच धारण करने का वरदान दिए थे। एक कवच भेदने के लिए एक हजार साल तक तपस्या करना पड़ता है। अपने को अमर समझकर दानव ने संपूर्ण लोक में उपद्रव करने लगा।

विष्णु को भाया शिव का निवास स्थान

भगवान विष्णु अपनी तपस्या के लिए सही जगह की खोज कर रहे थे तब उन्हें अलकनंदा नदी के किनारे का यह स्थान बहुत पसंद आया। लेकिन वहा पर भगवान शिव तपस्या कर रहे थे और उनका पूरा परिवार वहां रह रहा था।

चारों धाम का निर्माण चार युग में

जब-जब धरती पर अधर्म का बोझ बढ़ा है, तब-तब अपने भक्तो को कष्ट से उबारने के लिए विश्व के पालन कर्ता भगवान विष्णु ने जन्म लिया है। जिस प्रकार त्रेता युग में रामेश्वर धाम बना था। उसी प्रकार द्वापर युग में द्वारका धाम, कलियुग में जग्गन्नाथ पुरी धाम और सतयुग में बदरीनाथ धाम की महत्ता का वर्णन मिलता है।

एक दिन तपस्या करने का फल हजार दिनों का मिलता है

वहां भगवान विष्णु ने नर और नारायण रूप में तप किया था। बदरीनाथ में एक दिन की तपस्या करने का फल एक हज़ार साल की तपस्या के बराबर माना जाता है। दुर्द्धम्भ राक्षस के वध के लिए भगवान ने यहां एक सौ दिन तक तपस्या नर और नारायण के रूप में की थी।

बद्रीनाथ में होती है सारी मनोकामनाएं पूरी

बद्रीनाथ धाम में भगवान विष्णु, बद्री नारायण के रूप में आज भी तप कर रहे है। कहते है यहां जो भी भक्त आता है और सच्चे मन से भगवान बद्रीनाथ का ध्यान करता है, उसकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है।

भगवान विष्णु ने बालक रूप धारण किया

भगवान विष्णु को उसी स्थान पर तपस्या करना था परंतु वहां भोलेनाथ के परिवार निवास करते थे। उन्हें वहां से कैसे हटाया जाए यही सोचकर उन्होंने बालक का रूप धारण कर लिया। भगवान विष्णु ने बालक रुप धारण करके रोना शुरु कर दिया। रोते हुए बालक की आवाज सुन कर मां पार्वती बालक को चुप कराने बालक के पास गई।

बालक ने मांगा अलकनंदा का किनारा

तब उन्होनें बालक से कहा कि उसे क्या चाहिए तो बालक ने अलकनंदा किनारे की जगह मांग ली।

भगवान शिव और मां पार्वती ने बालक को वो स्थान दे दिया। इसके बाद भगवान विष्णु अपने असल रुप में आ गए और वहां पर तप करने लगे। तपस्या के दौरान भगवान विष्णु इतने ज्यादा लीन हो गए थे कि उन्हें ये भी ध्यान नहीं रहा कि उनके ऊपर बर्फ जमने लग गई है।

मां लक्ष्मी बन गई बेर का पेड़

ये सब देख भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मी को बहुत दुख हुआ और वो एक बेर के पेड़ के रुप में भगवान विष्णु के पास खड़ी हो गई। और सारी बर्फ पेड़ पर गिरने लगी। तपस्या खत्म होने के बाद जब भगवान विष्णु ने देखा की उनकी पत्नी ने सारी बर्फ खुद पर ले ली है तो उन्होनें उस स्थान को बद्रीनाथ धाम का नाम दे दिया।

राजा कनक ने निर्माण कराया था बद्रीनाथ

बद्रीनाथ धाम का निर्माण आठवीं शताब्दी में आदि गुरु शंकाराचार्य ने परमार राजा कनक के हाथों करवाया था। इस मंदिर में स्थित भगवान विष्णु की मूर्ति को लेकर चर्चा है कि उसे आदि गुरु शंकराचार्य ने अलकनंदा नदी से खोजा था और मंदिर के गर्भ गृह में स्थापित किया था।

बद्रीनाथ में स्वयं प्रकट प्रतिमा स्थापित है

बद्रीधाम में स्थापित प्रतिमा को भगवान विष्णु के स्वंय प्रकट हुई आठ प्रतिमाओं में से एक माना जाता है। बद्रीनाथ में स्थापित भगवान विष्णु की मूर्ति को पंच बद्री अर्थात भगवान बद्रीनाथ के पांच रुपों को दर्शाता है और उसी प्रतिमाओ कि पूजा की जाती है। इस मंदिर में माता लक्ष्मी और अन्य देवी देवताओं की प्रतिमा स्थापित है।

जानें हयग्रीव की पौराणिक कथा

जब-जब पृथ्वी पर धर्म की हानि होती है भगवान किसी न किसी रूप में अवतार अवश्य लेते हैं। जानें हयग्रीव की पौराणिक कथा

हयग्रीव के पौराणिक कथा के अनुसार कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर माता भगवतीने उसे अपनी तामसी शक्ति के रूप में दर्शन दिया। भगवती महामाया ने उससे कहा, ये राक्षस कुलश्रेष्ठ तुम्हारी तपस्या सफल हुई। मैं तुम पर अती प्रसन्न हूं। तुम्हारी जो भी इच्छा हो मैं उसे पूरा करने के लिए तैयार हूं। वर मांगो। राक्षस कुलश्रेष्ठ भगवती की मधुर वाणी सुनकर हयग्रीव बहुत ज्यादा खुश हुआ। और कहा हे ममतामयी देवी भगवती आपको नमस्कार है। आप महामाया हैं। आपकी कृपा से सब कुछ कुछ संभव है। यदि आप मुझ पर अति प्रसन्न हैं तो मुझे अमर होने का वरदान दें।

जिसका जन्म हुआ है उसका मृत्यु निश्चित है

देवी महामाया ने कहा, राक्षस राजा पृथ्वी में जिसका जन्म होता है, उसकी मृत्यु होती है। यह परम सत्य है। ईश्वर के इस विधान को कोई नहीं तोड़ सकता। किसी भी सांसारिक व्यक्ति को सदा के लिए अमर होना असंभव है। तुम अमरत्व के अलावा कोई अन्य वर मांग लो।

राक्षस ने कहा मेरी मृत्यु हयग्रीव के हाथों हो

हयग्रीव बोला, तो ठीक है मेरी मृत्यु हयग्रीव के हाथों हो। दूसरे मुझे कोई न मार सकें। देवी महामाया ने कहा ‘ऐसा ही होगा’। यह कह कर भगवती अंतर्ध्यान हो गईं। हयग्रीव के वरदान के प्रभाव से वह अजेय हो गया। त्रिलोक में कोई भी ऐसा नहीं था, जो उस दुष्ट राक्षस को मार सके।

हयग्रीव ने ब्रह्मा जी से वेदों को छीन लिया

हयग्रीव देवताओं तथा ऋषि, मुनियों को सताने लगा। यज्ञादि कर्म-कांड बंद हो गए और सृष्टि की व्यवस्था बिगडऩे लगी। ब्रह्मा सहित अन्य देवी देवताओं ने भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु योगनिद्रा में लीन थे। उनके धनुष की डोरी चढ़ी हुई थी। भगवान वाण पर सर रखकर सोए हुए थे। ब्रह्मा जी ने उनको जगाने के लिए वम्री नामक एक कीड़ा उत्पन्न किया। ब्रह्मा जी के आदेश से उस कीड़ा नेे उनके धनुष की प्रत्यंचा काट दी।

विष्णु जी का कटा सिर, मचा हाहाकार

धनुष की प्रत्यंचा कटने से बड़ा भयंकर टंकार और आवाज हुआ और भगवान विष्णु का मस्तक कटकर अदृश्य हो गया। सिर रहित भगवान के धड़ को देखकर देवताओं स्तंभ और दुःखी हो गए। सभी देवी देवताओं ने मिलकर भगवती की स्तुति की। भगवती प्रकट हुई। उन्होंने कहा देवगणों चिंता करने की जरूरत नहीं है।

ब्रह्मा ने घोड़े का मस्तक काटकर विष्णु  के धड़ से जोड़ दिया। 

ब्रह्मा जी ने देवताओं से कहा मेरी कृपा से तुम्हारा मंगल ही होगा। ब्रह्मा जी एक घोड़े का मस्तक काटकर भगवान के धड़ से जोड़ दें। इससे भगवान का हयग्रीवावतार हुआ। फिर भगवान का हयग्रीव दैत्य से भयानक युद्ध हुआ। अंत में भगवान के हाथों हयग्रीव की मारा गया। हयग्रीव को मारकर भगवान ने वेदों को ब्रह्मा जी दे दिया।

वैश्य की पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार किसी राज्य में एक अमीर वैश्य रहता था। अमीर होने के बाद भी वह गरीब था। एक दिन किसी ब्राह्मण ने उसे अक्षय तृतीया व्रत रखने की सलाह दी। वैश्य ने अक्षय तृतीया व्रत रखा गंगा स्नान किया और अपने सामर्थ्य के अनुसार दान दक्षिणा दिया।

कुछ ही दिनों के बाद इसका व्यापार बढ़ने लगा और वह अमीर बन गया। अगले जन्म में वह कुशावती का राजा बना। वह इतना धनी बन गया कि अक्षय तृतीया के दिन त्रीदेव अर्थात ब्रह्माजी, भगवान विष्णु और शिव भगवान ब्राह्मण का भेष धारण कर यज्ञ में भाग लेते हुए, यज्ञ की शोभा बढ़ाते थे।

अनबूझ मुहूर्त इसी दिन है। निर्भिक होकर करें शादी

अक्षय तृतीया के दिन अनबूझ मुहूर्त रहता है। इस दिन बिना लग्न, मुहूर्त और गणना के विवाह संपन्न हो सकते हैं। जिसका विवाह किसी कुंडली दोष के कारण नहीं हो रहा है। ऐसे जातक भी इस दिन शादी कर सकते हैं। इस दिन वाहन खरीदना, आभूषण खरीदना, घर और जमीन खरीदना काफी शुभ होता है।

दान देना सर्वश्रेष्ठ रहेगा।

अक्षय तृतीया के दिन दान देना अच्छा रहेगा। उस दिन दान करने से मनुष्य को अनंत फल की प्राप्ति होती है।

अक्षय तृतीया के दिन आंवला वृक्ष के नीचे खाना खाएं

अक्षय तृतीया के दिन आंवला वृक्ष के नीचे भोजन बनाना चाहिए। वहीं पर बैठकर भोजन करने से अनंत फल की प्राप्ति होती है। आंवला वृक्ष के नीचे भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित कर विधि विधान से पूजा करें। ब्राह्मनों को गुप्त दान दें।

डिस्क्लेमर

यह कथा देवी पुराण, विष्णु पुराण सहित अन्य पुराणों से लिया गया है। कथा में शुभ और अशुभ मुहूर्त, तिथि यह सब पंचांगों का गहन अध्ययन कर लिखा गया है। कृपया यह कथा कैसा लगा ई-मेल द्वारा जरूर सूचित कीजिएगा।

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